Author Topic: Questions & Answers in Jod-चार आंखर (जोड़ में सवाल जवाब) लोक संगीत की विधा  (Read 25120 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ये दो लाइन
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द्वि मानिया तौली
सयारा की रमोली
पै तिपुरी महल मेरो
छाजा में बैठ रौली!

सत्यदेव सिंह नेगी

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यहाँ गीत उन सभी मित्रों को समर्पित है जो कभी न कभी किसी न किसी वजह मूर्ख बने हैं या फिर रोज बनते हैं    
देखा देखा देखा रे
ठग्या ननु पदान यखम
भलु छै यु पर
फसी गियाई कनि शरम
 
वे दिन त ननु पदान
खूब जोशम छाई
हु णु भी छाई नि किले
भाई चाटिंग कैर्याई

हैका दिन क्या बुन
दिदा खूब मजा आई
नौनी समझ जै था वेला
नौनु निकली ग्यई

भीतर लुक्यों ननु पदान
कनिकै अलु अब भैरम

देखा देखा देखा रे
ठग्या ननु पदान यखम
भलु छै यु पर फसी
गियाई कनि शरम

एक दिन ननु पदान कु
एक मेसेज आई
वे नंबर फार ननु
पदाना ला फ़ोन घुमाई 

दगडिया बनौलू तुम थै मी
नौनी ला बवाल चडम
उछली ग्यई ननु पदान
अब आलू मजा जीणम
 
बथायाँ खाता म ननु पदान
रुप्प्य धैरी आई   
घार म ऐगे ननु पदान
पखड फ़ोन फिर हथम

नंबर घुमाई की दिखंद
नंबर नी यु यखम
 
देखा देखा देखा रे
ठग्या ननु पदान यखम
भलु छै यु पर फसी
गियाई कनि शरम
 

हेम पन्त

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लो फिर दो मेरी तरफ से भी..

खल्दी है आरसि गाड़ि, हौरे परकार कि...
हिटे भलि मेरि सुवा की, बोली सरकार कि...

(जेब से अलग ही किस्म का दर्पण निकाला, मेरी प्रियतमा की चाल अच्छी है और आवाज तो जैसे सरकार की दी हुई है)

आंफि बुड़ि आफि फस्यो, जालि को बड़ुवा..
मुख ने देखनु तेरु, बचन लड़ुवा..

(मकड़ी अपने बुने जाल में खुद ही फंसती है. मैं तो बस तेरा बोलना ही सुन पाता हूं.. प्यारी सूरत नहीं देख पाता)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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1- घोटे जाली हींग , घोटे जालि हींग
नौ रूप्या को मोती ढाण्गो  सौ रूप्या को सींग , सबसे म्यारो मोती ढाण्गो
गुठ्यारो को  दांद    गुठ्यारो क दांद
हळस्यूं देखिक ल्म्स्त ह्वेई जांद ससे म्यारो मोती ढागो 
गुठ्यारो क दांद गुठ्यारो क दांद हुरु घास देखि च्चम खड़ो ह्वेई जांद सबसे मीरो मोती ढाण्गो
कलोड्यों  देखि बुड्या क्न घुरयोंद आंखी


२-    घुघती न बियाण ल़ा घुग्ती मोल
        घुग्ती न बियाण तै चैत का मैना
          घुग्ती बिये ज्ञ कारो बालण कु पूजा
          क्न घुग्ती तौंकी छई माणा   दूध
          घुग्ती की छांछ छोल़े छोलण सेर घीउ

By : Bhishma Kukreti

सत्यदेव सिंह नेगी

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उठि जावा निसंक जी उठि जावा निसंक जी पहाड़ बोगी ग्यई
उठि जावा निसंक जी पहाड़ बोगी ग्यई ऐ ............
तुम रावा निसंक जी तुम रावा निसंक जी राति डिनर म बांटा लाल बत्ती ल्यवा स्यूं कैबीनेट म ऐ .................
सोनिया जी ऐ गी नी सोनिया जी ऐ गी नी दिल्ली भाटी की तुम नि जै सका दूँ भाटी की ऐ .....................

हलिया

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    मित्रो इन प्रचलित “चार  आंखरों” को पहाड में अनेक अवसारो अनेक प्रकार से गाया जाने वाला ठैरा।  इन में पहले के दो आंखर तो गाने के बोलों को मिलाने  के लिये यूं ही कल्पना से जोड दिया जाने वाला हुवा जो कि गायक की कल्पनाशीलता और काबलियत  पर निर्भर होने वाला हुवा लेकिन आखिर के दो आंखर अपने में एक गूढ अर्थ लिये लिये  जिसका खास महत्व ठैरा।  कुछ प्रयास कर रहा हूं....
(हेम पंत ज्यू को और  पंकज महर ज्यू को मेरे से ज्यादा मालूम ठैरा हो उम्मेद है कि वो जरूर कुछ इस बारे में  बतायेंगे)
 
 
सेरि में उज्याडो खायो,
सफेदा  सांसि ले ।
आग लागो दीनो खानो,
धौ हुंची हंसी ले ॥
(भावार्थ:  कुछ देना या कुछ खिलाने से क्या फायदा, हंसते -  हंसाते रहो उसी से इच्छा पूरण  होती है).  (गूढार्थ :  बेमन से कुछ देने या खिलाने से अच्छा है साफ मन  से हंस्ते हंसाते रहो)
 
 
 
गाड तरी,गधेरि तरी,
कै रौली तरुंलो ।
तु सुवा अमर रये,
मैं आफी मरुंलो ॥
(अपने ‘सुवा’ अर्थात जीवनसाथी के लिये इस से बडी  कामना क्या हो सकते है = तू अमर रहना तेरे बदले में भले ही मैं मर जाऊं).


हल्द्वानी का पाला टुका,
खोदनि  नहर ।
या तो दीजा गैली माया,
या दीजा जहर 
(परिणय निवेदन का ऐसा स्वरूप देखा हैया  तो दिल की गहराई से प्यार कर अन्यथा जहर देदे )


अस्मानी जहाज उडो,
रंगून डाकै को ।
पंख हुनी उडी ऊनी,
मैं बिना पाखै को ॥
 (बिरह में ब्याकुल नारी अपने स्वामी को जो दूर सरहद पर  है इस तरह अपनी बिवसता का बयान कर रही है ‌   काश कि मेरे पंख होते -  उड कर तेरे  पार पहुंच जाती किंतु दुख की बात ये है कि मै बिना पंखों की हूं)

सत्यदेव सिंह नेगी

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बूते जला गैथ,
गैथों कु फाणु I   
बीरोंखाल कौथिक च प्यारी,
टक लगैकी आणू II

ठ्कुरौं  की गाड़ी,
गाड़ी कु हैंडल I
कौथिक मि कनिकै,
औलू मीम नि सैंडल II

बटा कु पुन्गुडू,
पुन्गड़ बुत्यां जौ I
सैंडल लियां छी तेकू प्यारी,
 तू उबर मा औऊ II

भमरै  कु बाजार,
बाजार मा गाड़ी I
कौथिक ता औलू मि,
पर मीमा नीच साड़ी II

ददा की दूकान,
टॉफी यख रसीली I
बौ मा भ्यजी तेकू प्यारी ,
साड़ी रंग नीली II

सत्यदेव सिंह नेगी

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चार आखर मेरे कब तक चेक करोगे भई

हेम पन्त

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नेगी जी आपके लिखे "चार आंखर" बहुत ’मस्त’ लगे... और हैं तो बताओ, मजा आ रहा है..

Devbhoomi,Uttarakhand

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नेगी जी आपके चार आखरों का बेसबरी से इन्तजार है

 

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