Lalit Mohan Pant विध्वंस, वेदना, विलाप ,विवशतायें और ईश्वर .....
by Lalit Mohan Pant (Notes) on Sunday, June 30, 2013 at 1:13am
अपनी छोटी छोटी उपलब्धियों ,अनादि, अनंत, अगम, अपार ,अबूझ ब्रह्मांड की ऊर्जा की रश्मियों की हल्की सी झलक देख कर फूले नहीं समा रहे - आत्ममुग्ध हम, अपनी विकास यात्रा को नापते रहे हैं …शिखरों और गहराइयों को हमने कभी चुनौती नहीं माना …कभी विज्ञान तो कभी आस्थायें हमारे अवलंब बन कर हमारी जीवन यात्रा के पथ प्रशस्त करते रहे …. कहीं चमत्कार को नमस्कार करते हुये हम अपनी आस्थाओं को दृढ करते रहे हैं, तो कभी उन्हीं चमत्कारों को विज्ञान से सुलझा कर उन्हें झुठलाते रहे हैं ……
जहाँ तक हम पहुँचे उसके आगे सब "ईश्वर" के भरोसे छोड़कर हम निश्चिन्त रहे हैं , और यही " ईश्वर" मनुष्य जाति का अलग अलग नामों से सगुण अथवा निर्गुण उपासना और अज्ञात सत्य की खोज का माध्यम रहा है …हमारे जीवन दर्शन की चिरंतन उपलब्धि और आज तक की परिस्थितियों में अनिवार्य स्वीकार्य तथ्य ….ईश्वर हो न हो पर उसका होना जरूरी है वेदना की वैतरणी पार करने के लिये …
स्पष्टतः विज्ञान के साथ साथ आस्थायें भी समानांतर अमर रहेंगी …. विनाश के साथ रचना … भूलों के साथ सुधार …. निराशा के साथ जिजीविषा जीवन को समय के साथ सामंजस्य स्थापित करने में सहायक नहीं होंगी तो एक स्थायित्व आ जायेगा …हम जानते हैं परमाणु भी स्थिर नहीं रह सकता ….लगातार गति और परिवर्तन प्रकृति की प्रकृति है …
बीते दिनों उत्तराखंड में प्रकृति की विनाशलीला ,उसके साथ छेड़ छड की चरम परिणति होने में भले ही आस्था और विज्ञान एकमत न हों; पर जहाँ यह त्रासद विभीषिका … भयावह और दहलाने वाली थी वहीँ मनुष्य के संघर्ष और विकट परिस्थितियों को अपनी जीवटता से चुनौतियों का अनुपम उदहारण भी थी …जीवन की क्षण भंगुरता का साक्षात्कार हमारी भावनाओं को जहाँ उद्वेलित करता रहा वहीँ साधुके बाने में हमारी विकृतियाँ भी उजागर होती रहीं …टुकड़े टुकड़े प्रलय से उपजी वेदना, विलाप और विवशतायें क्या कभी संवेदनाशून्य ,पाषाण दिल और दिमागों को द्रवित कर पायेंगे … ?
प्रकृति नियंता अपनी लीलायें निर्बाध रचता रहा है ,क्योंकि वह नियमों और मर्यादाओं में बँध कर ही इस ब्रह्माण्ड की रचना कर सका होगा …इसीलिये ब्रह्माण्ड का जो भी पिंड अपने ऑर्बिट से बाहर होता है तो नष्ट हो जाता है …यही नियम शाश्वत है ,फिर भी न जाने क्यों नष्ट होने के आकर्षण हमारी नियति बन जाते हैं ?
समस्त मानवीय संवेदनाओं से प्रभु शरण में पहुंची हुई समस्त आत्माओं को श्रद्धांजलि और समर्पण और सेवा के उद्दाम भाव से अपनों से बिछड़े ,पीड़ितों ,असहायों और निराश जनों में आशा का संचार करने वाले स्वयंसेवकों, सैनिकों और हुतात्माओं को नमन .....
-डॉ ललित मोहन पन्त