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Some Exclusive Kumaoni Folk Songs- कुछ प्रसिद्ध कुमाऊंनी लोकगीतों का संग्रह

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
From :Prayag Pande


बरसात का मौसम पुरे यौवन में है | गरजते काले बादल और कभी तेज तो कभी रिमझिम वर्षा के बीच रोजी - रोटी की तलाश में परदेश गए अपने प्रियतम की याद आना स्वाभाविक है | सो , लीजिये पेश है - बरसात के मौसम में अपने निष्ठुर प्रियतम से विछोह में व्यथित पहाड़ की वीरांगना के दर्द को व्यक्त करता बहुत पुराना कुमांऊनी ऋतु लोकगीत -
 
 सण सण सण मण सौंणाक ,
 रिमा झिमा दयो लागो दणाक |
 
 घनघोर बादली घमकी |
 गोरी बांकी बिजुली चमकी |
 
 तलि सारी मलि सारी हरिया |
 नदी नौला चुपटौला भरिया|
 
 कां देखीनो यो ऋतु यो मास ?
 चारै दिन रंगीलो चौमास |
 
 डीना काना झुरि गेछ हौली |
 साँस पड़ी सासु नि ऐ कौली |
 
 कसी काटूं पालुरी को घास |
 नी थामिनी हियै को निसास |
 
 जै कारण रंग छियो राज |
 कैंथैं कूं मैं ऊ घरै नै आज |
 
 कां छै भागी , आगरा कि दिल्ली ?
 आजि तक कुसलै नि मिली |
 
 घन तेरी बैरूंण पराणी|
 जोग्यानी सूं चीठी लै हराणी |
 
 बजी जाली माया को लपोड़ |
 झुरी खांछ जोड़ी  को बिछोड |
 
 भगवान कै  आला उ दिना |
 बिछुडिया मिलुंला जै दिना ||
 
 भावार्थ :
 जल धाराओं की कल - कल , छल -छल ध्वनि में सावन का संगीत सुनाई देता है |
 कभी रिमझिम वर्षा हो रही है तो कभी मूसलाधार |
 घने बादल उमड़ - घुमड़ कर चले आ रहे हैं |
 गोरी , बांकी , चपला चमक रही है |
 नीचे - ऊपर के सब खेतों में हरियाली छाई है |
 नदी - नाले और तलैया भरे हुए हैं |
 वर्षा ऋतु के समान ऋतु और सावन के समान माह और कहाँ दिखता है |
 यह रंगीला चार्तुमास चार दिन का है |
 पर्वत और वनों में कोहरा छाया है |
 संध्या हो आई है | अब सास कहेंगी कि बहु इतनी देर तक वन से नहीं लौटी |
 कैसे काटूं मैं अब यह घास ?
 मन की आकुलता तो थामे नहीं थमती |
 जिसकी बदौलत सारा सुख - चैन था ,
 किससे कहूँ मैं कि आज तो वह घर से दूर है |
 कहाँ , किस सुदूर प्रदेश में जा बसे हो , प्रिय ?
 तुम जाने आगरा हो या दिल्ली |
 आज तक तुम्हारा कुशल - समाचार तक न मिला |
 तुम्हारा निष्ठुर मन भी धन्य है |
 मुझ  जोगन के लिए तुम्हारा एक पत्र भी दुर्लभ हो गया |
 प्रेम के इस जंजाल को भी क्या कहें |
 प्रिय से बिछोह किस तरह मन - प्राण कचोट देता है |
 हे भगवान , क्या कभी वह दिन भी आएगा ,
 जिस दिन दो बिछुड़े हुए प्राणी फिर मिलेंगे ||
 
                       (कुमांऊँ का लोक - साहित्य )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


प्रयाग पाण्डे

हो सरग तारा , जुन्याली रात|
 को सुनलो यो मेरी बात ?
 पाणी को मसिक सुवा पाणी को मसिक |
 तू न्है गये परदेस मैं रूंली कसीक ?
 हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
 विरहा कि रात भागी , विरहा की रात |
 आखन वै आंशु झड़ी लागी वरसात |
 हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
 तेल त निमडी गोछ ,बुझरोंछ बाती |
 तेरी माया लै मेडी दियो सरपे कि भांति |
 हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
 अस्यारी को रेट सुवा, अस्यारी को रेट |
 आज का जईयां बटी कब होली भेंट |
 हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
 
  कुमांऊँ का लोक साहित्य से )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
प्रयाग पाण्डे यो सेरी  का मोत्यूं तुम भोग लागला हो |
 स्योव दिया विद हो |
 यों  भूमि  को  भूमियाँ बरदैन  हया हो |
 रोपारों   तोपारों  बरोबरी दिया  हो |
 हालिया  बलदा  बरोबरी  दिया हो |
 हात दिया छावा हो , बियों दिया फ़ारो हो |
 पंचनाम देवो हो !!
 
 भावार्थ -
 इस खेत मे पैदा होने वाले धानों के मोती के समान चावल आपको भोग लगायेंगे |
 हे देव ,आप छाया प्रदान कीजिये , वर्षा रोक लीजिये |
 हे इस भूमि के अधिपति देव , आप अनुकूल रहिये ,कृपालु रहिये |
 रोपाई के इन पौधों से टोकरी भर - भर कर धान दीजिये |
 हलवाहा और बैल समान रूप से परिश्रमी दीजिये |
 रोपाई करने वाले श्रमिकों को दक्षता दीजिये , उनके हाथ तेज चलें और
 पौधे सारे खेत के लिए पर्याप्त हों |
 हे पंचनाम देव , आप कृपा कीजिये !!
 
 (कुमाऊँ का लोक साहित्य )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
प्रयाग पाण्डे

कुमाऊनी लोक गीत और लोक संगीताक प्रेमियों लिजी आज भौत पुराण बाल गीत चै लै रयों | तो लियो आज य बाल गीतक आनन्द लीजियो _
 
 झुलील्ये झुली  भावा झुली लै |
 पुरवी को पिंगढ्यों लो |
 पछिम को हावा |
 झुली लै भावा |
 तेरी ईजू पलुरिया घास जाई रैछ |
 तेरा लिजिया भावा
 चुचि भरि ल्याली , चड़ी मारि ल्याली |
 चुचि खाप लैलै भावा |
 चड़ी खेल लगाले होलि लै होलि |
 चुंगरी तोड़लै भावा |
 खातडी फाड़लै |
 तेरि छत्तर राजगद्दी , बड़ी - बड़ी हौली लै |
 कुमवी को जौल खाले , अजुवा को पानी |
 गुदडी में सोई रौले .होलि लै होलि लै ||
 
 भावार्थ :
 ओ मेरे नन्हे , सो जा मेरे बच्चे |
 पूर्व की ओर से आयेगी पीली गेंद (सूर्य )|
 पश्चिम से आ रही होगी हवा |
 सो जा मेरे मुन्ने , सो जा |
 माँ तेरि गई है पुरलिया घास लाने |
 तेरे लिए ओ बच्चे
 वह स्तन पर दूध लायेगी , चिड़िया मार लायेगी |
 तू माँ का स्तन पान करेगा ओ नन्हे |
 तू चिड़िया से खेलेगा , सो जा मुन्ने सो जा |
 तू फिर चुगरा तोड़ेगा |
 और अपने गद्दे फाडेगा |
 तेरा छत्र होगा , बड़ी राजगद्दी होगी |
 तू कुमई की खिचड़ी खायेगा और सोते का पानी पीएगा |
 गुदड़ी में सोया रहेगा , सो जा मुन्ने सो जा ||
                           - कुमाऊ का लोक साहित्य

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
प्रयाग पाण्डे


बेटी की विदाई के समय का कुमांऊनी संस्कार गीत _
 
 काहे कि छोडूँ मैं एजनी पैजनी काहे कि लम्बी कोख ए ?
 बाबु कि छोडूँ मैं एजली पैजली माई कि लम्बी कोख ए |
 काहे कि छोडूँ मैं हिल मिल चादर , काहे कि रामरसोई ए ,
 भाई कि छोडूँ मैं हिल मिल चादर , भाभि कि रामरसोई ए |
 छोटे - छोटे भाईन पकड़ी पलकिया हमरी बहिन कांहाँ जाई ए ,
 छोडो - छोडो भाई हमरी पलकिया , हम परदेसिन लोक ए |
 जैसे जंगल की चिड़ियाँ बोलै , रात बसे दिन उडि चलै ,
 वैसे बाबुल का घर हम धिय सोहें , रात बसे दिन उडि चलै |
 बाबुल घर छाडी ससुर का देस , छाड़ो तुम्हारो देस ए ,
 भाईन घर छाडी जेठ का देस , छाड़ो तुम्हारो देस ए |
 माई कहे बेटी नित उठि अइयो, बाबु काहे छट मास मे,
 भाई कहे बैना काज परोसन ,भाभि कहे क्या काज ए ||
 
 ( कुमांऊँ का लोक साहित्य )

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