मशकबीन की धुन बिना छोलिया नृत्य है अधूरा
अमर उजाला ब्यूरो
अल्मोड़ा। मशकबीन पर्वतीय अंचल का प्रमुख लोकवाद्य है। मशकबीन खासतौर पर छोलिया नृत्य में बजने वाले बैंड के साथ ही मेलों में भी बजता है। मशकबीन के बगैर छोलिया नृत्य अधूरा है। कुमाऊं रेजीमेंट के बैंड में भी मशकबीन एक प्रमुख वाद्य के रूप में बजता है। पुरानी मशकबीनों के पीछे कंधे पर लटकने वाले तीनों पाइप (बीन) के जोड़ (छल्ले) हाथी के दांत के बने होते थे लेकिन अब हाथी के दांत के छल्ले नहीं मिलते। अब गिलट और पीतल के छल्ले का प्रयोग होता है।
मशकबीन का मुख्य भाग एक चमड़े की थैलीनुमा मशक होता है। इसमें पांच छेद करके चार छेदों में पिपरियां लगा दी जाती हैं। मशक को बजाते समय बगल में दबाया जाता है। बगल में दबाकर इसकी एक नली को मुंह में डाला जाता है। जिससे वादक मशक के अंदर लगातार हवा भरता रहता है। फूंक मारने वाली नली के भीतर पिपरी नहीं होती। दूसरी पिपरी से वादक बांसुरी की तरह आवश्यक धुन निकालते हैं। इस बांसुरी को चंडल कहते हैं। वादक जब मशक के अंदर हवा भरते हैं तो यह हवा चार जगह को विभाजित होती है। चंडल में जाने वाली हवा से बांसुरी की तर्ज पर धुनें बजती हैं। दूसरी हवा तीन पाइपों की तरफ जाती है, जो पीछे कंधे की तरफ लटकाए जाते हैं। इन पाइपों का उपयोग बांसुरी की तरह नहीं किया जाता। इनसे लगातार एक जैसा ही स्वर निकलता है, जो बांसुरी की तरह बजने वाली धुन के सौंदर्य को और भी बढ़ा देता है।
वरिष्ठ रंगकर्मी जुगल किशोर पेटशाली बताते हैं कि कुछ साल पहले तक यह धारणा भी थी कि मशकबीन एक विदेशी वाद्य है लेकिन जिस तरह यह वाद्य लंबे समय से पहाड़ का एक प्रमुख लोकवाद्य रहा है उससे लगता है यह प्राचीन समय से ही हमारा लोक वाद्य रहा है।
Source-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150414a_004115006&ileft=-5&itop=444&zoomRatio=130&AN=20150414a_004115006