ये उच्ची-उच्ची डाडीं काठी
ये गैरि गैरि रौत्येली धाटी
न जावा न जावा छोडी़ की अपडि जल्म भूमी माटी
बोल्यु माना ,बोल्यु माना बोल्यु माना
सैतीं पाल्यी सयाणु कैकी ,जाणा छां मुख्ख मोडी़ की
कख मिललु यनु सुख यनु चैन
ब्वै की कुछली छोडी़ की
रिती -रिवाज मुल्क छोड़णा छां
तुम कै सुख का बाना
बोल्यु माना बोल्यु माना बोल्यु माना
अपडू छोडी बिरणा पैथर
कब तक भजणा रैल्या छोरो
झूटा सुपिन्यों का खातिर
अफु थै कब तक ठगणा रैल्या छोरो
इखी मिल जालु सभी सुख तुम थैं
जरा मन मा त ठाना
बोल्यु माना बोल्यु माना बोल्यु माना
जल्म लियुं च जैं धरती मा ,कर्ज चुकाण पडलु तुम थै
मां का दूदा सौं देणू छौ ,बोडि की औण पडलु तुम थैं
तुमारू बाटू हेरणा छिन ये
यूं बाटो बिसरयां ना
बोल्यु माना बोल्यु माना बोल्यु माना
काफल बेडू तिमला हिंसर
युकुं स्वाद भूली न जै तू
अपडा़ पहाडी़ मयलु पराण राखी पविञ,
मैलु न कै तू
क्येकु लगदिन ये बडुली-पराज
खुद क्या होन्दी भूल्यां ना
बोल्यु माना बोल्यु माना बोल्यु माना