Author Topic: उत्तराखंड से प्रथम - FIRST FROM UTTARAKHAND !!  (Read 58633 times)

पंकज सिंह महर

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भारतीय गणराज्य में उत्तराखण्ड से श्री बी०डी० पाण्डे प्रथम राज्यपाल रहे, श्री पाण्डे आपरेशन ब्लू स्टार के समय पंजाब के राज्यपाल थे, वर्तमान में श्री पाण्डे अल्मोड़ा में निवास कर रहे हैं.

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड भारतीय गणतंत्र का ऎसा पहला राज्य है जहां पर आपदा प्रबंधन हेतु अलग से मंत्रालय तथा विभाग गठित किया गया है.

पंकज सिंह महर

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पंवार राज वंश (टिहरी के राजा) उत्तराखण्ड का ऎसा प्रथम राजवंश है, जिसने लगातार ६० पीढ़ियों तक अपनी रियासत में राज किया। ७ वीं शताब्दी में इस राजवंश की स्थापना हुई थी।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड का पहला राजवंश कत्यूरी राजवंश था।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड के प्रथम राजा "महाराज शालिवाहन देव" थे, जिनका कार्यकाल ८५० ई० माना जाता है, इनकी राजधानी कार्तिकेयपुर (जोशीमठ) थी और इनके राज्य का विस्तार किन्नर भूमि (हिमाचल) केदारखण्ड (गढ़वाल), मानसखण्ड (कुमाऊं) तथा नेपाल तक था। संभवतः रोहिलखण्ड में भी उनका अधिकार थाआ

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड के पहले साहित्यकार, कवि और चित्रकार संभवतः मौलाराम थे। उनके द्वारा बनाये गये कई चित्र आज भी अहमदाबाद, कलकत्ता और लखनऊ के संग्रहालयों में हैं।
     उनके द्वारा रचित ग्रन्थ आज भी हैं, यथा- गढ़राजवंश और रणबहादुर चन्द्रिका।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड से संबंधित पहली वेबसाइट www.uttarakhand.org थी। जिसकी स्थापना कनाडा में बसे उत्तराखण्ड मूल के श्री राजीव रावत ने की।

hem

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अब अनेक लोग इस बात को प्रतिपादित करते हैं(जिनमें पद्म श्री  श्री रमेश चंद्र शाह भी हैं) कि पंडित लोक रत्न पन्त 'गुमानी' जो कुमाउनी और खड़ी बोली में कवितायें करते थे वे  ही खड़ी बोली के प्रथम कवि माने जाने चाहिए. क्योंकि उनकी मृत्यु भारतेंदु हरिश्चंद्र के जन्म से चार साल पाहिले हो गयी थी.गुमानी जी कि कुमाउनी और खड़ी बोली की कविताओं की बानगी :-
कुमायुंनी:-
हिसालू की जात बड़ी रिसालू, जाँ जाँ जाँछे उधेड़ि खाँछे |
यो बात को क्वे गटो नी माननो, दुद्याल की लात सौणी पड़न्छ |
खड़ी बोली :-
दूर विलायत जल का रास्ता करा जहाज सवारी है
सारे हिन्दुस्तान भरे की धरती वश कर डारी है
और बड़े  शाहों में सबमें धाक बड़ी कुछ भारी है
कहे गुमानी धन्य फिरंगी तेरी किस्मत न्यारी है

पंकज सिंह महर

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अब अनेक लोग इस बात को प्रतिपादित करते हैं(जिनमें पद्म श्री  श्री रमेश चंद्र शाह भी हैं) कि पंडित लोक रत्न पन्त 'गुमानी' जो कुमाउनी और खड़ी बोली में कवितायें करते थे वे  ही खड़ी बोली के प्रथम कवि माने जाने चाहिए. क्योंकि उनकी मृत्यु भारतेंदु हरिश्चंद्र के जन्म से चार साल पाहिले हो गयी थी.गुमानी जी कि कुमाउनी और खड़ी बोली की कविताओं की बानगी :-
कुमायुंनी:-
हिसालू की जात बड़ी रिसालू, जाँ जाँ जाँछे उधेड़ि खाँछे |
यो बात को क्वे गटो नी माननो, दुद्याल की लात सौणी पड़न्छ |
खड़ी बोली :-
दूर विलायत जल का रास्ता करा जहाज सवारी है
सारे हिन्दुस्तान भरे की धरती वश कर डारी है
और बड़े  शाहों में सबमें धाक बड़ी कुछ भारी है
कहे गुमानी धन्य फिरंगी तेरी किस्मत न्यारी है


वाह-वाह हेम दा,
         बहुत-बहुत धन्यवाद इस ऎतिहासिक बिन्दु से हमें अवगत कराने के लिये, मुझे यह तो पता था कि गुमानी जी हमारे प्रथम कवि थे, लेकिन यह नहीं पता था कि वह खड़ी बोली के भी प्रथम कवि थे।
      हेम दा, आशा है, आगे भी आप ऎसे तथ्यों से हमें परिचित कराते रहेंगे।

पंकज सिंह महर

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चंद राजवंश के पहले राजा, राजा सोमचंद थे, जिन्होंने उत्तराखण्ड पर सन ७००- से ७२१ तक राज किया।

 

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