Uttarakhand > Music of Uttarakhand - उत्तराखण्ड का लोक संगीत

Meaning Of Lyrics Of Songs - उत्तराखंडी लोक गीतों के भावार्थ

<< < (2/7) > >>

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
हई हई हई सुपारी खई खई
सुन माया कैसी अच्छी धूप लगी है

हिसालू की बेल पिया हिसालू की बेल
मुझे बहुत याद आते हैं वो बचपन के खेल


हिसालू - पहाड़ में पाया जाने वाला जंगली फल

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

This is Negi Ji's Song which is based on Migration
==================================

ना  दौड़  ना  दौड़  ते  उन्दरी  का  बाटा  उन्दरियुं  का  बाटा ...... 2
उन्दरी  कु  सुख  दुई  चार  घडी  कु ,
उकाली  कु  दुःख  सदनी  को  सुख  लाटा ,
ना  दौड़  ना  दौड़  ते  उन्दरी  का  बाटा  उन्दरियुं  का  बाटा ...... 2

सौन्गु  चितेंद  आर  दौडे  भी  जान्द  पैर
उन्दरी  का  बाटा  उन्डू  जान्द  मनखी ,
खैरी  ता  आन्द  पैर  उतेदु  नि  लगदु ,
उब उठादु  मनखी  उकाल  चढ़ी  की ,
ना  दौड़  ना  दौड़  ते  उन्दरी  का  बाटा  उन्दरियुं  का  बाटा ...... २

उन्दरी  कु  सुख  दुई  चार  घडी  कु ,
उकाली  कु  दुःख  सदनी  को  सुख  लाटा ,
ना  दौड़  ना  दौड़  ते  उन्दरी  का  बाटा  उन्दरियुं  का  बाटा ...... 2

एन्च  गोमुख मा जो गंगा पवित्र ,
उन्दरियुं  मा  डंकी  कोजाल होयेगे ,
गदानियुं मा  मिल  गे  जो  हियुं  उन्डू  बोगी
जो  रेगे  हिमालय  मा  वी  चम्कुनु  च

ना  दौड़  ना  दौड़  ते  उन्दरी  का  बाटा  उन्दरियुं  का  बाटा ...... २

उन्दरी  कु  सुख  दुई  चार  घडी  कु ,
उकाली  कु  दुःख  सदनी  को  सुख  लाटा ,
ना  दौड़  ना  दौड़  ते  उन्दरी  का  बाटा  उन्दरियुं  का  बाटा ...... 2

बरखा  बथोदियुं  मा  भी  उंडी  नि  रादिनी  जो ,
तुकु  पुछिगे  नि  खैरी  खे  खे  की ,
जोल नि  बोटी  धरती  मान  फार  अंग्वाल ,
उन्डू  रोडी  गिनी  अपदी  खुशियुं …

ना  दौड़  ना  दौड़  ते  उन्दरी  का  बाटा  उन्दरियुं  का  बाटा ...... 2
उन्दरी  कु  सुख  दुई  चार  घडी  कु ,
उकाली  कु  दुःख  सदनी  को  सुख  लाटा ,
ना  दौड़  ना  दौड़  ते  उन्दरी  का  बाटा  उन्दरियुं  का  बाटा ...... 2[/size]

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

मैं  नी  करदू  तवे  से  बात  ..
हट  छोड़   दे  मेरु  हाथ
 
महिला :
 
मैं  नी  करदू  तवे  से  बात  ..हट  छोड़  दे  मेरु  हाथ
मैं  नी  करदू  तवे  से  बात  ..हट  छोड़  दे  मेरु  हाथ  -
मैं  नी  करदू  तवे  से  बात  ..हट  छोड़  दे  मेरु  हाथ se baat....
बोल  चिठ्ठी  किले  ने  भेजी ...
पुरुष :
तवे  खुट   जुदियाँ  चीं  हाथ  ...सुन  सुन  जा  मेरी  बात
बदनामी  की  डर  नी  भेजी
महिला :
मुख  सामने  त  खूब  स्वांग  भरदी ,
परदेस  जा  के  याद  भी  नी  करदी ...2
रुंदु -रुंदु  रो  दिन  रात  सौन -भादो से  barsaat 
बोल  चिट्टी  किले  ने  भेजी ...
पुरुष :
तेरा  गाँव  कु  डाक्वान  चिट्टी  देनु  आन्दु ,
तू  रेंडी  बदूमा  वो  केमा  दे  जांदू ....2
मुंड माँ  धेअर  की  जो  हाथ 
सोची  -सोची  मिल  या  बात    ...2
बदनामी  की  डर  नी  भेजी
महिला :
मी  नी  करदू  तवे  से  बात  छोड़  - छोड़  दे  मेरो  हाथ  मिल  नी  करने  तवे से बात.. 
निगुर  सारेर  तयार  निठुर  प्राण 
हाली  गयी  तवे  माँ  क्या  माया  लान ... 2
झूठी  मर्दून  की  छि  जात
कण  निभे  ली  तवे  की  साथ ....2.
बोल  चिठ्ठी  किले  ने  भेजी

पुरुष :
तवे  खुन  जुदियाँ  छीन  हाथ  ...सुन  सुन  जा  मेरी  बात
बदनामी  की  डर  नी  भेजी
मेरी  साँची  माया  माँ  सक  के  कु  खंडी
है  चूची  तू  मेरी  आँखों  माँ  रेह्न्दी ....2
ले  के  आनु  छुन  बरात  अब  ता  उमार  भर  का  साथ ...2
मैं  ने  चिठ्ठी  इले   नी  भेजी ,मैं  ने  चिट्टी  इले  नी  भेजी ...2

=============================================

यह  गाना फिल्म : घर जवाई से है :

गायक नरेन्द्र सिह नेगी और सुषमा क्ष्रेष्ट की आवाज

भावार्थ :  इस गाने में दो प्रेमियों की जुगल बंदी है, ! गाने में महिला प्रेमी अपनी प्रेमी से कहती है उसने प्रदेश जाकर उसे चिट्टी क्यों नहीं भेजी, जब से प्रेमी कहता है है अभी उनकी शादी नहीं है, और शादी में बाद जनम भर का साथ है,  चिट्टी इसलिए नहीं भेजी की, वह गाव में बदनामी से डरता है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

प्रहलाद सिंह महरा, उत्तराखंड के एक प्रसिद्ध लोक गायक का यह गाना आपके लिए प्रतुस्त है!

इस गाने में एक फौजी जिसे दूसरे दिन फ़ौज की नौकरी में बोर्डर के इलाके के जाना है और वह अपने घर वालो की इस प्रकार समझाता है! इस गाने में बहुत ही भाविक रूप से प्रकट किया है! मुझे पूरी उम्मीद है आप गाना सुनने के बाद भाविक हो जावोगे !

इस लिंक से ये गाने सुनिए : http://ishare.rediff.com/music/kumaoni-others-folk/aaja-ka-din/10060621

गाने के बोल :

आजा का दिन छियो घर माजा
भोल जाण छो मील परदेश माजा.
आजा का दिन............

मेरी सुवा तू भली है रिये
इजा बाजियु की सेवा करिए
मेरी भुली जिया, मेरी भुला
मेरी भुला तू ..
मै जाण रियो परदेश, म्यार दिल यही छो .

आजा का दिन छियो
  .......

झन करिया मेरी फिकर
लौटी उना जरुर में घर
ईजा ना मार डाड, बाजियु ना उदास
भारत माता का छियो में च्यल साच
दिन ऊछा जान्छा ..
आजा का दिन छियो

चार दिन का यो जिन्दगी ये जिन्दगी में
झूटी माया की ये दुनिया में
क्वेके का को ना हून
अमर क्वे नि हूना... 2
प्राणी ले उडी जाण , खाली माट ये रूछा

आजा का दिन छियो घर माजा
आजा का दिन छियो घर माजा .
भोल जाण छो मील परदेश माजा.
.
आजा का दिन छियो घर माजा ...
दिन ऊछा जान्छा .
दिन ऊछा जान्छा .
दिन ऊछा जान्छा .

===========================================
हिंदी में भावार्थ
--------------

फौजी आपने पत्नी से कहता है:-

आज के दिन वह घर में है,
कल के दिन उसे प्रदेश की नौकरी में जाना है!

पत्नी और अपनी भाई बहिन से कहता है :

मेरी सुवा (पत्नी) तू अपना ख्याल रखने और
मेरी माता पिता (ईजा बाजियु) की सेवा करना
मेरी भुली (बहिन) मेरा भुला (भाई) जी.
तुम अपना ख़याल रखना
मै तू परदेश जा रहा हूँ, लेकिन मेरा दिल यही है.

आज के दिन वह घर में है,
कल के दिन उसे प्रदेश की नौकरी में जाना है!

अब कहता है :

मेरी फिकर नहीं करना, मै घर लौट के जरुर आवूंगा.
मेरी ईजा (माँ) तू रो मत, मेरे बाज्यू (पिता) आप उदास मत हो
भारत माँ का में सच्चा लाल हूँ,

दिन आते है और जाते है. ...

आज के दिन वह घर में है,
कल के दिन उसे प्रदेश की नौकरी में जाना है!

चार दिन की यह दुनिया है
सब झूठी माया मोह है,
किसका कोई नहीं है..
मिटटी यही रहेगी, प्राणी (आत्मा) को उड़ के जाना है

आज के दिन वह घर में है,
कल के दिन उसे प्रदेश की नौकरी में जाना है!

दिन आते जाते है..
दिन आते जाते है..
दिन आते जाते है..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

पहाड़ी गांवों में बहु बेटियों के अकेलेपन के साथी हैं लोकगीत. वे गीत इस तरह ज़िंदा हैं. उनमें उन स्त्रियों की ख़ुशियां, अवसाद और तक़लीफ़ें हैं. वे करुण गीत पहाड़ी स्त्री की आत्मा की पुकार हैं. ऐसा ही एक लोकगीत ये हैः

रात घनघोर मांजी!

रात घनघोर मांजी रात घनघोर,
बेटी नी बेवौण मांजी दीप डांडा पोर !
आयूं च खायूं च, आयूं च खायूं च,
जा बेटी सौरयास तेरो जवैं आयूं च !
पेइ च सराब मांजी , पेइ च सराब ,
सैसर नी जाण मांजी,जवैं च खराब !
दली जाली दाल मांजी, दली जाली दाल,
जवैं क्या बोन्न मांजी ,मेरो आयूं च काल !
मारीत मलेउ मांजी, मारीत मलेउ,
सैसर नी जाण मांजी,न बणौ कलेउ
कोठारी का खाना मांजी , कोठारी का खाना,
इननी मरी जाण मांजी, नणदू का बाना!
गुलैरी की गारी मांजी, गुलैरी की गारी,
सासुजीन पकड़ी मांजी,जिठाणीन मारी!
घोड़ी की कमर मांजी, घोड़ी की कमर,
कसीकी बितौलू मांजी,लौंडिया उमर
पाणी को गिलास मांजी, पाणी को गिलास,
तुमू दरु ह्वैगे मांजी,मैं लगदी निसास!
सुखी न संपत्ति नी मांजी, रात घनघोर,
वियोणू नी आइ मांजी, दीप डांडा पोर!

(हिंदी भावार्थः रात घनघोर है। हे मां दीप डांडे के पार बेटी को न ब्याहना। ओ बेटी! ससुराल जा, तेरा पति आया हुआ है। मां! मैं ससुराल नहीं जाऊंगी वह खराब है,उसने शराब पी है। क्या कहूं मां मेरा तो काल आया है।मैं ससुराल नहीं जाऊंगी, मां!मेरा कलेवा मत बना। ननदों के कारण मैं किसी दिन मर जाऊंगीं, सास मुझे पकड़े रहती है और जेठानी मारती है। तुम तो दूर हो, मां! मुझे तुम्हारी याद आती है। न सुख है ,न संपत्ति। रात घनघोर है, अभी तक दीप डांडे के पार से सुबह का तारा नहीं निकला।)

उपरोक्त लोकगीत गोविंद चातक की पुस्तक गढ़वाली लोकगीत से साभार

(Source-hilwani.com)

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version