Author Topic: Folk Songs Of Uttarakhand : उत्तराखण्ड के लोक गीत  (Read 76300 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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टक -टक
टक टका टक कमला बटुली लगा ये
परदेशा मुलक मै घर बुलाये ..२

जब आली दगडा परदेश घुमोलो २
माया की डाल मा घर -बार भानोलो -२
टक टका टक कमला बटुली लगा ये
परदेशा मुलक मै घर बुलाये ..२

अकेली ना सोचे दगडो भानोलो २
कमला परदेश मा साथ घुमोलो -२
टक टका टक कमला बटुली लगा ये
परदेशा मुलक मै घर बुलाये ..२

चिठ्ठी दिए जडूड मै आश लै रो लो -२
तेरी फोटो देखी की मै रात कटूलो -२
टक टका टक कमला बटुली लगा ये
परदेशा मुलक मै घर बुलाये ..२

महण दिन हेगे न चिठ्ठी पतरा-२
कैसी माया दी ये मेरी डियूटी बोडरा -२
टक टका टक कमला बटुली लगा ये
परदेशा मुलक मै घर बुलाये ..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Gopal Babu Goswami ji song

भाज बेेर निजा तु मैता तौ बात ह्वेली खराब
भगवान कसम लछिमां मी छोडी द्युल सराब
पाणिं क गिलासौ निरौपाणिं क गिलासौ
परदेश मिं छु सुवा त्यर लागौ निसांसौं
बचपना यौ मिलै यस बितायौ म्यर ईजा
हसींखेली बेर स्कूला ऐशन मी
यौ उमर यस बितौडुं यौ मेरी ईजा
भुक्क प्यासै रेबेरघरवायी टैंसन मी
माछीं भूटुं मसाललै चहा भुटुं क्यैलै
आसुं पोंछु चाउलैलै हिया पौछुं क्यैलै

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मधुली तेरी बाखडी भैंस झन बेचिये घ्यूं
कांठकी ठेकिमदै जमायौ ठेकिम लाग गो च्युं
गाड मधूली राड कश्यारा झन टोडिये ग्युं
भाबरा जाली घाम लागौलौ पहाडा पडो ह्युं
मैतं बै रेशमी साडीबगसै लुकैं द्युं
सासु कु मन यसै करुछै ब्वारी कं बुकै द्यु
मधूली तेरी बाखडी भैंसझन बेचिये घ्यूं

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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धैं पै आज द्वीवि - चार लाइन कुमाउँनी न्यौलिक सुणों :-

काटन्या काटन्या पोली आयो चौमासु को वना |
बगंयाँ पाणी थमी जांछो नी थामीनो मना ||
.............................
हात को रुमाल छुट्यो पाणी का खाल में |
कै पापी लै खिति छू मैं दुणा जंजाल में ||
.............................
बरमा जांछ रेलगाड़ी , मथुरा जान्याँ कार |
बची रौंला चिठ्ठी दुला , मरी जूंला तार ||
....................
धोती मैली टोपी मैली ध्वे दिन्यो क्वे छै ना |
परदेसा मां मरी जूंला रवे दिन्यो क्वे छै ना ||
..........................
कथै कुनुं को सुणाछ , बड दुःख भारी |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 रितु ऐ गे रणा मणी , रितु ऐ रैणा |
डाली में कफुवा वासो , खेत फुली दैणा |
कावा जो कणाण , आजि रते वयांण |
खुट को तल मेरी आज जो खजांण |
इजु मेरी भाई भेजली भिटौली दीणा |
रितु ऐ गे रणा मणी , रितु ऐ रैणा |
वीको बाटो मैं चैंरुलो |
दिन भरी देली मे भै रुंलो |
वैली रात देखछ मै लै स्वीणा |
आगन बटी कुनै ऊँनौछीयो -
कां हुनेली हो मेरी वैणा ?
रितु रैणा , ऐ गे रितु रैणा |
रितु ऐ गे रणा मणी , रितु ऐ रैणा ||

भावार्थ :-

रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती |
डाल पर "कफुवा " पक्षी कुजने लगा | खेतों मे सरसों फूलने लगी |
आज तडके ही जब कौआ घर के आगे बोलने लगा |
जब मेरे तलवे खुजलाने लगे , तो मैं समझ गई कि -
माँ अब भाई को मेरे पास भिटौली देने के लिए भेजेगी |
रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती |
मैं अपने भाई की राह देखती रहूंगी |
दिन भर दरवाजे मे बैठी उसकी प्रतीक्षा करुँगी |
कल रात मैंने स्वप्न देखा था |
मेरा भाई आंगन से ही यह कहता आ रहा था -
कहाँ होगी मेरी बहिन ?|
रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती ||

( कुमांऊँ का लोक साहित्य )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बीर बालक हरु हीत )
(इंटरनेट प्रस्तुति एवं व्याखा : भीष्म कुकरेती )
वीर बालक हरु हीत
गोरखा लै जित जब अल्मोड़ा गढ़वाल।।
तै बखत समर सिंह गुज्डू कोट मज,
सात च्यल सात ब्वारी चार पट्टी रज।।
तल्ली पट्टी सल्ट मज समरू छी हीत।
कस छी बखता भया कसी छी ओ रीत ..
गज्डू कोट सल्ट मज छिय तैंक बसनाम।
चार दिन दुनिया में चले गया नाम।
सात च्याल , सात ब्वारी खूब झर फर।
चार पट्टी मालिक छ कैकी निहै डर।
कुणखेत बारैड़ में कमै खणी स्यरा।
गज्डू कोट मज है रै अनधनै ढेरा।
भारी सुख चैन हैरी भारी छी सम्पति।
जब आनी बुरा दिन बैठी जै कुमति।
सात च्याला समरू का भारी शूरबीर।
आई गय अभिमान निल्यना खातिर।
आणियाँ जाणियाँ लोग है गई हैरान।
हमारी पुकार न्है जो इश्वरा दरबार।
गज्डू कोट मज हैरो कस अत्याचार।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सौण आलो , गदिरा भरेला
डा शिवा नन्द नौटियाल
जब मैना सौण को आलो
बरखा होली गदिरा भरेला , स्वीँसाट होलो गाड को।
काळा काळा बादळ आला , रंग मल्हार गाला
अंधेरो होलो चाल चलकेली उज्याळो होलो धार को।
थम थम मोर नाचला , मिंडखा टर्र टर्र बोलाला
पैरा पोड़ला रस्ता टुटला चोट होली रात को।
छाम छम के कोदो गोडेलो , कुयोड़ो होलो रात सि लगली
जबतक कुटी दाथी हाथ मा , नाम नि होलो बाटा को।
घाम की खुद सी लागली , छी छी होली पाणी की
घाम आलो कमाण पोड़ली , रंग अनोखे सौण को।
हरो तरो सभी जगा होलो , छोया फुटला जगु जगु मा
पशु पंछी पाणी पाला , कुयेड़ो फटालो जिकुड़ी को।
जब मैना सौण को आलो
बरखा होली गदिरा भरेला , स्वीँसाट होलो गाड को।

--
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सबसे म्यारो मोती ढांगो

Humorous Folk Song

घोटे जाली हींग , घोटे जालि हींग
नौ रूप्या को मोती ढांगो सौ रूप्या को सींग , सबसे म्यारो मोती ढांगो
गुठ्यारो को दांद गुठ्यारो क दांद
हळस्यूं देखिक ल्म्स्त ह्वेई जांद ससे म्यारो मोती ढागो
गुठ्यारो क दांद गुठ्यारो क दांद हौरू हौरू रु घास देखि च्चम खड़ो ह्वेई जांद सबसे मीरो मोती ढांगो

घास काटी पाखी , घास काटी पाखी

कलोड्यों देखि बुड्या क्न घुरयोंद आंखी

Internet Presentation – Bhishma Kukreti

Curtsey: Dr Shiva Nand Nautiyal, Shyam Chham Ghungaru Bajla,

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाली लोक गीतों में स्त्री स्वतंत्रता व विमर्श

-- मैं नि आन्दु त्वेकू , संगरामु बुड्या रम छम I
तेरी फूलीं च दाड़ी, संगरामु बुड्या रम छम I
तू बुड्या ह्व़े गे , संगरामु बुड्या रम छम I
मैं नि आन्दु त्वेकू , संगरामु बुड्या रम छम I
तेरी डूडी कमरी , संगरामु बुड्या रम छम I
तू खंकारा को भोगी , संगरामु बुड्या रम छम I
तू आँख को काणो , संगरामु बुड्या रम छम I
मैं नि आन्दु त्वेकू , संगरामु बुड्या रम छम I
तेरी फूलीं च दाड़ी, संगरामु बुड्या रम छम I
तेरी फूलीं च दाड़ी, संगरामु बुड्या रम छम I

Curtsey : Dr Shiva Nand Nautiyal, Shyam Chham Ghungaru Bajla, page 50 for folk song
इंटरनेट प्रस्तुति -भीष्म कुकरेती १५/७/१५

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रणिहाट नि जाण गजेसिंग : एक लोकगाथा युक्त गढ़वाली थड्या लोकनृत्यगीत
(गढवाली सामुदायक व सामूहिक सामाजिक लोक नृत्यगीत , उत्तराखंडी सामुदायक व सामूहिक सामाजिक लोक नृत्यगीत )
(Garhwali Folk Dance-song, Uttarakhandi Folk Dance-Song, Himalayan Folk Dance Song)
रणिहाट नि जाण गजे सिंग
मेरो बुल्युं मानिले गजे सिंग
हळजोत का दिन गजे सिंग
तू हौन्सिया बैख गजे सिंग
तेरा बाबू का बैरी गजे सिंग
त्वे ठौरि मारला गजे सिंग
तेरा कानू कुंडल गजे सिंग
तेरा हाथुं धगुला गजे सिंग
त्वे राणी लूठ्ली गजे सिंग
रणिहाट नि जाण गजे सिंग
बैरियों का बधाण गजे सिंग
सार्युं का डिसाण गजे सिंग
बड़ो बाबू का बेटा गजे सिंग
मर्द मरी जाण गजे सिंग
बोल रैय़ी जाण गजे सिंग
(गीत स्रोत्र : पीताम्बर दत्त देवरानी (लंगूर पट्टी ) एवम डा शिवानन्द नौटियाल कि पुस्तक ' गढवाल के लोक नृत्यगीत )

By Bhishma Kukreti.

 

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