Poll

क्या उत्तराखंडी गानों का स्तर गिर रहा है ?

Yes
31 (81.6%)
No
4 (10.5%)
Can't say
3 (7.9%)

Total Members Voted: 38

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Decreasing Standard Of Uttarakhand Music - उत्तराखंडी गानों का गिरता स्तर  (Read 22310 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Sure, today i will talk with him and give this feedback. Let us see his reaction etc.

Truely speaking, we have a lot of expecation from Signers like Gajender Rana etc.

yesterday, i just purchased this Albums and found it to be inferior expect one song on badrinath which has some meaning.

मुकेश जी, मेहता जी, अनुभव दा आपसे अनुरोध है कि आप गजेन्द्र भाई को फोन करके फोरम में हो रही इस चर्चा की जानकारी जरुर दें. गजेन्द्र भाई हमारे फोरम से जुङे हुए हैं. हम उनका "Live Chat" भी यहां पर करवा चुके हैं. अपने विचारों से उन्हें अवगत कराना सही रहेगा. हम उनके प्रशंसक हैं और अपनी पसन्द-नापसन्द उन्हें जरूर बतानी चाहिये. ये feedback उनके लिये भी महत्वपूर्ण होगा.  

umeshbani

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 137
  • Karma: +3/-0

बदनाम किया है युवा वर्ग को क्या हम युवा नहीं है ............. कुछ नहीं नाम लिया युवा वर्ग का काम बनाया अपना ....... सिर्फ पैसा और ...................... आप लोग सर्वे करा सकते है की कितने युवा एसा संगीत और फिल्म देखना चाहते है ...................
सर ,ये मंगलेश डंगवाल और गजेन्द्र राणा जी ki पहल है
अगर उनसे इस बारे में बात करो तो  कहते है, की युवा वर्ग की मांग है .!



पहाडी संस्कृति खूब फल फूल रही है
पहाड़ जैसे पहले जंगलों से हरे भरे थे पेड़ कटाने से अब नंगे हो रहे है, वैसे ही संकृति


Youtube pai yeh mila:

http://www.youtube.com/watch?v=Ibi2MzWw54g

hi all members plz mujhe uttranchal song chahiye sunna hai
labra chori is song tital
plz agar aap kisi ke pass ye song hai to mujhe link bhej do

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0


Mai kal kuch Uttarkahandi albums ko dekha.

I found in most of the albums, the cultural values were totally missing. In one album,the Actor and Actors were singing song on top of stone in hill with Gitar in their hands.

Let me clear. Gitar instrument is not in our cutlure

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
Source : Dainik Jagran 21 March 2009

पौड़ी गढ़वाल। बदलते सामाजिक परिवेश व पाश्चात्य संगीत के चपेट आ चुकी लोकगायकी की धुनों से अब लोकगीत गायब हो गए है। इसके पीछे गायक / गायिकाओं का शार्ट कट फार्मूला अपनाना प्रमुख कारण है।

दशकों पहले गांव की महिलाएं किसी खास उत्सवों पर समूह में और वनों में घास लेने गई घसियारी सामूहिक रूप में लोकगीतों को गाया करती थी। अस्सी के दशक से पूर्व लोक गायिकी में सिर्फ मेल सिंगर ही अपनी आवाज देते थे। यह बात भी दीगर है कि उस समय महिला विषयक गीतों को भी मेल सिंगर ही आवाज देते थे। अस्सी के दशक में महिला गायिकाओं ने भी लोकगायिकी में पदार्पण किया। लोकगायकी में संगीत की धुनें भी समय के साथ-साथ रंग बदलती गई और आज लोकगीतों का नाता टूटने लगा है। पहले ठेठ वाद्य यंत्रों की धुनों पर लोकगीतों की स्वर लहरी हर किसी को पहाड़ों की महिमा सुनाकर अपनी ओर खींच लेती थी। आज थडया, चौंफला, चांचरी, बाजूबंद, झुमैंलो आदि लोकगीत पूरी तरह गायब हो गए है। इसके अलावा जो गीत आए कैसेटों में परोसे जा रहे है उन गीतों के भाव व धुनों पर पूरी तरह पाश्चात्य संस्कृति का रंग चढ़ चुका है। नवोदित गायकों का शार्ट-कट फार्मूला अपनाकर कम समय में अपेक्षा से अधिक सफलता प्राप्त करना प्रमुख कारण माना जा रहा है। संगीत निर्देशक गणेश बीरांन व गीत-संगीत निर्देशक अनिल बिष्ट का कहना है कि नेम व फेम की मैराथन दौड़ के चलते शार्ट फार्मूला अपनाने के साथ-साथ गीतों के व्यवसायीकरण के चलते यह परिवर्तन हुआ है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0


A few days ago, I have shared this matter with Anil Bisht Ji, Preetam Bharatwan, Ashok mall ji, and Rajender Bisht Ji.

They were really shock to hear this.


Source : Dainik Jagran 21 March 2009

पौड़ी गढ़वाल। बदलते सामाजिक परिवेश व पाश्चात्य संगीत के चपेट आ चुकी लोकगायकी की धुनों से अब लोकगीत गायब हो गए है। इसके पीछे गायक / गायिकाओं का शार्ट कट फार्मूला अपनाना प्रमुख कारण है।

दशकों पहले गांव की महिलाएं किसी खास उत्सवों पर समूह में और वनों में घास लेने गई घसियारी सामूहिक रूप में लोकगीतों को गाया करती थी। अस्सी के दशक से पूर्व लोक गायिकी में सिर्फ मेल सिंगर ही अपनी आवाज देते थे। यह बात भी दीगर है कि उस समय महिला विषयक गीतों को भी मेल सिंगर ही आवाज देते थे। अस्सी के दशक में महिला गायिकाओं ने भी लोकगायिकी में पदार्पण किया। लोकगायकी में संगीत की धुनें भी समय के साथ-साथ रंग बदलती गई और आज लोकगीतों का नाता टूटने लगा है। पहले ठेठ वाद्य यंत्रों की धुनों पर लोकगीतों की स्वर लहरी हर किसी को पहाड़ों की महिमा सुनाकर अपनी ओर खींच लेती थी। आज थडया, चौंफला, चांचरी, बाजूबंद, झुमैंलो आदि लोकगीत पूरी तरह गायब हो गए है। इसके अलावा जो गीत आए कैसेटों में परोसे जा रहे है उन गीतों के भाव व धुनों पर पूरी तरह पाश्चात्य संस्कृति का रंग चढ़ चुका है। नवोदित गायकों का शार्ट-कट फार्मूला अपनाकर कम समय में अपेक्षा से अधिक सफलता प्राप्त करना प्रमुख कारण माना जा रहा है। संगीत निर्देशक गणेश बीरांन व गीत-संगीत निर्देशक अनिल बिष्ट का कहना है कि नेम व फेम की मैराथन दौड़ के चलते शार्ट फार्मूला अपनाने के साथ-साथ गीतों के व्यवसायीकरण के चलते यह परिवर्तन हुआ है।


shivjoshi

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 141
  • Karma: +2/-0
Hello my dear friends of UK,

Good day to all of you.  As I could not come online due to my hectic schedule. How are you dear friends. I even could not interact with you people.

Hello my dear mehta jee also. He is little bit angry with me.
I have seen the thread. I am not surprise.....????????? What can we expect from these novice artists.

shiv joshi



A few days ago, I have shared this matter with Anil Bisht Ji, Preetam Bharatwan, Ashok mall ji, and Rajender Bisht Ji.

They were really shock to hear this.


Source : Dainik Jagran 21 March 2009

पौड़ी गढ़वाल। बदलते सामाजिक परिवेश व पाश्चात्य संगीत के चपेट आ चुकी लोकगायकी की धुनों से अब लोकगीत गायब हो गए है। इसके पीछे गायक / गायिकाओं का शार्ट कट फार्मूला अपनाना प्रमुख कारण है।

दशकों पहले गांव की महिलाएं किसी खास उत्सवों पर समूह में और वनों में घास लेने गई घसियारी सामूहिक रूप में लोकगीतों को गाया करती थी। अस्सी के दशक से पूर्व लोक गायिकी में सिर्फ मेल सिंगर ही अपनी आवाज देते थे। यह बात भी दीगर है कि उस समय महिला विषयक गीतों को भी मेल सिंगर ही आवाज देते थे। अस्सी के दशक में महिला गायिकाओं ने भी लोकगायिकी में पदार्पण किया। लोकगायकी में संगीत की धुनें भी समय के साथ-साथ रंग बदलती गई और आज लोकगीतों का नाता टूटने लगा है। पहले ठेठ वाद्य यंत्रों की धुनों पर लोकगीतों की स्वर लहरी हर किसी को पहाड़ों की महिमा सुनाकर अपनी ओर खींच लेती थी। आज थडया, चौंफला, चांचरी, बाजूबंद, झुमैंलो आदि लोकगीत पूरी तरह गायब हो गए है। इसके अलावा जो गीत आए कैसेटों में परोसे जा रहे है उन गीतों के भाव व धुनों पर पूरी तरह पाश्चात्य संस्कृति का रंग चढ़ चुका है। नवोदित गायकों का शार्ट-कट फार्मूला अपनाकर कम समय में अपेक्षा से अधिक सफलता प्राप्त करना प्रमुख कारण माना जा रहा है। संगीत निर्देशक गणेश बीरांन व गीत-संगीत निर्देशक अनिल बिष्ट का कहना है कि नेम व फेम की मैराथन दौड़ के चलते शार्ट फार्मूला अपनाने के साथ-साथ गीतों के व्यवसायीकरण के चलते यह परिवर्तन हुआ है।


shivjoshi

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 141
  • Karma: +2/-0
Hello my dear friends of UK,

Good day to all of you.  As I could not come online due to my hectic schedule. How are you dear friends. I even could not interact with you people.

Hello my dear mehta jee also. He is little bit angry with me.
I have seen the thread. I am not surprise.....????????? What can we expect from these novice artists.

shiv joshi



A few days ago, I have shared this matter with Anil Bisht Ji, Preetam Bharatwan, Ashok mall ji, and Rajender Bisht Ji.

They were really shock to hear this.


Source : Dainik Jagran 21 March 2009

पौड़ी गढ़वाल। बदलते सामाजिक परिवेश व पाश्चात्य संगीत के चपेट आ चुकी लोकगायकी की धुनों से अब लोकगीत गायब हो गए है। इसके पीछे गायक / गायिकाओं का शार्ट कट फार्मूला अपनाना प्रमुख कारण है।

दशकों पहले गांव की महिलाएं किसी खास उत्सवों पर समूह में और वनों में घास लेने गई घसियारी सामूहिक रूप में लोकगीतों को गाया करती थी। अस्सी के दशक से पूर्व लोक गायिकी में सिर्फ मेल सिंगर ही अपनी आवाज देते थे। यह बात भी दीगर है कि उस समय महिला विषयक गीतों को भी मेल सिंगर ही आवाज देते थे। अस्सी के दशक में महिला गायिकाओं ने भी लोकगायिकी में पदार्पण किया। लोकगायकी में संगीत की धुनें भी समय के साथ-साथ रंग बदलती गई और आज लोकगीतों का नाता टूटने लगा है। पहले ठेठ वाद्य यंत्रों की धुनों पर लोकगीतों की स्वर लहरी हर किसी को पहाड़ों की महिमा सुनाकर अपनी ओर खींच लेती थी। आज थडया, चौंफला, चांचरी, बाजूबंद, झुमैंलो आदि लोकगीत पूरी तरह गायब हो गए है। इसके अलावा जो गीत आए कैसेटों में परोसे जा रहे है उन गीतों के भाव व धुनों पर पूरी तरह पाश्चात्य संस्कृति का रंग चढ़ चुका है। नवोदित गायकों का शार्ट-कट फार्मूला अपनाकर कम समय में अपेक्षा से अधिक सफलता प्राप्त करना प्रमुख कारण माना जा रहा है। संगीत निर्देशक गणेश बीरांन व गीत-संगीत निर्देशक अनिल बिष्ट का कहना है कि नेम व फेम की मैराथन दौड़ के चलते शार्ट फार्मूला अपनाने के साथ-साथ गीतों के व्यवसायीकरण के चलते यह परिवर्तन हुआ है।


shivjoshi

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 141
  • Karma: +2/-0
hello my dear anupam, hem pant and mehta jee,

how r u....?

what is new going on these days.

shiv joshi

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Joshi Ji,

How r u ? Since long you are here.

Bade Bhai... I am not agree with you at all. Kya baat Joshi Ji yesa kyo. Actually, i was also somewhat busy so could not contact you. Anyway.. Thank for your views.

Joshi Ji....

A few days ago, i had purchased a few UK"s VCD and found them to be very very inferior. We can expect that our music will go such low level.

This seems like a attack on UK's folk music on the name of experiement.

Hello my dear friends of UK,

Good day to all of you.  As I could not come online due to my hectic schedule. How are you dear friends. I even could not interact with you people.

Hello my dear mehta jee also. He is little bit angry with me.
I have seen the thread. I am not surprise.....????????? What can we expect from these novice artists.

shiv joshi



A few days ago, I have shared this matter with Anil Bisht Ji, Preetam Bharatwan, Ashok mall ji, and Rajender Bisht Ji.

They were really shock to hear this.


Source : Dainik Jagran 21 March 2009

पौड़ी गढ़वाल। बदलते सामाजिक परिवेश व पाश्चात्य संगीत के चपेट आ चुकी लोकगायकी की धुनों से अब लोकगीत गायब हो गए है। इसके पीछे गायक / गायिकाओं का शार्ट कट फार्मूला अपनाना प्रमुख कारण है।

दशकों पहले गांव की महिलाएं किसी खास उत्सवों पर समूह में और वनों में घास लेने गई घसियारी सामूहिक रूप में लोकगीतों को गाया करती थी। अस्सी के दशक से पूर्व लोक गायिकी में सिर्फ मेल सिंगर ही अपनी आवाज देते थे। यह बात भी दीगर है कि उस समय महिला विषयक गीतों को भी मेल सिंगर ही आवाज देते थे। अस्सी के दशक में महिला गायिकाओं ने भी लोकगायिकी में पदार्पण किया। लोकगायकी में संगीत की धुनें भी समय के साथ-साथ रंग बदलती गई और आज लोकगीतों का नाता टूटने लगा है। पहले ठेठ वाद्य यंत्रों की धुनों पर लोकगीतों की स्वर लहरी हर किसी को पहाड़ों की महिमा सुनाकर अपनी ओर खींच लेती थी। आज थडया, चौंफला, चांचरी, बाजूबंद, झुमैंलो आदि लोकगीत पूरी तरह गायब हो गए है। इसके अलावा जो गीत आए कैसेटों में परोसे जा रहे है उन गीतों के भाव व धुनों पर पूरी तरह पाश्चात्य संस्कृति का रंग चढ़ चुका है। नवोदित गायकों का शार्ट-कट फार्मूला अपनाकर कम समय में अपेक्षा से अधिक सफलता प्राप्त करना प्रमुख कारण माना जा रहा है। संगीत निर्देशक गणेश बीरांन व गीत-संगीत निर्देशक अनिल बिष्ट का कहना है कि नेम व फेम की मैराथन दौड़ के चलते शार्ट फार्मूला अपनाने के साथ-साथ गीतों के व्यवसायीकरण के चलते यह परिवर्तन हुआ है।


shivjoshi

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 141
  • Karma: +2/-0
My dear Mehta,

Actually, in Delhi no one is composer/Music Director and mostly tunes are self made by the singer and Music Directors are only arranger.  They have to take money for arranging, whehter you give gaali to anybody in song.

The bais factor is you can not expect any good from these artists.
If you kindly note the current hit artists hit numbers and compare these to our old folk. The new one never stays before any old song. I even can bet.
So the standard is very very and very poor.  You know what new singer and producers feel...... there is young generation listen the new songs and these must be dancy and poppy style. So the artists sing accordingly. First our folk artists donot know the all color  of music. So pure short curt and fataling the whole culture. Ab mahol BHIHARI wala ho raha hai.
shiv joshi

Joshi Ji,

How r u ? Since long you are here.

Bade Bhai... I am not agree with you at all. Kya baat Joshi Ji yesa kyo. Actually, i was also somewhat busy so could not contact you. Anyway.. Thank for your views.

Joshi Ji....

A few days ago, i had purchased a few UK"s VCD and found them to be very very inferior. We can expect that our music will go such low level.

This seems like a attack on UK's folk music on the name of experiement.

Hello my dear friends of UK,

Good day to all of you.  As I could not come online due to my hectic schedule. How are you dear friends. I even could not interact with you people.

Hello my dear mehta jee also. He is little bit angry with me.
I have seen the thread. I am not surprise.....????????? What can we expect from these novice artists.

shiv joshi



A few days ago, I have shared this matter with Anil Bisht Ji, Preetam Bharatwan, Ashok mall ji, and Rajender Bisht Ji.

They were really shock to hear this.


Source : Dainik Jagran 21 March 2009

पौड़ी गढ़वाल। बदलते सामाजिक परिवेश व पाश्चात्य संगीत के चपेट आ चुकी लोकगायकी की धुनों से अब लोकगीत गायब हो गए है। इसके पीछे गायक / गायिकाओं का शार्ट कट फार्मूला अपनाना प्रमुख कारण है।

दशकों पहले गांव की महिलाएं किसी खास उत्सवों पर समूह में और वनों में घास लेने गई घसियारी सामूहिक रूप में लोकगीतों को गाया करती थी। अस्सी के दशक से पूर्व लोक गायिकी में सिर्फ मेल सिंगर ही अपनी आवाज देते थे। यह बात भी दीगर है कि उस समय महिला विषयक गीतों को भी मेल सिंगर ही आवाज देते थे। अस्सी के दशक में महिला गायिकाओं ने भी लोकगायिकी में पदार्पण किया। लोकगायकी में संगीत की धुनें भी समय के साथ-साथ रंग बदलती गई और आज लोकगीतों का नाता टूटने लगा है। पहले ठेठ वाद्य यंत्रों की धुनों पर लोकगीतों की स्वर लहरी हर किसी को पहाड़ों की महिमा सुनाकर अपनी ओर खींच लेती थी। आज थडया, चौंफला, चांचरी, बाजूबंद, झुमैंलो आदि लोकगीत पूरी तरह गायब हो गए है। इसके अलावा जो गीत आए कैसेटों में परोसे जा रहे है उन गीतों के भाव व धुनों पर पूरी तरह पाश्चात्य संस्कृति का रंग चढ़ चुका है। नवोदित गायकों का शार्ट-कट फार्मूला अपनाकर कम समय में अपेक्षा से अधिक सफलता प्राप्त करना प्रमुख कारण माना जा रहा है। संगीत निर्देशक गणेश बीरांन व गीत-संगीत निर्देशक अनिल बिष्ट का कहना है कि नेम व फेम की मैराथन दौड़ के चलते शार्ट फार्मूला अपनाने के साथ-साथ गीतों के व्यवसायीकरण के चलते यह परिवर्तन हुआ है।


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22