Uttarakhand > Music of Uttarakhand - उत्तराखण्ड का लोक संगीत

Meaning Of Lyrics Of Songs - उत्तराखंडी लोक गीतों के भावार्थ

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Bhishma Kukreti:
 Imagination of Silver, Gold and  Gems  in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs -Part 3

                           
                                      गढ़वाली-कुमाउंनी,  राजस्थानी,   लोकगीतों में कल्पना,  सोना- चांदी,  गहने   -3

                                           Comparison between Rajasthani Folk Songs, Garhwali, Kumaoni Folk Songs-19

                                             राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-19     


                                                                भीष्म कुकरेती
लोक गीतों में अतिरेक मिलना स्वाभाविक है।  अप्राप्य वस्तुओं का वर्णन ऐसा करना जैसे यह अति सुलभ वस्तु है मनुष्य का उद्दाति -करण मानसिकता है जो कि राजस्थानी और गढ़वाली -कुमाउंनी गीतों में सर्वत्र मिलता है। 


       गढ़वाली और कुमाउंनी   लोकगीतों में कल्पना,  सोना- चांदी,  गहने   -3             

नाच बेटी क्वेला मोर नाच , नाच बेटी क्वेला मोर नाच
क्यांलै नाचु बाबा मोर नाच,क्यांलै नाचु बाबा मोर नाच
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
सिरमोरी  नथ मोर नाच,-2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
गौळा  की हाँसुळी   मोर नाच, -2
सौतेलिन पैरी मोर नाच , -2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच, -2
कानूं का कनफूल मोर नाच, -2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच, -2
रमथमी बुलाक मोर नाच, -2
सौतेलिन पैरी मोर नाच,-2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
हातों की धगुली मोर नाच, -2
सौतेलिन पैरी मोर नाच,-2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
झुमक्याळी झुमका मोर नाच ,-2
 सौतेलिन पैरी मोर नाच,-2
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2
खुट्यों की पैज्बी मोर नाच, -2 
सौतेलिन पैरी मोर नाच,-२
त्वेइ तैं दियूं छौ मोर नाच,-2

 -----------------अनुवाद  (डा हटवाल )------------

नाच बेटी क्वेला , मोर नाच

तुझे  दी है

सिरमोरी नथ
तुझे  दी है

गले की हंसिया
सौत ने पहना
तुझे  दी है
कानो के कर्णफूल
रमथमी बुलाक
सौत ने पहना

तुझे  दी है

हाथों के धगुले
सौत ने पहना
तुझे  दी है

झुमक्याळी  झंवोरी
सौत ने पहना
तुझे  दी है

पैरों की पाजव
सौत ने पहना

                   राजस्थानी,   लोकगीतों में कल्पना सोना- चांदी, गहने   जर -जेवरात  -3
    एक राजस्थानी लोक गीत में सोने के दीपक और रेशम की  डोर का प्रयोग इस प्रकार हुआ है -
सोने रे म्हें दिवली घड़ास्यां
रेशम बाट बटास्यां जी
चार बाट चौमुख दीवो
घी सूं म्हें पुखास्यां जी
उपरोक्त गीत में सोने दीपक , रेशम की बाती और घी।  गीत इस तरह का है जैसे  घी दो की बाते हों।
निम्न एक  अन्य राजस्थानी लोक गीत में भी सोना चांदी का प्रयोग हुआ है -
हल चल हुई हलकार
मेवाड़ों  रा साथ में रे लोल
भर लो मोतिडों सूं थाल
सुन्दर गौरी म्हारे मोरतियो पूछाव
मेवाड़ी सरदारों की सेना में हलचल हुयी।  प्रस्थान के नक्कारे -नगाड़े बज रहे हैं



Copyright@ Bhishma  Kukreti 4  /9 /2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा राम प्रसाद दाधीच , (सम्पादन )  राजस्थानी लोक गीत
रानी लक्ष्मी कुमारी चूंड़ावत  , (सम्पादन ) राजस्थानी लोक गीत
पुरुषोत्तम मेनारिया (संपादन ), राजस्थानी लोक गीत
ठाकुर राम सिंह (संपादन ) , राजस्थानी लोक गीत
गंगा प्रसाद कमठान , राजस्थानी लोक गीत
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन 
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  लोक गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
अबोध बंधू बहुगुणा , धुयांळ , दिल्ली
महाबीर रंवाल्टा , उत्तराखंड में रवाँई क्षेत्र  के लोक साहित्य की मौखिक परम्परा, उद्गाता 
डा शिवा नन्द नौटियाल , गढ़वाल के लोक नृत्य-गीत
डा गोविन्द चातक , गढवाल की लोक गाथाएँ
 
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
By - प्रयाग पाण्डे
 

कुमांऊँनी विरह गीत -" मैं उदास हूँ , मेरा प्रेम किसने देखा , किसने अनुभव किया ।"

न्यौली लांबा गाडा तीरा न्यौत्या तिमुली को पात ।
न्यौली त्यारा बिना आबा नी काटियों मेरी रात ।
न्यौली पटवारी का हाता , न्यौल्या सरकारी लेख ।
न्यौली मैं लाग्यो उदेख , माया मेरी लै कैलै देखो ।
न्यौली ऊनी को कापडा , ज्युनाली कैलो बुनियो ।
न्यौली आबा का नीं आयो ऊ जो छियो हौसियों ।
न्यौली झुंगरा की घासी , न्यौत्या झुंगरा की घासी ।
न्यौली जब नीं मैं हौंसियो की पुन्युं छ कि अमुसी ।
खाली रै ग्यान ख्वाब जासा , उमर ल्है गई ऐसी ।
न्यौली ऐल साल बाट आइ ना मंडी को किराइनी ।
न्यौली आब संगी खेलो , को छ क्वे छै नां विराइनी ।
न्यौली तली की चालै की पानी की बरमंसी धारी ।
न्यौली तेरी छ खेलियो घाट मैं नैं औनी सार ।
न्यौली लांबा गाडा तीरा चाला सुपै की छिटी रो ।
न्यौली कै बतूंली आब लेख्यो छ करमा जो तेरो ।

भावार्थ :-
न्यौली उस लम्बे से खेत के किनारे पर तिमिली का पत्ता है ।
ओ प्रिय , तुम्हारे बिना अब मुझसे यह रात काटे नहीं कटती ।
न्यौली पटवारी के हाथ में सरकारी कागज है ।
मैं उदास हूँ , मेरा प्रेम किसने देखा , किसने अनुभव किया ।
न्यौली , ऊनी वस्त्र बुना गया है , चांदनी की तरह सफ़ेद ।
ओ प्रिय , इस बार वह नहीं आया जो रसिक था ।
न्यौली, झुंगरा की घास , न्यौली, झुंगरा की घास।
आह , जब अपना प्रेमी ही नहीं तो चाहे पूर्णिमा हो चाहे अमावस ।
केवल भूली सी यादें रह गई हैं , जीवन ऐसे ही बीत गया ।
न्यौली, इस साल मंडी का व्यापारी इस ओर नहीं आया ।
ओ प्रिय , आओ साथ ही नृत्य में भाग लें , कोई पराया नहीं है यहाँ ।
न्यौली, निचले खेत में पानी की सालभर चलने वाली धारा है ।
ओ प्रिय , तुमने तो इस घाट पर खेला है पर मुझे तो आदत ही नहीं है ।
न्यौली, उस लम्बे से खेत में सुप से फसल की छिटाई की जा रही है ।
ओ प्रिय , क्या बताया जा सकता है कि भाग्य में न जाने क्या लिखा है ।

( कुमांऊँ का लोक साहित्य )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

प्रयाग पाण्डे
August 9
कुंमाँऊनी लोक गीत ------
कै करूँ सासू लम चरयो लै रेवती बौज्यू बुड |
चपल पैरछी चुड , चुडे चल मेरी दुकाना ,चपल पैरछी चुड |
खुकुरी को म्याना , जोगी बैठी ध्याना |
च्याल वालौं का च्याला. जीरौं , फकतों की जाना |
कैकी करूँ मनवसी , कैकी अभिमाना |
नानछिना की पिरीति की त्वे नि रूनी फामा |
करी गेछे वो खडयूँणी रुख डावा चाणा |
चपल पैरंछी चुड , चुडे चल मेरी दुकाना ,चपल पैरछी चुड |
कै करूँ सासू ठुल कुडैलै रेवती बौज्यू बुड |
मडुवे की मानी , जतिये की कानी ,
जैकि हूँ फोसडी खोरी पापिणी उ धिनाली नी खानी |
जनम सबूं ले लियो छ पापिण करमै कि खानी |
चपल पैरछी चुड , चुडे चल मेरी दुकाना ,चपल पैरछी चुड |
केलडी को खाना , धुरी पाको आमा |
नानछिना की पिरीति की त्वे धरिये फामा |
चपल पैरछी चुड , चुडे चल मेरी दुकाना ,चपल पैरछी चुड |
कै करूँ सासू लम चरयो लै रेवती बौज्यू बुड |
कै करूँ सासू ठुल कुडैलै रेवती बौज्यू बुड |
भावार्थ
क्या करूँ सास जी , लम्बे मंगल सूत्र से रेवती के पिता जी अर्थात :मेरे पति तो बूढ़े हैं |
चप्पल पहनोगी या चूडियाँ , चलो मेरी दुकान में चलो |
चप्पल पहनोगी या चूडियाँ , चलो मेरी दुकान में चलो |
खुकुरी की म्यान , योगी ध्यान - मग्न बैठा है ,
सन्तान वालों के पुत्र चिरजिंवी हों , और कुवारे दीर्घायु हों |
किस - किस की मर्जी पूरी करूँ और किस पर घमंड करूँ |
तुम्हें तो तुम्हारी वल्यापन की प्रीति याद ही नहीं रहती |
बुरा हो तेरा , मुझे तो तू बिलकुल एकांकी छोड़ गई |
चप्पल पहनोगी या चूडियाँ , चलो मेरी दुकान में चलो |
सास जी , मैं क्या करूँ इस बड़े मकान से , रेवती के पिता जी तो बूढ़े हैं |
मडुवा का भूसा , भैसे के कंधे ,
जिसका भाग्य ही रुखा हो उसे दही - दूध क्या मिलेगा ?|
जन्म तो सभी ने लिया है , पर तुम तो भाग्य की खान जन्मी हो |
चप्पल पहनोगी या चूडियाँ , चलो मेरी दुकान में चलो |
केले के वृक्ष का ताना , बगिया में आम पक गए ,
हमारी बचपन की प्रीति को याद रखना तुम |
चप्पल पहनोगी या चूडियाँ , चलो मेरी दुकान में चलो |
क्या करूँ सास जी , लम्बे मंगल सूत्र से मैं , ओ सास जी , रेवती के पिता जी तो बूढ़े हैं |
सास जी , मैं क्या करूँ इस बड़े मकान से , रेवती के पिता जी तो बूढ़े हैं |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
प्रयाग पाण्डे
July 19
यो बाटो कां जान्या होला ?
यो बाटो कां जान्या होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा ।
चमकनी गिलास सुवा रमकनी चाहा छ ।
तेरी - मेरी पिरीत को दुनिये ड़ाहा छ ।
यो बाटो कां जान्या होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा ।
जाई फ़ुली , चमेली फुली, देणा फुली खेत ।
तेरो बाटो चानै - चानै उमर काटी मेता ।
यो बाटो कां जान्या होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा ।
गाडा का गडयार मारा दैत्या पिसचे ले ।
मैं यो देख दुबली भ्यूं तेरा निसासे लै ।
यो बाटो कां जान्या होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा ।
तेरा गावा मूंगे की माला मेरा गावा जंजीरा।
तेरी - मेरी भेंट होली देबी का मंदीरा।
यो बाटो कां जान्या होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा ।
अस्यारी को रेट सुवा अस्यारी को रेट ।
यो दिन यो मास आब कब होली भेंट ।
यो बाटो कां जान्या होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा।
भावार्थ :
इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर ।
चमकते गिलास में तेज रंग की चाय रही हुई है ।
तुम्हारे , मेरे प्रेम से सभी लोग ईर्ष्या करने लगे हैं ।
इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर ।
जाई और चमेली के फूल खिले हैं , खेतों में सरसों फूली है ।
तुम्हारी राह देखते - देखते मैंने अपनी सारी उम्र मायके में ही बिता दी है ।
इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर ।
दैत्य- पिचास ने छोटी नदी की मछलियाँ मार डाली हैं ।
देखा , तुम्हारे विरह में कितनी दुर्बल हो गई हूँ ।
इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर।
तुम्हारे गले में मूंगे की माला है और मेरे गले में जंजीर ।
तुम्हारे और मेरी भेंट होगी देवी के मन्दिर में।
इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर।
असेरी (स्थानीय माप का बर्तन )का घेरा ।
आज के दिन , इस माह ,हम मिले , अब कब भेंट होगी ?
इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
हो नी काटो , नी काटो झुमरयाली बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी |
ठंडो पानी , ठंडो पानी , बाँज बंजानी धुरा ठंडा पानी |
नैपाल की धनपुतली , कमर खुकुरी |
बरमा जानी धनपतली ,कमर खुकुरी |
ठंडो पानी , ठंडो पानी , बाँज बंजानी धुरा ठंडो पानी |
हो नी काटो , नी काटो झुमरयाली बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी |
म्हैना आयो चैत को हो कोई न कोई आलो |
जैको भाई , चाई रौली , गत भिटौली ल्यालो |
ठंडो पानी , ठंडो पानी , बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी|
हो नी काटो , नी काटो झुमरयाली बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी |
यो दिन यो बार मेरी ऊमर की बात |
भुलुलो , भुलुलो कुंछी , बांकी उन्छी याद |
ठंडो पानी , ठंडो पानी , बाँज बंजानी , धुरा ठंडो पानी |
हो नी काटो , नी काटो झुमरयाली बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी |
भावार्थ :
मत काटो काटो मत , इस नुकीली घनी पत्तियों वाले बाँज को , बाँज के वन का जल बहुत शीतल होता है |
शीतल , बहुत शीतल जल , बाँज के वन में बहुत शीतल जल होता है |
नेपाल का धनपुतली नामक व्यक्ति कमर में खुकुरी बांधे है |
धनपुतली वर्मा जा रहा है , कमर में खुकरी बंधी है |
शीतल बहुत शीतल जल , बाँज के वन में बहुत शीतल जल है |
मत काटो काटो मत , इस नुकीली घनी पत्तियों वाले बाँज को , बाँज के वन का जल बहुत शीतल होता है |
चैत का महीना आ रहा है , कोई न कोई अवश्य आवेगा |
जिन बहिनों के भाई हैं वे भाई की राह देखती होंगी कि कब भिटौली लेकर भाई आ जावे |
शीतल , बहुत शीतल जल , बाँज के वन में बहुत शीतल जल है |
मत काटो काटो मत , इस नुकीली घनी पत्तियों वाले बाँज को , बाँज के वन का जल बहुत शीतल होता है |
वह दिन , वह वार जीवन भर मेरी स्मृति में रहा |
जितना इसे भुलाने की चेष्टा की , उतना ही अधिक याद आया यह |
शीतल , बहुत शीतल जल , बाँज के वन में बहुत शीतल जल है |
मत काटो काटो मत , इस नुकीली घनी पत्तियों वाले बाँज को , बाँज के वन का जल बहुत शीतल होता है |
(कुमाऊँ का लोक साहित्य से )

by Prayag Joshi

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