Lalit Mohan Pant तेरे नूर से अँधेरे हर शब होते रहे फ़ना ....
उलझे सवाल मेरे तेरे मुश्किल जवाब से
पढ़ी थी जिंदगी जाने किस किताब से .
तेरे नूर से अँधेरे हर शब होते रहे फ़ना
सानी नहीं है कोई तेरा उस महताब से .
पिघलती रही मुसल्सल तेरी ही ताब से
ये बर्फ जो न पिघली कभी आफताब से .
यार उस कशिश से घायल हैं आजतक
उसने तो यूँ ही हमको देखा था हिज़ाब से .
किस्मत की लकीरें हथेलियों में चाहिये
होता नहीं है हासिल सब इन्तिखाब से .
शामिल हैं बेचैनियों में मेरी वो आजकल
भेजी इनायतें मुझको जिसने बेहिसाब से .
-ललित मोहन पन्त
21.04.2013
06.00शाम