Lalit Mohan Pant
April 18 2014
यह मानव स्वभाव है कि वह अपने माता- पिता , अग्रज ,वरिष्ठ से लेकर भगवान को खुश करने का प्रयास निरंतर करता रहता है। जब जब सहायता की जरूरत होती है उनसे अपेक्षा भी करता है और जब सहायता नहीं मिलती तो विश्वास की डोर टूट जाती है और यहाँ से शुरू होता है दिखावा … प्रदर्शन … तुष्टिकरण … और अपने हितों को बचाते हुये समय काटने का सिलसिला … अब और अच्छा हो गया वास्तविक दुनिया वाले काल्पनिक दुनिया में भी आसानी से आ जा सकते हैं …. क्या देखना चाहते हैं उसे गढ़ना और दिखाना और उसे विश्वसनीय बना देना कितना आसान हो गया है … जो एक विश्वास और संकल्प लेकर चलता है उसकी दृढ़ता या लचीलापन तय करता है कि उसकी उम्र क्या होगी …. ?आखिर पराकाष्ठाओं की चुनौतियाँ स्वीकार करना भी तो हमारा स्वभाव है …