Author Topic: Heart Touching Songs - हृदयस्पर्शी एवं सामाजिक मुद्दों पर आधारित उत्तराखण्डी गीत  (Read 34721 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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POST BY HIMANSU PATHAK.

This old song tells the journey of a soldier(sipahi) from kumaun.
Apne ghar se wo almora center me jata hai or wha bharti ho jata hai. Fir uski ranikhet training center me training hoti hai. Uske baad usko Ladaakh bhej dia jata hai. Kuch time baad fir Sri-Lanka me tamil riots(1987) me jo hue the. To wo us aarmy ka part hota hota hai jo shnati sena lekar gyi thi srilanka. Wha use LTTE ugrwaadio ke haatho goli lag jaati hai. Fir uska 2-3 mehne asptaal me ilaaz hota hai or wo bhgwaan ki kripa se thik ho jata hai.



भारत की सेवा में इजा भरती है गोई बल
भारत की सेवा में इजा भरती है गोई बल
म्येरा बोज्यू थे कै दिए इजा चीथी भेजिए बल
म्येरा बोज्यू थे कै दिए इजा चीथी भेजिए बल

हे सदा भवानी दातिनी, सिधि करे गणेशा
पांचो देव रक्षा करे, ब्रहमा विष्णु महेशा
हे गोड़ी हनी खेशा, जले हनी गैसा
प्रजा का कारण मीले, कर परो देशा

अब करो परो देशा ईजा, भरती है गोई बल
कारोबारों देशा  ईजा,भरती है गोई बल
भारत की सेवा में इजा भरती है गोई बल
म्येरा बोज्यू थे कै दिए इजा चीथी भेजिए बल

हे अल्माड भरती सेंटर बे भरती भई, रानीखेत कुमाओं सेंटर में ट्रेनिंग कर मील
हे खैरवा को धागा, गोड़ हैनी पाखा, अब लहे गे छे मेरी पलटना ईजा मालदेश लदाखा
अब फौज की बदली में इजा, लदाखा ल्हे गोई बल
फौज की बदली में इजा, लदाखा ल्हे गोई बल
हाय रे रानीखेत बाटी भे छो बदली, लदाखा ल्हे गोई बल
पाकिस्तान बॉर्डर माजि थाडा है रोई बल

हे दथुला की धारा,  सुनी ले पनारा
श्री लंका में भोते तमिल उग्रवाद चल रो छे   
भारतीय शान्ति सेना बन बेर ल्हे गयी समुन्दर पारा
अब पानी का जहाजा में ईजा पारा ल्हे गयी बल
पानी का जहाजा में ईजा पारा ल्हे गयी बल 
भारत की शान्ति सेना में पार ल्हे गयी बल
भारत की शान्ति सेना में पार ल्हे गयी बल 
 
 
हे संकट करनी भले भालेती, छुपी ले सरीरा चड़ना भला
श्री लंका में भाई बंधू मरना रन का वीरा
 मरना रन का वीरा मरना रन का वीरा
माल गाडा धनिया बोया, ताल गाडा मेथी
भोल पोरु मर जानू छो, को भे रू छो येती
हे घुघुतक की भोली नानी बोझी डोली
श्रीलंका में एल.टी.टी उग्रवाद न लगी रे छे गोली
अब २-४ मेहना ईजा इलाज़ करा छो बल
हाय रे २-४ मेहना ईजा इलाज़ करा छो बल
हाय रे तुमारी कृपा ले ईजा भाल है गोई बल
तुमारी कृपा ले ईजा भाल है गोई बल
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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SONG ON DEVELOPMENT ISSUE OF UTTARAKHAND BY NARENDRA SIGH NEGI.


हे हे.. हो हो...हा ..............
जम्बू द्वीपे  भारतखंडे ,
भारतखंड  मा  उत्तराखंडे
उत्तराखंड  राज  की  कथा सुनान्दु ,
प्रथम वे शहीदों तें  प्रणाम करदु
जौने  उत्तराखण्ड राज का बाना
प्राण दे दिनी , शहीद हवे  गिनी
हे हे.. हो हो...हा ..............

उत्तराखण्ड मी  पहलु  राजा  tharpey gei,
 भा जा पा  सा  बंशी  स्वामी
स्वामी  अरियुन  का दरवारियुं  द्वि  साल   तक राज   
राज क्या करे, ठाठ  करे
पूजा पाठ  करे, चार को आठ  करे
उत्तराखंड  के उतन्दंड करे 
उत्तरांचल नाम  धरे
आपुन गालों पर फूल माला पैरेनी   
और निचिंत हो के सो जानी   
हे हे.. हो हो...हा ..............

द्वि हजार द्वि मा  पैलो  चुनाव को संख बजे,  रणसिघा गरजे
प्रजा  ने  स्वामी सा  और भगत  सिह और भगत सा  तै सिउन  रों  दी
और बार का  चंद्रवंशियो  ते , राजगद्दी   सौप  देई
बाहर का  चंद्रवंशियो  ते , राजगद्दी   सौप  देई
जनता  स्वप्नु देखनी  छ
होनी  हुन्तियाली  का  स्वप्ना ,
भली भाल्यार  का स्वप्न्या
रोज़गार  का सुप्न्या
आज विकास  का सुप्न्या
रंगीला  सुप्न्या
पिंगला  सुप्न्या,
सुपन्या ही सुप्न्या
हे हे.. हो हो...हा ..............

हां तो  भाई बहिनों 
भारकान  चंद्रवंश  को पहिलो  रजा  banein  - नौछमी नारायणा
नौछमी नारायणा द्वारिकाधीश  कृषण  की अनवार  हवे  परे  ,
नौछमी नारायणा राजनीती की  पैनी  धार  हवे  परे ,
नौछमी नारायणा चार बीसी  बसंत  की  बहार  हवे  परे ,
नौछमी नारायणा जवानी  को  हुलार  हवे  परे ,
उद्मातो , धन्मातो , जोबंमातो , रूप  को  रसिया , फूलों  को  हौसिया
नौछमी नारायणा

कोरस

कलजुगी  औतारी  रे , नौछमी नारैना, उत्तराखंड  मुरारी  रे ,नौछमी नारैना-2
छल  बलि  नारैना  रे  , नौछमी नारैना, तीले  धारू  बोला  रे, नौछमी नारैना -2

गुलेरा  की गारी  नरैना, गुलेरा की गारी -3
राज विरोधी  रे  सदा  नि, पर  राज  गद्दी  प्यारी
राज गद्दी प्यारी रे, नौछमी नारैना -२

[CHORUS]

सुन तोलैयी तोल  नरैना, सुन तोलैयी तोल-3
खाजा  बुखाना  सी  बातिनी  तिन , लाल बातियुं  का डोला
लाल बातियुं  का डोला, नौछमी नारैना -2


भुजी   काटी  तरकारी  नरैना , भुजी  काटी  तरकारी  -3
द्वि हातून  लुतौन्दी  नारैना, खाजानु  सरकारी
खाजानु  सरकारी रे , नौछमी नैरैना . 2
[CHORUS]

 हिसारा की गौन्दी  नारैना, हिसारा की गौन्दी -3
बियोग्राफी लिक्वारू  नारैना  तू  बैतरण  तारोंदी
बैतरण  तारोंदी , नौछमी नैरैना -2
[CHORUS]
गोर्खियों  की गोरख्यानी  नारैना, गोर्खियों  की गोरख्यानी-3
कख  लमदाली  स्य  उत्तराखंड, स्य बुधियाँ की  सयानी
बुधियाँ की  सयानी , नौछमी नारैना  -2
[CHORUS]

छम  छम छाम्म , चम्म्लेई
विरोध्युं  लडोनी ,चम्म्लेई
दरवारियो  हसोन्दी , चम्म्लेई
अफ्सरू  पुल्योंदी , चम्म्लेई
प्रजा बैल्मोडी , चम्म्लेई
राजनीती  की बासुरी   नारैना पड़ पड़ी बजौन्दी
नारैना पड़ पड़ी बजौन्दी , नौछमी नारैना  -2
[CHORUS]

छम  छम छाम्म , चम्म्लेई
देनी  देहरादून ,  चम्म्लेई
दरवार  लग्यु  छा ,  चम्म्लेई
नकली राजधानी ,  चम्म्लेई
अरवारयु  की मौज ,  चम्म्लेई
अरवारयु  की मौज,  नरैना, चक्डेतु  की फौज
चक्डेतु  की फौज रे नौछमी नरैना 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रहलाद सिह महरा द्वारा गया गया पहाड़ में महिलाओं के कठिन जीवन पर यह गाना :

पहाड़ की छेली ले
पहाड़ की ब्वारी ले
कैभे नी खाया
द्वि रुवाटा सुख ले ....

राती उठी, पोश गाड़ना
फिर भाना माजना
भाना माजी भे ब्वारी
फिर जंगल जाण
सुख लाकडा तोडी लाई
सासु की गाली पाई

पहाड़ की छेली ले
पहाड़ की ब्वारी ले
कैभे नी खाया
द्वि रुवाटा सुख ले ....

अशौज मे धान काटना ...

प्रहलाद तडियाल

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हीरा सिंह राणा की उत्तराखंड आन्दोलन की लोकप्रिय कविता
लश्का कमर बांधा,
हिम्मत का साथा
फिर भुला उज्याली होली, कां लै रौली राता लश्का कमर बांधा.....|
य नि हूनो ऊ नि होनो,कै बै नि हूंनो के ,
माछी मन म डर नि हुनि चौमासै हिलै के |
कै निबडैनि बाता धर बै हाथ म हाथा,
सीर पाणिक वै फुटैली जां मारुलो लाता|
लश्का कमर.....| जब झड़नी पाता डाई हैं छ उदासा,
एक ऋतु बसंत ऐछ़ पतझडा़ का बाद|
लश्का कमर बांधा........|

मसूरी काण्ड पर लिखी गयी ह्रदय स्पर्शी कविता
विदा मां ......विदा !!(जगमोहन)

जाते समय झार पर छोड़ आई थी,वह माँ
कहकर आई थी अभी आती हूँ ज...ल्दी बस्स.....
तेरे लिए, एक नई जमीन,एक नई हवा, नया पानी ले आऊं ले आऊं
नई फसल, नया सूरज, नई रोटी|
अब्बी आई....बस्स
पास के गांधी-चारे तक ही तो जाना है,
झल्लूस में|
चलते समय एक नन्ही हथेली, उठी होगी हवा में- विदा !
मां विदा!!
खुशी दमकी होगी,
दोनो के चेहरे पर
माथा चूमा होगा मां ने- उन होठो से,
जिनसे निकल रहे थे नारे
वह मां सोई पडी़ है सड़क पर पत्थर होंठ है,
पत्थर हाथ पैर पथराई आँखे
पहाडों की रानी को, पहाड़ देखता है
अवा्क - चीड़ देवदार, बाँज -बुराँस, खडें है
सन्न-|
आग लगी है आज.
आदमी के दिलो में खूब रोया
दिन भर बादल रखकर सिर पहाड़ के कन्धे पर|
नही जले चूल्हे, गांव घरो में उठा धुआ उदास है
खिलखिलाते बच्चे, उदास है फूल|
वह बेटा भी रो-रोकर
सो गया है- अभी नही लौटी मां......|
लौटेगी तो मैं नही बोलूंगा|
लौटी क्यों नही अभी तक....!
उसे क्या पता, बहरे लोकतन्त्र में वह लेने गई है,
अपने राजा बेटे का भविष्य|

प्रहलाद तडियाल

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1994 के उत्तराखण्ड आन्दोलन में अचानक विराम लगने से उत्पन्न व्यथा को कुमाऊनी कवि शेरदा "अनपढ" ने इन शब्दों में व्यक्त किया.
इस दौर में भी इस कविता की प्रासंगिकता कम नही हुई है, जब राज्य बने 7 साल बीत चुके हैं और आम जनता नेताओं और पूंजीपतियों के द्वारा राज्य को असहाय होकर लुटता देख रहे हैं. कहीं भी विरोध की चिंगारी सुलगती नही दिख रही है. उम्मीद है कि शेरदा "अनपढ" की यह कविता युवा उत्तराखण्डियों को उद्वेलित जरूर करेगी.

चार कदम लै नि हिटा, हाय तुम पटै गो छा?
के दगडियों से गोछा?
डान कान धात मनानेई, धात छ ऊ धात को?
सार गौ त बटि रौ, तुम जै भै गो छा?
भुलि गो छा बन्दूक गोई, दाद भुलि कि छाति भुलि गिछा इज्जत लुटि,
तुमरै मैं बैणि मरि हिमालाक शेर छो तुम,
दु भीतर फै गो छा? के दगडियों से गोछा?
काहू गो परण तुमर, मरणै कसमा खै छी उत्तराखण्ड औं उत्तराखण्ड,
पहाडक ढुंग लै बोलाछि कस छिया बेलि तुम,
आज कस है गो छा के दगडियों से गोछा?
एकलो नि हुन दगडियो,
मिल बेर कमाल होल किरमोई तराणै लै,
हाथि लै पैमाल होल ठाड उठो बाट लागो,
छिया के के है गो छा? के दगडियों से गोछा?
तुम पुजला मज्याव में, तो दुनिया लै पुजि जालि तुमरि कमर खुजलि तो,
सबूं कमरि खुजि जालि निमाई जै जगूना,
जगाई जै निमुंछा के दगडियों से गोछा?
जांठि खाओ, जैल जाओ, गिर जाओ उठने र वो गर्दन लै काटि जौ तो,
धड हिटनै र वो के ल्यूंल कोछि कायेडि थै, ल्यै गो छा? के दगडियों से गोछा?

अनुवाद- चार कदम भी नही चले और तुम थक गये, क्यूं दोस्तों सो गये?
पर्वत तुम्हें आवाज लगा रहे हैं. उत्तराखण्ड को वचन दिया था उस वचन को भूल गये? सारा गांव तैयार हो चुका है और तुम बैठ गये?
क्यूं दोस्तों सो गये?
क्या भूल गये वो बन्दूक की गोलियां?
भाई बहनों की चीरी गयी छातियां. भूल गये क्या इज्जतें लूटी गयी थी?
तुम्हारी माँ बहनें मरीं थीं. हिमालय के शेर हो तुम. किस बिल में घुस गये?
क्यूं दोस्तों सो गये? कहां गया प्रण तुम्हारा, मरने की कसम खाई थी?
पहाड के पत्थरों से भी उत्तराखण्ड की आवाज आयी कल तुम कैसे थे, आज कैसे हो गये?
क्यूं दोस्तों सो गये?
अकेले कुछ नही होता साथियो मिल कर ही कमाल होगा
छोटी चींटियों के मिलने से हाथी का काम तमाम होगा उठ खडे हो.
आगे बढना शुरु करो. क्या थे तुम क्या हो गये?
क्यूं दोस्तों सो गये?
तुम जब ऊंचे उठोगे तो

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thanx Prahlad Da for your efforts.

We will collectively post lyrics of such songs here.

thanx a lot (1 karma)

1994 के उत्तराखण्ड आन्दोलन में अचानक विराम लगने से उत्पन्न व्यथा को कुमाऊनी कवि शेरदा "अनपढ" ने इन शब्दों में व्यक्त किया.
इस दौर में भी इस कविता की प्रासंगिकता कम नही हुई है, जब राज्य बने 7 साल बीत चुके हैं और आम जनता नेताओं और पूंजीपतियों के द्वारा राज्य को असहाय होकर लुटता देख रहे हैं. कहीं भी विरोध की चिंगारी सुलगती नही दिख रही है. उम्मीद है कि शेरदा "अनपढ" की यह कविता युवा उत्तराखण्डियों को उद्वेलित जरूर करेगी.

चार कदम लै नि हिटा, हाय तुम पटै गो छा?
के दगडियों से गोछा?
डान कान धात मनानेई, धात छ ऊ धात को?
सार गौ त बटि रौ, तुम जै भै गो छा?
भुलि गो छा बन्दूक गोई, दाद भुलि कि छाति भुलि गिछा इज्जत लुटि,
तुमरै मैं बैणि मरि हिमालाक शेर छो तुम,
दु भीतर फै गो छा? के दगडियों से गोछा?
काहू गो परण तुमर, मरणै कसमा खै छी उत्तराखण्ड औं उत्तराखण्ड,
पहाडक ढुंग लै बोलाछि कस छिया बेलि तुम,
आज कस है गो छा के दगडियों से गोछा?
एकलो नि हुन दगडियो,
मिल बेर कमाल होल किरमोई तराणै लै,
हाथि लै पैमाल होल ठाड उठो बाट लागो,
छिया के के है गो छा? के दगडियों से गोछा?
तुम पुजला मज्याव में, तो दुनिया लै पुजि जालि तुमरि कमर खुजलि तो,
सबूं कमरि खुजि जालि निमाई जै जगूना,
जगाई जै निमुंछा के दगडियों से गोछा?
जांठि खाओ, जैल जाओ, गिर जाओ उठने र वो गर्दन लै काटि जौ तो,
धड हिटनै र वो के ल्यूंल कोछि कायेडि थै, ल्यै गो छा? के दगडियों से गोछा?

अनुवाद- चार कदम भी नही चले और तुम थक गये, क्यूं दोस्तों सो गये?
पर्वत तुम्हें आवाज लगा रहे हैं. उत्तराखण्ड को वचन दिया था उस वचन को भूल गये? सारा गांव तैयार हो चुका है और तुम बैठ गये?
क्यूं दोस्तों सो गये?
क्या भूल गये वो बन्दूक की गोलियां?
भाई बहनों की चीरी गयी छातियां. भूल गये क्या इज्जतें लूटी गयी थी?
तुम्हारी माँ बहनें मरीं थीं. हिमालय के शेर हो तुम. किस बिल में घुस गये?
क्यूं दोस्तों सो गये? कहां गया प्रण तुम्हारा, मरने की कसम खाई थी?
पहाड के पत्थरों से भी उत्तराखण्ड की आवाज आयी कल तुम कैसे थे, आज कैसे हो गये?
क्यूं दोस्तों सो गये?
अकेले कुछ नही होता साथियो मिल कर ही कमाल होगा
छोटी चींटियों के मिलने से हाथी का काम तमाम होगा उठ खडे हो.
आगे बढना शुरु करो. क्या थे तुम क्या हो गये?
क्यूं दोस्तों सो गये?
तुम जब ऊंचे उठोगे तो



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रहलाद सिह मेहरा द्वारा लिखित इस गाने के बोल जो विस्थापन पर बना है ! पूरा गाना याद अभी याद नही है पर बाद मे पूर लिखूंगा.

  पंछी उडी जानी घोल उस रू छ
 यो माया क जाल द्वि दिन क होंछे


 पंछी उडी जानी घोल उस रू छ
 यो माया क जाल द्वि दिन क होंछे ...........

Mukesh Joshi

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सामाजिक मुद्दों एवं जन चेतना पर सेकडो गीत ( कवितायें ) हमारे लाक गायकों ने लिखे
जो हमारे उत्तराखंड की  सामजिक, आर्थिक, भोगोलिक , राजनैतिक ब्यवस्था का आम आदमी पर पड़ने वाला प्रभाव को दर्शाती है
गीत तो अनेक है पर शराब से ही सुरु करते है
नेगी जी ने इस गीत (कविता ) के माध्यम से

दारू बिना यख मुक्ति नि ,बिना दारू कुछ चुकती नी.
ई देव भूमि मा दारू की गंगा बगदी जाणी रुकदिनी.

मुक्ति नी यख दारू बिना  न बरसी पित्रोड़
दारू की बोतल छोड़ मोडायुक् फिर प्राण पखेरू छोड़ ..2
दारू बिना .............
भूख भी दारू की, तीस दारू , साँस भी दारू न चलनी चा ,
रिश्तो की नातो, यारो की दगडियो की डोर भी दारू न बंधी चा ,...2
दारू बिना .............
भरती होना को नोनियाल गे छाई घर एगे फिर हवे गई फिल
दारू दया दृष्टी छे वे फर दोडी नी सकू दू -एक  मील ....2
दारू बिना .............
कसी कमर डोटी याल बिहारी की हमरा लड-बड़ा तेडा भे तेडा
भक्त सिया छन पि की बोहाडा, दारू का देवता हुया छन देणा ..२
दारू बिना .............
राशन पाणी लता -कपड़ो गणों की तू अभी छूवी भी नी गाड
बेटी विवान त करी -बारी को करी ले पेली दारू को जुगाड़ ...२
दारू बिना .............
दारू की जै ठेकेदारू की जै हो , नेतो की जै सरकारों की जै हो
दारू की गंगा बगाना पहाडो मा कल-जुगी भागिरथियु की जै हो ..२
दारू बिना .............[/color


 

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