Author Topic: Narendra Singh Negi: Legend Singer Of Uttarakhand - नरेन्द्र सिंह नेगी  (Read 83023 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नरेंद्र सिंह नेगी: लोकगायक ही नहीं सांस्कृतिक नायक भी सुरेश नौटियाल
यह संयोग ही है कि गढ़वाली भाषा के महत्वपूर्ण गीतकार, कवि और गायक नरेंद्ग सिंह नेगी की चार दशक की कलायात्रा और रचनाधर्म के मौके पर एक गढवाली गायक गजेंद्र राणा ने अपने एक गीत के माध्यम से विवादास्पद और निराशाजनक टिप्पणी की है. गजेंद्र राणा की टिप्पणी पेशेगत ईर्ष्या से प्रेरित ज्यादा दिखाई देती है. उन्होंने इस गीत के माध्यम से अपने मन की भड़ास निकालने की भी कोशिश की है. नरेंद्र नेगी पर गजेंद्र राणा के गीत और नारायणदत्त तिवारी या निशंक पर नेगी के गीत का तुलनात्मक अध्ययन किया ही नहीं जा सकता है, चूंकि दोनों के सरोकारों में जमीन-आसमान का अंतर है. वैसे भी, गजेंद्र ने ऐसी भी कोई बात अपने गीत में नहीं बताई जो नेगी के चरित्र के किसी अनछुये पक्ष को उजागर करती हो. शिल्प के हिसाब से भी यह गीत किसी भी मानक पर खरा नहीं उतरता है. खराब संगीत के साथ शब्दों का चयन अनुचित तो है ही. किसी की टोपी, चेहरे और आयु इत्यादि पर टिप्पणी को किसी भी स्थिति में स्वस्थ नहीं कहा जा सकता है. ऐसा करना तो मानव-गरिमा के विरुद्ध भी है. एक ओर तो गजेंद्र राणा जैसे गायक हैं और दूसरी ओर नेगी जैसे गायक जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों से लेकर राजनीतिक हालात पर अपने गीतों के माध्यम से चोट की है.
गजेंद्र के पास तो असल में ऐसा कोई कारण ही नहीं था कि उसे नेगी पर गीत लिखना पडा; पर उन्हें तो शायद ऐसा करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करनी थी. मुझ सहित जो लोग गजेंद्र राणा का नाम नहीं जानते थे, वे भी अब उन्हें जानने लगे हैं. शायद, उन्हें इतने से ही संतोष हो गया हो कि लोग अब उन्हें ज्यादा जानते हैं! “नाम हो, बदनाम हो पर गुमनाम न हो” की कहावत को शायद गजेंद्र ने बखूबी चरितार्थ किया है.
 बहरहाल, कुछ लोगों ने तर्क दिया गया कि नेगी ने भी तो नारायणदत्त तिवारी और रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की आलोचना में गीत लिख-गाकर हंगामा किया था; लिहाजा आज उन्हें अपनी ऐसी ही आलोचना पर परेशानी क्यों? नेगी तो इस मामले में लगभग चुप ही रहे, पर उन्हें उत्तराखंड के गीत-संगीत का प्रतीक पुरुष मानने वालों ने मोर्चा संभाल लिया. मीडिया और फेसबुक पर उनके समर्थन में सैकडों लोग खड़े हो गये.

वस्तुत: यह प्रकरण उत्तराखंड के गीत-संगीत के इतिहास में सबसे बडे विवाद के रूप में चर्चित हुआ है. अपनी लाश पर ही उत्तराखंड बनने देने की बात कहने वाले के कारनामों और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे व्यक्ति के बारे नेगी ने लिखा तो क्या गलत किया? और हां, यह सब लिखने के लिये तो साहस चाहिये था, जो नेगी ने दिखाया. वैसे भी देखें तो नेगी ने तिवारी और निशंक के बारे में केवल और केवल वही लिखा जो इन नेताओं ने किया. नेगी ने बिल्कुल सही किया, इसका प्रमाण यह है कि जनता ने नेगी के इन गीतों को मन में और उनको सिर-आंखों पर बिठा लिया. यह नेगी के गीतों की लोकप्रियता ही थी कि कांग्रेस और भाजपा दोनों को उनके गीतों के चलते काफी बदनामी झेलनी पडी.
गजेन्द्र राणा अपने सार्थक गीतों के माध्यम से यदि नेगी की प्रतिभा को चुनौती देते तो निश्चय ही उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत और अधिक संपन्न होती, पर उन्होंने ऐसा न कर विवाद के रास्ते चलकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करनी चाही. लेकिन हुआ इसका उल्टा. सही चिंतन करने वाले राज्य के तमाम लोग नेगी के पक्ष में खडे हो गये और उनकी लोकप्रियता और प्रासंगिकता को और आगे कर दिया, जबकि गजेंद्र लगभग अकेले पड गये. ऐसे में क्या उत्तराखंडी फिल्में बनाने वाली अग्रणी हिमालयन फिल्म्स कंपनी गजेंद्र राणा की कोई सीडी/ वीसीडी निकालेगी?
आज सही में समय है नेगी का साथ देने का. हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिय कि तिवारी और निशंक की करतूतों पर वीडियो-कैसेट्स निकालने के बाद सरकारी मेलों, नगरपालिका शरदोत्सवों इत्यादि में नेगी के कार्यक्रमों पर अघोषित सेंसरशिप लगायी गयी थी. उनके कुछ कार्यक्रम रद्द भी करवाए गए. ऐसे प्रकरणों को उनके सांस्कृतिक बलिदान के रूप में ही देखा जाना चाहिये.
 नेगी पिछले चार दशक से पर्वतीय जनजीवन की पीडाओं से लेकर प्रकृति चित्रण और प्रेमगीत लिखने और सामजिक-राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी कर अपने रचनाधर्म में लगे हैं. वामपंथी राजनीतिक कार्यकर्ता सीपीआई-माले के इंद्रेश मैखुरी ने उन्हें ठीक ही उत्तराखंड के गीत-संगीत का प्रतिनिधि चेहरा कहा है, चूंकि चालिस साल के उनके रचनाकाल में पर्वतीय जीवन के लगभग सभी रंग उनके गीतों में दिखाई देते हैं.

राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता मुजीब नैथानी ने अपनी फेसबुक पर लिखा कि नेगी की लोकप्रियता का रहस्य केवल उनके गढ़वाली गाने ही नहीं, बल्कि उनके भीतर पहाड़ के विकास की भावना है. उन्होंने मजबूती से पहाड़ के विनाश और कुरीतियों का विरोध किया. ये तत्व उन्हें अपने समकालीन गायकों और गायकी से हटाकर एक नायक के रूप में प्रस्तुत करते हैं. प्रत्येक गढ़वाली जो अपने समाज को प्रेम करता है, समाज की कुरीतियों का विरोध करता है और समाज को नई दिशा देने की चाह रखता है, उसने नेगी को अपना आदर्श माना. आंदोलन के दौर में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी दांव पर लगा अपने गीतों के माध्यम से आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान किया.
सच में आज शायद ही कोई उत्तराखंडी होगा, जो नरेंद्र सिंह नेगी को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में न जानता हो. हमारी राय में तो नेगी जितने बडे गायक हैं, उससे कहीं बडे कवि और गीतकार हैं. उनका गीत ‘धरती हमारा गढ़वाले की, कथगा रौंतेली-स्वाणी चा’ … और इसके जैसे अनेक गीत उन्हें किसी भी बडे कवि और गीतकार के समक्ष रखते हैं. नेगी ने दर्जनों ऐसे गीत लिखे जो उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सरोकारों को परिलक्षित करते हैं. उदाहरण के तौर पर वृक्षों को बचाने के लिये ‘ना काटा ‘तौं डाल्युं’ …, शराब के विरुद्ध ‘दारू-दारू’ …, टिहरी बांध के खिलाफ ‘टिहरी डुबण लगीं च बेटा’ …, पलायन के विरुद्ध ‘न दौड़ तै उन्दर्युं का बाटा’ … सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की बुरी स्थिति के विरुद्ध ‘उंचा-निसा डांडों मां, टेढा-मेढा बाठों मां’ … गैरसैंण में राजधानी के मुद्दे पर ‘तुम भि सुणा, मिन सुण्यालि’… , गढवाल के इतिहास का बोध कराने के लिये ‘बावन गढों को देश, वीर भडो को देश’ … मायके की याद में ‘घुघूती घूराण लगी म्यरा मैत की’ … पर्वतीय नारी की दर्दनाक दिनचर्या का बखान करने के लिये ‘ना जा, ना जा तू भेल-पाखा’ … जैसे अनेक गीतों की रचना और गाकर अपने सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों की अभिव्यक्ति की.
‘नौछमी नारैणा’ … और ‘कथगा खैल्यो’ … जैसे गीत लिख-गाकर उन्होंने अपनी सामाजिक और राजनीतिक चिंताओं को स्पष्ट ढंग से ही उजागर नहीं किया, बल्कि अपने भीतर के नैतिक साहस का परिचय भी दिया. इन अर्थों में वह गीतकार-गायक और समाजसेवी ही नहीं बल्कि सार्थक राजनीतिक कार्यकर्ता और गढ़वाल की संस्कृति के नायक के तौर पर भी सामने आते हैं. सच में वह आज गढवाल के अलावा कुमाऊं और जौनसार क्षेत्रों में भी अत्यधिक लोकप्रिय हैं. कुमाऊंनी के गीतकार और बडे आंदोलनकारी गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ के साथ आंदोलन के गीतों की जुगलबंदी तो उन्होंने दिल्ली से लेकर अमेरिका तक की.
अपनी कालजयी रचनाओं के अलावा नरेंद्र नेगी ने पुराने बाजूबंद भी गाये और ‘हरि बोला जी’ … जैसा पुराना लोकगीत भी गाया. साथ ही, उन्होंने जीत सिंह नेगी (‘पिंगला प्रभात का घाम तैं लेकि सूरज धार मा ऐगी’ …), गिरधारीलाल थपलियाल ‘कंकाल’ (‘सुन-सुन रे दिदा, त्वेकू आयूं च बौजि को सवाल’ …), कन्हैयालाल डंडरियाल (‘दादु मी पर्वतों को वासी’…) और गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ (‘जैंता इक दिन तो आलो दुनिया दुनी में’ …) जैसे श्रेष्ठ रचनाकारों के गीत भी गाये. यह बात अलग है कि इनमें से कुछ गीत आज उनके अपने जैसे लगते हैं. पर, महत्वपूर्ण बात यह है कि नेगी को अपनी रेंज और पिच की सीमाओं का ज्ञान है और वे उनके भीतर रहते हुये ही सुंदरता से अपना रचनाकर्म करते हैं. गोपालबाबू गोस्वामी जैसी हाइ पिच पर शायद ही उन्होंने गाया हो.
इस सबके बावज़ूद बुद्धिजीवियों के एक वर्ग की धारणा है कि ‘बेडू पाको बारमासा’ … गीत के अलावा एक भी उत्तराखंडी गीत ऐसा नहीं है जो देश-विदेश में हमारा प्रतिनिधित्व करता हो; हमारा कोर्इ भी ऐसा गीतकार-संगीतकार नहीं है जिसे देश में भूपेन हजारिका, तीजनबार्इ, सपना अवस्थी, गुरदास मान की तरह जाना जाता हो; और एक भी ऐसा गीत नहीं है जो भोजपुरी, हिमाचली, राजस्थानी, हरियाणवी जैसी भाषाओं की बराबरी करता हो. इस वर्ग का यह भी मानना है कि हमारे लोकगायन और लोकसंगीत की ऐसे कोई परंपरा भी आगे नहीं बढ़ी जिसे हम अपने इन “तथाकथित नायकों” की उपलब्धि मान सकें. इन तीनों तर्कों पर हमारी टिप्पणी इतनी सी है कि हमारी भाषाओं में अनेक गीत ऐसे हैं जिनका यदि अनुवाद कर दिया जाए तो वह हिंदी तो छोड दीजिये सबसे बडी मानी जाने वाली अंग्रेजी भाषा की बराबरी कर सकते हैं. यदि ‘गिर्दा’ या नरेंद्र सिंह नेगी कुमाऊंनी-गढवाली को छोडकर हिंदी में लिखते तो क्या उन्हें राष्ट्रीय पहचान न मिलती?
खैर, यहां चर्चा को नरेंद्र नेगी तक ही सीमित रखेंगे. पिछले दिनों नेगी को लेकर भाषाई या अकादमिक ज्ञान के बिना अथवा भावनात्मक आधार पर हुयी इन चर्चाओं के संबंध में निस्संदेह यह कहना पडेगा कि नरेंद्र नेगी भले ही उत्तराखंड के गीत-संगीत के सर्वोच्च आधार-स्तंभ न हों पर सर्वोच्च आधार-स्तंभों में से एक तो हैं ही. उनके गीतों में भाषा के सौन्दर्य के साथ-साथ पर्वतीय परिवेश अपनी पूरी सांस्कृतिक और सामाजिक सूक्ष्मताओं के साथ प्रस्तुत होता है. फलस्वरूप, उनका रचना-संसार उन्हें गायक से कहीं बडे कवि और गीतकार के रूप में सामने रखता है. हमारा मानना है कि एक ईमानदार रचनाकार ईमानदारी के साथ अपने सृजन की विधा में अपना उचित स्थान जानता है. इसलिये यदि हम नेगी को गायक से बडा कवि और गीतकार कहें तो उन्हें भी शिकायत न होगी. ठीक इसी प्रकार गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ भी गायक से कहीं बडे रचनाकार थे. हां, पुरुष गायकों की हम जब-जब बात करेंगे तब-तब केशव अनुरागी, जीत सिंह नेगी, गोपाल बाबू गोस्वामी, चंद्र सिंह राही, हीरा सिंह राणा, किशन सिंह पंवार, किशन महिपाल, जितेंद्र पंवार जैसे गायकों की विशिष्ट गायनशैलियों और उनके हुनर के महत्व का स्मरण करना ही पडेगा. उनके महान योगदान की चर्चा करनी ही पडेगी. गायिकी में इन गायकों के स्थान को नेगी भी भलि-भांति जानते होंगे.
लेकिन, यह बात भी सच है कि जहां तक लोकप्रियता का सवाल है, नेगी सबसे आगे निकल गये. बहुमुखी प्रतिभा के धनी भीष्म कुकरेती के शब्दों में कहें तो नेगी के उत्तराखंडी समाज में चमकने के जो कारण हैं, उनमें महान गायक जीत सिंह नेगी के पार्श्व में चले जाना तथा नरेंद्र नेगी की संगीत शिक्षा के अलावा उनके मुंबई-दिल्ली जैसे महानगरों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना प्रमुख हैं. साथ ही जब नरेंद्र नेगी उभर रहे थे तो उसी समय टेप रिकॉर्डिंग या ऑडियो कैसेट उद्यम भी क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा था. इसका लाभ नेगी को सहज ही मिल गया. सम-सामयिक विषयों पर गीत रचने की नेगी की क्षमता ने उनको अतिरिक्त लाभ पहुंचाया. तकनीक और मार्केटिंग के मामले में भे नेगी अनेक गायकों से आगे रहे हैं. पर, कोई भी कलाकार अपनी कला को व्यापक जनता तक पहुंचाने के लिये सुलभ साधनों का अधिकतम उपयोग तो करेगा ही. जो नहीं कर पाए, वे पीछे छूट गये, प्रतिभा के बावज़ूद!
एक बार चंद्र सिंह राही ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि गीत-संगीत कार्यक्रमों के बदले पैसा लेना नरेंद्र सिंह नेगी ने ही उन्हें सिखाया. यह टिप्पणी भले ही राही ने कटाक्ष या किसी अन्य रूप में की हो लेकिन इसके जवाब में यह कहना आवश्यक है कि बिना ऐसे दृष्टिकोण के किसी भी कला को जीवित रखना मुश्किल होता है. आज उत्तराखंडी थिएटर इसीलिये खत्म हो रहा है, क्योंकि उसमें व्यावसायिकता नहीं है. इसके अलावा, व्यावसायिकता न होने से कलाकार का मान-सम्मान भी कम हो जाता है. हम तो कहेंगे कि किसी भी व्यवसाय की तरह गीत-संगीत से आजीविका चलाने वालों को व्यावसायिकता के पक्ष को गंभीरता से लेना ही होगा. तभी लोक गीत-संगीत प्रतियोगी बन पायेगा.
अनेक कलाकारों की यह भी शिकायत है कि नरेंद्र नेगी ने इतना ज्यादा स्पेस अकेले ही ले लिया है कि बाकी कलाकारों के लिये स्पेस नहीं बच पाता है, जैसे कि अधिक से अधिक कार्यक्रम आयोजक नेगी को ही बुलाना चाहते हैं. यह भी शिकायत रहती है कि नेगी आयोजकों से इतने पैसे ले लेते हैं कि बाकी कलाकारों के लिये आयोजकों के पास पैसे बचते ही नहीं हैं. नेगी इस बारे में सोचें, पर हमारा तो इतना भर कहना है कि शेष कलाकार इस तरह की भडास निकालने की बजाय अपनी कला की गुणवत्ता में सुधार कर नेगी को स्वस्थ चुनौती दें. गजेंद्र राणा बनकर तो गजेंद्र राणा का भी भला नहीं हो सकता. यह भी याद रखने लायक बात है कि नेगी तो गायक के साथ-साथ आंदोलनकारी भी रहे हैं, इसलिये उन्हें केवल व्यावसायिक कलाकार नहीं कहा जा सकता. यह तो उनकी कला का ही गुण है कि वह बाजार का इस्तेमाल अपने सरोकारों की अभिव्यक्ति के लिये कर लेते हैं.
कुल मिलाकर, ऐसे कम ही गायक हुये होंगे जिन्होंने रचनाकर्म करते हुये चार दशक का लम्बा सफत तय किया हो. कुछ गायक लम्बे समय से गायकी कर रहे हैं पर उनकी रचनाओं की संख्या सीमित है और सम-सामयिक विषयों पर भी वे ज्यादा कुछ नहीं कर या कह पाये हैं. इनके इतर नरेंद्र नेगी पिछले चालीस साल से लगातार सक्रियता से सार्थक गीतों की रचना कर उन्हें गा रहे हैं. अंत में इतना ही कि नरेंद्र सिंह नेगी ‘गिर्दा’ की तरह ही जनमानस में रचे-बसे लोकगायक ही नहीं अपितु सांस्कृतिक लोकनायक भी हैं. इतिहास हमें बताता है कि दुनिया के तमाम नायकों-महानायकों की भी कुछ कमजोरियां रही हैं पर उनकी महानता को स्वीकार करने से किसी को परहेज नहीं रहा है. यदि नरेंद्र नेगी में भी कुछ कमियां हों, तब भी वह लोकगायक के साथ-साथ सांस्कृतिक नायक भी हैं.

(source-http://www.devbhoomimedia.com/)

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अभी भनाई सौ कु नोट अभी होये ग्याई सूट
 यें लोला बाज़ार मा दया न धर्म लुट मची छा लुट
 चूड़ी न बिंदी न फुन्दी मुल्याई क्यान होये ग्याई सूट
 ठठा न करा रूप्या यख धरा मैमा नी खपदी झूट
 कख छ नोना का लता कपड़ा कख छ कॉपी किताब
 बडा सोदर बणी केग्याँ छा ल्यवा दिखावा हिसाब
 
 Abhi Bhanai sou ku not Garhwali Song by Narendra Singh Negi

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मालु ग्विरालू का बीच खिलनी ....देखिनी अहा !
मालु ग्विरालू का बीच खिलनी .....
गोरी मुखड़ी मा लाल होंठुड़ी जनी .....

बांज अँयारूं का बौंण फुल्युं बुरांस कनु
बै फुल्युं बुरांस कनु ......
हैरि साड़ी मा बिलोज लाल पैर्युं हो जनु
हैरि साड़ी मा बिलोज लाल पैर्युं हो जनु .........

मालु ग्विरालू का बीच खिलनी ....देखिनी अहा !
मालु ग्विरालू का बीच खिली .....
गोरी मुखड़ी मा लाल होंठुड़ी जनी .....

 .....गीत : नरेन्द्र सिह नेगी जी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़ रत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी कु एक बहूत ही भलु सुन्दर गीत मै "अनुराग चौहान " ये पेज माँ लिख्नु छौ

"रुसाणु छ सौन्गु ,,रुसैले रुसान्दि ,रुसैले रुसान्दि
हैन्सी तौ आन्ख्यो की ,,लुको कख लुकान्दि ,लुको कख लुकान्दि

मनाणु छ सौन्गु ,,मनैले मनान्दि, मनैले मनान्दि
भेद ये मन कु ,, लगौ कन लगान्दी ,लगौ कन लगान्दी "


"रात तेरा सुपिन्या ,,दिन माँ त्यार ख्याल
जुग बठी यु आन्ख्यो ,,तेरी जग्वाल

जाण न पहचाण ,,और भक अंग्वाल
यख नि चलुणु रे ,,तेरु मायाजाल

रिझाणु छ सौन्गु ,,रिझैले रिझांदी रिझैले रिझांदी
भेद ये मन कु ,, लगौ कन लगान्दी ,लगौ कन लगान्दी "

"रुसाणु छ सौन्गु ,,रुसैले रुसान्दि ,रुसैले रुसान्दि
हैन्सी तौ आन्ख्यो की ,,लुको कख लुकान्दि ,लुको कख लुकान्दि

मनाणु छ सौन्गु ,,मनैले मनान्दि, मनैले मनान्दि
भेद ये मन कु ,, लगौ कन लगान्दी ,लगौ कन लगान्दी,,,,!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जय हो उत्तराखंड .
 पुज्य नरेन्द्र सिंह नेगी जी को मेरू दण्डवत प्रणाम.......।।
 
 कविता - मनोज रावत (बौल्या)
 
 जन चखुलोँ थै प्यारू अपडू घोल नेगी जी।
 उनि उत्तराखण्ड तैकी भाँद तुमरा बोल नेगी जी...2।
 जब तक रालू हम मा पराण नेगी जी।
 तुमरा गीत ही राला हमरी पछ्याण नेगी जी।
 जब तक दिल हमरू धडकुणू रालू नेगी जी।
 तुमरा ही गीतूँ थै सदनी गालू नेगी जी।
 
 जन डाल्यूँ थै प्यारू मौल्यार नेगी जी।
 तुमरा ही गीतूँ मा आँदू उलार नेगी जी।
 जब तक कण्ठ मा राली आवाज नेगी जी।
 तुमरा ही गीतूँ थे बणोलू अपडू साज नेगी जी।
 
 जब तक राली गढ मा गढ की रीत नेगी जी।
 रंगमत हरगढी होलू जब सूणालू आपका गीत नेगी जी।
 जब तक राली दुनिया मा प्रीत नेगी जी।
 तुमरा ही गीत छन हमरी जीत नेगी जी।
 
 तुमला हैँसाया हम भी खित्त हैँस्योँ नेगी जी।
 तुमला रुलाया हम भी घुट घुट रुँयौँ नेगी जी।
 तुमला खिलाया हम भी खट्ट खिल्योँ नेगी जी।
 तुमला खुदाया हम भी खट खुदेयाँ नेगी जी।
 
 तुमला नचाया हम भी रंगमत नच्योँ नेगी जी।
 तुमला सताया हम भी सत्योँआ नेगी जी।
 तुमला मनाया हम भी खट मन्योँआ नेगी जी।
 तुमला दिखाया हम भी दिखदै रै ग्योँ नेगी जी।
 
 अर एक भितरै की बात मी बतान्द नेगी जी।
 मायादार मेरू जब भी रूसाँद नेगी जी।
 तुमरा ही गीतूँ थै मी तेँथै सुणादू नेगी जी।
 दुई बोल सूणी खट्ट मान जाँद नेगी जी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नेतागिरी

दारू नि प्येंदु मि हे राम राम रम्म रम्म रम्म रम्म
सिकार नि खांदु , सिरी - सिरी ।
नेता समाज सुधारक छौंऊं ,
भज गोबिन्दम भजो हरि ॥

तुमारैं गुठयारो गोर छऊं , भोट डऴयाँ जरा देख चरी
जातिकु थातीकु भित्राकु भैराकु , "ख " अर "ब " कू ख्यालकरी
दारू कछमोळी तुमुनै खाण -
तुमारी जीत चा जीत मेरी । भज गोबिन्दम भजो हरि .... ॥

फिकर नि कर हे दरिद्रनोरण , लोन मंजूर करौलु त्यरु
तेरि ग़रीबि कि गवैई दयोलु , ऐसुभि हौऴ लगैदे म्यरु
गंठखुलै देजा करजा ल्हीजा -
आँखा बूजी अंगोठ धारी । भज गोबिन्दम भजो हरि .... ॥

बाब अर दादा भि नेता छा मेरा , मी भी छौं औलाद भि राली
नेतागिरी को ठेक्का लियुंचा , लाख जोड्यावा लाख दया गाळी
ई जोनिम भी वीं जोनिम भी -
नेता छौं नेता हि रौलु मरी । भज गोबिन्दम भजो हरि .... ॥

खादी पैर - पैरी छाल़ा पड्यांन , धारना हड़तालुन टुटिनि भटयूड
भाषण देकी जीब छणयेगे , गाळी सुणसुणी फुटुनि कन्दुड
कुर्सिका खातिर मर मिट जौलू -
छौड़ी नि सकदू नेता गिरी । भज गोबिन्दम भजो हरि .... ॥

गरीबू कि सेवाकु बर्त लिहयूँ चा , नेता भि छौं ठेकदार भि छौंऊ
ब्योला ब्योल्यूँकू बऴद भैंस्युकु , व्योपारी गलेदार भि छौंऊ
सबि कुछ छौं पर मनखि नि छौं मी -
दयब्ता बणयूँ छौं घड़ेलु धारी । भज गोबिन्दम भजो हरि .... ॥

खेत खल्याण बंटुलू सबुमा , येकि पुंगूडी वेका नौंऊं
बेरोजगारू रोजगार दिलाणु , दारू चुआणू गौंऊं गौंऊं
राजनीति भनाणा छिन लोग -
सुदि मुदि मेरु बदनाम करी । भज गोबिन्दम भजो हरि .... ॥

- नरेंद्र सिंह नेगी
(सुप्रसिद्ध कवि - गायक )

("मुट्ट बोटीकि रख" , पहाड़ पोथी से साभार )

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अकुलों माँ माया करी कैकी भी नि पार तरी
अकुलों माँ माया करी कैकी भी नि पार तरी
============================
जख तक मिसै जान्द
झूठा पीठ सौं खान्दू...... झूठा पीठ सौं खान्दू............. झूठा पीठ सौं खान्दू
देयूँ लेयूँ तन जान्दू
अपजश पायेन्दा हो हो
बेखुनी को रोयेंदा
अकुलों माँ माया करी
कैकी भी नि पार तरी
अकुलों माँ माया तरी .........कैकी भी नि पार तरी

Devbhoomi,Uttarakhand

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बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी


प्रीत सी कुंगली डोर सी छिन ये
पर्वत जन कठोर भी छिन ये
हमारा पहाडू की नारी.. बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी
 
बिन्सिरी बीटी धान्यु मा लगीन, स्येनी खानी सब हरचिन-२
करम ही धरम काम ही पूजा, युन्कई ही पसिन्यांन हरिं भरिन
पुंगड़ी पटली हमारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी
 
बरखा बतोन्युन बन मा रुझी छन, पुंगडा मा घामन गाती सुखीं छन
सौ सृंगार क्या होन्दु नि जाणी
फिफ्ना फत्याँ छिन गालोडी तिड़ी छिन
काम का बोझ की मारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी
 
खैरी का आंसूंन आंखी भोरीं चा,मन की स्याणी गाणी मोरीं चा
सरेल घर मा टक परदेश, सांस चनि छिन आस लगीं चा
यूँ की महिमा न्यारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी
 
दुःख बीमारी मा भी काम नि टाली,घर बाण रुसडू याखुली समाली
स्येंद नि पै कभी बिजदा नि देखि, रत्ब्याणु सूरज यूनी बिजाली
युन्से बिधाता भी हारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी
 
प्रीत सी कुंगली डोर सी छिन ये
पर्वत जन कठोर भी छिन ये
हमारा पहाडू की नारी.. बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी

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नरेन्द्र सिंह नेगी का नया ताजा तरीन राजनितिक व्यंग अब तुमी बथा !
भै बन्दू !
मै खुणि नेता ना , जन सेवक बोला
सेवक छौं मि तुमारी सेवा को ब्रत लियु छ मेरो
मिन सदानी तुमारो दुख दरद सुणी समझी
तुम भले ही मैथे आज चुनो टैम देखणा होला
पर मिल तुमारो दगड़ो कभि नि छोड़ी
खैरि तुमुन खै होली आंसू मिन बगैनी
ठोकर तुम पर लागि होली त पीड़ा मै फर हवे
कांडा तुम पर चुभिनी अर जिकुडु मेरो घुपे
बिना पाणी तीसा तुम रयाँ
पर कंठ मेरा सुखनी
बिना बिजलि अँधेरा मा तुम छा
अर जब्का जब्कि मैकू हवे
राशन पाणी टरकिणि तुमू रै त
भूको कबलाट मैकू हवे
बिना डाक्टर बिना द्वै दारू अस्पतालूमा
मोर्दा तुमरा मोरिनी अर अबाजू मेरो राई
अब तुमी बथा !
तुमारी सेवा मा क्या कमि कसर राखि मिन.............नरेन्द्र सिंह नेगी

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Narendra Singh Negi
April 18 ·
माया की खड़ी उकाळी
कट जंदिन दगड़ा मा
ब्याळि त्वी त बथाणी छई
बोल क्या बात च
मोण अच्छणा म धरीं च
तेरी माया मा
होरि मै से क्या चाणी छई
बोल क्या बात च
- श्रद्धेय श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी की कविता का एक अंश
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