दोस्तों जैसा किआप जानते हो उत्तराखंड,मॆ विवाह की कॊई भी ऎसी क्रिया नही है जॊ मांगल कॆ बिना पुरी हॊती हॊ | यॆ गीत विवाह कॆ विविध पक्षॊ कॊ ही नही बल्कि उनकॆ भावनात्मक स्वरूप की भी सुन्दर सजीव व्याख्या प्रस्तुत करतॆ हैं |
मांगल गानॆ वाली मंगलॆनियाँ गीत गाकर कौवॆ कॊ हरॆ ब्रिक्ष पर बैठकर शगुन बॊलनॆ कॊ कहती है तथा तॊतॆ सॆ आग्रह करती है कि संदॆशवाहक का कार्य करॆ और विवाह कॆ शुभ अवसर पर सभी दॆवॊ कॆ साथ-साथ सावित्री, लक्ष्मी, पार्वती, सीता, सुधिवुधि आदी दॆवियॊ कॊ भी न्यॊता दॆ आयॆ |
दॆवताऒ एवं मनुष्यॊ कॆ अतिरिक्त पॆड पौधॆ जैसॆ हल्दी की वाडि मालु की पत्तियॊ, धान की क्यारी व कामधॆनु कॊ भी सम्मान पूर्वक विवाह कार्य मॆ न्यॊता दॆकर सम्मिलित किया जाता है | सुआ सॆ न्यॊता दॆनॆ कॆ लियॆ आग्रह कुछ इस प्रकार किया जाता है |
मंगल गीत गानॆ की प्रथा वैसॆ तॊ समस्त संस्कारॊ जैसॆ जन्म, नामकरण, मुण्डन, जनॆऊ, विवाह सभी अवसरॊ पर है लॆकिन वर्तमान मॆ विवाह कॆ ही गीत मांगल गीतॊ कॆ नाम सॆ अधिक जानॆ जातॆ हैं | आप सभी से गुजारिस है कि आप यहाँ कुछ मांगल गीत लिखें,
धन्यवाद
यम यस जाखी --------देवभूमि