Author Topic: Folk Songs Of Uttarakhand : उत्तराखण्ड के लोक गीत  (Read 86205 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रंगीली बिंदी घागर काई
धोती लाल किनार वाई
हाई हाई रे मिजाता
होय होय रे मिजाता
एक हाथी दातुली छो
एक हाथी ईना
रंगीली घाघर पैरी
रेशमिया चैन
हाई हाई रे मिजाता
होय होय रे मिजाता
रंगीली बिंदी घागर काई
धोती लाल किनार वाई
हाई हाई रे मिजाता
होय होय रे मिजाता

Pawan Pathak

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हमारे गीत और उनका जन्म
हम एक नई सीरिज ‘हमारे गीत और उनका जन्म’ शुरू कर रहे हैं। लोकगीत हमेशा से हमारे जीवन की किसी घटना या प्रकृति के किसी चमत्कार से निर्मित होते हैं। हमने इनका संक्षिप्त इतिहास जानने की कोशिश की है। पहले गीत ‘छाना बिलोरी’ के बारे में जानने को हमारे रिपोर्टर बिलोरी गांव गया और गीत के उद्भव के बारे में जो पता लगा वह प्रस्तुत है। आपके पास भी किसी गीत के बारे में कोई जानकारी हो तो इस मेल पर
almdesk@ntl.amarujala.com
या मोबाइल नंबर 7830001339 एसएमएस करें।

छाना बिलोरी पर बना गीत
कुमाऊं रेजीमेंट की धुन में शामिल
एक बहू की सास से तनातनी और बिलोरी के घाम ने दिया इस गीत को जन्म
आनंद नेगी
बागेश्वर। छाना बिलोरी झन दिया बौज्यू लागनी बिलोरी का घामा। इस बेहद लोकप्रिय पहाड़ी लोकगीत को सुनकर छाना बिलोरी के बारे में जानने की आपकी उत्सुकता जगी होगी। ये गीत क्यों बना, कैसे इसका विचार आया, क्योंकि कोई भी गीत यूं ही नहीं बन जाता, उत्पन्न होता है। आखिर छाना बिलोरी में ही धूप क्यों लगती है।
इसका राज जानने के लिए हमारे रिपोर्टर ने छाना बिलोरी पहुंच, लोगों से बातचीत की तो पता चला उनके गांव में बीमार करने वाला घाम तो नहीं लगता है मगर इससे उनके गांव की पहचान जरूर जुड़ गयी है और वह भी एक सास बहू की खींचतान के कारण। गर्मियों में गांव का अधिकतम तापमान 35 डिग्री रहता है। हालांकि इस गांव में सूर्य की सीधी किरणें तो पड़ती हैं फिर भी बागेश्वर घाटी की जैसी गर्मी यहां नहीं होती है। बावजूद इसके लोग इस गांव में बेटी का रिश्ता करने से पहले सुविधाओं के बारे नहीं धूप के बारे में जरूर पूछते हैं। गांव में धूप लगने से संबंधित यह गीत किसने बनाया ग्रामीणों को यह तो जानकारी नहीं है। बुजुर्ग भी बताते हैं, वे भी बचपन से इस गीत को सुनते आ रहे हैं। हां उन्हें इतना जरूर याद है कि गायक, बांसुरी वादक प्रताप सिंह और मोहन सिंह रीठागाड़ी के इस गीत को गाने के बाद यह लोकप्रिय हो गया। 83 वर्षीय हयात सिंह रौतेला और 81 वर्षीय रतन सिंह रौतेला बताते हैं कि तकरीबन 75 साल पहले कांडा के ठंडे इलाके से एक लड़की की शादी बिलोरी में हुई। कांडा से यहां का मौसम कुछ गर्म तो जरूर है। फिर बताते हैं, उसकी सास से नहीं पटी। तनातनी की गर्मी सिर चढ़ गयी, बहाना पक्का हो गया और वह मायके गई। विवाहिता ने मायके में बताया कि छाना बिलोरी में बीमार करने वाली धूप पड़ती है, इसलिए वह ससुराल नहीं जाएगी। इसके बाद वह ससुराल नहीं आई। गांव के बाहर के किसी व्यक्ति ने महिला के पलायन को गीत का रूप दे दिया। इस गीत से छाना बिलोरी गांव की पहचान घाम के साथ जुड़ गई।
छाना बिलोरी गांव बागेश्वर ब्लाक के अल्मोड़ा-बागेश्वर मार्ग पर झिरोली मैग्नेसाइट से एक किमी दूरी पर स्थित है। सात सौ परिवार वाले इस गांव की आबादी ढाई हजार के करीब है। गांव में सड़क, बिजली और पानी की सुविधा है। आठवीं तक स्कूल भी आंगन में है और डेढ़ किमी पर इंटर कालेज। पास में काफलीगैर बाजार है, यहीं सरकारी अस्पताल और झिरोली मैग्नेसाइट फैक्ट्री भी है। इस फैक्ट्री से गांव के लगभग 80 लोगों को रोजगार भी मिला है। यहां पहाड़ के अन्य गांवों का जैसा पलायन भी नहीं है। सिंचाईं के लिए नहर होने से खेती भी अच्छी होती है। सुविधाओं के बावजूद लोग छाना बिलोरी में बेटी का रिश्ता करने से पहले धूप के बारे में जरूर पूछते हैं। 78 वर्षीय मोहन सिंह रौतेला बताते हैं कि आसपास के अन्य गांवों की तरह ही गर्मियों की दोपहर में यहां धूप रहती है। इसमें खास कुछ नहीं है। लेकिन गीत के कारण दुल्हन लाने में आज भी सफाई देनी पड़ती है। लड़की वाले गीत का हवाला देते हैं फिर अपने भरोसेमंद लोगों से असलियत की पुष्टि भी कराते हैं। इसके बाद ही बेटी देते हैं।
‘छाना बिलोरी झन दिया बौज्यू लागनी बिलोरी का घामा’
सात सौ परिवारों का गांव
छाना, बिलौरी, कराला, मटेला सहित सभी तोकों की आबादी ढाई हजार के आसपास है, लगभग साढे़ सात सौ परिवार रहते हैं। बिलौरी घाटी के मध्य उभरे एक टीले पर बसा है। अधिसंख्य आबादी रौतेला लोगों की और शेष परिवार अनुसूचित जाति के हैं।

छाना बिलोरी झन दिया बौज्यू लागनी बिलोरी का घामा।
हाथै कि कुटली हाथै में रौली लागनी बिलोरी का घामा।
बिलोरी का धारा रौतेला रौनी लागनी बिलोरी का घामा।

अर्थात पिताजी छाना बिलौरी गांव मेेें मेरी शादी मत करना, वहां की धूप बीमार कर देती है। वहां हाथ की कुदाल हाथ में ही रह जाएगी। बिलोरी की धार में रौतेला लोग रहते हैं।
छाना बिलोरी से संबंधित इस गीत को कुमाऊं रेजीमेंट ने अपने बैंड की धुन में भी शामिल किया है। रेजीमेंट के मुख्य समारोहों में इस धुन के साथ शानदार बैंड डिसप्ले देखा जा सकता है।
कुमाउंनी लोकगीतों की खूबी यह है कि एक तरफ उनमें कोई न कोई दर्दभरी कहानी होती है, तो दूसरी तरफ न्योली जैसी विधाओं में पहली पंक्ति का कोई अर्थ ही नहीं होता, लेकिन दूसरी पंक्ति इतनी ताकतवर होती है कि पहले की कमजोरी को पूरा कर देती है। कुल मिलाकर ये गीत पहाड़ के दर्द को बड़ी मार्मिकता के साथ चित्रित करते हैं।

-प्रो. गोविन्द सिंह, उत्तराखंड मुक्त विवि

Source -http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150201a_003115012&ileft=361&itop=99&zoomRatio=301&AN=20150201a_003115012

Pawan Pathak

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हिट साई कौतिक जोंल दोरिहाटा...’

गीत के बोल - गोपाल बाबू गोस्वामी जी

क्या है ओड़ा भेंटने की रस्म


स्याल्दे और बिखौती दोनों मेलों में ओड़ा भेंटने की प्रथा है। मगर दोनों जगह इसके मायने अलग-अलग हैं।
 स्याल्दे मेले में द्वाराहाट के मुख्य चौराहे पर एक पत्थर है। इसके ऊपर लाठियां मारकर ओड़ा भेंटने की रस्म निभाई जाती है।

स्याल्दे-बिखौती मेले के आकर्षण और जीजा-साली के हास परिहास के रिश्ते ने दिया गीत को जन्म
हेम कांडपाल
चौखुटिया (अल्मोड़ा)। हिट साई कौतिक जोंल दोरिहाटा। ओ भीना कसिकै जानूं दोरिहाटा, आंग में आंगड़ी नी छू कसिकै जानूं दोरिहाटा, नाख में नथुली न्हैती कसिकै जानूं दोरिहाटा।
 यह लोकगीत द्वाराहाट के स्याल्दे और बिखौती मेले के आकर्षण और उत्साह को बताता है। अतीत में कौतिक (मेले) मेल-मिलाप, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना के वाहक थे।
 तब आज की तरह सूचनाएं और गीत संगीत लोगों तक पहुंचाने के साधन नहीं थे, कौतिक इस काम को आसान करते थे। यानी सीडी से नहीं कौतिक से गाने रिलीज होते थे।
जानकार बताते हैं कि द्वाराहाट के मेले पर यह लोकगीत प्रसिद्ध रंगकर्मी बृजेंद्र लाल शाह ने लिखा था जबकि गीत एवं नाट्य प्रभाग नैनीताल के कलाकारों ने इसे बोल दिए।
मगर यह सदाबहार " गोपाल बाबू गोस्वामी " की आवाज से बना।
हिट साई कौतिक जोंल दोरिहाटा 70 के दशक का लोकगीत है। यह गीत साली और जीजा के हास परिहास वाले रिश्ते के साथ ही तत्कालीन परिस्थितियों को भी बताता है।
साली के पास आंगड़ी (ब्लाउज के बाहर से पहनी जाने वाली) न होना बताता है कि समाज में आज की जितनी समपन्नता नहीं थी।
बावजूद इसके मेले में महिलाएं सोने और चांदी के आभूषणों से सजधज कर आती थी।
हालांकि गढ़वाल क्षेत्रों से आज भी महिलाएं नथ, चंद्रहार, ठोका, पोंजिए, स्यूंणकरेला व चांदी के मोटे धागुले आदि पहनकर ही आती हैं।
द्वाराहाट के स्याल्दे बिखौती मेले की कत्यूरी काल में शुरुआत होने की बात कही जाती है। चैत की अंतिम रात विमांडेश्वर में बिखौती का मेला लगता है।
लोग रातभर झोड़ा गाते हैं। दूसरे दिन बैसाख एक गते को द्वाराहाट में बाट् पूजै का मेला लगता है। जिसमें नौज्यूला समूह से जुडे़ गांवों के लोग ओड़ा भेंटते हैं।
 बैसाख दो गते को स्याल्दे का मुख्य मेला होता है। इसमें आल व गरख समूह के गांवों के लोग अपने नगाडे़ और निशान के साथ पहुंचते हैं।
यहां भी मुख्य रस्म ओड़ा भेंटने की होती है। इसके बाद मेला समाप्त हो जाता है।
बुजुर्ग बताते हैं कि मेले में पांच दर्जन से भी अधिक नगाडे़ पहुंचते थे जिनकी संख्या सिमटती जा रही है।


हिट साई कौतिक जोंल दोरिहाटा।
ओ भीना कसकै जानूं दोरिहाटा,
आंग में आंगड़ी नीछू कसिकै जानूं दोरिहाटा,
वें दरजी वें सिणुंल दोरिहाटा।
ओ भिना कसिकै जानूं दोरिहाटा
नाख में नथुली नी न्हैती कसिके जानूं दोरिहाटा।
वें सुनार वें गड़ूल दोरिहाटा।
गवै की हंसूली न्हैती कसिकै जानूं दोरिहाटा।
वें सुनार वें बड़ौंल दारिहाटा।

(जीजा अपनी साली से द्वाराहाट मेले में चलने के लिए कहता है। साली कहती है कि उसके पास पहनने के लिए आंगड़ी नहीं है।
इसलिए वह द्वाराहाट के मेले में कैसे जाए, इसी तरह नाक में पहने के लिए नथ, गले की हंसूली भी नहीं है।
इसके जवाब में जीजा कहता है कि वहीं जाकर दर्जी से आंगड़ी सिलवा लेंगे। वहीं सुनार से नथ व हंसूली भी बनवा लेंगे।)


Source -http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150206a
_002115007&ileft=148&itop=78&zoomRatio=130&AN=20150206a_002115007

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे
 

कुमांऊँनी विरह गीत -" मैं उदास हूँ , मेरा प्रेम किसने देखा , किसने अनुभव किया ।"

न्यौली लांबा गाडा तीरा न्यौत्या तिमुली को पात ।
न्यौली त्यारा बिना आबा नी काटियों मेरी रात ।
न्यौली पटवारी का हाता , न्यौल्या सरकारी लेख ।
न्यौली मैं लाग्यो उदेख , माया मेरी लै कैलै देखो ।
न्यौली ऊनी को कापडा , ज्युनाली कैलो बुनियो ।
न्यौली आबा का नीं आयो ऊ जो छियो हौसियों ।
न्यौली झुंगरा की घासी , न्यौत्या झुंगरा की घासी ।
न्यौली जब नीं मैं हौंसियो की पुन्युं छ कि अमुसी ।
खाली रै ग्यान ख्वाब जासा , उमर ल्है गई ऐसी ।
न्यौली ऐल साल बाट आइ ना मंडी को किराइनी ।
न्यौली आब संगी खेलो , को छ क्वे छै नां विराइनी ।
न्यौली तली की चालै की पानी की बरमंसी धारी ।
न्यौली तेरी छ खेलियो घाट मैं नैं औनी सार ।
न्यौली लांबा गाडा तीरा चाला सुपै की छिटी रो ।
न्यौली कै बतूंली आब लेख्यो छ करमा जो तेरो ।

भावार्थ :-
न्यौली उस लम्बे से खेत के किनारे पर तिमिली का पत्ता है ।
ओ प्रिय , तुम्हारे बिना अब मुझसे यह रात काटे नहीं कटती ।
न्यौली पटवारी के हाथ में सरकारी कागज है ।
मैं उदास हूँ , मेरा प्रेम किसने देखा , किसने अनुभव किया ।
न्यौली , ऊनी वस्त्र बुना गया है , चांदनी की तरह सफ़ेद ।
ओ प्रिय , इस बार वह नहीं आया जो रसिक था ।
न्यौली, झुंगरा की घास , न्यौली, झुंगरा की घास।
आह , जब अपना प्रेमी ही नहीं तो चाहे पूर्णिमा हो चाहे अमावस ।
केवल भूली सी यादें रह गई हैं , जीवन ऐसे ही बीत गया ।
न्यौली, इस साल मंडी का व्यापारी इस ओर नहीं आया ।
ओ प्रिय , आओ साथ ही नृत्य में भाग लें , कोई पराया नहीं है यहाँ ।
न्यौली, निचले खेत में पानी की सालभर चलने वाली धारा है ।
ओ प्रिय , तुमने तो इस घाट पर खेला है पर मुझे तो आदत ही नहीं है ।
न्यौली, उस लम्बे से खेत में सुप से फसल की छिटाई की जा रही है ।
ओ प्रिय , क्या बताया जा सकता है कि भाग्य में न जाने क्या लिखा है ।

( कुमांऊँ का लोक साहित्य )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे
 

मित्रो ! पै सुणो कुमाऊँनी बैराक द्वि टुकड़ -
(१ )
रहटै की ताना , घट कुल वाना , कैलै पाले जतिया कसो , कैका बिगड़ा दाना ,
जैल त्वीकैं जनम दिया , वी है भलि राना , मुखडी की छवि त्यरी गदुवा उसाणा ।
(२)
दोतारी को तारा , अल्मवाड़ा मोटर चली , नैनीताल कारा ,
गिवाजो की चारा , फुटिया करम जसा , फुटिया विचारा ,
कांणी आँखी रीता भाना , सुपना हजारा ,
कौली ब्वारी नजर लगै , आँखी लागी धारा ॥

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पै सुणो कुमाऊँनी जोड़ाक द्वि- तीन टुकड़ -
(१)
दातुलै की धार........... ।
अदगाड़ छोड़ी गैछै ,
न वार न पार ॥
(२)
बाकेरे की खुटी,
आपण जोभन देखी ,
आफी रैछै फुटी ॥
(३)
मारी हैछ माखी ,
तराजु में तोली दिए , कैकी माया बांकी ।

(By Prayag Joshi)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 ओ परुवा बॉज्यू, घाघरी के ल्याछा यस, ओ परुवा बाज्यू, घाघरी के ल्याछा यस
फरफर नी हुनी, घाघरी की ल्याछा यस, फरफर नी हुनी, घाघरी की ल्याछा यस
: नैनीताले बै ल्याऊं तु कस मानिछे कस,नैनीताले बै ल्याऊं तु कस मानिछे कस
धन तेरो मिजाता तू कस पैरीछे कस, धन तेरो मिजाता तू कस पैरीछे कस
: ओ परुवा बॉज्यू, घाघरी के ल्याछा यस, ओ परुवा बाज्यू, घाघरी के ल्याछा यस
फरफर नी हुनी, घाघरी की ल्याछा यस, फरफर नी हुनी, घाघरी की ल्याछा यस
: नैनीताले बै ल्याऊं तु कस मानिछे कस,नैनीताले बै ल्याऊं तु कस मानिछे कस
धन तेरो मिजाता तू कस पैरीछे कस, धन तेरो मिजाता तू कस पैरीछे कस
: ओ परुवा बॉज्यू, मुनड़ी के ल्याछा यस, ओ परुवा बाज्यू, मुनड़ी के ल्याछा यस
चमचम नी हुनी, मुनड़ी की ल्याछा यस, चमचम नी हुनी, मुनड़ी की ल्याछा यस
: द्वारहाटे बै ल्याऊं तु कस मानिछे कस,द्वारहाटे बै ल्याऊं तु कस मानिछे कस
मेरी खोरा फोड़ेली तू कस पुरैछे कस,मेरी खोरा फोड़ेली तू कस पुरैछे कस
महिला : ओ परुवा बॉज्यू, नथुली के ल्याछा यस, ओ परुवा बाज्यू, नथुली के ल्याछा यस
लुकलुक नी हुनी, नथुली की ल्याछा यस, लुकलुक नी हुनी, नथुली की ल्याछा यस
: बागेस्वरा गड़ाई तु कस मानिछे कस,बागेस्वरा गड़ाई तु कस मानिछे कस
धन तेरो मिजाता तू कस पुरैछे कस, धन तेरो फैशन तू कस मानिछे कस
: ओ परुवा बॉज्यू, चपल के ल्याछा यस, ओ परुवा बॉज्यू, चपल के ल्याछा यस
कटकट नी हुनी, चपल की ल्याछा यस, कटकट नी हुनी, चपल की ल्याछा यस
: ओह परुवे ईजा तू कस पैरीछे कस, धन तेरो मिजाता तू कस पुरैछे कस : ओ परुवा बॉज्यू, मुनड़ी के ल्याछा यस, ओ परुवा बाज्यू, मुनड़ी के ल्याछा यस
चमचम नी हुनी, मुनड़ी की ल्याछा यस, चमचम नी हुनी, मुनड़ी की ल्याछा यस
: द्वारहाटे बै ल्याऊं तु कस मानिछे कस,द्वारहाटे बै ल्याऊं तु कस मानिछे कस
मेरी खोरा फोड़ेली तू कस पुरैछे कस,मेरी खोरा फोड़ेली तू कस पुरैछे कस
: ओ परुवा बॉज्यू, नथुली के ल्याछा यस, ओ परुवा बाज्यू, नथुली के ल्याछा यस
लुकलुक नी हुनी, नथुली की ल्याछा यस, लुकलुक नी हुनी, नथुली की ल्याछा यस
: बागेस्वरा गड़ाई तु कस मानिछे कस,बागेस्वरा गड़ाई तु कस मानिछे कस
धन तेरो मिजाता तू कस पुरैछे कस, धन तेरो फैशन तू कस मानिछे कस
: ओ परुवा बॉज्यू, चपल के ल्याछा यस, ओ परुवा बॉज्यू, चपल के ल्याछा यस
कटकट नी हुनी, चपल की ल्याछा यस, कटकट नी हुनी, चपल की ल्याछा यस
: ओह परुवे ईजा तू कस पैरीछे कस, धन तेरो मिजाता तू कस पुरैछे कस

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ऊंचा डाना बटि, बाटा-घाटा बटि,
ऊंचा ढूंगा बटि, सौवा बोटा बटि,
आज ऊंणे छे आवाज,
म्यर पहाड़, म्यर पहाड़।
ऊंचा पहाड़ को देखो, डाना हिमाला को देखो,
और देखि लियो, बदरी-केदार
म्यर पहाड़
यांको ठंडो छू पांणि, नौवा-छैया कि निशानी,
ठंडी-ठंडी चली छे बयार
म्यर पहाड़
जय-जय गंगोतरी, जय-जय यमनोतरी,
जय-जय हो तेरी हरिद्वार
म्यर पहाड़
तुतरी रणसिंहा तू सुण
दमुआ नंगारा तू सुण
आज सुणिलै तू हुड़के की थाप
म्यर पहाड़, म्यर पहाड़

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पारा रे भीड़ा को छै घस्यारी ,
मालू रे तू मालू नै काट मालू

पारा रे भीड़ा मैं छूँ घस्यारी ,
मालू काटण दे मालू

मालू काटिया को पाप लागँछौ ,
मालू वे तू मालू नी काट

भैंसी ब्यै रै छ थोरी है रै छ ,
मालू ए मालू काटण दे मालू

तौं भैंसी कैं भ्योव घुरै दै ,
मालू ए तैं मालू नी काट

भैंसी छौ मेरी दीदी कैं प्यारी ,
थोरी छौ भागी मैकणी प्यारी

भैंसी गत्याली दूध पिवाली ,
मालू ए तैं मालू काटण दे मालू

के छू वे तेरी दीदी को नाम ,
वी कै मरदा के करुँ काम

वी थैं कूँलो तेरी चोरी लड़ैता ,
मालू ए तैं मालू नी काट

दीदी को मेरो नाम दुलारी ,
धनसिंह भिना तेरी अन्वारी

वीकै छीं भागी साई पियारी ,
मालू ए तैं मालू काटण दे मालू

नको नी मानिये मैंले दी गाई ,
धनसिंह मैं छूँ तू मेरी साई

दूर बे त्वेकैं पन्यार नी पाई ,
मालू ए तैं मालू काटी ले।

रचियता : ब्रजेन्द्र लाल शाह

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 रितु ऐ गे रणा मणी , रितु ऐ रैणा |
डाली में कफुवा वासो , खेत फुली दैणा |
कावा जो कणाण , आजि रते वयांण |
खुट को तल मेरी आज जो खजांण |
इजु मेरी भाई भेजली भिटौली दीणा |
रितु ऐ गे रणा मणी , रितु ऐ रैणा |
वीको बाटो मैं चैंरुलो |
दिन भरी देली मे भै रुंलो |
वैली रात देखछ मै लै स्वीणा |
आगन बटी कुनै ऊँनौछीयो -
कां हुनेली हो मेरी वैणा ?
रितु रैणा , ऐ गे रितु रैणा |
रितु ऐ गे रणा मणी , रितु ऐ रैणा ||

भावार्थ :-

रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती |
डाल पर "कफुवा " पक्षी कुजने लगा | खेतों मे सरसों फूलने लगी |
आज तडके ही जब कौआ घर के आगे बोलने लगा |
जब मेरे तलवे खुजलाने लगे , तो मैं समझ गई कि -
माँ अब भाई को मेरे पास भिटौली देने के लिए भेजेगी |
रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती |
मैं अपने भाई की राह देखती रहूंगी |
दिन भर दरवाजे मे बैठी उसकी प्रतीक्षा करुँगी |
कल रात मैंने स्वप्न देखा था |
मेरा भाई आंगन से ही यह कहता आ रहा था -
कहाँ होगी मेरी बहिन ?|
रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती ||

( कुमांऊँ का लोक साहित्य )

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