Uttarakhand > Music of Uttarakhand - उत्तराखण्ड का लोक संगीत
Musical Instruments Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के लोक वाद्य यन्त्र
पंकज सिंह महर:
साथियो,
सभी अवगत ही हैं कि उत्तराखण्ड की अपनी एक समृद्ध और गौरवशाली सांस्कृतिक परम्परा है। किसी भी सभ्यता और संस्कृति के लिये जरुरी है उनकी सांस्कृतिक गतिविधिया और इनके लिये आवश्यक होते हैं सुर और ताल, सुर जहां कंठ से निकलते हैं वहीं ताल के लिये वाद्य यंत्रों की आवश्यकता होती है। हमारे पुरखों ने स्थानीय सुरों के आधार पर स्थानीय वाद्य यंत्र भी विकसित किये तो आइये हम बात करते हैं अपने आद्य यंत्रों पर------हुड़्का, ढोल, दमाऊं, कांसे की थाली, भोंकर, तुतुरी, रणसिंगा, डोंर, कंसेरी, बिणाई, मुरुली, जोंया मुरुली..........
पंकज सिंह महर:
हुड़का-
लोक वद्यों में हुड़का कुमाऊं में सर्वाधिक प्रयोग में लाया जाता है। स्थानीय देवी-देवताओं के जागर के साथ ही यह विभिन्न उत्सवों, लोक गीतों और लोक नृत्यों में यह प्रयुक्त होता है। इसका मुख्य भाग लकड़ी का बना होता है, जिसे अन्दर से खोखला कर दिया जाता है, दोनों ओर के सिरे बकरे के आमाशय की झिल्ली से मढ़कर आपस में एक-दूसरे की डोरी से कस दिया जाता है, लकड़ी के इस भाग को स्थानीय भाषा में नाई (नाली) कहते हैं, इसे बजाते समय कंधे में लटकाने के लिये, इसके बीच (कमर के पास) से कपड़े की पट्टी को डोरी से बाढ दिया जाता हि। बजाते समय कपड़े की पट्टी का खिंचाव हुड़के के पुड़ों व डोरी पर पड़ता है, जिससे इसकी आवाज संतुलित की जाती है, आवाज का संतुलन एवं हुड़के की पुड़ी पर थाप की लय पर वादक को विशेष ध्यान रखना होता है।
हुड़का जागा या जागर लगाने का एक प्रमुख वाद्य है, कुमाऊं के स्थानीय देवता गंगनाथ का जागर केवल हुड़के पर ही लगाया जाता है। बैसी में हुड़का प्रयोग में नहीं आता लेकिन ३ से ५ दिन के जागर में हुडके का ही प्रयोग होता है।.............
पंकज सिंह महर:
हुडके का मुख्य भाग नाली, का निर्माण विशेष लकड़ी से किया जाता है, बरौं व खिन अथवा खिमर की लकड़ी से बने हुडके की नाली विशेष मानी जाती है-
"खिनौक हो हुड़ुक, दैण पुड़ हो बानरौक, बौं पुड़ हो लंगूरोक, जभत कै तौ हुड़्क बाजौल, उ इलाकाक डंडरी बिन न्यूतिये नाचण लागाल"
अर्थात, खिन की लकड़ी से निर्मित हुडके की नाली हो, दांया पूड़ा बन्दर की खाल का बना हो, बांई ओर का पूड़ा लंगूर की खाल का बना हो, ऎसे हुड़के में जब जगरिय के हाथों से थाप पड़ेगी तो उस क्षेत्र के जितने भी डंडरिय हैं, बिना निमंत्रण दिये ही नाचने लगेंगे।
हेम पन्त:
वाह पंकज दा! मान गये. बहुत ही सुन्दर टापिक शुरु किया और ज्ञान की वर्षा प्रारम्भ कर दी. आज थोडा व्यस्त हूँ, समय मिलने पर कुछ जोडने की कोशिश करुँगा...
--- Quote from: P. S. Mahar on May 26, 2008, 12:54:15 PM ---हुडके का मुख्य भाग नाली, का निर्माण विशेष लकड़ी से किया जाता है, बरौं व खिन अथवा खिमर की लकड़ी से बने हुडके की नाली विशेष मानी जाती है-
"खिनौक हो हुड़ुक, दैण पुड़ हो बानरौक, बौं पुड़ हो लंगूरोक, जभत कै तौ हुड़्क बाजौल, उ इलाकाक डंडरी बिन न्यूतिये नाचण लागाल"
अर्थात, खिन की लकड़ी से निर्मित हुडके की नाली हो, दांया पूड़ा बन्दर की खाल का बना हो, बांई ओर का पूड़ा लंगूर की खाल का बना हो, ऎसे हुड़के में जब जगरिय के हाथों से थाप पड़ेगी तो उस क्षेत्र के जितने भी डंडरिय हैं, बिना निमंत्रण दिये ही नाचने लगेंगे।
--- End quote ---
पंकज सिंह महर:
बिरत्वाई (बिरुदावली) की ताल देवता का अवतरण करने से पहले प्रांरभ में बजाई जाती है। इसमें समस्त देवताओं, स्थानीय देवताओं मंदिरो, तीर्थों में निवास करने वाले देवताओं का आह्वान किया जाता है, इसमें हुड़का और कांसे की थाली बजाई जाती है, हुडके के बोल इस तरह से होते हैं-
तुकि दुं दुं दुं, तुकि दुं दुं दुं।
तुकि दुं दुं दुं, तुकि दुं दुं दुं।
दुदुं दुदुं तुकि दुंग,
दुदुं, दुदुं, दु-दुदुं
दुदुदुं, दुदुदुं, दुदुं
दुदुदुं, दुदुदुं, दुदुं, दुदुं, दुदुदं
किदुं दुदुं दुदुदुं किदुं दुदं दुदुदुं
तुकि दुं, तुकि दुं, तुकि दुं...............
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