मेरे तईं तो तेरे सवालों का बोझ था .....
by Lalit Mohan Pant (Notes) on Monday, May 13, 2013 at 11:54pm
जिसका था इंतज़ार, ये वो सहर न थी
नज़रों के सामने था, तेरी नज़र न थी .
मेरे तईं तो तेरे ,सवालों का बोझ था
दुहरी हुई कमर थी, कोई कसर न थी .
कतरे अश्क के भी , अब खारे कहाँ रहे
खाली हुये समंदर, तुझको खबर न थी .
सहरा से कई बार ,गुजरा था कारवां
मजबूरियों में कोई ,गुजर बसर न थी .
गर्दिशों ने हमको ,कमतर समझ लिया
था तूफ़ान बाजुओं में, कोई लहर न थी.
माहौल अहदे हाज़िर ,क्यों ख्वाब है बुरा
हैवानियत को जाने, क्यों थोड़ी सबर न थी .
-ललित मोहन पन्त
13.05.2013
23.50