Author Topic: Dr Lalit Mohan Pant, World's Fastest Surgeon from Khantoli, Uttarakhand डॉ ललित  (Read 26818 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Lalit Mohan Pant
बादल सरकार लिखित  प्रो सतीश मेहता निर्देशित स्ट्रीट प्ले "जुलूस "में बूढ़े (अतीत )की भूमिका में, साथ में पृथ्वी सांखला ,मुन्ना (भविष्य ) की भूमिका में ...मेरे द्वारा भरी जवानी में अभिनीत  इस भूमिका में लोग मुझे पहचान नही पाते थे ...इस भूमिका  के लिये हर एक लालायित रहता था ...तब मैं खंडवा जिले में पदस्थ था ... मुझे पीलिया हो गया था ...obstructive jaundice -serum bilirubin 22 था ..MYH के डोक्टोर्स वार्ड में भर्ती था मुझे खबर आई की महू में शो है ..मैं किसी भी तरह यह अवसर चूकना नहीं चाहता था .....मैंने अपनी ड्रिप निकाली  और महू जाकर नाटक करके वापस आ कर भर्ती  हो गया ... जूनून था.... जिंदगी दाँव  पर लगा  दी ...पता नहीं अच्छा किया या गलत ...........मैं जानता  हूँ प्रश्न ही  मूर्खता पूर्ण है ..



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Lalit Mohan Pant
जब हमने आंखरी बार गाँव छोड़ा ...हमें विदा देते हुए घर के साथ गाँव के लोग ....ये वो घर है जहाँ मेरा बचपन बड़ा हुआ ...तब न जाने कैसे इस में हमारा परिवार ही नहीं  मेहमान भी समा जाते थे ...अब इस में मैं झुक कर भी अंदर नहीं जा पाउँगा ...इस लिए शायद उसने अपनी छत खोल दी है....यादें अनियंत्रित हो कर आँखोंके सामने  नाचने लगी   हैं ....पर क्या सब कुछ् बताना जरूरी है ?...पता नहीं ??? चलो बता देता हूँ एक और अजूबी बात ....चित्र के दायें कोने के पास हमारा गोठ (kichen ) होता था ...मेरी दादी सुबह पास मे नौले (पानी का स्त्रोत )से नहा कर आती  थी..और मैं उनींदा ही उसके स्तनों से चिपट जाता था  मैं तब 4-5 वर्ष का हो चूका था दादी 50 के पार होंगी ...एक दिन् मैंने दादी को बताया दादी मीठा लग रहा है  उसे आश्चर्य हुआ ..उसने जब दबाया तो बूढ़े  स्तनों से ममता  की धार  बह निकली ... हमारी बोली  में एक मुहावरा है ...राज कि धन मी धन ..? कोई राज़ा  भी क्या होगा  मेरे जैसा धनवान  ..????????????.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Lalit Mohan Pant हम भूल गये जिन गीतों को समवेत आज गाकर देखें .....
 
 स्वच्छंद -उन्मुक्त नाचूँ जब में आकाश धरा सागर देखें .
 छलकूँ छूटूँ जब तट बंधन से तब सरिता सर गागर देखें .
 
 अक्सर कितनी शांत -धीर रहती नटखट सी  लहरें मेरी .
 बिखरें बाजू बंद , जब लूँ अँगड़ाई यार कभी आकर देखें .
 
 भूलूँ बिसरों या खो जाऊँ या थक कर कहीं मैं सो जाऊँ .
 फ़िक्र नहीं मुझको उसकी जिस कश्ती को नटनागर देखें .
 
 ये शोर दिशाओं का कैसा है खौफ पसरता क्यों जाता .
 हम भूल गये जिन गीतों को समवेत आज गाकर देखें .
 
 -ललित मोहन पन्त
 12.04.201
 12.04 रात

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Lalit Mohan Pant
तेरे नूर से अँधेरे हर शब होते रहे फ़ना ....

उलझे सवाल मेरे तेरे मुश्किल जवाब से
पढ़ी थी जिंदगी जाने किस किताब से .

तेरे नूर से अँधेरे हर शब होते रहे फ़ना
सानी नहीं है कोई तेरा उस महताब से .

पिघलती रही मुसल्सल तेरी ही ताब से
ये बर्फ जो न पिघली कभी आफताब से .

यार उस कशिश से घायल हैं आजतक
उसने तो यूँ ही हमको देखा था हिज़ाब से .

किस्मत की लकीरें हथेलियों में चाहिये
होता नहीं है हासिल सब इन्तिखाब से .

शामिल हैं बेचैनियों में मेरी वो आजकल
भेजी इनायतें मुझको जिसने बेहिसाब से .

-ललित मोहन पन्त
21.04.2013
06.00शाम

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Lalit Mohan Pant तेरे नूर से अँधेरे हर शब होते रहे फ़ना ....
 
 उलझे सवाल मेरे तेरे मुश्किल जवाब से
 पढ़ी थी जिंदगी जाने किस किताब से .
 
 तेरे नूर से अँधेरे हर शब होते रहे फ़ना
 सानी नहीं है कोई तेरा उस महताब से .
 
 पिघलती रही मुसल्सल तेरी ही ताब से
 ये बर्फ जो न पिघली कभी आफताब से .
 
 यार उस कशिश से घायल हैं आजतक
 उसने तो यूँ ही हमको देखा था हिज़ाब से .
 
 किस्मत की लकीरें हथेलियों में चाहिये
 होता नहीं है हासिल सब इन्तिखाब से .
 
 शामिल हैं बेचैनियों में मेरी वो आजकल
 भेजी इनायतें मुझको जिसने बेहिसाब से .
 
 -ललित मोहन पन्त
 21.04.2013
 06.00शाम

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Lalit Mohan Pant जब सूरज/ डूबने लगा था समंदर में .....
 
 जब सूरज
 डूबने लगा था समंदर में
 और भूखी लहरें
 मुँह फाड़े
 उसे लीलने को थी आतुर
 धौंकती साँसों का 
 आर्त्त स्वर
 गूँजने लगा था हवाओं में
 खून की तरह फैल गया था
 सतह पर
 प्रखर सूर्य का सारा तेज
 तब भी
 किनारे पर खड़ा
 मैं मनाता रहा
 मछुवारा कोई  निःसंदेह
 अपने जाल में
 ले आयेगा खींच कर
 विशाल जबड़ों से
 छीन कर
 जीवन की आस को
 मेरे विश्वास को
 विभ्रम जीवन का
 हताशा में
 लील लेता है सूरज को
 जानता है / फिर भी
 कि सूरज सोख लेता है
 ऐसे कई समंदर
 कि जिजीविषा का मल्लाह
 खड़ा है पतवार ले कर
 मछुवारा जाल लेकर
 हमने कभी डूबने नहीं दिया है
 सूरज को
 आखिर सुबह
 उम्मीद नहीं
 शाश्वत है .....
 
 -ललित मोहन पन्त
 24.04.2013
 01.29रात्रि

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लगता है सीमायें पुकार रही हैं ...और मैं तैयार हूँ .....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Lalit Mohan Pant 
लगता है सीमायें पुकार रही हैं ...और मैं तैयार हूँ .

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Lalit Mohan Pant ये तबस्सुम वो आवाज़ मुझे खींच लाये थे
 हम तेरी मोहब्बत का दीदार करने आये थे .
 
 बेजुबाँ थे हम तेरी मोहब्बत ने जुबाँ दे दी 
 वो बरसे तो अब हैं जो अब्र कब से छाये थे .
 
 असर वो मौसिकी का कब महसूस होगा अब
 वहाँ रब था इबादत थी और तुम गुनगुनाये थे.
   
 खिंचे जो तार थे दिल के सुर में हो गये सारे
 बड़े ही प्यार से मिजराब तुमने आजमाये थे .
 
 कोई तो है मेहरबाँ क्या नीले आसमाँ वाला
 अँधेरी रात मेरे घर में दिये जिसने जलाये थे.
 
 मुझे मालूम है मौला हर जर्रे जर्रे में तू ही तू है
 फिर भी आसमाँ पे हमने पुल कितने बनाए थे .
 
 -ललित मोहन पन्त पन्त
 09.05.2013
 02.18 रात

 

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