Author Topic: Unknown Folk Singers Of Uttarakhand - उत्तराखंड के बेनाम लोक गायक  (Read 33622 times)

Rachana Bhagat

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bahut accha topic hai es se mujh ko kae uttarakhand ki traditional folk music or dance ke baare mai pata chala. These type of topics are very beneficial for the young generation so that they can know more about the real hidden traditional talents of uttarakhand.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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You are right Rachan Ji. There might be many more such hidden talent in UK which needs recognition.


bahut accha topic hai es se mujh ko kae uttarakhand ki traditional folk music or dance ke baare mai pata chala. These type of topics are very beneficial for the young generation so that they can know more about the real hidden traditional talents of uttarakhand.

पंकज सिंह महर

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साथियो,
      कुछ गायक ऎसे भी हुये जिन्होंने नाम तो कमाया, वे लोकप्रिय भी हुये, लोगों ने उन्हें सराहा भी, लेकिन अब वह गायक कहीं गुमनाम से हो गये हैं, ऎसे ही एक गायक हैं,
श्री प्रकाश रावत,  यह कलाकार ९० के दशक में कुमांउनी गायकी का बेताज़ बादशाह माना जाने लगा, इनकी पहली कैसेट "मेरी रंगीली सोर" की लोकप्रियता इतनी ज्यादा हुई कि दूसरा कैसेट टी-सीरीज ने निकाला था. यह अपने गीत स्वयं लिखते हैं और संगीत भी लगभग अपना ही रखते हैं और आवाज़ का तो क्या कहना:
                        लेकिन आज यह कलाकार कहीं गुम सा हो गया है, हमारा प्रयास होना चाहिये कि ऎसे लोगों को हम एक मंच उपलब्ध करायें.

पंकज सिंह महर

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प्रकाश जी अपने गीतों में स्थानीय सरल शब्दों का प्रयोग करते हैं,

जैसे "चाड़ा, पुतिला, उड़नी चारों ओर, तेरी बलाई ल्यूह्लो, मेरी रंग रंगीली सोर"
"बुड़ कै गै, बुड़ कै गै, पच्चीसे उमर में खड़यूनी बुड़ कै गै, ध्वाख दी गै"
कुछ नेपाली पुट लिये हुये " ओ लटठी टेके बोजो बोकै, ल्याऊं-ल्याऊं-ल्याऊं, दिन मेरा बितिया हजूर ल्याऊं-ल्याऊं-ल्याऊं"  यह गाना मैने लखनऊ एक शादी में गाया था और ये इतना हिट हुआ कि उस दोस्त की शादी में सिर्फ ल्याऊं-ल्याऊं-ल्याऊं ही बजा और वह आज भी मुझसे कहता है कि "तुमने मेरी शादी की कैसेट खराब कर दी, पूरी शादी में ल्याऊं-ल्याऊं-ल्याऊं के अलावा और कुछ नहीं है"...!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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We should try to bring such Singer on limelight once again.


प्रकाश जी अपने गीतों में स्थानीय सरल शब्दों का प्रयोग करते हैं,

जैसे "चाड़ा, पुतिला, उड़नी चारों ओर, तेरी बलाई ल्यूह्लो, मेरी रंग रंगीली सोर"
"बुड़ कै गै, बुड़ कै गै, पच्चीसे उमर में खड़यूनी बुड़ कै गै, ध्वाख दी गै"
कुछ नेपाली पुट लिये हुये " ओ लटठी टेके बोजो बोकै, ल्याऊं-ल्याऊं-ल्याऊं, दिन मेरा बितिया हजूर ल्याऊं-ल्याऊं-ल्याऊं"  यह गाना मैने लखनऊ एक शादी में गाया था और ये इतना हिट हुआ कि उस दोस्त की शादी में सिर्फ ल्याऊं-ल्याऊं-ल्याऊं ही बजा और वह आज भी मुझसे कहता है कि "तुमने मेरी शादी की कैसेट खराब कर दी, पूरी शादी में ल्याऊं-ल्याऊं-ल्याऊं के अलावा और कुछ नहीं है"...!


हेम पन्त

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प्रकाश दा पिथोरागढ़ के नैनी-सैनी गाँव के रहने वाले हैं. उनके गानों ने कुछ साल पहले बहुत धूम मचायी थी.  पति-पत्नी की सामान्य छेड़छाड़ पर आधारित उनका यह गाना बेमिसाल है  


ने खानु-  ने खानु कुछी, नौ रोटा खा जाछी,  

हेम पन्त

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प्रकाश दा के कुछ और लोकप्रिय गाने

पानी पिले दे पनेरा पानी, तेरी खुटी सलाम....

की भलो कौतिक जौलाजीबी या...

सब ग्या नौकरी में... मैं घरे हालिया

कैथे जन कया दाज्यु..... स्यानी ले हानि राख्यु

पंकज सिंह महर

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प्रकाश दा पिथोरागढ़ के नैनी-सैनी गाँव के रहने वाले हैं. उनके गानों ने कुछ साल पहले बहुत धूम मचायी थी.  पति-पत्नी की सामान्य छेड़छाड़ पर आधारित उनका यह गाना बेमिसाल है  


ने खानु-  ने खानु कुछी, नौ रोटा खा जाछी,  


 मजा आ गया हेम दा,..........
ने खानु-  ने खानु कुछी, नौ रोटा खा जाछी,
नान्तिन बूढा बाड़ी, चाईयां रै जानी,
काम धन्धा का दिन आया त ह्वै जांछी बीमार,
खान खिन सब हैं पैली, ह्वै जांछी तैयार.... ने खानु-  ने खानु कुछी, नौ रोटा खा जाछी,"

हेम पन्त

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प्रकाश दा का एक और दिल छू लेने वाला गाना जो बहुत पुरानी पहाडी धुन पर आधारित है

कि कूनू कै भैर..कैथे कूनू... , को सुनलो कि कूनू कै भैर
कलेजी दि भैर... पराया आपन ने हुना... कलेजी दि भैर 

पंकज सिंह महर

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साथियो,
       आज एक नये उभरते गायक का परिचय आपसे करा रहा हूं
उत्तराखण्ड विधान सभा की कैंटीन में सर्विस ब्वाय का काम करने वाला कुन्दन सिंह कोरंगा रात में समय निकाल कर गायकी के लिये रियाज करता है और समय मिलने पर गीतों की रिकार्डिंग करता है, गरीबी से लड़्ता और जिजीविषा के लिये कैंटीन में काम कर भी संगीत की साधना करने वाला यह अनाम गायक वास्तव में सराहना का पात्र है,
      अभी "कैकी चेली होगी" शीर्षक से एक कैसेट हाल ही में बाजार में निकला है, जिसके गीत जगदीश कोरंगा ने लिखे हैं, संगीत तैयार किया है, अमित वर्मा ने. इसके निर्माता हैं जितेन्द्र मर्तोलिया, २१ सेन्चुरी फ़िल्मस, धन्तोली, पो- कान्डे (बेरीनाग), पिथौरागढ़.

 

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