Author Topic: Folk Stories from Garhwal - गढ़वाल के लोक कहानियां  (Read 46585 times)

Bhishma Kukreti

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जमरखोळी कूंतणी हद्दम कनकैक  आयी ? एक लोमहर्षक लोक कथा

लोक कथा संपादन : आचार्य भीष्म कुकरेती

 कथा सुणाण  वळि  : श्रीमती सूमा देवी डबराल कुकरेती (मैत -कूंतणी )

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  डबराल स्यूं पट्टी म कूंतणी अर खमण  द्वी गां लग्गा बग्गा क  गौं छन , दुयुंक साड़ी कखम खत्म हूंदी कखम शुरू हूंद पता लगाण कठण  च।  डबराल स्यूं म तकरीबन हरेक गां  डबराल बाहुल्य गांव इ छन अपवाद बिसरी जावो।  खमण कुकरेती बाहुल्य गां च , बल इन बुल्दन बल डबराळुंन  खमण  भेंट या घर जंवाई म कुकरेत्यूं  तै दे बल (ग्वीलक प्रथम पुरुष बृष जी ? ) .

  कूंतणीम एक सारी च जमरखोळी जो कूंतणी अर खमण अर खमणक हद्द पर च।  बल  बूड  बुड्या   बुल्दा  छा बल कबि जमारखोळी खमण वळुं  जमीन छे बल अब त कूंतणी वळुं  च।

   बल इ राम दा  कन कन  मनखिण  हूंदन हैं धौं  ! बल एक छे हम डबरालुं दादि भड्डु डबराल जैंक मैत खमण  थौ।  क्वी बुल्दो  बल भड्डू तै खमण से प्रेम नि छौ बल त क्वी बुल्द बल वीं दादी तैं  जमरखोळी से  कुछ बिंडी इ प्रेम छौ।  भड्डून खमण वळुं  तै जमरखोळी कूंतणी वळुं  तै दीणै भौत मिन्नत कार।  भड्डू दादि खमण येम गे , तैम गे , कैम  नि  गे पर क्वी बि खमण वळ जमर खोळी कूंतणी वळुं  तै दीणो तयार  नि  ह्वे।  हूणी तै कु क्या भीमाता बि नि टाळ सकदी।

   जब खमण वळुं न जमरखोळी कूंतणी  वळुं दीणो साफ़ ना बोली दे त बल वा ददि  निरसे गे बल।  एक दिन गे वा भड्डू ददि जमरखोळी ऐंच अर खट चलाई वींन पैनी थमाळी अपण मौणी पर  अर धळ से मौणि  अलग कर दे।  मोरद दें  भड्डू  ददि खमण वळुं  तै सराप  दे गे बल क्वी खमण वळ नि खैन यी खोळी अनाज।

   हौळौ  बगत खमण वळ  जमरखोळी  हळयाणो गेन।  कैक हळयाण अर कैक बल्द जुतण।  हौळ , निसुड़ , ज्यू पर सब जगा बनि बनिक गुरा ऑवर , पिंगळा पता नई कटना गुर्रा धौं।  खमण वळ बगैर हळयां जमरखोळी बिटेन वापस ऐ गेन।  सब समजी गेन  बल भड्डू न सराप  दियाल।   तब खमण वळुं न जमरखोळी  कूंतणी वळुं  तै  दे द्याई।  इ राम दा  ज़िंदा  म इ  दे दींद त भड्डू ददि बि दिखदी बल। 


 

Interpretation Copyright@ Acharya Bhishma Kukreti, 2018

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Bhishma Kukreti

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छयूंत्यूं  दगड़ भेळ लमडण

सलाणी लोककथौं जणगरु  :  आचार्य भीष्म कुकरेती

कथा सुणाण वळ  : स्व . श्री मुरलीधर अम्बादत्त कुकरेती (जसपुर ढांगू  )
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   या कथा गढ़वाळै सार्वभौमिक लोक कथा च।
    अर बल जन कि बल हरेक अडगैं /क्षेत्र म लाटा कालूं  गाँव हूंदन हमर जिना  बि एक लटंग नामौ गाँव थौ।  बल अब  त क्यांक लटंग सब साब बणी गेन।  बल तबाकि बात च बल जब लालटैन फालटैन नाम नि सूणी थौ।  इ राम दा  ! तब दिवळ छिल्लुं जमन थौ।   जुत्त ? कैपर लगाण छौ जुत्त।  केक जुत्त ? हां त बुन्याल बल मि लटंग गौं कथा लगाणु  छौ बल जै गाँव म हुस्यार मिलण इनि  छौ  जन बिरळ औंर अर तिमला फूल।  हाँ हाँ त्यार सौ बल तै लटंग गौं म सब लाटा  काल ही था बल।
  हां त एक दैं जड्डुं दिन रै ह्वाल सैत हां इनि दिन रै ह्वाल।  लटंग गां  वळ छयूंती कट्ठा करणो कालु डांड गेन बल।  हां त बुन्याल  बल भल नामो बि हर्चन्त ह्वे  तौंकुण ! डांडो नाम बि धार जौन कालु
डांड।  काळों डांड ना।  कालु डांड।  सब लोग मवरां जण बच्चों समेत पोंछि गेन कुंळै डांड मतबल कालु डांड।  ये ब्वे क्या दिन रै ह्वाल भै जब सब काम छोड़ि छ्यूंती कट्ठा करणो जांद रै होला।
  जब सब कालु डांड पौंचेन त तौं लाट कालूं तैं एक बड़ो कुंळै उच्चु डाळ दिखे जख पर छ्यूंत्यूं झुम्पा पर बि झुम्पा लग्यां छा। अर कुंळैं डाळ बि पुट्ट भ्याळ पर।
  क्या कुंळैं हूंद रै  ह्वाल तब।  अब त  रणी दे।  सबुंन सकड़ पकड़ कार बल कुंळै डाळ काटे  जाव अर तब छयूंती तुड़े जाल।  डाळ भेळ जोग नि ह्वावो तो कुछ लोगुंन अपण क्र पर डुडड़ बांधिन अर फिर डुडड़ कुंळै डाळ क ग्वाळ पर बाँधी दे।  कुछ लोग कुलाड़ीन कुंळै डाळ धळकाण मिसे गेन।  क्या पैनी कुलाड़ि रौंद रै होली हैं तब।  बस मिनटों म डाळ चड़ चड़ करदो भेळ जोग ह्वे गे अर जु डाळ पर बंध्या  छा  सब भेळुन्द जोग ह्वे गेन  जु मथि रै गे  छा ऊंन स्वाच जु भेळ जोग ह्वेन ऊंन सब छयूंति ली जाण अर बिना अगवाड़ी पिछाड़ी सोचिक सबुंन भेळुंद छलांग मारी दे अर क्या बुन  भग्यान ह्वे गेन।
 बूबा कबि नि दीण बेटी लाटा कालों गां। 


संर्दर्भ - भीष्म कुकरेती , (1960 ) गढ़वाल की लोककथाएं , बिनसर प्रकाशन , दिल्ली

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गौड़ी अर भूत
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लोक कथा संकलन  : आचार्य भीष्म कुकरेती



 कथा सुणाण  वळ : स्व श्री बलदेव प्रसाद रघुवर दत्त कुकरेती 'मास्टर  जी ' (जसपुर ढांगू )

 
   कुज्याण कथगा साखी पैला छ्वीं छन धौं। एक सुखी गौं छौ।  इ राम दा तब बल सुखी रौंद छा बल।  इन बुल्दन बल एक दैं भूतुं रौळ बौळ मची गे।  भूत लोकुं तैं  डरावन  अर चैन छीन द्यावन।  दिन रात बस भूतूं आतंक बस आतंक।

    हरेक मौन भूत भजाणो बान क्या जतन नि कार हरेकन अपण पंडी जी से पूजा कराई  ंचाई क्या इख तलक बल कुखुड़  मारिन पर इन भुभरड़ जम बल भतूं पर फरक नि पोड़ उल्टां तौंक डराण बढ़ इ गे।

 लोग कवौंम गेन बल सौ सायता कारो।  कवौंन भूतुं तै डराई  धमकाई क्या मुठकाई पर केक डौर भूत और बि  उच्छेदी  ह्वे गेन अब त यी बुड्यों तै बि डराण मिसे गेन।  लोकुंन काखड़ , बिरळ क्या स्याळुं से सौ सायता मांग पर कुछ नि ह्वे भूतुं उत्पात बढ़दो जि गे।

   तब सब गौड्यूंम गेन  तै बचाओ।  गौड्यूंन सांत्वना दे बल सि  सब भूत भगाला।  सब गौड़ी गांवक सरद (सीमा ) पर खड़ ह्वे गेन।  जनि भूत ऐन तनि गौड्युंन भूतुं समिण  शर्त रख दे बल यदि तुम हम मादे कै बि गौड़ी पूछो बाळ गण देल्या त तुम गाँव भितर प्रवेश कौर सकदा निथर प्रवेश बंद। 

  भूत भूत ही ठैर ऊंन शर्त मानी अर ले एक गौड़ी पूछो बाळ गणन लगी।  केक गणन अर क्यांक गणन।  एक जब तलक कुछ बाळ गौणो  गौड़ी पूछ हलै द्यावो या भूत गणती  भूल जावन।  पता नी बल कै गैणा रात खुलिन धौं पर भूत एक इ  गौड़ीक पूछो बाळ नि  गौण सकिन।  हौर गौड़ुं बात त जाणी  द्यावो एक गौड़ी  से इ चकर खै गेन भूत।  भूतुंन हार मान दे बल।

भूत डौरन गाँव  छोड़ि इ नि गेन बल्कणम गौड्युं  से वादा कौरिक बि चल गेन   तब बिटेन कबि  बि क्वी मनिख गौड़ी पर लग्युं  हो तो वैपर कबि बि  भूत नि लगल बल।





संदर्भ

भीष्म कुकरेती (1984 ) गढ़वाल की लोक कथाएं , बिनसर प्रकाशन , नई दिल्ली -3 , पृष्ठ 33 -34

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 छिपड़ु  कूड़  कबि नि  बणदु


लोक कथा संकलन  : आचार्य भीष्म कुकरेती


 कथा सुणाण  वळ : स्व. श्री बलदेव प्रसाद रघुवर दत्त कुकरेती 'मास्टर जी ' (जसपुर )

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 भौत पुरण छ्वीं छन बल जब जीव जंतु आपसम छ्वीं लगान्द छा।  ह्यूंदु  बगत छौ बल।  त बल तख एक छिपड़ छौ बल तैक क्वी घौर न बॉस न क्वी घोल न कुछ।  जखि रात पोड़ी तखि  बास।  त एक रात स्यु छिपड़ु एक डाळी फ़ौंटम छौ सियुं।  निंद  बि इन कि क्या बुलण।  तबि कखि दूर डांडों म रात बरफ पोड़ी गे।  तखाकि ठंडी हवा इनै आयी अर छिपड़ पर ठंड लगण मिसे गे।  छिपड़न हाथ पैरूं बुट्ठी मरण शुरू कर दे।  अड़गटे क बुरा हाल छा तैक।  घोल जि हूंद त ह्यूंदा ठंड जि क्या लगद तै छिपड़ु तैं।  जब ठंड न बू हाल ह्वे गेन त तब छिपड़न कसम खैन सुबेर हूंदी घोल बणाल।

     सुबेर ह्वे त मुर्दार पड़्युं छिपड़ तै घोल बणानो कसम याद आयी पर छिपड़न स्वाच जरा घाम ऐ जाव त हथ खुट खुल जावन तब घोल बणालु।  घाम बि आयी त तै अळगसिन घड्याई बल जरा घाम तपे जाव त घोल बणालु।  घाम तपण से तैक हथ खुट्ट खुली गेन अर स्यु छिपड़ अब बर्बरु ह्वे गे।  अब तैन स्वाच बल जरा भोजन पाणी ह्वे जा त तब घोल बणाये जाव।  इनि करदा करदा दुफरा से रात ह्वे गे अब जि क्या घोल बणन छौ।  स्यु कै हैंक डाळौ फौन्टीम पोड़ी गे।  रात फिर  बरफ पोड़ी होली अर छिपड़ तै लगण बिसे गे।  तैन फिर से सुबेर लेक घोल बणानो  कसम खायी।  सुबेर ह्वे तै छिपड़न फिर स्वाच घाम आणो परान्त  घोल बणौलु , भोज उपरान्त घोल बणौलु , स्याम दै घोल बणौलु।  किलै बणन छौ घोल।

 फिर रात आयी  छिपड़ तैं ठंड लग छिपड़न घोल बणाणै कसम खायी अर दुसर दिन बि टालबरायी म घोल नि बौण।

 हूंद करदा कुज्याण कति दिन रात ऐन धौंरात छिपड़ घोल बणाणो कसम ल्यावो अर दिन म टालमटोळ कर द्यावो।

 एक रात ये छवाड़ बि जोरक ह्युं पोड़ गे।  इथगा हयूं पोड़ बल छिपड़ ह्यूं तौळ दबेक मोरी गे।  कुजातक छिपड़।  समय पर घोल बणै लींदो त  किलै मोरण छौ तैन  ह्यूं तौळ दबिक़।

बुबा जु बि काज करण हो समय पर पूरो करि ही दीण निथर छिपड़ जनि कुगति मिलदी हाँ। 


 

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  द्वी दुबस्ता ढिबरियूं  कथा


लोक कथा संकलन  : आचार्य भीष्म कुकरेती


 कथा सुणाण  वळि  : स्व. श्रीमती कुकरी देवी शीशराम कुकरेती (जसपुर ढांगू )

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    ( मीन जब गढ़वाल की लोक कथाये  कथाघळ म लेखी बल लोक कथाओं मुख्य प्रयोजन प्रबंध विज्ञान की शिक्षा च त कुछ समालोचकों न मेरो ये कथन की आलोचना कार।  बल लोक कथा  तै  विज्ञान व परबध दृष्टि से नि दिखे जै सक्यांद।  पर या कथा ज्वा बिनपढ़ीं  लिखीं जनान्युं रचित कथा त यी बताणी च बल लोक कथौं म प्रबंध विज्ञान एक आवश्यक अवयव च।  मेरी बड़ी ददि (बाबा जीक बोडी ) यीं  कथा तै हरेक गर्भवती युवती तै रोकी जरूर सुणांद छे )

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 भौत साल पैली कुज्याण कथगा सौण  पैली  धौं हमर गां मा द्वी द्यूराण  जिठाण ढिबरी छा - मयळी  अर गरगरी।  एक दै  बत्थ  छन बल द्वी  ढिबरी इकदगड़ी आशाबन्द (गर्भवती ) ह्वे गेन।  मयळि ढिबरी लौबाणि छे त गरगरी कुछ धुर्या जन छे।  मयळि जनि आशाबन्द ह्वे वा सैण भूमि म जावो , कै पाख पख्यड़ म नि चौढ़ धौं। मयळि ढिबरी हमेशा सुचणी रावो वींक बच्चा संत हो , अगनै पैथर दिखण  वळ हो। मयळि रोज भगवान तै याद करदी गे। मयळि ढिबरीन हौरुं दगड़ फ्वीं, फ्वीं , फ्वींफाट   सब बंद कर दे क्वी ढिबरी लड़णो बि आवो त  मयळि काख लग जा।   मयळिहिटणम  चलणंम , बाच बचनम, घस्स खाणम , पाणी पीणम बड़ो ध्यान द्यावो

   ऊना गरगरी  हौर बि गरगरी हूंद गे।  उच्च पाख पख्यड़ म चढ़ण नई छवाड़  कना कना उच्चा डाळम चौढ़न नि छवाड़ वीं गरगरी न।  अर लड़णो तो इन तयार रौंदी छे कि क्या बुलण।

      स्वील हूणो बगत आयी त मयळितै स्वीलाक पीड़ा बि नि  ह्वे अर द्वी सुंदर चिनख ह्वे गेन।  कैन जाणी  बि नी बल  मयळिकब स्वील ह्वे।

    अर बूबा रै गरगरी स्वील हूणो क्या छ्वीं लगाणो तब।  एक दिन रात तक वा स्वील पीड़ा म तड़फणी राई।  जब कुछ नि ह्वे त वींक मालिकन वींक चिनख अपर हथों न भैर खैंच।  चिनख त भैर आयी पर  गरगरी क प्राण चल गेन।  चिनख जि बची गे।  खाडू छौ बल ब्वे खवा।

 ये ब्वे बल स्यु खाडू बि बड़ो अन्याड़ निकळ बल।  जै कै दगड़ ले लड़ै भिड़ै।  रागस छौ रागस।  एक दिन कै खस्सी खाडू दगड़ रिकौण  म मारे गे।  गरगरी न कुछ नि  पायी।

 

   

 

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लिण्ड्र्या छ्वारा


लोक कथा संकलन  :   दीन दयाल सुंदरियाल , चंडीगढ़
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एक गौ म एक गरीब नोन्याल छौ जु छोटा म ही छ्वरे गे । ब्वे बाबा सिंनक्वालि मरी गेनी, भै बैण क्वी छा ना। सोरा- भारा अर गौं वलों कु हतबुत सरेकि जिनगी बिताणु छौ, याने कि जै दिन, जै बगत, जै मौउ कु काम करी,  वखी खाउ अर रात अपण कोठरी म सेणू ऐ जाउ । इनी वैका दिन गुजर्णा छा । वैका ब्वे बाबा न नाम त धरी छौ लीलाधर, पर वैकु असली नाम क्वी नि ल्हेन्दु छौ। सब्बि छोटा –बड़ा, बैख- बिठुला,  वैकु लिण्ड्र्या छ्वारा हि बोल्दा छा।  लिण्ड्र्या याने लीला र छ्वारा याने जैका ब्वे- बाबा नी। वो भि कैका बोलनों बुरु नि मानदु छौ,  बल्कि सब्बूकू काम करी देन्दु अर सबु दगड़ हेन्सी खेली रन्दु छौ। लिण्ड्र्या कभी स्कूल नि गै पर दिमाग वैकु भौत तेज छौ। वन वो सीधु –सादु नौन्याल छौ ।
 लिण्ड्र्या छ्वारा  जब भि टैम मिल्दु त गौं क तौल बाटा किनर तिमला क डालम बैठी पक्यां तिमला कु मजा लेंदु छौ । क्वी आण जाण वला भि वैमा तिमला मंगदा छा त वो ना नि कर्दू छौ ।  एकदिन एक बुडीड़ सि ज़नानी ऐ अर  वींन लिण्ड्र्या छोरम तिमला मांगिन। वा बुडीड़,  जु असल माँ एक डैण छाई,  मिट्ठा तिमला खाइक भौत खुश ह्वाइ अर सोच्ण बैठी कि रोज़ यूं तिमला खाण वालु यो छोरा कति  मिठठू अर सवादि होलु । पितली गिच्ची करी वींल बोलि ,” हे बुबा, जरा एक तिमला हौरि दे. दे..”। लिण्ड्र्या  जनी तिमला चुट्टाण बैठी त बुडीड न बोलि ,” न न  न, सिन न चुट्टों, तिमला फुटी गे, जरा तौल औ अर म्यार हथम पकड़ौ - - - -“ ।  वो सीधु सादु नौन्याल जनी तौल म सि आई त वीं डैण न झट खेंची, अपण थौला म ड़ालि अर चल्दे । डैण मनमाँ खुश हूणी कि आज राति सवदी शिकारि तर्री अर बासमाती भात खौलु ।
बिचारु लिण्ड्र्या क्य जी करु ? बड़ी मुसकल करी वैन बुडड़ी क थौला पर द्वी छेद करीन तब्त सांस ल्हेणु राइ। थोड़ा सी देरम वै नींद ऐगी।  गौ कि सरहद बिटी जरा सि अगने जैकि डैण झाड़ा फिरणों चलिगे, अप्णु थौला बिसैकि गुयेर छोरों देखभाल कर्णौ बोलिगे । गुयेरुन,  जो लिण्ड्र्या का हि गवां छा,  थौला खोलि।  देखि त लिण्ड्र्या छोरा बंद छौ । वून वो बिजालि अर लिण्ड्र्या भैर ऐगे ।  तब सब्बों न थैला पर घनतर -ढुंगा अर माटू भरी दे अर थौला कु मुक उनि बांधिक सब भाजि गेनी । डैण वापस आइ,  थौला पीठि पर लगै अर चल पड़ी । वींकी पीठी पर ढुंगा बिणाना अर व बोनि , “  निर्बइ लिण्ड्र्या छ्वारा, पुड्यौ पुड्यौ सि घुंडा,  तेरी घुंडीयु कि रशी पीण ब्यखुंदा - - -“।  वा डैण जनी  अप्ण घौर पौंछी अर थौला खोलि त पट्ट खौलेगे ।
हैका दिन वो डैण जोगण-माइ बणी लिण्ड्र्या म तिमला मङ्ग्णौ चलिगे।  जनी लिण्ड्र्या छोरा तिमला ढोल्ण बैठी, त वींन बोलि, “ हे छोरा,  मी चुट्टायीं भीक नि ल्हेन्दु । देणा तिल त म्यार हथम दे - -“। सीधु -सादु लिण्ड्र्या फेर वींका बखयाँ म ऐगे अर जनी वो नजीक आई तिमला देणू,  वीं जोगणन (डैण ) झट खेंची वो,  थौलम बंद करी अर चल्दे । दूर पाणि वाला रौला म जैकि, थौला पुंगड़ा भीटा पर धरी, वा डैण झाड़ा फिरनौ चलिगे। वै दिन लिण्ड्र्या तै निंद नि आइ छै अर वो थैला भित्र कुणमुण कुणमुण लग्यू छौ। तबरी उथेन एक स्याल एग्याई । स्याल न सोची कि थौला पर बखरू या भेड़ू बंद च। वैन तेज़ दांतू न थौला मुक खोलि दे। जनी लिण्ड्र्या वख बिटि भैर आइ स्याल ड़ौर गे अर भाजिगे।  लिण्ड्र्या न थौला उंदी रौलों माटू, किचीड़ भोरि दे अर थौला कु मुक बांधि भाजिगे । जोगण डैण वापस आइ वींन थौला उठाई अर चल पड़ी। कुछ देर म वी पीठि पर कुछ तीन्दु सि लगी त वीं सोचि लिण्ड्र्या  ड़ौर न हग-मुते ग्या। वीं बोलि “ हे छोरा ॥खूब हगी-मूती ले ... घौर जैकी दिखुलु तेरी हगणी - मुतणी .... आज त रशी अर बासमती भात खाण मीन - - -“ फेर जनी  अप्ण घौर पौंछी अर थौला खोलि त डैण खौलेगे ।
तिसरा दिन जब लिण्ड्र्या छ्वारा तिमला डालम बैठ्यूँ छायु त व डैण भारी खूबसूरत बांद बणी ऐ ग्या । लिण्ड्र्या ब्यो जुगता ह्वे त गे छौ,  पर निर्बइ छोरा कि ब्यो-बंद कि बात कैन करणि छै । सुंदर बांद देखी लिण्ड्र्या कु गिच्चा पाणि ऐगे अर वो पक्या-पक्या मिट्ठा तिमला ल्हेकी डालाक तौल ऐ ग्या। जनी वो वीं बांद तिमला देण बैठी, वील झट खेंची वो , थौलम बंद करी अर चल्दे - - -। वै दिन डैण न अपण घौरा पास जंगल से पैलि बिसौण नि करी। लखिपखी जंगल म बाटा क ढीस थौला लुकेइ कि वा झाड़ा फिरणों चलिगे । जरा सी देर म एक रिक्क आइ अर थौला सूंघण बैठी त लिण्ड्र्या छौरा न हाथ जोड़ी बोलि कि “ हे जंगल का राजा जी, मी बचावा ....” हैरान रिक्क न थौला खोलि त लिण्ड्र्या न बोलि , “हे रिक्क दादा, य बांद  बोनी मी दगड़ ब्यो कर । मीन ना बोली त जबर्दस्ती थौला पर बंद करी च ल्हिजाणी।“  रिक्क त बिगरेली बान्दु शौकीन होन्दु। रिक्क न बोलि, “ त्यार जगा मी वीं बांद दगड़ी ब्यो कनो तयार छौ। “  इनू बोलि  वो थौला उंदु बैठिगे अर लिण्ड्र्या न थौला कसिकी बंद कर दे ।  डैण थौला उठे घौर पोंछि।  अप्ण असली रूपं म ऐकी जनी वींल थौला ख्वाल त रिक्क न डैण द्याख अर वों मारी दे। बस वै दिन बिटि लिण्ड्र्या छ्वारा अप्ण गौ वलों दग्ड़  राजी खुशी दिन बिताण बैठी। कहानी खतम,  पैसा हजम ।
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Interpretation Copyright@ दीं दयाल सुंदरियाल चंडी गढ़ , 2018
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बेलपतरी राणी

लोक कथा संकलन  : दीन दयाल सुंदरियाल 
 Garhwali Folk Story collected by : Din Dayal Sandariyal , Chandigarh
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एक रज्जा  छौ भुंगू। वैका सात लड़ीक छा । छै नौनयाल  बिवै कि रज्जा न जुदा करि यला छा  । सबसे निकाणसु नौन्याल अणबिवाक छौ ।  वो भारी बिग्ड्यू छौ। सर्या दिन खाऊ-प्याउ, मस्ती करि, क्वी काम धाम ना । बूबा, भाईयूँ क दगड़ हथबटे भी नि करदु छौ। दरअसल वैका होणा कुछ दिन बाद वेकी ब्वे मरीगे छै त सब्योन वै  लाड़- लुटग करि पत्गई द्या । वैकु  सब्बी काणसु –काणसु बोलदा त वैकु नाम पड़गे काणसु।  उन वइकु नाम छौ कृष्णा ।
रज्जा न कृष्णा कु ब्यो करणों सोचि पर वै क्वी नौनि पसंद नि आऊ। खूब खांदु- पीन्दु घौर छाइ, नौनु भी खूब गोरू -उजलु, देखण- दर्शन छा  त वैकी सबी भौजा अप्ण गौउ या रिश्तादर्रिम वैकु ब्यो कराणा तिकड़म म छै। क्वी अप्ण खास बैण,  त क्वी चाचा- बोड़ा की,  त क्वी मामा- फूफू की नौनि द्यूराण बनाण चाहणी छै पर काणसु ऊँ थई अंगुलि नि पकडौन्दु छौ ।
एक दिन काणसु न सबसे बड़ी भौज पूछि, “ हे बौ ! तिन खाणु क्य बणाइ आज ?” बल “दाल अर बासमती भात...” वैल पच्च वींकि देलिम थूकी अर दूसरी भौजा दर्वजा पर ग्या “ हे बौ! तिन क्य बणे आज ?”  बल “ झ्वली अर झंगोरू “, । पच्च वीकी देलिम थूकी तीसरी देलिम गाइ,  “हे बौ क्य  बणाई तिन आज ?”  बल “ फाणु अर बाड़ी - - -“ । पच्च वीकी देलिम थूकी चौथी भौजा घर गैई “ हे बौ क्य बनाइ तिन आज ?" - बल " खीर अर लगड़ी - - -"। पच्च देलिम थूकी पाँचवी भौजा देलिम जेकी पूछ्ण बैठी ।  इनी कर्द कर्द स्यु जब सबसे छोटि भौजा कि देलिम गाइ अर जनी पच्च वींकी देलिम  थुकण बैठी त वींन झट वैकु हथ पकड़ी बोलि मारि दे " द निरबई,  सिन नखराल्यू, त्वे तब चितौलु भुंगू राजौ लड़ीक जब अमरौती बिटि भोज राजा बेटी  कुँवरी -बेलपतरी तै राणि बणाइकि ल्हेलु ।“
कृष्णा न सी बात दिल लगे दे । सीली उबरी झीली खाट करी भीतर पाडिगे। न खाणि न पीणि न कखी आणि जाणि । वाईका बूबा भुंगु राजा जब पता चली वैन पूछि “बेटा इनि क्य बात हवेग्या ? तू मैं बतौ।“ वै नौन्याल न जब सर्रि बात अप्ण बाबुम सूणे त वो भी अकल्चक रेगि क्योकि अमरौती वख बिटि हज़ार कोस दूर दक्खण दिशा म राजा भोज कु राज्य छौ जैकि नौनि कुँवरी बेलपतरी वर्सु पैलि ब्वे म्वना बाद बिटि हेन्सि नी छई। राजा भोज की शर्त छई कि जो बेलपतरी तै हंसा देलु वै दगड़ ही वींकु ब्यो होलु अर कवी कोशिश करी फील ह्वे जालू त वै फांसी पर लटकाए जालु । इन कठण शर्त त एक छोटूसी राजा भुंगु कनमा अप्ण नौन्याल तै वख जाणे इजाजत  द्यो।  द प्रभों, सर्या बात- बिचार सुणी एक दिन कृष्णा घोडम बैठी बिना कइ तै बताया चुपचाप दक्खण दिसा कु चल्दे । दिन-रात चलद-चलद, पुछदआ –बिरड़दआ,  मांगि-देखी खांद पींन्द स्यु कई मैंनों बाद अमरौती पौंछी गे । बिना आराम, बिना खया- पिया स्यु कमजोर हवेगे, दाढ़ी -बाल बड़ा बड़ा ह्वेगे छा, लत्ती-कपड़ी फटि छे। राजमहल क  नीस सड़क म जाण लग्यू तबारी बरखा शुरू ह्वेगे। कंणसा न घोडा की काठी उतारी अप्ण मुंडम धरी त एक डालsका पता तोड़ी घोडा एंच धर्णू। खिड़की बिटि बेलपतरी न देखि त व खिच्च हेन्सी। वीकि दासी,  दगड्याण खुशी ह्वेकी राजा भोज क पास गेनी अर सर्या कथा सुनणा बाद कृष्णा तै पकड़ी राजमहल म ल्हेगेनी । शुब दिन वार देखि काणसु कु ब्यो बेलपतरी संग ह्वेगे।
कुछ दिन आराम मौज मस्ती कर्णा बाद काणसु अप्ण देस पैटिगे। राजा भोज न पैलिही खूब माल ताल भुंगु राजा तै पोंछई, साथमा रैबार भेजि दे कि “फलां दिन रास्ताम ब्योला-ब्योली कि आग्वानि कर्णौ  ऐजावन - -“ काणसु व बेलपतरी राणि पिछने बिटि घोड़ाम चलदिनी। द भगवान इन निरासु ह्वे, रैबार देण वला त रस्ता बिरिडी गेनी अर काणसु जि बेलपतरी राणि दगड़ गोउका पास पौंच्छी गे। उथे सुनसान देखी वैन बेलपतरी गौं-पंदेरा पास उच्चा डालम बिठाई अर बारात ल्हेणु एखुली घौर चल्दे। इने वै गऔ की एक कालि-कल्चूंडी कज़्याण पंदेरा मू ऐ।  वीन तौल ढंडी पाणि म गोरि-सुंदर, राजसी जुनखा अर सोना-गैणआ पैर्या बेलेपतरी कु छैल देखि त बोल्न बैठी , “ द ये गौउ का रांड-माचद मीकू कालि-कल्चुंडी बोलदन। सि देखा-- मी त कति सुंदर गोरि फुसर्पट्ट छौं- - “ इन सूणि कि बेलपतरी राणि थई खिच्च हन्सी एगे । वी काली न मत्थी देखि त पितली गिच्ची करी बोली, “ हे भुली, तू त मेरी ब्वाड़ा कि बेटी छई। ओ, तौल ओ, मीन तेरी भूकी पीणइ ।“ सीधी -संत बेलपतरी जनी डौलs बिटि तौल आई त वीन झट वींकी मुंडी कचमोड़ि ढंडी ढोली दे अर बेलपतरी राणि क कपड़ी -गेहणी पैरिक डाल म बैठिगे।
काणसु जब बारात ल्हेकी वखम पौंछी अर वैन देखि त पूछन बैठी राणि तू स्यन कालि किले ह्वे? वा कल्चुंदी रांड बोल्द ,” घाम, भूख –तीस न, राजाजी - - -“ । उदास मन से काणसु राणि दगड़ वापस आण बैठी त वैन देखी ढंडीउंद एक खूबसूरत फूल छौ खिल्यू। वैन चट्ट तोड़ी फोलल अर अप्ण पगड़ी पर लगेदे। ब्योलि घौर पोंछी त वेकी भौजा अर गौउक जनाना मुख पिच्काण लग्यान “ द सी कालि छ तेरी बेलपतरी राणि --  ।“ जनि-जनि लोग इन ब्व्लींन, त पगड़ी कु फूल खिलखिल करि बड़ू ह्वेजा। वी नकली राणि तै शक ह्वे त वीन रातम वो फूल मरोड़ी -मराड़ी गुज्यर ढ़ोल दे। सुबेर वखम लपलुपु हारु पलेंगु जामिगे । काणसुन वींकु बोली मीकू सि पलेंगे भुजजी बणों। पलेंगु थड़कण बैठीत वा चलेतरा न सूणी ॥ “थड़बड़, थुड़बुड़ काणसु कि जैवृद्धि हुयाँ... थड़बड़ थुड़बड़ कल्चुंडी कि जैड न हुयाँ- - “ वी रान्डा न सर्या सागो भदौलु सग्वाड फेंकी दे अर वैमु बोलिदे कि पलेंगा म कीड़ा छा। कुछ दिनु बाद  वै सग्वाड़ी दलिमा डालि पर एक भलुसि फूल दिखे। काणसु वै फूल तोड़ी घर ल्हेगे अर एक शीशा कि आलमारिम धरी दे । एक रात जब कालि –राणि सियी छई त काणसु तै कमरा म इनू लगी क्वी ज़नानी रूणि हवा। वैन ध्यान से देखि त वो दलिमा-फूल हिल्णू छौ। वैन झट्ट वो फूल निकाली त वा बेलपतरी राणि बणिगे। तब वीन सर्या कथा-बथा वैमू लगाए। कणसा न कालि कल्चुंडी फांसी चड़ाए अर बेलपतरी राणि दगड़ धूम धाम से ब्यो करी सुख चैन से रैण बैठी।  खावन प्यावन राजी  रावन ।

 
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Din Dayal Sundariyal  Chandigarh
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