हुड़की बौल
यो सेरि का मोत्यूं तुम भोग लगाला हो, यो गौं का भूमिया दैण हया हो। पहाड़ों में आषाढ़ और सावन के महीने में हुड़की बौल के यह स्वर अब धीरे धीरे इतिहास की वस्तु बनते जा रहे हैं। हुड़की का अर्थ हुड़का (खास पर्वतीय वाद्ययंत्र) और बौल का अर्थ श्रम है। पहाड़ के गांवों से पलायन बढ़ने के कारण खेतीबाड़ी के काम भी प्रभावित हुए हैं। रोपाई अब बहुत कम गांवों में लगाई जाती है। रोपाई के लिए लोगों को जुटाना कठिन हो जाता है। गांवों में सामूहिक श्रम की भावना कम होती जा रही है। लोग रोपाई के लिए मजदूरों की मदद लेते हैं। हुड़की बौल रोपाई के समय प्रचलित परंपरा रही है। गांव के लोग रोपाई लगाने के लिए जुटते। एक लोकगायक हुड़के की थाप में गीत गाता और रोपाई के काम में लगे लोग उसके स्वरों को दोहराते थे। इससे लोगों का मनोरंजन भी होता और काम भी जल्दी पूरा हो जाता। संगीत और श्रम का यह अदभुत मेल अन्यत्र नहीं मिलता था।
1970 के दशक तक हुड़की बौल का प्रचलन बहुत ज्यादा था। धीरे धीरे पहाड़ के गांवों से पलायन बढ़ा, लोग रोजगार के लिए देश के शहरों में बसते चले गए। यहीं से हुड़की बौल जैसी परंपरा लुप्त होने लगी। अध्येताओं ने हुड़की बौल को पहाड़ की लुप्त हो रही परंपरा में शामिल कर दिया है। हुड़की बौल के समय गाए जाने वाले गीतों में आस्था का पुट मिलता है। भूमिया देवता से प्रार्थना की जाती है कि हुड़की बौल में शामिल सभी लोगों का भला हो-
रोपारो, तोपारो बरोबरी दिया हो,
हलिया, बल्द बरोबरी दिया हो,
हाथ दिया छाओ, बियो दियो फारो हो,
पंचनामा देवा हो। (हे पंचनाम देवताओ, रोपाई के काम में लगे सभी को बराबर का हिस्सा देना, हल जोतने वाले और बैलों को बराबर हिस्सा देना, काम में हाथ तेजी से चले और बीज पर्याप्त हो जाए।)
हुड़की बौल के समय गाए जाने वाले एक प्रमुख गीत में बैल से भी बड़ी अपेक्षा की जाती है। (ए, बैल तू सीधे सीधे चल, सींग से लेकर खुरों तक इस खलिहाल को भर दे, ऐसा प्रयत्न कर कि चारों चौकोट, तल्ला मल्ला कत्यूर, कोसी वार पार सभी घाटियां की उर्वरता इस खलिहान में आकर समा जाए।)
सैल्यो बल्दा सैल्यो, सैल्यो,
सींग के ल्याले, खुर के ल्याले,
फिरि फिरि जालै खई भरि जालै,
गाई गिवाड़ की चारों चौकोट की,
तल्ला कत्यूर की, मल्ला कत्यूर की
कोसी वार की, कोसी पार की,
सैल्यो बल्दा, सैल्यो, सैल्यो।
हुड़की बौल के समय लोकगायक बड़ा मार्मिक आशीष देता है-
(जितनी धान की बालियां हैं उतनी ही डालियां हो जाएं, जितने गट्ठर हैं, उतने ही अनाज से भरे गोदाम हो जाएं।)
जतुक बाली, ततुक डाली,
जतुक खारा, ततुक भकारा।