Author Topic: FREEDOM FIGHTER OF UTTARAKHAND - उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी  (Read 90440 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thank you vijay bhai for this input.

Still there many Freedom Fighters in UK who are alive and we must get information about them and put there wherever possible.

Hope we will get similiar information from other members too.

दोस्तों,

हाल ही में यंग उत्तराखंड द्वारा आयोजित निशुल्क मेडिकल कैम्प के समापन के बाद मेडिकल टीम में जाने वाले सदस्य प्रतापनगर के राजा के महल और पुरातत्व राजशाही धरोहरों का जब दर्शन कर रहे थे तो राजा के ज़माने के कोर्ट के बहार किसी कमरे की सीढियों पर हमने एक वयोवृद्ध व्यक्ति को देखा | स्थानीय लोगो में से किसी ने बताया की ये महान उत्तराखंड आन्दोलनकारी व् अपने समय के वरिष्ठ पृथक उत्तरांचल की मांग आन्दोलन के सेनानी हैं | हमने रुक कर उनसे बातचीत की तथा उनके बारे में जाना |

इनका नाम श्री बिशन पाल सिंह है ,  निवासी खोलगढ़, प्रतापनगर, टिहरी गढ़वाल, उत्तरांचल है | इसनी उम्र ८० वर्ष हो चुकी है | एक दुर्घटना में ये अपना एक हाथ गँवा चुके है | हालत यह हो चुके है की इनके दोनों गुर्दे ख़राब हो चुके है | उत्तराखंड की आन्दोलनकारी व् शहीदों को जब याद करते है तो उनमे से कुछ नाम गुमनाम हो जाते है | श्री बिशन पाल सिंह जी का भी नाम आज गुमनाम हो चुका है | इसका समस्त जीवन उत्तराखंड आन्दोलन व् सामजिक कार्यो में बीत गया और न जाने कितनी सरकार आई गई किसी ने इनकी सुध नही ली |




यह बात बिल्कुल सत्य है की श्री बिशन पल सिंह जी उन उत्तराखंड के उन व्यक्तियों में से है जिन्होंने सर्वप्रथम पृथक उत्तरांचल राज्य की मांग की थी | इनके अनुसार वास्तव में सन १९५२ में पृथक उत्तरांचल राज्य की माग के लिए कुछ आन्दोलनकारी आगे आए थे जिसमे आज का हिमाचल राज्य भी शामिल था | जिनमे टिहरी के भूतपूर्व राजा श्री मानवीरेंदर शाह, कामरेड जोशी जी, टिहरी के भूतपूर्व संसद श्री तिरेपन सिंह नेगी जी व् कुछ और लोग इसने साथ थे | इन्होने १०-१५ बार जेलों की यात्राये की व् कई यातनाए झेली |



पहली बार इन्होने पृथक उत्तरांचल राज्य की माग को लेकर श्रीनगर (गढ़वाल ) में श्रीयंत्र टापू पर ३८६ दिन की भूख हड़ताल की

तीन बार अपने आन्दोलनकारी साथियों के साथ समस्त गढ़वाल मंडल व् कुमॉऊ मंडल का भ्रमण करते हुए दिल्ली के वोट क्लब (इंडिया गेट) तक पद यात्राये की |

जब हमने उनसे यह पूछा की आज जब उत्तराखंड राज्य बन गया है तो आप के विचार से आज उत्तराखंड क्या आपके द्वारा कल्पना को साकार कर पाया है ,क्या यही आपके सपनो का उत्तराखंड है ?

इसके उत्तर में उन्होंने कहा की आज जब उत्तराखंड एक अलग राज्य बन गया है तब भी यह वह उत्त्रखाद नही है जिसका सपना उन्होंने देखा था | आज चाहे उत्तराखंड में किसी भी पार्टी की सरकार हो ,वादे सभी करते है लेकिन काम ऊस गति से नही हो रहा है ,जो बहुत दुख की बात है |
इनके ओसार विकास तो हुआ है लेकिन उतना नही जितना होना चाहिए था | सभी सत्ताधारी पार्टिया अपना उल्लू सीधा करती है |

यंग उत्तराखंड टीम ने जब उनके मुखारविंद से या सब सुना तो सभी को बहुत दुख:  हुआ | उन्होंने कहा की आज जब उत्तराखंड राज्य आस्तित्व में आ चुका है तथापि आज जो उत्तराखंड के सच्चे आन्दोलनकारी है उनकी सुध लेने वाला कोई नही है | इन्हे अभी तक कोई भी राजकीय सहायता नही मिली है | आज इनके पास अपना कोई घर नही है ,राजा के कोर्ट के किसी खंडहर नुमा कमरे में ये अपने जीवन की अन्तिम सांसे गिन रहे है |

By: Vijay Singh Butola


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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स्वतंत्रता सेनानी के निधन पर शोकDec 22, 02:06 am

देहरादून। राज्यपाल बीएल जोशी ने स्वतंत्रता सेनानी बच्ची राम ढौंडियाल के निधन पर शोक जताया है। एक संदेश में उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में स्व.ढौडियाल की भूमिका युवाओं को हमेशा प्रेरित करती रहेगी। राज्यपाल ने दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हुए शोक संतप्त परिजनों के प्रति सेवदना व्यक्त की है।

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चंदर सिंह गढ़वाली
पौड़ी गढ़वाल के मानसो गांव में वर्ष 1891 में चंदर सिंह गढ़वाली (वर्ष 1891-1979) का जन्म हुआ। उनकी शिक्षा घर पर ही हुई तथा युवावस्था में उन्होंने सेना में नौकरी कर ली। वर्ष 1929 में जब वे छुट्टी में घर वापस आ रहे थे तो उन्हें बागेश्वर में महात्मा गांधी की एक सभा आयोजित होने की जानकारी मिली। घर जाने की बजाय वे बागेश्वर की ओर मुड़ गये तथा तत्काल महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उनमें भारत की स्वाधीनता की इच्छा घर कर गयी।

वर्ष 1930 में पेशावर में अब्दुल गफ्फार के नेतृत्व में एक आंदोलन आयोजित हुआ। अंग्रेजों ने पठानों के उस विरोध को कुचलने के लिये गढ़वाल राईफल्स की एक टुकड़ी को वहां भेजा। अप्रैल 23, 1923 को हजारों पठानों ने एकत्र होकर थाने पर भारतीय झंडा फहरा दिया। अंग्रेजी कप्तान ने गढ़वाल राईफल्स के सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया, जिसे मानने से उन्होंने इन्कार कर दिया। इस टुकड़ी के नायक चंदर सिंह गढ़वाली थे। उन्हें अपने साथी सैनिकों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया तथा मृत्यु दंड की जगह आजीवन कारावास की सजा दी गयी तथा सजा में नरमी वकील मुकुंदी लाल के प्रयास से ही संभव हुआ। चंदर सिंह गढ़वाली 11 वर्ष बाद रिहा हुए। वह वर्ष 1946 में गढ़वाल लौटे एवं कोटद्वार के पास एक गांव में बस गए। उनका देहांत वर्ष 1979 में हुआ।
 

खीमसिंह रावत

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चंदर सिंह गढ़वाली
वर्ष 1929 में जब वे छुट्टी में घर वापस आ रहे थे तो उन्हें बागेश्वर में महात्मा गांधी की एक सभा आयोजित होने की जानकारी मिली। घर जाने की बजाय वे बागेश्वर की ओर मुड़ गये तथा तत्काल महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उनमें भारत की स्वाधीनता की इच्छा घर कर गयी।

वर्ष 1930 में पेशावर में अब्दुल गफ्फार के नेतृत्व में एक आंदोलन आयोजित हुआ। अंग्रेजों ने पठानों के उस विरोध को कुचलने के लिये गढ़वाल राईफल्स की एक टुकड़ी को वहां भेजा। अप्रैल 23, 1923 को हजारों पठानों ने एकत्र होकर थाने पर भारतीय झंडा फहरा दिया। अंग्रेजी कप्तान ने गढ़वाल राईफल्स के सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया, जिसे मानने से उन्होंने इन्कार कर दिया। इस टुकड़ी के नायक चंदर सिंह गढ़वाली थे।

shayad varsh aage pichhe ho gaye hai/
b]वर्ष 1930 में[/b] पेशावर में अब्दुल गफ्फार के नेतृत्व में एक आंदोलन आयोजित हुआ। अंग्रेजों ने पठानों के उस विरोध को कुचलने के लिये गढ़वाल राईफल्स की एक टुकड़ी को वहां भेजा। अप्रैल 23, 1923

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स्वतंत्रता आंदोलन के पुरोधा दान सिंह नेगी

आजादी के सिपाही नेगी नहीं रहेजागरण संवाददाता,हल्द्वानी स्वतंत्रता आंदोलन के पुरोधा दान सिंह नेगी का रविवार को निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। श्री नेगी लंबे अरसे से बीमार चल रहे थे। बीते दिनों गुर्दे खराब होने के कारण श्री नेगी को डा. सुशीला तिवारी स्मारक वन चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। यहां चिकित्सकों ने हालत अधिक खराब होने पर जबाव दे दिया। लिहाजा परिजन उन्हें अस्पताल से घर ले गये। रविवार सुबह उन्हें शहर की पंचशील कालोनी स्थित अपने बेटे राजेन्द्र सिंह नेगी के आवास पर अंतिम सांस ली। उनका चित्रशिला घाट पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। शासन के प्रतिनिधि के रूप में उपजिलाधिकारी प्रताप साह ने उनके शव पर पुष्पचक्र भेंट किया। उनकी अंतिम यात्रा में तहसीलदार प्रत्यूष सिंह, पुलिस क्षेत्राधिकारी प्रमेन्द्र डोबाल, सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमेन राजेन्द्र सिंह नेगी, पूर्व ब्लाक प्रमुख गोपाल सिंह नेगी,धनराज सिंह नपच्याल, उमेद सिंह नेगी, हरीश सिंह भंडारी सहित भारी संख्या में शहर व आसपास के गणमान्य लोगों ने भाग लिया। मुखाग्नि उनके तीनों बेटों व नाती चेतन नेगी ने दी। श्री नेगी मूल रूप से जिले के कोटाबाग ब्लाक के आवंलाकोट गांव के रहने वाले थे। उनके तीन बेटों में राजेन्द्र सिंह नेगी व चन्द्रमोहन यहां रहते हैं,जबकि नरेन्द्र सिंह कोटाबाग में ही रहते हैं। आजादी के सिपाही श्री नेगी यहीं बेटे के पास रहते थे। :::आजादी के लड़ाई के अगुवा रहे नेगी::: हल्द्वानी: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दान सिंह नेगी ने आजादी की लड़ाई में बढ़चढ़कर सहभागिता निभाई। इसमें उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री नेगी छह मार्च 1941 को पहली बार लखनऊ जेल में गये। यहां उन्हें आठ माह रहना पड़ा। इसी साल वह दो माह हल्द्वानी व तीन दिसंबर 1942 को छह माह काशीपुर और चार अगस्त 1943 को गिरफ्तार होकर एक साल नैनीताल जेल में रहे। उन्होंने क्षेत्र में आजादी के संघर्ष में लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार किया। नेगी के निधन से ठठोला आहत हल्द्वानी : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दान सिंह नेगी के निधन से उनके साथी व कोटाबाग निवासी आजादी के सिपाही तेज सिंह ठठोला आहत हैं। उन्होंने फोन पर बताया कि श्री नेगी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया। उनके निधन से जिले को ही नहीं देश को अपूर्णनीय क्षति हुई है।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मल्ला दानपुर
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राम दत्त

निवासी  : ग्राम सुन्गड़

पिता का नाम :  दुर्गा दत्त
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१९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने पर  एक साल की कठोर कारागार की सजा काटी ! ५० रूपये का जुर्माना ना देने पर ६ माह की सजा !

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ख्याली राम जोशी

निवासी  : ग्राम सुन्गड़
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१९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने पर  एक साल की कठोर कारागार की सजा काटी !10 रूपये का जुर्माना और अदालत उठने तक की सजा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नाकुरी पट्टी
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नाम : बद्री दत्त पाठक

निवासी :  पठग्योडा, डाक खाना : स्यकोट!


१९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने पर  १५ जुलाई से ३१ अक्टूबर तक जिला पीलीभीत की हवालात में रखा गया !

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नाकुरी पट्टी
 

नाम : प्रेम सिह गडिया

निवासी :  ग्राम किरोली (रीमा) - Bageshwar

१९३० के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिए ! एक साल की कैद हुयी ! १९३२ में पीर से छह माह की सजा और ५० रूपये का जुर्माना हुवा: १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और छः माह की कठोर कारावास की सजा और २५ रूपये का जुर्माना! २५ रूपये का जुर्माना ने देने पर दो माह की सजा फिर से हुयी !

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पुरषोतम उपाध्याय
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निवासी  : ग्राम रंग्देव (रीमा )

१९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया! अदालत उठने तक की सजा और २५ रूपये ना चुकाने पर २ माह की सजा और हुयी ! १९४२ के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने पर २ साल की सजा और हुयी

 

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