उत्तराखण्डी संगीत और गीत के साथ छेड़खानी करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने की जरुरत है। आजकल गीतों में गायक की मौलिक आवाज की जगह एक पतली आवाज सुनने को मिल रही है, कहीं पर डीजे मिक्सिंग सुनने को मिलती है। अभी बीच में कुछ गाने ऎसे भी आये थे जिनमें हिन्दी फिल्मों के गीतों का उत्तराखण्डी रुपान्तरण किया गया था। कुछ दिन पहले मैने एक ऎसा उत्तराखण्डी वीडियो देखा, जिसमें अश्लीलता का चरम था। व्यवसायिकता की अंधी दौड़ में हम क्यों भूल जाते हैं कि कोई भी गीत-संगीत किसी सभ्यता का आईना होता है और ऎसा कुरुप चेहरा दुनिया के सामने लाना क्या उचित है?
ऎसे एलबम जो हमारी भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं, के खिलाफ हमें या तो जनहित याचिका दायर करनी चाहिये या सरकार उत्तराखण्डी वीडियो/आडियो के लिये एक सेंसर बोर्ड बनाये, जिसमें इन्हें सेंसर सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य हो।
व्यवसायिकता की अंधी दौड़ में हम अपनी संस्कृति का अवमूल्यन करें, यह उचित नहीं है।