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Chandra Singh Rahi Legendary Folk Singer of UK- चन्द्र सिंह राही लोक गायक

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Manoj Istwal

लोकगायक चन्द्र सिंह राही नहीं रहे...!
रेडिओ और ऑडियो कैसेटों के माध्यमों से कई दशक उत्तराखंडी हृदयों में अपनी आवाज के बलबूते पर राज करने वाले सुप्रसिद्ध लोकगायक चन्द्र सिंह राही ने आज लम्बी बीमार के बाद प्रात: 2.20 आखिरी सांस छोड़ गए.
हिल्मा चांदी कु बटीणा...रैंद दिलमा तुमारी रटीणा, या सात समुद्र पार कि जाणा ब्वे जाज म जौलू कि ना, भाना हे रंगीली भाना, दुरु ऐजै बांज कटन, पार बौणा कु छई घसेरी, मालू ये तू मालू नि काटी, हिट बलदा सरासरी रे, तिन हाळमा जाणा रे, रूपैकी खजानी भग्यानी कनि छए, धार मा सी जून दिखेंदी जनि छइ,'फ्यूंलाडी त्वे देखि कि औंद ये मन मां, सहित सौली घुराघुर्र डगडिया सहित दर्जनों ऐसे गीत उन्होंने गाये हैं जो आज भी उन्हें हमारे बीच अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं.
उन्होंने देहरादून के टाउन हाल में सर्वप्रथम ढोलवाद्यों पर आधारित एक जुगलबंदी प्रस्तुत की जिसमें लगभग सभी चर्मवाद्य शामिल थे. उनकी आवाज की जीवटता या जीवन जीने की शैली ही कहेंगे की उनके मल्टीपल ऑर्गन फेल होने के बाद भी वे अपनी सांस्कृतिक विधा के प्रचार प्रसार में अपना धर्म निभाते रहे.
राही चौन्दकोट क्षेत्र के पट्टी मौन्दाडस्यूं के ग्राम गिंवाळी में 28 मार्च 1942 में जन्मे. उन्होंने अपनी पुरखों से मिली लोककला को ही अपना धर्म मानकर कार्य प्रारम्भ किया एवं शुरूआती दौर में स्व. बद्रीश पोखरियाल द्वारा दिल्ली के लोधी कालोनी में बनाई गई गढ़वाल भ्रात्री संघ के सांस्कृतिक प्रकोष्ट में अपनी सांस्कृतिक यात्रा की शुरुआत की. उस दौर में इस संस्था में स्व. सुदामा प्रसाद प्रेमी, स्व. कन्हैय्या लाल डंडरियाल, राजेन्द्र धस्माना, मोहन उप्रेती, डॉ. शिवानन्द नौटियाल,अवोधबंधू बहुगुणा, स्व. गिरधारी लाल थपलियाल कंकाल सहित कई नामी गिरामी लोग जुड़े जिन्होंने दिल्ली के विभिन्न स्थानों में कई गढ़वाली प्ले किये जिनमें वीर बधु देवकी व शकुंतला नृत्य नाटिका बहुत प्रसिद्ध हुए
राही जी ने लगभग 2000 गीतों का संग्रहण किया और लगभग 550 गीत उनके स्वरचित गीत थे, उन्होंने लोकसंगीत या कहें कि सांस्कृतिक विधा को जीवित रखें के लिए एक पुस्तक "रमछोळ" भी लिखी वह वर्तमान में बाजार तक आई कि नहीं मैं नहीं जानता. उन्होंने डौर, थाली के स्वर, हुड़की, ढोल, दमाऊँ, वीणा, शहनाई के स्वरों व तालों को संकलन करने का काम किया है और स्वयं इन वाद्य यंत्रों को बजाया भी। उनका कहना था कि उनके पिताजी ही उनकी शुरूआती पाठशाला थे क्योंकि पिताजी घड़ियाला बजाने का काम करते थे तो उन्हीं की सांगत में उन्होंने डौर, थाली, हुडके में सांगत सीखी. चार पुत्र और एक पुत्री के पिता रहे चन्द्र सिंह राही के जेष्ठ पुत्र बीरेंद्र नेगी जाने माने संगीतकार हैं जबकि अन्य सतीश तबला वादक व पुत्री विधोत्तमा अपने समय पर बहुत सुरीले कंठ की गायिका रही हैं. लोकभाषाओं के पक्षधर रहे राही का कहना था कि क्षेत्रीय भाषाओं, गढ़वाली, कुमाउँनी, जौनसारी, भोटिया आदि भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही लोकगीत, लोक परम्परायें, लोक संगीत, लोक वाद्य यंत्रों पर काम अवश्य होना चाहिये।
बीस बर्ष तक दिल्ली दूर संचार यानि टेलीफोन विभाग में कार्य करने के बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति इस लिए ले ली क्योंकि उनके राग राग में संस्कृति के वे मूल्य बसे थे जो उन्होंने अंतिम सांस तक जिए. इसके अलावा उन्होंने नाटक विधा में भी वर्तमान के कुछ साल पूर्व तक काम किया जिनमें जागर संस्था के माध्यम से दूरदर्शन के पूर्व समाचार सम्पादक राजेन्द्र धस्माना द्वारा लिखा गया नाटक "अर्द्धग्रामेश्वर व कफ़न काफी लोकप्रिय रहा.
इसी संस्था द्वारा लिखित प्ले "शकुंतला नृत्य नाटिका" को मैंने पिछली सदी के नब्बे के दशक में छोटे परदे पर उतारकर उसका लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारण करवाया था.
स्व. राही ने अपनी शुरुआत भी आकाशवाणी लखनऊ व बाद में आकाशवाणी नजीबाबाद से की. ऐसे पुरोधा को मेरी दिल से श्रधांजलि. प्रदेश की संस्कृति के इस नुक्सान की भरपाई असम्भव है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

राही जी के कुछ प्रसिद्ध गीत।  चन्द्र सिह राही ने कुमाउनी और गढ़वाली दोनों भाषाओं में गीत गाये। 

1. हिल्मा चांदी कु बटीणा...रैंद दिलमा तुमारी रटीणा,
2. सात समुद्र पार कि जाणा ब्वे जाज म जौलू कि ना,
3. भाना हे रंगीली भाना, दुरु ऐजै बांज कटन,
4. पार बौणा कु छई घसेरी, मालू ये तू मालू नि काटी,
5. हिट बलदा सरासरी रे, तिन हाळमा जाणा रे,
6. रूपैकी खजानी भग्यानी कनि छए,
7. धार मा सी जून दिखेंदी जनि छइ,'
8 फ्यूंलाडी त्वे देखि कि औंद ये मन मां,
9. जाण दे सुवा ग्वालदम की गाडी मा

Sunita Sharma Lakhera:
भुल्लू उत्तराखंड मेरो प्राण च , मेरो जीण कु आधार च , अपरी माटी वास्ता जतगा भी करो कम च , जै माट माँ जल्म लियुं च वींकी उद्धार हम अपरि -अपरि स्थिति -परिस्थिति अनुसार करदा और तुम किले पैथर छवा | लेख्यवार कुई छुट्टु बडु नि होंदन ,आप अपरी  नन्ही कलम उठाओ त ज़रा , माँ भगवती का चरणो मा धरी कण अपरी जल्मभूमि वास्ता समर्पित हुए जावा त | आदरणीय भैजि आप मेरी प्रेरणा , सदैनी मिठी झिड़की .....अब कण मा सुणलु ...... यक़ीन करण मुश्किल च ...बहुत मुश्किल च ...  आपकी इच्छा क़ि आजकल  लोकसंगीत पिछड़ना च .... भोंडे गीतों कु प्रचलन मा नई पीढ़ी भटकना छन ...यीं दिशा मा  भारी ध्यान दीण की जरुरत च .... हाँ भैजि हमर पूरी कोशिश रैली आपक सुपन्यों पण कार्य करला .... आपकू उत्तराखंड कला संस्कृति  वास्ता करियु  हर कार्य सदैनी अमर राल ....|
माँ भगवती आप्थैं अपरी चरणो माँ जगह देली यीं  विश्वास का साथ
अंतिम प्रणाम .....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Vinay KD with Ajay Joshi and 3 others.
42 mins ·
श्रद्धांजलि....
"जब लोक बचेगा तो विधाएं भी बचेंगी। लोकभाषा बचेगी तो परंपरा भी बचेगी। लोक में कुछ जुटता है और कुछ छूटता है। लोकगीत तभी है जब लोकधुन है। और इसके संरक्षण के लिये हम सबको मिलकर आगे आना होगा..."।
वर्ष 2014 में दैनिक जागरण द्वारा आयोजित सम्मान समारोह "स्वरोत्सव" में ये शब्द कहने वाले लोकगायक श्री चंद्रसिहं राही जी का एक लंबी बीमारी के बाद का जाना उत्तराखण्ड संस्कृति जगत के लिये एक अपूरणीय क्षति है। हिल्मा चांदी कु बटणा... रैंद दिलमा तुमारी रटीणा, सात समुद्र पार कि जाणा ब्वे जाज म जौलू कि ना, भाना हे रंगीली भाना, दुरु ऐजै बांज कटन, सौली घुराघुर्र डगडिया, मैणा घस्येरी जैसे गीतों के जरिये राही जी सदैव हमारे बीच जीवित रहेंगे...
कौथीग-2014 में अखिल गढ़वाल सभा देहरादून के मंच से एक सांस्कृतिक संध्या में राही जी की प्रस्तुति...

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