Author Topic: Folk Songs Of Uttarakhand : उत्तराखण्ड के लोक गीत  (Read 76250 times)

Bhishma Kukreti

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कुमाउंनी-  गढ़वाली  व राजस्थानी  लोकगीतों में  खाद्यान , कृषि आदि  विषय

                     Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs

                                    राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-11     


                                           भीष्म कुकरेती

 भारत कृषि प्रधान देश है तो लोक गीतों में , खेतों , खलिहानों , अनाज , बुआइ , कटाई विषय आवश्यक हैं । राजस्थानी  और गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतोंमें कृषि, खेती, खेत , खलियान विषय प्रचुर मात्रा में मिलते हैं । सांस्कृतिक और भौगोलिक कारणों से खेत , खेती और खलियान के विषय  क्षेत्र की विशेषताओं अनुसार विशेष अभिव्यक्ति पा  गए हैं यथा -

                                                               
             राजस्थानी  लोकगीतों में  खाद्यान , कृषि आदि  विषय                             



                     
             चौमासो  आओ रांगला ….

म्हारी दोराणया जेठानियाँ रुसगी
म्हारी सासू जी मणावण जाय, चौमासो  आओ रांगला ….
मैंने आला में बोई बाजारी,
मैंने आला में बोई ज्वार ,चौमासो  आओ रांगला …
म्हारी फूटन लागी बाजारी,
म्हारी फूटन लागी ज्वार , चौमासो  आओ रांगला …
मैं तो सींचन लागी बाजारी,
मैं तो सींचन लागी ज्वार , चौमासो  आओ रांगला …
मैं तो काटन लागी बाजरी ,
मै तो काटन लागी ज्वार ,चौमासो  आओ रांगला …

राजस्थान में ज्वार -बाजरा मुख्य भोजन है तो राजस्थानी लोक गीतों में ज्वार -बाजरे के गीत हैं ।



                      कुमाउंनी-  गढ़वाली  व राजस्थानी  लोकगीतों में  खाद्यान , कृषि आदि  विषय
                     कुमाऊं -गढ़वाल का मुख्य भोजन झंगोरा या धान का चावल मुख्य भोजन है । दिन में बगैर झंगोरा या धान के भात खाए संतुष्टि या तृप्ति नही होती है । इसलिए कुमाऊं -गढ़वाल के लोक गीतों में अलग ढंग के खाद्यानो की चर्चा होती है ।  आश्चर्य नही कि पारिवारिक संबंधो की चर्चा और खाद्यानो का पारिवारिक सदस्यों के साथ संबंध वार्तालाप दोनों क्षेत्रों में  प्रलक्षित होती है ।

                                        जिरी झमाका
यो माऊ फागुण लो , जिरी झमाका ।
जिरी की बुतैई लो , जिरी झमाका ।
आड़ी कला केड़ी लो , जिरी झमाका ।
जिरी की बुतैई लो , झमा  झमाका ।
जिरी की गोड़ई लो , जिरी झमाका ।
जिरी बड़ी ह्वैगी, झमा  झमाका ।
जिरी की लवाई लो ,जिरी झमाका ।
जिरी की मंडै च लो , झमा  झमाका ।
 मेरा बल्द नि खांदा लो ,जिरी झमाका ।
जिरी  को पराळ लो ,  झमा  झमाका ।
मेरी भैंसी नि खान्दी लो ,जिरी झमाका ।
जिरी  को पराळ लो ,  झमा  झमाका ।
मेरा सौसरा नि खांदा लो ,जिरी झमाका ।
जिरा चौंळ भात लो , झमा  झमाका ।
मेरी नि खान्दी लो ,जिरी झमाका ।
जिरी नौ को भात लो , झमा  झमाका ।
मेरा स्वारा  नि खांदा लो ,जिरी झमाका ।
जिरी नौ को भात लो , झमा  झमाका ।
मैन द्यब्तों चढौण लो ,  जिरी झमाका ।
जिरी नौ को चौंळ  लो , झमा  झमाका ।
मैन द्यब्तों चढौण लो ,  जिरी* झमाका ।
जिरी नौ को चौंळ  लो , झमा  झमाका ।


*जिरी =धान की अच्छी प्रजाति जैसे -बासमती

-----------------------------अनुवाद -------------------
इस माघ फागुन , लदफक  धान होगा,
धान की बुआइ , भरपूर  धान ।
धान का खेत सुधारेंगे , लदफक  धान ।
धान की गुड़ाई , भरपूर  धान ।
धान बड़ा हो गया , लदफक  धान ।
धान की लवाई,  भरपूर  धान
धान की मंड़ाई ,लदफक  धान ।
 मेरे बैल नही खाते,
 धान के पुवाल को
मेरी भैंस नही खाती
धान के पुवाल को
मेरे ससुर जी नही खाते
 धान के चावल
मेरी सास नही खाती ,
धान के चावल
मेरे ससुराली नही खाते
धान के चावल
चावल का भात
मैंने देवताओं को चढाना
धान के चावल ,भरपूर  धान
चावल का भात मैंने देवताओं को चढाना
धान के चावल , लदफक  धान.


उपरोक्त लोक गीत अपने अपने क्षेत्र के विशेष , महत्वपूर्ण खाद्यान वर्णन के साथ पारिवारिक संबंधों की भी चर्चा करते हैं

Copyright@ Bhishma  Kukreti 26 /8/2013
सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
अबोध बंधू बहुगुणा , धुयांळ , दिल्ली

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Bhishma Kukreti

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   कुमाउंनी-  गढ़वाली  व राजस्थानी  लोकगीतों में  ईश्वर संबंधी अवधारणा

                        Deity Blessing in Rajsthani, Kumaoni-Garhwali Folk Songs

                     Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs-12

                                    राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-12   


                                           भीष्म कुकरेती

 भारत -देवी देवताओं का देश है । भारत  में पत्थरों, पेड़ों , पत्तियों , जानवरों को भी भगवान का दर्जा मिला है ।  लोक गायक का ईश्वर उसी की मौलिक कल्पना है । लोक विश्वास है कि भगवान है । लोक साहित्य में भगवान की विशेष -मौलिक कल्पना हमे प्रत्येक क्षेत्र में मिलता है ।

                                                       
                                      राजस्थानी  लोकगीतों में  ईश्वर संबंधी अवधारणा

लोक का अपने राम से बड़े घनिष्ट व निकट के संबंध हैं । वह अपने राम से जीवन की सभी अनिवार्य वस्तुओं की मांग  बिना लाग लपेट की करता है यथा इस राजस्थानी लोक गीत में राम प्रार्थना में दिखता है -


म्हारा राम रघुनाथ इतरा बर तो म्हानो दीजो
नील उठ जाडूं दोनूं हाथ
आपूणो तो खेत दीज्यो बीच में दीज्यो नाडी (नदी )
घर वाली ने छोरो दीज्यो भैंस लावै पाड़ी


प्रार्थी को सम्पूर्ण विश्वास है कि रामकृपा से उसे खेत , नदी , बच्चे और भैंस सभी मिल सकेगा ।




                         कुमाउंनी-  गढ़वाली  लोकगीतों में  ईश्वर संबंधी अवधारणा


कुमाऊं , गढ़वाल क्षेत्रों में भी वही लोक विश्वास है कि भगवान , देवी -देवता धन -धान्य दाता हैं । निम्न रवाँई क्षेत्र के लोक गीत (जागर में जागरी द्वारा घर के मालिक हेतु प्रार्थना ) में इश वन्दना का रूप भी राजस्थानी लोक गीत जैसे ही है -


हे देव यूं को  राज रौणी दे
हे देव यूं को माथा भाग दे
हे देव यूं को  लाड़िक राजी रौ
हे देव यूं को कुल बढै रौ

-----------अनुवाद ----------

हे देव इनका राज रहने दो
हे देव इनको भाग्यवान रहने दो
हे देव इनके लडके -लडकी कुशल रहने दे
हे देव इनके कुल को बढ़ने दो


Copyright@ Bhishma  Kukreti 28/8/2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन 

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Bhishma Kukreti

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                              कुमाउंनी-  गढ़वाली  व राजस्थानी  लोकगीतों में  भाग्यवाद  -भाग 1
                        Fatalism in Rajasthani, Kumaoni-Garhwali Folk Songs Part -1

                     Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs-13

                                    राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-13   


                                           भीष्म कुकरेती
  राजस्थान और उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियाँ  हैं किन्तु  कठोर कृषि जीवन मनुष्यों  भाग्यवादी भी  है । यही कारण है कि राजस्थानी , गढ़वाली -कुमाउंनी लोक  गीतों , राजस्थानी , गढ़वाली -कुमाउंनी लोक कथाओं ,  , राजस्थानी , गढ़वाली -कुमाउंनी लोक मिथों ;
राजस्थानी , गढ़वाली -कुमाउंनी लोक कथनों ; राजस्थानी , गढ़वाली -कुमाउंनी लोकोक्तियों; राजस्थानी , गढ़वाली -कुमाउंनी लोक पहेलियों में भाग्यवाद  अटूट आस्था व विश्वास  मिलता है।   

                             राजस्थानी  लोकगीतों में  भाग्यवाद  -1
                     
                    Fatalism in Rajasthani  Folk Songs Part -1

 
                निम्न राजस्थानी लोक गीत में  अपने पति से कहती है कि रोटी को मत बांधो क्योंकि पुन: वह कैसे प्राप्त होगी ? रोटी कौन दगा ? पति का भाग्य पर अटल विश्वास है वह कह डालता है कि रोटी राम देंगे ; भाग्य पर भरोषा रखना चाहिए।

ढोला कंवर जी रोटी ने मत बांधो रोटी कुण देला ?
जा जा गेली भाग भरोसे , रोटी राम देला।


                       कुमाउंनी-  गढ़वाली  लोकगीतों में  भाग्यवाद  -भाग 1

               Fatalism in  Kumaoni-Garhwali Folk Songs Part -1
 डा जगदीश नौडियाल का कथन है कि उत्तराखंड में भी कृषि आज भी बारिश पर निर्भर करती है।  ऐसे में अथक परिश्रम  पश्चात सफलता नही मिलती तो व्यक्ति भाग्यवादी बन जाता है।
निम्न रवाँई क्षेत्र का लोक गीत भाग्यवाद  रहा हैं -


एक स्याणों रौ भाया न रै करी रौ तेन; करे।
चार ब्यौ पर पुत्र न ह्वे पांच ब्यौ कैरी।
फेर स्यो बोल पड़े हमारो भाग्य ही न रौ। 
---अनुवाद -----------
एक मुखिया के भाई  नहीं थे उसने स्वयम चार नहीं पांच शादियाँ कीं किन्तु पुत्र प्राप्ति नही हुयी , उन्होंने सोचा भाग्य में ही नहीं है। 
Copyright@ Bhishma  Kukreti 29/8/2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन 
 
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कुमाउंनी-  गढ़वाली  व राजस्थानी  लोकगीतों में  भाग्यवाद  -भाग 2
                                 Fatalism in Rajasthani, Kumaoni-Garhwali Folk Songs Part -2

                                Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs-14

                                     राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-14   


                                                                      भीष्म कुकरेती
             लोक जीवन में यह दृढ धरणा है कि विधाताके  प्रबल हैं।  उन्हें कोई नहीं  सकता।  यही कारण कि  लोक गीतों में में 'लेख ' करम ' शब्द प्रयोग हए हैं।


                                             राजस्थानी  लोकगीतों में  भाग्यवाद  -2
                     
                                           Fatalism in Rajasthani  Folk Songs Part -1

राजस्थान में भी सुख -दुःख एवं वर्ग वैषम्य आदि के लिए भाग्य   कारण माना गया है।
निम्न राजस्थानी लोक गीत  के बारे में डा जगमल सिंह लिखते हैं कि जब  बेटी अपने ससुराल के दुखों का वर्णन अपने पिता से करती है तो पिता संतोष देता है कि यही तेरे भाग्य में था।  तेरे भाग्य में यही लिखा था।

मोटी मक्की को पीसणो , सासू धड़ियां इ तोली ए।
सरण -सरण आवे नींदड़ली , घट्टी बैरण  वेगी ए।
ससुरा जी देवे ओ ळवा , सासू जी देवे गाळ।
बाबल सुणता तो रीझियो ओ
यूँ काई करूं रे बेटी ! थारा लेख लिख्योड़ा ओ राम। 

 

                                       कुमाउंनी-  गढ़वाली  लोकगीतों में  भाग्यवाद  -भाग 2

                                          Fatalism in  Kumaoni-Garhwali Folk Songs Part -21
निम्न रवाँइ क्षेत्र के गढ़वाली लोक गीत में भी भाग्यवाद की अभिव्यक्ति हुयी है -

मेरा दिल की प्यारी स्याली मेरा दिलै स्याली ।
भाग मंज होलू स्याली भेंट होई जाली ।।
 हे मेरे रंगीला भेना भेंट होई जाली।
भाग बडो हूँदो भेना तेरा गैल नली ।।

-------------अनुवाद ----
मेरे दिल की प्यारी साली यदि भाग्य में होगा तो अवश्य भेंट होगी।
 हे जीजा ! यदि मेरा बड़ा भाग्य होता तो मै तेरे साथ चलती।
इस प्रकार दोनों क्षेत्रों के लोक कथनों में भाग्यवाद मिलता है ।




Copyright@ Bhishma  Kukreti 30/8/2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन 
 
[Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Exclusive features of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Different Style and Mood of Rajasthani Traditional Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Differentiation between Rajasthani Customary  Songs and Garhwali-Kumaoni long-established  Songs; Assessment of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Appraisal of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Review of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Analytical review of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Analysis of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Traditional  Songs, Fatalism in Rajashthani Folk Songs;Fatalism in Kumaoni Folk Songs; Fatalism in Garhwali Folk Songs, Fatalism in Traditional Songs From Rajasthan; Fatalism in Traditional Himalayan folk Songs; Fatalism in North Indian folk Songs, Fatalism in Asian Traditional Songs ]

Bhishma Kukreti

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  कुमाउंनी-  गढ़वाली  व राजस्थानी  लोकगीतों में  कर्मफल भाग्यवाद  -भाग 3
                                 Fatalism in Rajasthani, Kumaoni-Garhwali Folk Songs Part -3

                                Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs-15

                                     राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-15   


                                                                      भीष्म कुकरेती


                   राजस्थानी  लोकगीतों में  कर्मफल और भाग्यवाद  -भाग 3
 कर्म के लेख को पढ़ना  है।  इस  बात की अभिव्यक्ति हेतु लोक - गायकों -रचनाकारों ने कई उपमान प्रस्तुत किये हैं।
कागद वे तो बांच लूँ करम बांचिया ना जाय
बड़लो वे तो काट लूं पीपल काट्यो न जाय
नाडूलिया वे तो थाग लूँ , समन्दर थागियो न जाय
--------------याने-------------------- -
कागज हो तो बांच लूं , कर्मफल बांचा ना जाय
बट बृक्ष हो तो काट लूं , पीपल काटा ना जाय
तालाब हो तो थाह लूं , समुद्र की थाह कैसे लूं ?

                कुमाउंनी-  गढ़वाली   लोकगीतों में  कर्मफल और भाग्यवाद  -भाग 3



कुमाउंनी और गढ़वाली लोक गाथाओं , लोक गीतों में भाग्यवाद की दुहाई  जोर शोर से दी गयी है ।
निम्न जीतू बगड्वा सम्बन्धी लोक गीत के एक  खंड में भाग्यावाद और कर्मफल  की दुहाई दिया गया है -

नौ बैणी ऐ पड़ि बारों बैणी भराड़ी
क्वै मातरी बैठी रौ काम्यों का पाह
क्वै मातरी बैठी रौ आंखूं का हां:
ल्वैई पी रौ तूं सिकार खै
त्यूं जोड़ी बैलों जीतू डबी रौ
भर्युं कुटुंब तैरो मल्ला की क्यारी रैगे
बौलू न होंदू जीतू त नाश नि होंदू

------------अर्थात----------------------
अप्सराओं ने जीतू का हरण किया , कोई अप्सरा कानो के अंदर बैठी , कोई अप्सरा आँखों में बैठी , उन्होंने जीतू का रक्त पान किया और उसका मांश भक्षण किया। इस प्रकार जीतू बगड्वाल , दोनों बैलों सहित  खेत में डूब गया .  भरा पूरा कुटुंब छोड़ कर चला गया (जहां से कोई वापस नही आता ). जीतू बाबला ना होता तो अपनी माँ और पत्नी के रुकने से रुक जाता।  और इस वह मर गया। 


अन्य लोक गीतों में भी कर्मफल और भाग्य वाद को  है।


Copyright@ Bhishma  Kukreti 31/8/2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन 
 
[Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Exclusive features of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Different Style and Mood of Rajasthani Traditional Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Differentiation between Rajasthani Customary  Songs and Garhwali-Kumaoni long-established  Songs; Assessment of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Appraisal of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Review of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Analytical review of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Analysis of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Traditional  Songs, Fatalism in Rajashthani Folk Songs;Fatalism in Kumaoni Folk Songs; Fatalism in Garhwali Folk Songs, Fatalism in Traditional Songs From Rajasthan; Fatalism in Traditional Himalayan folk Songs; Fatalism in North Indian folk Songs, Fatalism in Asian Traditional Songs, Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Mewat, Fatalism in Rajasthani Folk Songs from jaismalmer,Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Ajmer, Fatalism in Rajasthani Folk Songs fromKota-Ganganagar region Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Jaipur Region,Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Udyapur region,Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Bikaner Region, Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Jodhpur region,Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Bharatpur region,;Fatalism in Kumaoni Folk Songs from Kumaon]

Bhishma Kukreti

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                          कुमाउंनी-  गढ़वाली  व राजस्थानी  लोकगीतों में  कर्मफल भाग्यवाद  -भाग 4
                                 Fatalism in Rajasthani, Kumaoni-Garhwali Folk Songs Part 4

                                Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs-16

                                     राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-16     


                   राजस्थानी  लोकगीतों में  कर्मफल भाग्यवाद  -भाग 4


डा दाधीच ने राजस्थानी लोक गीतों का अध्ययन किया और उन्हें संकलित किया।  उनकी पुस्तक में भाग्य  वाद लोक गीत इस प्रकार है -
पीब जी बसे दिसावरां हमें देइ छिटकाय।
कागद हो तो बांच ल्यूं करम न बाँच्यो जाय।।
जहां उपरोक्त गीत में अवहेलना को भाग्य का फल बताया है वहीं रानी लक्ष्मी कुमारी चूंड़ावत द्वारा सम्पादित पुस्तक 'राजस्थानी लोक गीत' में एक वियोगिनी भाग्य की परिभाषा इस प्रकार व्याख्या करती है -
टावर व्हे तो पिया राखलूं जी जीवन राख्यो न जाय
अब घर आय जावो फूल गुलाब  रा जी
कागद ह्वे तो  पिया  बांचलूं करम नीं बाँच्यो जाय।


                कुमाउंनी-  गढ़वाली    लोकगीतों में  कर्मफल भाग्यवाद  -भाग 4


ऐसा माना जाता है कि हर किसी का अपना अपना भाग्य है।  किसी को कुछ मिलता है तो दूसरे को  मिलता।
एक रवाँई क्षेत्र का यह गीत भाग्य के सिद्धांत को इस तरह दर्शाता है -

कासी की बाट्टा की डोखरी,
कासी कू जडिया साग,
कासी कू बंठिया बौरील
कासी कू पेट कुड़िया भाग।

किसी के रास्ते का खेत है
किसी का सरसों का साग
किसी का अच्छा पति है
किसी के पास भाग्य है ,पेट में बच्चे हैं।       














Copyright@ Bhishma  Kukreti 1/9 /2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा दाधीच , (सम्पादन )  राजस्थानी लोक गीत
रानी लक्ष्मी कुमारी चूंड़ावत  , (सम्पादन ) राजस्थानी लोक गीत
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन 
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  लोक गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
अबोध बंधू बहुगुणा , धुयांळ , दिल्ली
महाबीर रंवाल्टा , उत्तराखंड में रवाँई क्षेत्र  के लोक साहित्य की मौखिक परम्परा, उद्गाता 
 
[Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Exclusive features of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Different Style and Mood of Rajasthani Traditional Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Differentiation between Rajasthani Customary  Songs and Garhwali-Kumaoni long-established  Songs; Assessment of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Appraisal of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Review of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Analytical review of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Analysis of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Traditional  Songs, Fatalism in Rajashthani Folk Songs;Fatalism in Kumaoni Folk Songs; Fatalism in Garhwali Folk Songs, Fatalism in Traditional Songs From Rajasthan; Fatalism in Traditional Himalayan folk Songs; Fatalism in North Indian folk Songs, Fatalism in Asian Traditional Songs, Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Mewat, Fatalism in Rajasthani Folk Songs from jaismalmer,Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Ajmer, Fatalism in Rajasthani Folk Songs fromKota-Ganganagar region Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Jaipur Region,Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Udyapur region,Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Bikaner Region, Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Jodhpur region,Fatalism in Rajasthani Folk Songs from Bharatpur region,;Fatalism in Kumaoni Folk Songs from Kumaon]

Bhishma Kukreti

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 Imagination in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs -Part 1

                           
                                       राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में कल्पना

                                           Comparison between Rajasthani Folk Songs, Garhwali, Kumaoni Folk Songs-17

                                        राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-17     


                                                                भीष्म कुकरेती

                                 उत्तर पूर्व व राजस्थान लोक साहित्य के जगविख्यात मर्मज्ञ डा जगमल सिंह  सत्य है कि लोक गीतों में यथार्थ -चित्रण के साथ ही कल्पना  अतिरेक भी मिलता है।




                              Imagination in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs

                                                राजस्थानी  लोकगीतों में कल्पना
             
 लोक गीतों में एक कहावत  "मन के लड्डू फीके तो थोड़े क्यों ?" चरितार्थ होती है।  निम्न राजस्थानी गीत 'ईसर जी ' ( सन्दर्भ -चूंडावत )  में कल्पना का अतिरेक है।
  राजस्थानी लोक गीत में 'गौरी से बोला जाता है कि तुम्हारे लिए सोने जैसा वर लायें।  पडले (गढ़वाली में बरडाली, वर पक्ष से भेंट ) में वर सवा मन चांदी , सवा मन मोती , सवा मन सिंदूर , सवा मन रोली देगा।

       ईसर जी


कौ तो गौरी दे थारें आदित वर  वरां
ओ देवी सवा मण सोनो वर रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण रूपों  वर रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण मोती वर  रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण सिंदूर वर  रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण रोली  रे पड़लै चढ़े


                           Imagination in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs

                                         गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में कल्पना

कल्पना में कृपणता नही की जाती है।  गढ़वाली कुमाउंनी लोक गीतों में भी अतिशयोक्ति भरी पडी है ,  समय समय पर दर्शाते जायेंगे।  निम्न गढ़वाली-कुमाउंनी गीत भी 'गौरा -भवानी ' संबंधित गीत है जिसमे अतिशयोक्ति की कल्पना अंत में की गयी है।


           गौरा भवानी
गौरा मेरि देवि , जै जै बोला। 
मेरी गौरा भवानि ,जै जै बोला।
तेरी जाति को  आयो, जै जै बोला।
गौरा मेरि देवि , जै जै बोला।
भेंट कु क्य ल्हायो ?जै जै बोला।
हे गौरा भवानि ,जै जै बोला।
सोबन धुपाणी ,जै जै बोला।
ओ लौंग सुपारी ,जै जै बोला।
तेरी जातरा को   आयो, जै जै बोला।
गौरा मेरि देवि , जै जै बोला। 
भेंट कु क्य ल्हायो ?जै जै बोला।
मोतियों से भरा थाळ ,जै जै बोला।

-----------अनुवाद -----------
गौरा मेरी देवी , जय जय बोलो।
मेरी गौरा भवानी , जय जय बोलो।
तेरी यात्रा पर आया ,जय जय बोलो।
गौरा मेरी देवी , जय जय बोलो।
भेंट को क्या लाये , जय जय बोलो।
हे गौरा भवानी , जय जय बोलो।
सुन्दर धूपदान ,जय जय बोलो।
लौंग और सुपारी ,जय जय बोलो।
तेरी यात्रा पर आया ,जय जय बोलो।
गौरा मेरी देवी , जय जय बोलो।
भेंट को क्या लाये , जय जय बोलो।
मोतियों से भरा थाल , जय जय बोलो। 


Copyright@ Bhishma  Kukreti 2/9 /2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा दाधीच , (सम्पादन )  राजस्थानी लोक गीत
रानी लक्ष्मी कुमारी चूंड़ावत  , (सम्पादन ) राजस्थानी लोक गीत
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन 
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  लोक गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
अबोध बंधू बहुगुणा , धुयांळ , दिल्ली
महाबीर रंवाल्टा , उत्तराखंड में रवाँई क्षेत्र  के लोक साहित्य की मौखिक परम्परा, उद्गाता 
 
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Hisalu

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प्रयाग पाण्डे Facebook
पर्यावरण संरक्षण को लेकर बहुत पुराना कुमाऊँनी लोक गीत :-

पारा रे भीडा को छै घस्यारी
मालू वे तू मालू नी काट ।
पारा रे भीडा मैं छूं घस्यारी
मालू वे तू मालू काटण दे ।
तौ मालू काट्यो पाप लांगछ
मालू वे तू मालू नी काट ।
भैंसी रे छ , थोरी है रै छ
मालू वे तू मालू काटण दे ।
तौ भैंसी कणी भ्योव घुरै दे
मालू वे तू मालू नी काट ।
भैंसी छ भागी मैं कणी प्यारी
थोरी छ भागी दीदी कें प्यारी
के छ वे तेरे दीदी को नाम
वीक मरद की करों काम ।
दीदी क नाम प्यारी दुलारी
धनसिंहाँ भीना तेरी अन्वारी ।
पारा रे भीडा को छै घस्यारी
मालू वे तू मालू नी काट ।
तौ मालू काट्यो पाप लांगछ
मालू वे तू मालू नी काट ।

Bhishma Kukreti

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 Imagination of Silver, Gold and  Gems  in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs -Part 3

                           
                                      गढ़वाली-कुमाउंनी,  राजस्थानी,   लोकगीतों में कल्पना,  सोना- चांदी,  गहने   -3

                                           Comparison between Rajasthani Folk Songs, Garhwali, Kumaoni Folk Songs-19

                                             राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-19     


                                                                भीष्म कुकरेती
लोक गीतों में अतिरेक मिलना स्वाभाविक है।  अप्राप्य वस्तुओं का वर्णन ऐसा करना जैसे यह अति सुलभ वस्तु है मनुष्य का उद्दाति -करण मानसिकता है जो कि राजस्थानी और गढ़वाली -कुमाउंनी गीतों में सर्वत्र मिलता है। 


       गढ़वाली और कुमाउंनी   लोकगीतों में कल्पना,  सोना- चांदी,  गहने   -3             

नाच बेटी क्वेला मोर नाच , नाच बेटी क्वेला मोर नाच
क्यांलै नाचु बाबा मोर नाच,क्यांलै नाचु बाबा मोर नाच
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
सिरमोरी  नथ मोर नाच,-2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
गौळा  की हाँसुळी   मोर नाच, -2
सौतेलिन पैरी मोर नाच , -2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच, -2
कानूं का कनफूल मोर नाच, -2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच, -2
रमथमी बुलाक मोर नाच, -2
सौतेलिन पैरी मोर नाच,-2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
हातों की धगुली मोर नाच, -2
सौतेलिन पैरी मोर नाच,-2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
झुमक्याळी झुमका मोर नाच ,-2
 सौतेलिन पैरी मोर नाच,-2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
खुट्यों की पैज्बी मोर नाच, -2 
सौतेलिन पैरी मोर नाच,-२
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2

 -----------------अनुवाद  (डा हटवाल )------------

नाच बेटी क्वेला , मोर नाच

तुझे  दी है

सिरमोरी नथ
तुझे  दी है

गले की हंसिया
सौत ने पहना
तुझे  दी है
कानो के कर्णफूल
रमथमी बुलाक
सौत ने पहना

तुझे  दी है

हाथों के धगुले
सौत ने पहना
तुझे  दी है

झुमक्याळी  झंवोरी
सौत ने पहना
तुझे  दी है

पैरों की पाजव
सौत ने पहना

                   राजस्थानी,   लोकगीतों में कल्पना सोना- चांदी, गहने   जर -जेवरात  -3
    एक राजस्थानी लोक गीत में सोने के दीपक और रेशम की  डोर का प्रयोग इस प्रकार हुआ है -
सोने रे म्हें दिवली घड़ास्यां
रेशम बाट बटास्यां जी
चार बाट चौमुख दीवो
घी सूं म्हें पुखास्यां जी
उपरोक्त गीत में सोने दीपक , रेशम की बाती और घी।  गीत इस तरह का है जैसे  घी दो की बाते हों।
निम्न एक  अन्य राजस्थानी लोक गीत में भी सोना चांदी का प्रयोग हुआ है -
हल चल हुई हलकार
मेवाड़ों  रा साथ में रे लोल
भर लो मोतिडों सूं थाल
सुन्दर गौरी म्हारे मोरतियो पूछाव
मेवाड़ी सरदारों की सेना में हलचल हुयी।  प्रस्थान के नक्कारे -नगाड़े बज रहे हैं



Copyright@ Bhishma  Kukreti 4  /9 /2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा राम प्रसाद दाधीच , (सम्पादन )  राजस्थानी लोक गीत
रानी लक्ष्मी कुमारी चूंड़ावत  , (सम्पादन ) राजस्थानी लोक गीत
पुरुषोत्तम मेनारिया (संपादन ), राजस्थानी लोक गीत
ठाकुर राम सिंह (संपादन ) , राजस्थानी लोक गीत
गंगा प्रसाद कमठान , राजस्थानी लोक गीत
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन 
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  लोक गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
अबोध बंधू बहुगुणा , धुयांळ , दिल्ली
महाबीर रंवाल्टा , उत्तराखंड में रवाँई क्षेत्र  के लोक साहित्य की मौखिक परम्परा, उद्गाता 
डा शिवा नन्द नौटियाल , गढ़वाल के लोक नृत्य-गीत
डा गोविन्द चातक , गढवाल की लोक गाथाएँ
 
[Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Exclusive features of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Different Style and Mood of Rajasthani Traditional Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Differentiation between Rajasthani Customary  Songs and Garhwali-Kumaoni long-established  Songs; Assessment of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Appraisal of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Review of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Analytical review of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs; Analysis of Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Traditional  Songs;Comparison and Analysis of Traditional Songs; assessment and Analysis of Rajasthani –Kumaoni –Garhwali Traditional Songs; study of Rajasthani –Kumaoni –Garhwali conventional Songs; Comparison and investigation of Rajasthani –Kumaoni –Garhwali Traditional Songs; evaluation and Analysis of Folk  Songs; similarity, dissimilarity  and examination of Rajasthani –Kumaoni –Garhwali Traditional Songs; Finding contrast and investigation of Folk  Songs;Imagination in Rajasthani Folk Songs; Imagination in Rajasthani Folk Songs from; Imagination in Rajasthani Folk Songs from Jaipur Division; Imagination in Rajasthani Folk Songs from Bikaner Division; Imagination in Rajasthani Folk Songs from Udaipur Division; Imagination in Rajasthani Folk Songs from Ajmer Division; Imagination in Rajasthani Folk Songs from Bikaner Division; Imagination in Rajasthani Folk Songs from Kota Division; Imagination in Rajasthani Folk Songs from Bharatpur Division; Imagination in Garhwali  Songs from Garhwal ; Imagination in Kumaoni Folk Songs   

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