Uttarakhand > Music of Uttarakhand - उत्तराखण्ड का लोक संगीत
Musical Instruments Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के लोक वाद्य यन्त्र
हेम पन्त:
ढोल-दमू पर झूमते लोग
पंकज सिंह महर:
हुड़के की ताल को शाष्त्रीय रुप में देखें
हुड़का-
भम-भमऽ। पम पमऽ।
भम-भमऽ। पम-पमऽ।
शाष्त्रीय ताल-
धा धींऽ। ता तींऽ।
धा धींऽ। ता तींऽ।
जब हुड़के का वादन थोड़ा तेज होता है तो
हुड़्का-
भम भमा। पम पमा। भम भमा। पम पमा।
शाष्त्रीय-
धा धी ना, धा ती ना।धा धी ना, धा ती ना।
पंकज सिंह महर:
बिणाई
बिणाई मुख्यतः उत्तराखण्ड की ग्रामीण महिलाओं द्वारा बजाया जाने वाला एक लोक वाद्य है। बिणाई लोहे से बना एक छोटा सा वाद्य है, जिसे महिलायें उसके दोनों सिरों को अपने दांतों के बीच में दबाकर बजाती हैं। इन दोनों सिरों के बीच लोहे की एक पतली व लचीली पत्ती लगी होती है। जिसे अंगुली से हिलाने पर कम्पन पैदा होता है, इस कम्पन से वादक के श्वांस की वायु टकराने पर एक सुरीले स्वर की उत्पत्ति होती है। श्वांस लेने और छोड़ने पर इसकी टंकार में विविधता आती है। श्वांस के कम-बाकी दबाव से इसे और भी सुरीला बनाया जा सकता है। जिससे ऎसा विरही संगीत पैदा होता है जो घंटों तक वादक और श्रोता को मंत्रमुग्ध कर देता है। इस वाद्य को स्थानीय लोहार बनाते हैं।
वर्तमान में यह वाद्य यंत्र विलुप्त होने की कगार पर है।
पंकज सिंह महर:
कांसे की थाली
कांसे की थाली का उपयोग जागर में एक प्रमुख वाद्य के रुप में किया जाता है। इसे आसुरी प्रकृति का माना जाता है। इसलिये इसे जागर लगाने वाले कंसासुरी थाली (कंस की आसुरी प्रवृत्ति) भी कहते है। इसे लकड़ी के सोटे से बजाया जाता है। हुडके की थाप के साथ-साथ कांसे की थाली को भी बजाया जाता है। इसे सिर्फ पुरुष ही बजाते हैं,
पंकज सिंह महर:
घान, घाना या घानी
मंदिरो में जो घंटी चढ़ाई जाती है, उसके सस्ते स्वरुप को घान कहा जाता है, यह तांबे की पतली चादर से बनाया जाता है और इसके अन्दर एक लोहे की मुंगरी होती है, जो तांबे के बाहरी खोल से टकराने पर बहुत कर्णप्रिय स्वर उत्पन्न करती है।
यह देखने में उल्टे डिब्बे जैसी होती है और इसके ऊपर एक घुण्डी लगी होती है, जिसे रस्सी के सहारे जानवरों के गले में बांधा जाता है। बकरी, गाय और भैंस के गले में यह बाधी जाती है, जिसके संगीत में यह पशु खो जाते है और अपनी धुन में मस्त होकर चरते रहते हैं और फसल का नुकसान नहीं करते और अपने झुंड से इधर-उधर भी नहीं जाते हैं। बैलों के गले में भी इसे बांधा जाता है, जिससे खेत जोतते समय उनकी एकाग्रता बनी रहती है।
इसे जानवरों को संगीत के माध्यम से बांधे रहने के लिये हमारे पुरखों ने विकसित किया।
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