बारहमासा गीत
आयो मैनो चैत को, हे ददियों, हे राम।
उठीक फुलारी झुसमुस, लगी गैन निज काम,
मैनो आयो वैसाख को, सुख की नी आस,
ग्यों जौ का पूलों मुड़े, कमर पड़ीगी झास।
आयो मैनो जेठ ही, मक्को हवेगी मौत,
स्वामी मेरा घर नी, समझी रयूं मैं मौत।
मास पैलो बसगाल को, आयो यो अषाड़,
मैं पापीण झुरि-झुरि मरयों, मास रयो न हाड़।
मास दुसरो बसगाल को, आयो स्यो सौण,
चिट्ठी नी पतरी ऊँकी कु जाणो कब घर औण।
मास आयो भादो को, डांडू कुरेड़ी लौखी,
तेरी खुद स्वामी, जिकुड़ी मा बिजुली सी चौंकी।
आयो मैनी असूज को, बादल गैन दुरु,
जोन काँठों मा औंदी, जिया लाग बुरु।
आई दिवाली कातिकी, चढे घर-घर टैकू,
यू दिन स्वामी का बिना ज्यू लगदू कैकू।
आयो मैनो मंगसीर को, हे बैठयों, हे राम,
स्वामी की खुद मा हाड़ रयो ना चाम।
पूष मासे की ठंड बड़ी घर-घर कंपादी गात,
कनि होली भग्यान सी पति जौंका सात।
लगी मैना माघ को गौं-गौं छन ब्यो,
ब्योली आँखी झुकैक ब्यौला से मिलदी स्यो।
फागुण मैना आये, हरी-भरी हवैन सारी,
भी झूरी-झूरी मरयों एकुला बांदर की चारी॥