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Dr Lalit Mohan Pant, World's Fastest Surgeon from Khantoli, Uttarakhand डॉ ललित

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Lalit Mohan Pant प्रश्न ? धुँध ?? प्यास ???
 
 प्यास !
 तुम हिमनद की तरह
 बहती रही हो
 मेरे भीतर
 और मेरी ऊष्मा
 चुकती रही है
 तुम्हारी थाह पाने को
 धुँध !!
 तुम गहराते गये हो
 और मेरी दृष्टि
 तुम्हें भेदने के प्रयास में
 शिथिल होती रही
 हर बार
 प्रश्न !!!
 मैं ढोता रहा
 तुम्हारा बोझ
 रीढ़ के दोहरे होने तक
 और चलता रहा
 निरंतर
 अनंत से प्रलय तक
 ताकते हुये आसमान को
 सौंपता रहा हूँ
 पीढ़ियों को
 तेरा विश्वास
 स्वयं खाली हाथ
 निरुत्तर
 प्रश्न ? धुँध ?? प्यास ???
 
 -ललित मोहन पन्त
 24.01.2013
 1.41 रात्रि

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Lalit Mohan Pant जाँछा हो दाज्यू जाओ
 जाँछा हो बोज्यू जाओ
 एक अरज मेरी कसम
 गाँठ बादी  ल्ही  जाओ .जाँछा हो दाज्यू जाओ
 
 जन भूलिया यो पहाड़
 पात में आईं गंग गाड़ ..
 धार नौलन कें जो जमें दीं
 ह्यूँ न क जस जाड़ ...जाँछा हो दाज्यू जाओ
 
 याद धरिया याँ का त्यारा
 और उनरा पेट बारा ...
 बग्वाली च्यूड़ ..नौरात्रि हर्याव 
 घुघूती बंजार होलि होल्यारा ..जाँछा हो दाज्यू जाओ
 
 कसी भुलोला यो काफ़ल ..
 हिसालू किर्मड़ और मेहल
 पुलम  पाङर आलुपोखर ..
 आड़ु जस रसीला फल ... जाँछा हो दाज्यू जाओ
 
 को भुललो याँ  की शान
 डान ना धुरा द्याप्ता थान ..
 जागरने की जगरिया तान
 हुड़ुक्ये कि हुड़ुक चाँचरी गान ...जाँछा हो दाज्यू जाओ
 
 गों गध्यारा जब याद आला
 झ्वाल में बादि अल्मड़ा बाल ...
 काखि  में च्योलो बोजी बगल
 दाज्यू हो आब कदिन आला ...जाँछा हो दाज्यू जाओ
 
 -ललित मोहन पन्त

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Kumaoni Poem by Dr Lalit Mohan Pant
राज कि धन मि धन होsss
 राज कि धन मि  धन
 
 फसकन कि फराव करूँ
 अत्तरे भरूँ  चिलम
 द्वि बखत क खाण हे जाँछ
 के करूँ जोड़ि धन ?..राज कि धन मि धन होsss
 
 हौ हौ  बल्दा कर ने सकूँ
 गाव पड़ी छ जनेउ
 सैणी म्यारा गाड़ कमै ल्हिं
 जन पड़ौ कति भेउ ...राज कि धन मि धन होsss
 
 पोखर फल्लास दिन काटी जाँ
 खल्त्य रूँ जब लग राजि
 गड़ भिड़ कि को करूँ फिकर
 ब्वारी टीप ले लागि बाजि ....राज कि धन मि धन होsss
 
 द्याप्त ने की भूमि छ यो
 जो पुजूँ वी की भलाई
 वी को जड़ मूल नटीणों
 जैतें मीले ऊ घत्याई .....राज कि धन मि धन होsss
 
 -ललित मोहन पन्त

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
ड़ुआ गाड़ा इचाव बैठि चै रैछयुं तुम आला .....
 by Lalit Mohan Pant on Monday, February 4, 2013 at 1:01am ·
 मड़ुआ गाड़ा इचाव बैठि चै रैछयुं तुम आला .
 सड़का भिड़ी किनार बैठि चै रेछ्युं तुम आला .
 
 कतुकै  गाड़ी ठेला न्हे गयीं
 एक आजि  बीति ग्ये ब्याला
 लेखी राखो छयो चार त्वाल कि 
 नथुलि दिगाड़ ल्याला ..........मड़ुआ गाड़ा इचाव बैठि
 
 आँसु ले म्यारा सुखि गईं हो
 ठठरी गेछ काया
 ओ सुआ यो कैछें पुछूँ
 उ घर किलै  नि आया ?.........मड़ुआ गाड़ा इचाव बैठि
 
 जम्में  बरस है गईं हो
 पलटन में जाईं
 म्यारा मन में भैम हे रैछो
 मेरि सुध किले नि आई ?......मड़ुआ गाड़ा इचाव बैठि
 
 बाड़  में जब काव बासँ छ
 झ्यास हई  जाँछी  ...
 झन भल हो तेरो परुली
 आक्छिं करी  जाँछी  ..... ....मड़ुआ गाड़ा इचाव बैठि
 
 - डॉ .ललित मोहन पन्त

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Lalit Mohan Pant इतना ही बहुत है कि तेरी निगाह भर हो ....
 
 इतना ही बहुत है कि तेरी निगाह भर हो
 कब फुनगियों पे मेरी आई लाली या ओस जम गई ?
 
 कब किसी ने तिरछी निगाह से देखा मुझको
 कब कैसे कोई नन्ही सी शाख नम गई ?
 
 कब बेख़ौफ़ हवाओं ने झिंझोड़ा मुझको
 कब किस खौफ़ से मेरी साँस थम गई ?
 
 कब जिंदगी ने बाँहों में झुलाया मुझको
 कब आवारा बादलों से मेरी रार ठन गई ?
 
 कब पत्ते झरे, बावरा बसंत छू गया मुझको
 कब रूमानियत मेरी छाँह में रम गई ?
 
 कब रिमझिम फुहारों ने भिगोया मुझको
 कब रात ख़्वाबों -ख़यालों से सन गई ?
 
 इतना ही बहुत है कि तेरी निगाह भर हो
 कब फुनगियों पे मेरी आई लाली या ओस जम गई ?
 
 - डॉ.ललित मोहन पन्त
 7.2.2013
 04.09 सुबह

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