From -Lalit Mohan Pant
होली ... मन तो है सबके जीवन में, छायें टेशू और गुलाल .
गली मोहल्लों चौराहों पर, सजी हुई थी होली
दिन डूबा फिर रात हो गई, धधक रही थी होली .
देखा नहीं किसी ने, अबके भी प्रह्लाद जल गया
बरसों से इस बार ,आज भी फ़फ़क रही थी होली .
बच कर सारी भीड़ से, जब भीतर झाँका का हमने
उफ़न रहा है लावा, अब भी भभक रही थी होली .
तारे जी के टट्टे , और बल्ली कल्लू के टपरे की
जला रहे थे मनचले ,पर झिझक रही थी होली .
किसी किसी की होली होली, और किसी की होली
झुलस गया परिवार किसी का, सुबक रही थी होली .
सुनी न कोई फाग न ढपली, न रंगों की बरसात
याद आ गया बचपन, कैसी सरस रही थी होली .
भाग रहा सपनों के पीछे , कैसे ये हुजूम है सारा
यहाँ वहां सड़कों पे ,पीनक में बहक रही थी होली .
मन तो है सबके जीवन में, छायें टेशू और गुलाल
हो वसंत मन आँगन में, कहें थिरक रही थी होली .
-ललित मोहन पन्त