*** डेउड़ा खेल*** (स्रोत : सांस्कतिक कार्यक्रम, क्वीतड़, पिथौरागढ़)
तेरा बैतड़ी का कोलू, कभै नाइ पेल्या को न्यौल्या ।
सुण सुण सम्धी मेरा, सांच्ची मानो झूठि मानो,
बिना डेउड़ा लाये को खेलू,
कभै नाइ खेल्या को न्यौल्या ॥
सब है अल्गीइ गै छ, देहीमाणौं, की टुणी न्यौल्या ।
हारे हारौं मेरा सम्धी, पातल तोड़ी मुइ लै आयूं
साइ को बचन सुणी न्यौल्या ॥
हांगो झड़्यो पिपलु को, पात झड़्यो खिराई को न्यौल्या ।
शिव शिव राम राम, त्यो मेरो बचन होलो
लालमोती हिराइ को न्यौल्या ॥
ये घानघस्या कानई का लेक, घानघस्या घन न्यौल्या ।
बांचि रया मेरा सम्धी , औनई रया पार वार
मर्या कभै जन न्यौल्या ॥
हात की मुनड़ी मेरि तेरा परान की न्यौल्या ।
सुण सुण सम्धी मेरा, मुइ नाइ जाण्डो मुइ नाइ सुण्डो,
कर्म कलान की न्यौल्या ॥
माल झान्या मलकुखुड़ी, बै रुन्या तितरी न्यौल्या ।
दैव ज्यू ले के लेखे हो, हारे हारौं मेरा सम्धी,
करम भितरी न्यौल्या ॥