Author Topic: Collection of Exclusive Garhwali Folk Songs-गढ़वाली लोक गीतों का संग्रह  (Read 37411 times)


Respected Bhishma Ji..

Great collection of Uttarakhandi Folk songs.. Keep it up sir.

Hat off to u.

Bhishma Kukreti

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Bhishma Kukreti

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            Chal Maangan : An Invocating deities  Folk song for Pnadaun, Garhwali-Kumauni Folk Dance

(Garhwali Folk Dance, Garhwali folk songs, Kumauni Folk Dances, Kumauni Folk Songs )

                                    Bhishm Kukreti

             Pandau Nrity geet (Pandau dance-Song) is a very popular and likable religious and community dance-song of Kumaun and Garhwal regions of Uttarakhand.
             Pandau Nrity is a dance of Mandan (मंडाण). Mandan dance means where the worship and dance is performed around fire (Agni devta). The place is usually, country yard, community yard and dancers dance in groups with full vigor. There is no restriction of numbers of dancers in Pandaun dance (पंडोउ-
नाच). The dance is called ‘Mandan (मंडाण) only when there is worshipping of fire at the corner by music instrument players-Aujee/das. Lighting fire by rituals calls the deities. The Aujees worship deities as Bhumipal, Khetrpal, Ghandyal, and Kurum deities by aid of Chandan, Akshat, Roli-Pithai, dhoop-deep after worship of fire. The fire is burnt till the dance ceremony is not completed (Pnadon nrity samapan).
         Male Pandau dancers dance in circle and there is lighted fire in the centre of circle called ‘Bhad or Homastahal. The music instrument players and the jagar singer who is also a Aujee and music instrument Dhol player.
 After Agni Pooja and Vastuk pooja, the Aujee/singer (the dhol player ), perform the Chauras Baja ceremony through music and ritual songs.
  When Chauras performance is over , the singer or Pandoli (who is specialist of Pandau stories) asks for ‘Chal’ which is called ‘Chauras Mangan’.
 The song for ‘Chal-mangan ‘is as under:

           गढवाली लोक नृत्य पंडो नाच का 'चाल मांगण ' गीत

अमर रयान तेरी राम तोता बाणी ..... (ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),
अमर रयान तेरा ह्रदय सागर ...........(ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),
अमर रयान तेरो सोवन कनौठी........(ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),
अमर रयान यो तामा बिजेसार ......... (ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),
अमर रयान नौ टंका नागर ............(ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),
अमर रयान सोळ टंका ढोल ...............(ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),
पिता स्याम्दासु ! माता महाकाली .........(ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),
लगौ मेरा दास टकनौरी रान्सा ............ (ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),
जंगलूं          की      सैर ..............(ढोल-दमाऊ की ध्वनि-- गिजा-गिजड़ी ),

   As soon as the Dhol Bajan val Aujee (The dhol player who also sing Chal-mangan Jagar geet)
Starts singing and both Dhol and damau players play Dhol-Damau in the tone of ‘gija-Gijadi..Gija-gijadi’
, the dancers stand in circle and start dancing. The dance of Chal-mangan’ is very slow and creates the  rapture of peace (Shant evam Bhakti Ras) .

Source: Dr Shiva Nand Nautiyal,   

Garhwali folk Songs, Kumanuni folk Songs series to be continued in next issue ....

Copyright @ Bhishm Kukreti   

Bhishma Kukreti

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Garhwali- Kumauni folk Musical Instruments and their Tunes -1

Musical Script or Tunes of Badain (congratulations बधाई )

Presented by Bhishma Kukreti

Late Keshv Anuragi's contribution is tremendous in popularizing Garhwali Folk Music specially the Music of Avjees or Dhol and Damau
he also created Musical Script of tunes of Dhol and Damau
Badai or Badhayee tune is prominet tune and is used by Auvjee when there is auspicious time as initiating the Tal of Puja in maariage or Bada Mangan (praising)

१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२
झें गु झेंगा sI झेगु झेगा s sI ता झे ता झे
१३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४
गा s ता sI झग नझेगु झे sI ता ग झे गा
२५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२
s झिग़टिग झेगु तग I झा s s s i
Explainations :
1- s = half a आधा अ
2- I - full Stop, चार विराम
3- Underline ____ is half concave यह संकेत नीचे से अर्ध् चन्द्राकार है
सूचना : इस संगीत लिपि में मेरा कोई योगदान नही है

१- श्री केशव अनुरागी की अप्रकाशित पुस्तक का यह भाग डा शिवा नन्द नौटियाल के गढ़वाल के नृत्य-गीत में छापें हैं
Copyright @ Mrs Keshav Anuragi Dehradun

Musical Script of Dhol-Damau Play , ढोल- दमाऊ/दमौ बजाने के अभियाल ताल (संगीत लिपि )

--------------------------Presented by Bhishma Kukreti --प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती -----
In Garhwal at the time of marriage procession or other procession there comes four types of
Geographical situations viz-Straight road ,Ascending road, Descending Road and bank of River or rivelet
The Dhol-Damau player play dhol-Damau according to geographical sitiation. This musical tune is called Rahmani
सेंदार /सीधो बाटू /रास्ता
झेगु तक झेगु झेग तक I झेगन झगत I झे-नन्ह तक II
उकाळ/चढाई को बाटू /रास्ता
झेनन तक I झे गा झे नन तक I I
उन्धार /उतराई को बाटू /रास्ता
झेगा झे - - I झे नन तक I I
गाड गदन /नदी तीर
झेगु झेगु I झग तग II
___ = अर्धचंद्राकार
Source Keshv Anuragi, Nad Nad Nandani
Dr Shiva Nand Nautiyal
Copyright @ Mrs Keshav Anuragi, Dehradun

ढोल सागर में ढोल के ३९ तालों का वर्णन और संगीत लिपि


(केशव अनुरागी व डा शिवा नन्द नौटियाल का गढवाल के लोक गीतों के संरक्षण में योगदान, भाग -१ )
भीष्म कुकरेती
गढवाल के लोक साहित्य को अक्षुण रखने के लिए कई विद्वानों व गुनी जनों का अथक योगदान है
इनमे से स्व केशव अनुरागी व डा शिवा नन्द नौटियाल का योगदान कहीं अलग भी है . केशव अनुरागी ने ढोल बाडन की शैली को
देहरादून में प्रायोगिक धरातल में प्रचारित व प्रसारित किया . केशव जी राम लीला या अन्य कार्यकर्मों में ढोल बाडन ही नही करते थे अपितु
कईयों को ढोल बाडन का प्रशिक्षण भी देते थे. मुझे अनुरागी जी द्वारा ढोल बादन सुनने का अवसर चुखुवाले की गढ़वाली रामलीला में प्राप्त हुआ है
केशव जी ने कई लोक गीतों की स्वार लिपि भी तैयार कीं हैं और श्री शिवा नन्द नौटियाल जी ने कई लिपियों को अपने ग्रन्थ में स्थान भी दिया है
यथा एक उधाह्र्ण है जिसमे केशव जी ने ढोल सागर के चैती प्रभाती में ढोल दमाऊ युगल बंदी की स्वर लिपि . ढोल में ३९ टाल हैं व दमाऊ में तीन
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ I ८ ९ १० ११ १२ १३ १४
झे नन तू झे नन ता - I झे गा तु झे ननु ता --

१५ १६ १७ १८ १९ २० २१ I २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८
त ग ता झे गु त - I झे गा झे न्ह न ता --
२९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३९ I १ २ ३
ता - क झे ना तु झे गा --- ता -- I झे ननु तु
यह लोक गीत चैत महीने में बजाया जाता है जिसे चैत प्रभाती कहते हैं चैत संगरांद के दिन औजी अपने ठाकुरों के यहाँ घर घर जाकर सुबह इस्ताल पर ढोल दमाऊ बजाते हैं
इस पारकर हम पाते हैं की केशव अनुरागी ने आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत छोडि है . प्रवास में जब अब प्रवासी इन ढोल बजाना नही जानते हैं वे इन सन्गीएत लिपियों के बल पर शी तरह से ढोल-दमाऊ बजा सकते हैं
हमारा नमन स्व केशव अनुरागी को और डा शिवा नन्द नौटियाल को जिन्होंने हमारी धरोहर को बचाने में अतुल्य योगदान दिया

सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती
लिपि अधिकार @ श्रीमती केशव अनुरागी

Bhishma Kukreti

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The Folk Musical Instruments of Garhwal-Kumaun (Hills of Uttarakhand)

           Presented by Bhishma Kukreti

 Dr Shiva Nanad described the following Folk Musical Instruments if his famous book Garhwal ke Nrity Geet He described how the instrument made and who were players of those instruments in details.
 
1- Dhol
 
2- Damau, Rauntali
 
3-Daunr Thali (Damru and Thali)
 
4-Dafli

5-Dholak
 
6-Hudka ya Hudki
 
7- Turri or Ransingha
 
8-Bhainkora
 
9-Mochhang
 
10-Bansuri

11- Algoja
 
12-Nagada
 
13- Mushakbaaj
 
14-Sarangi
 
15-Shankh

bckukreti@gmail.com 

Bhishma Kukreti

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                    ढोल सागर में वर्णित गढ़वाल के वाद्य यंत्र

                         भीष्म कुकरेती

           ढोल सागर गढवाल के दर्शन शास्त्र का एक महत्व पूर्ण साहित्य है. इसे अबोध बन्धु बहुगुणा ने आदि गद्य माना है , (जिस सिद्धांत मै विरोध  करता आया  हूँ ) . सातवी सदी से बारहवीं सदी तल नाथपंथियों के सिद्धों ने नाथपंथी साहित्य गढ़वाल मंडल को दिया . ढोल सागर भी नाथपंथी साहित्य है और शायद बारहवीं या तेरवीं सदी में इसका रचनाकाल हो. जैसे के हर गढवाली नाथपंथी साहित्य का चरित्र है ढोल सागर भी ब्रज भाषा में है और इसमें गढवाली शब्द नाममात्र के हैं . गढवाली शब्दों से अधिक शब्द संस्कृत के हैं .

  ढोल सागर शिवजी और पार्वती संवाद  में है एवम विज्ञानं भैरव शैली में है
 
ढोल सागर में वाद्य यंत्रों का भी वर्णन  है  :
 
I पारबती वाच II अरे आवजी छतीस बाजेंत्र बोलिजे I

ओम प्रथमे I  जिव्हा बाजत्र बाजे २ शंख, ३ जाम, ४ ताल, ५ डंवर ६ जंत्र ७ किंगरी ८ डंड़ी ९ न्क्फेरा १० सिणाई ११ बीन १२ बंसरी  १३ मुरली १४ विणाई  १५ बिमली १६ सितार १७ खिजरी  १८ बेण  १९ सारंगी २० मृदंग २१ तबला २२ हुडकी २३ डफड़ी २४ श्रेरी २५ बरंग (२६ से ३१ का वृत्तांत  भी है ) ३२ रणडोंरु ३३ श्राणे   ३४ नगारा ३५ रेटि (रौंटळ/रौंटी) ३६ ढोल II it ढोल की उतपति बोली जे रे आवजी II

  पंडित इश्वरी दत्त थपलियाल द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में जो छह बाडी यंत्र नही हैं वे शायद झांझ, थाली , चिमटा, सींग, घुंघरू ,होंगे 
 
इससे एक बात पता चलती है कि मुस्क्बाजा ब्रिटिश राज के देन है . हारमोनियम का भी वर्णन ढोल सागर में नही है ( सन्दर्भ : सेमलटी, १९९० )

सन्दर्भ : इश्वरी दत्त थपलियाल १९१३/१९३२ ढोल सागर , बद्रीकेदारेश्वर प्रेस , पौड़ी

अबोध बंधु बहुगुणा , १९७५ गाड मटयकी गंगा

सुरेन्द्र दत्त सेम्लटी , १९९०, गढ़वाल के वाद्य यंत्र , गढवाल की जीवित विभूतियाँ , पृष्ठ २७६ -२८०

Bhishma Kukreti

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                गढवाल के नाथ संप्रदाय के मुख्य लोक वाद्य यंत्र

                       प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती

      गढवाल में कई लोक संगीत वाद्य यंत्र मिलते हैं जो कि सदियों से गढवाल में बजाये जाते हैं .
 
 गढवाल में नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव सातवीं सदी से प्रारम्भ हो चुका था और ड़ळया या अन्य नाथ सम्प्रदायी गुरु भी वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हैं .
 
इनमे दो मुख्य वाद्य यंत्र हैं-

१- किंगरी अथवा गोपीयंत्र : किंगरी को सारगी या चिंकारा भी कहते हैं. यह एक तन्तु वाद्य है जिसे धनुष के आधार व तन्तु की डोर पर महीन लकड़ी को छेड़ कर बजाया जाता है डा. परमेश्वरी लाल गुप्त ने इसे 'किन्नरी वीणा ' अथवा 'चान्दाली वीणा' नाम भी कहा है . डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे सारंगी यंत्र नाम दिया है . नाथपन्थी इस वाद्य को 'गोपी यंत्र ' कहते हैं क्योंकि गुरु गोपी चंड  ने सारगी वाद्य यंत्र की सहायता से नाथ संप्रदायी गीत गाये थे.

२- सिंगी : सिंगी शब्द  श्रिंग शब्द का तद्भव रूप है . यह नाथ साधुओं का पूजा में काम आने वाला महत्वपूर्ण वाद्य यंत्र है . हिरन की सींग से बने यंत्र इस नत्र को फ्फोक कर बजाया जाता है व यह यंत्र जनेऊ पर बंधा होता है. नाथपंथी साधू इसे प्रात कालीन , संध्या  कालीन संध्या बंदन व भोजन पूर्व संध्या वदन के समय बजाते हैं . अतः कह सकते हैं कि सिंगी नाथपंथियों का एक धार्मिक आख्यान का शुभ वाद्य यंत्र है

इसके अतिरिक्त नाथ सम्प्रदाए सिद्ध तुरही, ढोल, दमाऊ, डमरू, शंख, झांझ, कांसी कि थाळी आदि भी प्रयोग करते हैं

 सन्दर्भ : डा. विष्णु दत्त कुकरेती , १९८३ , नाथ पन्थ : गढ़वाल के परिपेक्ष में , पृष्ठ ५०-५३

Bhishma Kukreti

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Garhwali folk Drama

           जागर का द्वितीय सोपान याने द्वितीय चरण की पूजा

            प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती

==============================================
 
            देव खितरपाल घडी -घडी का बिघ्न टाळ
 
             माता महाकाली की जाया , चंड भैरों खितरपाल
              प्रचंड भैरों खितरपाल , काल भैरों खितरपाल
 
               माता महाकाली को जायो , बुढा महारुद्र को जायो
 
               तुम्हारो द्यां जागो तुम्हारो ध्यान जागो 
===========================================
 
  आभार ; प्रताप सिंह नेगी (पुत्र जागरी स्व डुन्कर  सिंह नेगी, ग्राम जसपुर पौड़ी  गढवाल , दुंकर सिंह जी (१९००- १९७० )  ढाण्गु  और हिंवल तट उदयपुर पट्टी के प्रसिद्ध जागरी थे

Bhishma Kukreti

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'                    बौ  सरेला'  का माधुर्यपूर्ण लोक गीत


चली आ ये बौ
 
बिनसर को मेला आ , चली आ ये बौ

बांज की अछ्याणी मि पैलि जौंलू बौ , तू म्यार पैर पछ्याणी

हल्दी का गूंट

देश पोड़ी जौंला , बल्दू जसी जूंट

झगुली झूमर

चार दिनूँ रौंद बौ  या 
 
जवानी की ऊमर...


स्रोत्र : डा शिवा नन्द नौटियाल , गढवाल की लोक गीत , श्याम बुक देहरादून

Bhishma Kukreti

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                      Garhwali folk Song Describing Birth of Lord Krishna
 
                                 Garhwali Nagarja Jagar

                                 Presented by Bhishma Kukreti on web medium

                         नागराजा जागर :  गढ़वाली लोक गीतों  में श्री कृष्ण जन्म
                ( गढवाली लोक गीत, उत्तराखंडी लोक गीत , हिमालयी लोक गीत, भारतीय लोक गीत ) 




                                         जमुना पार होलू कंसु को कंस कोट

                                          जमुना पार होलू गोकुल बैराट

                                          कंसकोट  होलू राजा उग्रसेन

                                          तौंकी राणी होली राणी पवनरेखा

                                          बांयीं कोखी पैदा  पापी हरिणा कंश

                                          दांयी कोखी पैदा देवतुली देवकी

                                           ओ मदु बामण लगन भेददा

                                            आठों गर्भ को होलू कंसु को छेदक

                                       हो बासुदेव को जायो प्रभो , जसोदा को बोलो

                                       देवकी नंदन प्रभो , द्वारिका नरेश

                                        भूपति-भूपाल प्रभो , नौछमी नारेणा

                                        भगत वत्सल प्रभो , कृष्ण भगवान्

                                        हो परगट ह्व़े जाण प्रभो, मृत्यु लोक मांज

                                         घर मेरा भगवान अब , धर्म को अवतार

                                         सी ल़ोल़ा कंसन व्हेने , मारी अत्याचारी

                                          तै पापी कंसु को प्रभो कर छत्यानाश

                                          हो देवकी माता का तैंन सात गर्भ  ढेने

                                          अष्टम गर्भ को दें , क्या जाल रचीने

                                          अब लगी देबकी तैं फिलो दूजो मॉस

                                           तौं पापी कंस को प्रभो, खुब्सात मची गे

                                           हो क्वी विचार कौरो चुचां , क्वी ब्यूँत  बथाओ

                                           जै बुधि ईं देवकी को गर्भ गिरी आज

                                            सौ मण ताम्बा की तौन गागर बणाई

                                             नौ मण शीसा को बणेइ गागर की ड्युलो

                                              हो अब जान्दो देवकी जमुना को छाल

                                             मुंड मा शीसा को ड्युलो अर तामे की गागर

                                             रुँदैड़ा लगान्द पौंछे , जमुना का छाल

                                              जसोदा न सुणीयाले देवकी को रोणो 

                                             हो कू छयी  क्या छई , जमुना को रुन्देड

                                              केकु रूणी छई चूची , जमुना की पन्दयारी

                                             मैं छौं हे दीदी , अभागी देवकी

                                              मेरा अष्टम गर्भ को अब होंदो खेवापार

                                              हो वल्या छाल देवकी , पल्या छाल जसोदा

                                               द्वी बैणियूँ रोणोन जमुना गूजीगे

                                               मथुरा गोकुल मा किब्लाट पोड़ी गे

                                               तौं पापी कंस को प्रभो , च्याळआ पोड़ी गे

                                               हो अब ह्वेगे कंस खूंण अब अष्टम गर्भ तैयार

                                               अष्टम गर्भ होलो कंस को विणास

                                                अब लगी देवकी तैं तीजो चौथो मॉस

                                                 सगर बगर ह्व़े गे तौं पापी  कंस को

                                                 हो त्रिभुवन प्रभो मेरा तिरलोकी नारेण

                                                 गर्भ का भीतर बिटेन धावडी लगौन्द

                                                  हे - माता मातेस्वरी जल भोरी लेदी

                                                  तेरी गागर बणे द्योलू फूल का समान

                                                 हो देवकी माता न अब शारो बांधे याले

                                                 जमुना का जल माथ गागर धौरयाले

                                                  सरी जमुना ऐगे प्रभो गागर का पेट

                                                    गागर उठी गे प्रभो , बीच स्युन्दी माथ

                                                     हो पौंची गे देवकी कंसु का दरबार

                                                    अब बिसाई देवा भैजी पाणी को गागर

                                                     जौन त्वेमा उठै होला उंई बिसाई द्योला

                                                  गागर बिसांद दें कंस बौगी गेन

                                                   अब लगे देवकी तैं पांचो छठो मास

                                                    तौं पापी कंस को हाय टापि मचीगे

                                                   हो- अब लागी गे देवकी तैं सतों आठों मॉस

                                                   भूक तीस बंद ह्व़े गे तौं पापी कंस की

                                                    हो उनि सौंण की स्वाति , उनि भादों की राती

                                                   अब लगे देवकी तैं नवों-दसों मास

                                                  नेडू धोरा ऐगे बाला , तेरा जनम को बगत

                                                  अब कन कंसु न तेरो जिन्दगी को ग्यान

                                                   हो! पापी कंस न प्रभो , इं ब्युन्त सोच्याले

                                                    देवकी बासुदेव तौंन जेल मा धौरेन

                                                    हाथुं मा हथकड़ी लेने , पैरूँ लेने बेडी

                                                   जेल का फाटक पर संतरी लगे देने

                                                   हो उनि भादों को मैना उनि अँधेरी रात

                                                   बिजली की कडक भैर बरखा का थीड़ा

                                                    अब ह्वेगे मेरा प्रभो ठीक अद्धा रात

                                                      हो , हाथुं   की हथकड़ी टूटी , टूटी पैरों की बेडी

                                                    जेल का फाटक खुले धरती कांपी गे

                                                     अष्टम गर्भ ह्व़ेगी कंस को काल

                                                      जन्मी गे भगवान् प्रभो , कंसु की छेदनी


                   सन्दर्भ डा. शिवा नन्द नौटियाल , गढ़वाल के लोक नृत्यगीत

                                       

                                                   

                                       

                                                     







 

                                           






















                                             
 

 

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