Uttarakhand > Music of Uttarakhand - उत्तराखण्ड का लोक संगीत

Narendra Singh Negi: Legend Singer Of Uttarakhand - नरेन्द्र सिंह नेगी

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हेम पन्त:
मुझे लगता है जैसे पहाड के हर दर्द को नेगी जी अपना दुख समझते हैं...तभी तो इतनी सटीक तरीके से पहाड की हर पीडा को अपने गानों के माध्यम से आवाज देते हैं

अबरी दा तु लम्बी छुट्टी लैके एयी... एगे बखत आखिर
टिहरी डूबन लाग्यू च बेटा....डाम का खातिर

एक बूढे पिता अपने बेटे को परदेश से अन्तिम बार टिहरी देखने के लिये बुला रहा है.....क्योकि डैम बन जाने पर टिहरी डूब जायेगा और फिर वह उसे कभी देख नही पायेगा......... बडा मार्मिक गाना है...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Some more artile about Negi Ji.

Narendra Singh Negi is one of the most prominent folk singers of the Garhwal region of Uttarakhand.

Born near Pauri town in Pauri Garhwal District, Negi started his career as a folk singer in his early youth. His distinctive voice and prolific career made him a household name amongst Garhwalis both in India and abroad.

He has sung hundreds of songs and produced almost a hundred albums relating to almost all social and cultural aspects of Uttarakhand.

In years past, he has also sung sad elegies to Tehri town, recently inundated by the Tehri dam, as well as fiery protest songs during the Uttarakhand separate state movement. Negi is a good singer his song represent the Garhwal everywhere and make good and bright theme in listener's mind.

हेम पन्त:
अभी बनायूं सौ कू नोट...अभी ह्वे गै ई सुट...अभी बनायूं सौ कू नोट...अभी ह्वे गै ई सुट...

एक और गाना नेगी जी के खजाने से....जहाँ एक तरफ यह गाना महंगाई और शराब जैसी सामाजिक बुराइयों पर गहरी चोट करता है....वहीं सौन्दर्य के प्रति नारी के लगाव पर भी चुटकी लेता है.....एक आदमी किसी तरह 100 रु. कमा कर बाज्ञार खरीददारी के लिये जाता है....लेकिन खाली हाथ वापस आता है...उसकी पत्नी उससे 100 रु. का हिसाब मांगते हुए कहती है कि तुम न तो चूडी, बिन्दी जैसी कोई सौन्दर्य सामग्री लाये हो ना बच्चों के लिये कुछ लाये हो ना ही खाने का कुछ सामान लाये हो...बताओ 100 रु. कहां सुट(खत्म) करके आये.
पति बिचारा महंगाई की लाख दुहाई देता है....जबकि वास्तविकता यह है कि उसके पास मिट्टी तेल (केरोसीन) लाने के लिए खाली बोतल नही थी.....शराब की एक बोतल खरीद कर उसने पी ली....खाली बोतल की व्यवस्था तो उसने इस तरह कर ली...लेकिन यह बोतल मिट्टी तेल के लिये हो रही धक्का-मुक्की में टूट गयी.....

बेहतरीन गाना........

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Pant Ji,

Really a nice song. This song is from album "Basant Aage".



--- Quote from: Hem Pant on October 17, 2007, 06:19:25 PM ---अभी बनायूं सौ कू नोट...अभी ह्वे गै ई सुट...अभी बनायूं सौ कू नोट...अभी ह्वे गै ई सुट...

एक और गाना नेगी जी के खजाने से....जहाँ एक तरफ यह गाना महंगाई और शराब जैसी सामाजिक बुराइयों पर गहरी चोट करता है....वहीं सौन्दर्य के प्रति नारी के लगाव पर भी चुटकी लेता है.....एक आदमी किसी तरह 100 रु. कमा कर बाज्ञार खरीददारी के लिये जाता है....लेकिन खाली हाथ वापस आता है...उसकी पत्नी उससे 100 रु. का हिसाब मांगते हुए कहती है कि तुम न तो चूडी, बिन्दी जैसी कोई सौन्दर्य सामग्री लाये हो ना बच्चों के लिये कुछ लाये हो ना ही खाने का कुछ सामान लाये हो...बताओ 100 रु. कहां सुट(खत्म) करके आये.
पति बिचारा महंगाई की लाख दुहाई देता है....जबकि वास्तविकता यह है कि उसके पास मिट्टी तेल (केरोसीन) लाने के लिए खाली बोतल नही थी.....शराब की एक बोतल खरीद कर उसने पी ली....खाली बोतल की व्यवस्था तो उसने इस तरह कर ली...लेकिन यह बोतल मिट्टी तेल के लिये हो रही धक्का-मुक्की में टूट गयी.....

बेहतरीन गाना........

--- End quote ---

हेम पन्त:

नेगी जी ने पहाड के हर दर्द को अपने गानों के माध्यम से आवाज दी है...तो यह कैसे हो सकता है कि पिछली कई सदियों से पहाड की सबसे बडी समस्या 'पलायन' उनकी कलम से अछूता रह जाता...
पलायन की समस्या पर कई गानों के माध्यम से नेगी जी ने पलायन की पीडा को व्यक्त किया है... इसी प्रकार का एक गाना यह है… (पुरुष स्वर महिला स्वर)

नारंगी की दाणि हो....
क्याले सुकी होलो बौजी, मुखडी को पानी हो.....
खोली को गणेशा हो....
जुग बीती गैनी दयूरा, स्वामी परदेशा हो......
एक युवक जो छुट्टी लेकर गांव आया हुआ है..अपने पडोस की एक महिला (भाभी) की बदली हुयी स्थिति देखकर दुखी हो जाता है.. वह स्त्री अत्यन्त रूपवती थी...लेकिन अब उसकी कजरारी आखों का और लंबे बालों का सौन्दर्य कहीं खो गया है.... इसका कारण पूछने पर वह स्त्री कहती है कि उसका पति लंबे समय से परदेश से घर वापस नही आया.... उसकी याद में रोते-रोते आंखों का काजल बह गया है...और उसके लंबी लटें पहाडों में खेती तथा पशुपालन की खातिर होने वाली कठोर मेहनत की भेंट चढ गये हैं....

गाने की अन्तिम पंक्तियां दिल को छू जाती है...युवक भाभी को सांत्वना देते हुए कहता है कि दुख के दिन हमेशा नहीं रहेंगे, भाभी कहती है लेकिन मैं अपनी जवानी के यह अमूल्य दिन कहां से वापस लाउंगी?

धीरज चाएंदा हो...
खैरी का ये दिन बौजी, सदा नि नी रैन्दा हो..
त्वैमां क्या लुगूणों हो..
दिन बोडी ए बी जाला, ज्वाणि कखै ल्योण हो?
लगता है यह सवाल शायद पहाड की उन सभी महिलाओं की तरफ से पूछा जा रहा है, जिनके पति बेहतर भविष्य की तलाश में अपने परिवार को छोडकर महानगरों में नौकरी करने को मजबूर हैं.

हेम

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