Uttarakhand > Music of Uttarakhand - उत्तराखण्ड का लोक संगीत
Folk Songs Of Uttarakhand : उत्तराखण्ड के लोक गीत
पंकज सिंह महर:
बारहमासा गीत
आयो मैनो चैत को, हे ददियों, हे राम।
उठीक फुलारी झुसमुस, लगी गैन निज काम,
मैनो आयो वैसाख को, सुख की नी आस,
ग्यों जौ का पूलों मुड़े, कमर पड़ीगी झास।
आयो मैनो जेठ ही, मक्को हवेगी मौत,
स्वामी मेरा घर नी, समझी रयूं मैं मौत।
मास पैलो बसगाल को, आयो यो अषाड़,
मैं पापीण झुरि-झुरि मरयों, मास रयो न हाड़।
मास दुसरो बसगाल को, आयो स्यो सौण,
चिट्ठी नी पतरी ऊँकी कु जाणो कब घर औण।
मास आयो भादो को, डांडू कुरेड़ी लौखी,
तेरी खुद स्वामी, जिकुड़ी मा बिजुली सी चौंकी।
आयो मैनी असूज को, बादल गैन दुरु,
जोन काँठों मा औंदी, जिया लाग बुरु।
आई दिवाली कातिकी, चढे घर-घर टैकू,
यू दिन स्वामी का बिना ज्यू लगदू कैकू।
आयो मैनो मंगसीर को, हे बैठयों, हे राम,
स्वामी की खुद मा हाड़ रयो ना चाम।
पूष मासे की ठंड बड़ी घर-घर कंपादी गात,
कनि होली भग्यान सी पति जौंका सात।
लगी मैना माघ को गौं-गौं छन ब्यो,
ब्योली आँखी झुकैक ब्यौला से मिलदी स्यो।
फागुण मैना आये, हरी-भरी हवैन सारी,
भी झूरी-झूरी मरयों एकुला बांदर की चारी॥
पंकज सिंह महर:
बसन्त के महीने का ऋतु गीत
बसन्त बहार माजि, ढैडा़ फूल्याँ सार माजि,
सचि बैठी रीतू बौड़ी ऎगी।
पहाड़ों का धार माजि कोकिला पुकार माजि,
नाचण-नाचण होली लगी, नाचण लगी होली।
मन बापूरा उड़ी-उड़ी बैठयाँ होला डाला-डाला,
गुन-गुन की धुन सुणिक आज स्वामी आला।
चल खुटी मजदार माजि काली गंगपार माजि,
मन की उमंग बौड़ी ऎगी, सचि बैठा ॠतु बौड़ी ऎगी॥
पंकज सिंह महर:
घूघुती घुराण लगी (पक्षी पर आधारित ऋतु गीत)
घूघुती घूरौण गली, मेरा मैत की,
ऋतु बौड़ी-बौड़ी ऐगे चैत की।
डांडी-कांठयों कू हिम गलीगे होलू,
मेरा मैत कू बौण मौलीगे होलू।
कब मेरा मैती, औजी दिशा भेंट आला,
कब मेरा भाई-बैणीयों की राजी-खुशी ल्याला।
तिबारी में बैठ्या होला, बाबाजी उदास,
मांजी देखणी होली, लगी होली आस॥
पंकज सिंह महर:
सावन मास का ऋतु गीत
सुणा मेरा स्वामी जी, सावण आयो,
रूण झुण्य़ा बरखा, घनघोर लायो।
दौड़ी-दौड़ी कुयेड़ी, डांडों में आयो,
कुरेड़ी नी स्वामी, अंधियारो छायो।
कुरेड़ी देखीक, जिऊ खुदी आय,
कनु पापी आँखी, आँसू भरि लाय॥
पंकज सिंह महर:
करव होली मेरा डाँडी कांठी,
करव कुरेड़ी सौण की।
आलंद का बीच छानीम होली,
भैंसी ब्याई सौण की।
दूध टचाला और खीर पकाला,
गोंदकी खाला नोण की।
करव होली मेरा डांडी ओ कांठी,
करव कुरेड़ी सौण की।
सूरमा सितारु मैकू नी प्यारु,
प्यारु छ मैकू मेरु गढ़वाल,
करव होली मेरी डांडी अ कुरेड़ी सौण की।
रुम-झूम बरखा छूम-छूम होया,
खुद लगी च मैत की॥
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