Author Topic: Some Exclusive Kumaoni Folk Songs- कुछ प्रसिद्ध कुमाऊंनी लोकगीतों का संग्रह  (Read 22569 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are posting here some exclusive Kumoani Folk Songs of Uttarakhand which have been provided by our Merapahad Facebook Community Members.

I am sure you would like these songs..

M S Mehta
---------

From  - Prayag Pandey
मित्रो ! वर्षा ऋतु का सुआगमन हो गया है | रिमझिम वर्षा ने प्यासी धरती की प्यास बुझा दी है |  भीषण गर्मी से बेहाल सृष्टि तर हो गई है | वर्षा के फुहारों के साथ ही पंछियों के सुमधुर स्वर सुनाई देने लगे हैं |  हरेक प्राणी उल्लास से भर गया है | वर्षा ऋतु के सुआगमन के इस मौके पर आज आपको कुमांऊँ का बहुत पुराना ऋतु लोक गीत से रूबरू करा देते है | तो लीजिये रिमझिम वर्षा के बीच इस लोक गीत का  भी आनन्द लीजिये
--

 रितु  ऐ  गे  रणा  मणी ,  रितु  ऐ  रैणा |

 डाली में कफुवा वासो , खेत फुली दैणा |
 कावा   जो  कणाण , आजि रते वयांण |
 खुट   को  तल  मेरी आज  जो  खजांण |
 इजु मेरी  भाई  भेजली  भिटौली  दीणा |
 रितु  ऐ  गे  रणा  मणी ,  रितु  ऐ  रैणा |
 वीको बाटो मैं चैंरुलो |
 दिन भरी देली मे भै रुंलो |
 वैली रात देखछ मै लै स्वीणा |
 आगन बटी कुनै ऊँनौछीयो -
 कां हुनेली हो मेरी वैणा ?
 रितु रैणा , ऐ गे रितु रैणा |
 रितु  ऐ  गे  रणा  मणी ,  रितु  ऐ  रैणा ||

 भावार्थ :-

 रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती |
 डाल पर "कफुवा " पक्षी कुजने लगा | खेतों मे सरसों फूलने लगी |
 आज तडके ही जब कौआ घर के आगे बोलने लगा |
 जब मेरे तलवे खुजलाने लगे , तो मैं समझ गई कि -
 माँ अब भाई को मेरे पास भिटौली देने के लिए भेजेगी |
 रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती |
 मैं अपने भाई की राह देखती रहूंगी |
 दिन भर दरवाजे मे बैठी उसकी प्रतीक्षा करुँगी |
 कल रात मैंने स्वप्न देखा था |
 मेरा भाई आंगन से ही यह कहता आ रहा था -
 कहाँ होगी  मेरी बहिन ?|
 रुन झुन करती ऋतु आ गई है | ऋतु आ गई है रुन झुन करती ||

                                                  ( कुमांऊँ  का लोक साहित्य )


Courtesy

Prayag Pande

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Prayag Pande बेटी की विदाई के समय गिदारों द्वारा गए जाने वाला कुमांऊनी संस्कार गीत -------

 हरियाली खड़ो मेरे द्वार , इजा मेरी पैलागी ,इजा मेरी पैलागी |

 छोडो -छोडो ईजा मेरी अंचली,छोडो -छोडो काखी मेरी अंचली ,
 मेरी बबज्यु लै दियो कन्यादान , मेरा ककज्यु लै दियो सत्यबोल ,
 इजा मेरी पैलागी |
 इजा मेरी पैलागी |
 छोडो -छोडो बोजी मेरी अंचली , छोडो -छोडो बहिना ,मेरी अंचली ,
 मेरे भाई लै दियो कन्यादान , मेरे भिना लै दियो सत
्यबोल,
 इजा मेरी पैलागी |
 इजा मेरी पैलागी |
 छोडो -छोडो मामी मेरी अंचली , मेरे मामा लै दियो कन्यादान ,
 इजा मेरी पैलागी ,इजा मेरी पैलागी |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यो सेरी  का मोत्यूं तुम भोग लागला हो |
 स्योव दिया विद हो |
 यों  भूमि  को  भूमियाँ बरदैन  हया हो |
 रोपारों   तोपारों  बरोबरी दिया  हो |
 हालिया  बलदा  बरोबरी  दिया हो |
 हात दिया छावा हो , बियों दिया फ़ारो हो |
 पंचनाम देवो हो !!

 भावार्थ -

 इस खेत मे पैदा होने वाले धानों के मोती के समान चावल आपको भोग लगायेंगे |
हे देव ,आप छाया प्रदान कीजिये , वर्षा रोक लीजिये |
 हे इस भूमि के अधिपति देव , आप अनुकूल रहिये ,कृपालु रहिये |
 रोपाई के इन पौधों से टोकरी भर - भर कर धान दीजिये |
 हलवाहा और बैल समान रूप से परिश्रमी दीजिये |
 रोपाई करने वाले श्रमिकों को दक्षता दीजिये , उनके हाथ तेज चलें और
 पौधे सारे खेत के लिए पर्याप्त हों |
 हे पंचनाम देव , आप कृपा कीजिये !!

 (कुमाऊँ का लोक साहित्य )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ऋतु औनी रौली भंवर उडला बलि,
हमारा मुलुका भंवर उडला बलि |
दै खायो पात मे भंवर उडला बलि,
के भलो मानी छो भंवर उडला बलि,
ज्यूनाली रात मे भंवर उडला बलि,
के भलो मानी छो भंवर उडला बलि,
है जा मेरी भैया भंवर उडला बलि,
यो गैली पातला भंवर उडला बलि,
पंछी वांसनया भंवर उडला बलि,
है जा मेरी भैया भंवर उडला बलि,
कविता की लेख भंवर उडला बलि,
सुणो भाई बन्दों भंवर उडला बलि,
मिली रया एक भंवर उडला बलि,
सुणो भाई बन्दों भंवर उडला बलि,
ऋतु औनी रौली भंवर उडला बलि,
हमारा मुलुका भंवर उडला बलि |

-मोहन सिंह रीठागाड़ी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Goriya Devta Jagar's few line in kumaoni.

गोरिया ,

धतिए , धात सुण छै, दुखिये , पुकार सुण छै .
दयादानी छै , क्व्ठ ग्यानी छै
पंचनाम द्याप्तो - क भान्ज छै .
राजवंशी कुवर छै , भुजावली छै .
महाराजा को राजा छै
बंदीक खुलास कर छै ,भूड़ पड़ी क बाट बतुछे
अन दिछे , धन दिछे , अन्यायी क दंड दिछे .
भंडार भर छे ,नंग चिरी न्यो कर छै ,
भक्तो क लाज धर छै ,दूद ,दूद पाणी , पाणी कर छै

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Song on Bhumiya Devta.

ओ आज देवा वरदैन है जाया ,ओ भूमियाल देवो |
ओ देवी तुमि स्योव दियो बिद,ओ हो भूम्याल देवो |
ओ आज देवा वरदैन है जाया ,ओ हो भूम्याल देवो |
ओ देवा खोई को गनेस , ओ हो गनेस देवा |
ओ देवा मोरी को नरेना , ओ हो नरैन देवा |
ओ आज देवा वरदैन है जाया ,ओ हो बासुकी नागा |
ओ आज देवा वरदैन है जाया ,ओ सरग इन्दर |
ओ आज देवा वरदैन है जाया ,ओ बागेसर बागनाथा |
आज देवा तुमन चडूलो रे सुना को कलस ||

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यो सेरी  का मोत्यूं तुम भोग लागला हो |
 स्योव दिया विद हो |
 यों  भूमि  को  भूमियाँ बरदैन  हया हो |
 रोपारों   तोपारों  बरोबरी दिया  हो |
 हालिया  बलदा  बरोबरी  दिया हो |
 हात दिया छावा हो , बियों दिया फ़ारो हो |
 पंचनाम देवो हो !!
 
 भावार्थ -
 इस खेत मे पैदा होने वाले धानों के मोती के समान चावल आपको भोग लगायेंगे |
 हे देव ,आप छाया प्रदान कीजिये , वर्षा रोक लीजिये |
 हे इस भूमि के अधिपति देव , आप अनुकूल रहिये ,कृपालु रहिये |
 रोपाई के इन पौधों से टोकरी भर - भर कर धान दीजिये |
 हलवाहा और बैल समान रूप से परिश्रमी दीजिये |
 रोपाई करने वाले श्रमिकों को दक्षता दीजिये , उनके हाथ तेज चलें और
 पौधे सारे खेत के लिए पर्याप्त हों |
 हे पंचनाम देव , आप कृपा कीजिये !!
 
 (कुमाऊँ का लोक साहित्य )

Provided by Prayag Pande

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कुमाऊनी लोक गीत और लोक संगीताक प्रेमियों लिजी आज भौत पुराण बाल गीत चै लै रयों | तो लियो आज य बाल गीतक आनन्द लीजियो _

 झुलील्ये झुली  भावा झुली लै |

 पुरवी को पिंगढ्यों लो |
 पछिम को हावा |
 झुली लै भावा |
 तेरी ईजू पलुरिया घास जाई रैछ |
 तेरा लिजिया भावा
 चुचि भरि ल्याली , चड़ी मारि ल्याली |
 चुचि खाप लैलै भावा |
चड़ी खेल लगाले होलि लै होलि |
 चुंगरी तोड़लै भावा |
 खातडी फाड़लै |
 तेरि छत्तर राजगद्दी , बड़ी - बड़ी हौली लै |
 कुमवी को जौल खाले , अजुवा को पानी |
 गुदडी में सोई रौले .होलि लै होलि लै ||

 भावार्थ :

 ओ मेरे नन्हे , सो जा मेरे बच्चे |
 पूर्व की ओर से आयेगी पीली गेंद (सूर्य )|
 पश्चिम से आ रही होगी हवा |
 सो जा मेरे मुन्ने , सो जा |
 माँ तेरि गई है पुरलिया घास लाने |
 तेरे लिए ओ बच्चे
 वह स्तन पर दूध लायेगी , चिड़िया मार लायेगी |
 तू माँ का स्तन पान करेगा ओ नन्हे |
 तू चिड़िया से खेलेगा , सो जा मुन्ने सो जा |
 तू फिर चुगरा तोड़ेगा |
 और अपने गद्दे फाडेगा |
 तेरा छत्र होगा , बड़ी राजगद्दी होगी |
 तू कुमई की खिचड़ी खायेगा और सोते का पानी पीएगा |
 गुदड़ी में सोया रहेगा , सो जा मुन्ने सो जा ||
                           - कुमाऊ का लोक साहित्य

Courtesy - Prayag Pandey

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हो सरग तारा , जुन्याली रात|
को सुनलो यो मेरी बात ?
पाणी को मसिक सुवा पाणी को मसिक |
तू न्है गये परदेस मैं रूंली कसीक ?
हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
विरहा कि रात भागी , विरहा की रात |
आखन वै आंशु झड़ी लागी वरसात |
हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
तेल त निमडी गोछ ,बुझरोंछ बाती |
तेरी माया लै मेडी दियो सरपे कि भांति |
हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
अस्यारी को रेट सुवा, अस्यारी को रेट |
आज का जईयां बटी कब होली भेंट |
हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Prayag PandeAugust 7महंगाई की मार से  रोजमर्रा के जीवन में पेश आ रही परेशानियों को व्यक्त करता एक बहुत पुराना लोक गीत आपके लिए ढूढ  कर लाया हूँ | सो लीजिये इस कालजयी लोक गीत का लुत्फ़ उठाईये ------

 तिलुवा बौज्यू घागरी चिथड़ी , कन देखना आगडी भिदडी |

 खाना - खाना कौंड़ी का यो खाजा , हाई म्यार तिलु कै को दिछ खाना |
 न यो कुड़ी पिसवै की कुटुकी , चावल बिना अधियाणी खटकी |
 साग पात का यो छन हाला , लूण खाना जिबड़ी पड़ छाला |
 न
यो कुड़ी घीये की छो रत्ती , कसिक रैंछ पौडों की यां पत्ती |
 पचां छटटा घरूं छ चा पाणी , तै पर नाती टपुक सु  चीनी |
 धों धिनाली का यो छन हाला , हाय मेरा घर छन दिनै यो राता |
 दुनियां में अन्याई है गई , लडाई में दुसमन रै गई |
 सुन कीड़ी यो रथै की वाता , भला दिन फिर लालो विधाता |
 साग पात का ढेर देखली , धों धिनाली की गाड बगली |
 वी में कीड़ी तू ग्वाता लगाली ||

 भावर्थ :

 ओ तिलुवा के पिताजी , देखो यह लहंगा चीथड़े हो गया है , देखना यह फटी अंगिया |
 खाने को यह भुनी कौणी रह गई , मेरे तिलुवा को कौन खाना देगा |
 इस घर में मुट्ठी भर भी आटा नहीं , पतीली में पानी उबल रहा है , पर चावल नहीं हैं |
 साग सब्जी के वैसे ही हाल है , नमक से खाते - खाते जीभ में छाले पड़ गए हैं |
 इस घर में तो रत्ती भर भी घी नहीं है , अतिथियों को कैसे निभाऊ |
 पाचवें - छठे दिन चाय बनाने के लिए पानी गर्म करती हूँ , पर घर में चखने भर को चीनी नहीं है |
 वैसा ही हाल दूध - दही का है , हाय , मेरे घर तो दिन होते ही रात पड़ गई |
 संसार में अन्याय बढ़ गया है , लडाई - झगड़ों में लोग एक - दुसरे के शत्रु बन गए हैं |
 ओ कीड़ी , तुम मतलब की यह बात सुनो , विधाता हमारे अच्छे दिन फिर लौटा देगा |
 तुम साग - सब्जी के ढेर देखोगी इस घर में , दूध - दही की नदियाँ बहेंगी ,
 और कीड़ी तुम उसमें गोते लगाओगी ||

 (कुमांऊँ का लोक साहित्य )

 

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