Author Topic: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero - माधो सिंह भंडारी - एक बीर योद्धा  (Read 40524 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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Re: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero
« Reply #10 on: July 05, 2009, 07:09:50 PM »



ALAKNANDA NADI

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Re: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero
« Reply #11 on: July 15, 2009, 11:31:07 PM »
कैसो च भंडारी तेरा मलेथ ?
देखी भलौ ऎन सैवो मेरा मलेथ
लकदी गूल मेरा मलेथ
गाँऊँ मूड़ को घर मेरा मलेथ
पालंगा की बाड़ी मेरा मलेथ
लासणा की क्यारी मेरा मलेथ
गाइयों की गोठ्यार मेरा मलेथ
भैंसी को खुरीक मेरा मलेथ
बांदू का लड़क मेरा मलेथ
बैखू का ढसक मेरा मलेथ

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Re: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero
« Reply #12 on: July 15, 2009, 11:32:39 PM »

ओ भंडारी राजपूत, कैसा है तेरा 'मलेथ' गाँव?
देखने में भला लगता है, साहबो, मेरा मलेथ ।
ढलकती नहीं है वहाँ, मेरा मलेथ ।
गाँव की निचान में घर है मेरा, मेरा मलेथ ।
पालक की बाड़ी है, मेरा मलेथ ।
लहसुन की क्यारी है, मेरा मलेथ ।
गौओं की गोठ है, मेरा मलेथ ।
भैंसों की भीड़ है, मेरा मलेथ ।
कुमारियों की टोली है, मेरा मलेथ ।
वीरों का धक्कम-धक्का है, मेरा मलेथ ।

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Re: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero
« Reply #13 on: August 08, 2009, 07:33:45 AM »
माधो  सिंह भंडारी

माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महिपति के शासन काल के दौरान सेनापति थे। उनकी बहादुरी के किस्से गढ़वाल में अभी भी सुनाए जाते हैं। उन्हें गर्वभंजक के नाम से जाना जाता है। वे कई लड़ाईयों में विजयी हुए। तिब्बती सेना से 1635 में उन्होंने जो लड़ाई लड़ी वह सबसे अधिक याद किया जाता है।

उन्हें एक और उपलब्धि के लिए भी याद किया जाता है। देवप्रयाग के निकट स्थित मलेठा गांव संभवतः उनकी पत्नी का मायका था। वहां के लोगों को जीवन-यापन करने में अत्यधिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। खासकर कृषि की हालत वहां अत्यन्त खराब थी। लोग थोड़ी दूर पर नीचे बहती ‘गंगा’ (स्थानीय तौर पर अलकनंदा कहा जाता है) को अत्यन्त निराशा से देखते थे। इसके पानी को ऊपर नहीं उठाया जा सकता था। पहाड़ी के ऊपर एक अपेक्षाकृत छोटी जलधारा बढ़ती थी लेकिन खेतों के दूसरे तरफ थी। माधो सिंह ने इसी के पानी को मलेठा के गांवों में लाने का निर्णय लिया। इसका मतलब था, पहाड़ी के रास्ते पर एक सुरंग खोदना। यह माना जाता है कि इस कार्य में माधो सिंह को अपने पुत्र की बली भी देनी पड़ी जो उन्हें भारी ह्रदय से लेकिन अपने कर्तव्य की पूर्ति में किया। तब से उस बंजर भूमि ने हमेशा प्रचुर फसल दी है, और आज के समय में भी जुलाई में धान-रोपण के निर्धारित दिन पारम्परिक संगीतज्ञ लोगों के साथ खेतों पर जाते हैं और पहली जुताई/रोपण के पहले माधो सिंह भंडारी का स्तुतिगान करते हैं।

यह सुरंग आज भी मौजूद है और इसे एक किलोमीटर की दूरी तय करते और टिहरी के द्विभाजक सड़क (वस्तुतः खेतों के ऊपर) पर आगे एक और किलोमीटर बढ़ते देखा जा सकता है। टिहरी रोड का प्रवेश द्वार एक लघु स्मारक पार्क तक ले जाता है जिस पर माधो सिंह की प्रतिमा है और जो आगे सुरंग तक गया है।

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Re: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero
« Reply #14 on: November 11, 2009, 10:14:30 PM »
कैसो च भंडारी तेरा मलेथ ?

देखी भलौ ऎन सैवो मेरा मलेथ

लकदी गूल मेरा मलेथ

गाँऊँ मूड़ को घर मेरा मलेथ

पालंगा की बाड़ी मेरा मलेथ

लासणा की क्यारी मेरा मलेथ

गाइयों की गोठ्यार मेरा मलेथ

भैंसी को खुरीक मेरा मलेथ

बांदू का लड़क मेरा मलेथ

बैखू का ढसक मेरा मलेथ



भावार्थ



'ओ भंडारी राजपूत, कैसा है तेरा 'मलेथ' गाँव?

देखने में भला लगता है, साहबो, मेरा मलेथ ।

ढलकती नहीं है वहाँ, मेरा मलेथ ।

गाँव की निचान में घर है मेरा, मेरा मलेथ ।

पालक की बाड़ी है, मेरा मलेथ ।

लहसुन की क्यारी है, मेरा मलेथ ।

गौओं की गोठ है, मेरा मलेथ ।

भैंसों की भीड़ है, मेरा मलेथ ।

कुमारियों की टोली है, मेरा मलेथ ।

वीरों का धक्कम-धक्का है, मेरा मलेथ ।

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Re: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero
« Reply #15 on: November 25, 2009, 08:37:49 AM »
Madhosingh bhandari maletha ka veer


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Re: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero
« Reply #16 on: November 25, 2009, 07:45:21 PM »
ye wahi chhenda hai jisko bnaane ke liye madho singh bhandari ne apne putr gajesingh ka balidaan diya tha !


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Madho Singh Bhandari - A Warrior Hero
« Reply #17 on: June 08, 2010, 10:52:31 PM »
This is the Jhoda about great Warrior Madho Singh Bhandari's village Maletha.. I have provided this from the Book written by Nand Kishore Hatwal... Chachadi Jhamako.-------------------------------------------------------------------------------------[/color]   
कनु छ भंडारी तेरो मलेथा
   
ऐ जाणू
    रुकमा मेरा मलेथा
मेरा मलेथा भैस्यो का खरक
   
मेरा मलेथा घाडियो को घमणाट!
 
मेरा मलेथा बाखरियो को तान्दो!
 

कस छो भंडारी तेरो मलेथा
    ?
देखण को भल मेरो मलेथा !
 
लगदी कूल मेरा मलेथा
 
गौ मथे को सेरो मेरो मलेथा
   
गौ मथे को पंधारो मेरो मलेथा !
 


कस छो भंडारी तेरो मलेथा
      ?
पालिंगा की बाड़ी मेरा मलेथा!
 
लासण की क्यारी मेरा मलेथा!
 
बांदू की लसक मेरा मलेथा
   
बैखू की ठसक मेरा मलेथा
   
ऐ जाणू
    रुकमा मेरा मलेथा
   

In Hindi.

 कनु छ भंडारी तेरो मलेथाऐ जाणू  रुकमा मेरा मलेथामेरा मलेथा भैस्यो का खरकमेरा मलेथा घाडियो को घमणाट!मेरा मलेथा बाखरियो को तान्दो!कस छो भंडारी तेरो मलेथा?
 
देखण को भल मेरो मलेथा !लगदी कूल मेरा मलेथागौ मथे को सेरो मेरो मलेथागौ मथे को पंधारो मेरो मलेथा !कस छो भंडारी तेरो मलेथा?
 
पालिंगा की बाड़ी मेरा मलेथा!लासण की क्यारी मेरा मलेथा!बांदू की लसक मेरा मलेथाबैखू की ठसक मेरा मलेथाऐ जाणू  रुकमा मेरा मलेथाहिंदी में :
  ==========================================
 
भंडारी कैसा तेरा मलेथामेरा मलेथा आ जाओ रुकुमा!मेरा मलेथा में भैसों के करक है!मेरे मलेथा में घंटियों का घमणाट है!मेरे मलेथा में बकरियों के झुण्ड है!भंडारी कैसा है तेरा मलेथा ?
 
देखने में भला है तेरा मलेथा,
 
चलती नहर है मेरा मलेथा में!मेरे मलेथा में गाव के ऊपर पनघट है !भंडारी कैसा है तेरा मलेथा ?
 
मेरे मलेथा में लहसन की क्यारीया है,
 
मेरे मलेथा में पालक की बाडिया है,
 
सुन्दरियों  की लचक है मेरे मलेथा  में,
 
मेरे मलेथा में पुरुषो की शान है,
 
रुकुमा आ जाओ मेरे मलेथा में !
   

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किवदंती के अनुसार पंवार वंशीय राजाओं के लिए शासनकाल के समय गोरखों ने गढ़वाल पर आक्रमण किया। तिब्बत से भी इस बीच आक्रमण होते रहे। किंवदंती है कि महाराजा के सेनापति माधो सिंह भंडारी एक बार तिब्बत के युद्ध में तिब्वतियों को खदेड़ते हुए दूर निकल गए। वह दीपावली के समय अपने घर नहीं लौट पाए थे। तब अनहोनी की आशंका में पूरी रियासत में दीपावली नहीं मनाई गई थी। बाद में रियासत का यह सेनापति युद्ध में विजेता बनकर लौटा। यह खबर रियासत में दीवाली के ग्यारह दिन बाद पहुंची। जिसके बाद टिहरी के समीपवर्ती इलाकों में इगास का त्योहार मनाया गया। जबकि दूरस्थ इलाकों में सेनापति के विजयी होकर लौटने की खबर करीब एक माह बाद पहुंची, जिसके कारण वहां दीवाली एक महीने बाद मनाते हैं। समाजसेवी महीपाल नेगी बताते हैं महज दो सौ सालों से ऐसा हो रहा है। कई इलाकों में उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए लोग एक माह बाद दिवाली मनाते हैं।

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जगमोहन जयाडा जी ने इस वीर के ऊपर एक कविता लिखी है

"माधो सिंह "काळू" भंडारी"

आमू का बागवान मलेथा, लसण प्याज की क्यारी,
कूल बणैक अमर ह्वैगि, वीर माधो सिंह भंडारी.

बुबाजी भड़ सोंणबाण "काळू" भंडारी, ब्वै थै देवी भाग्यवान,
कथ्गा प्यारु तेरु मलेथा, माधो जख केळौं का बगवान.

दगड़्या थौ चम्पु हुड्क्या, देवी जनि उदिना थै कुटमदारी,
नौनु प्यारु गजे सिंह, जू छेंडा मूं कूल का खातिर मारी.

बांजा पुंगड़ौं अन्न निहोन्दु, पेण कु निथौ बल पाणी,
उदिना बोदि माधो जी कू, मेरा मलेथा ल्य्हवा पाणी.

दिनभर निर्पाणि का पुंगड़ौं, करदा छौं हम धाण,
भात खाण की टरकणी छन, मेरी बात लेवा माण.

मलेथा की की तीस बुझौलु, ल्ह्योलु अपणा मलेथा मां पाणी,
निहोंणु ऊदास प्यारी ऊदिना, दूर होलि हमारा गौं की गाणी.

चंद्रभागा गाड बिटि कूल बणायी, कोरी मलेथा मूं छेंडू,
पाणी छेंडा पार नि पौंछि, माधो सिंह चिंता मां नि सेंदु.

भगवती राजराजेश्वरी रात मां, माधो सिंह का सुपिना आई,
कूल कू पाणी पार ह्वै जालु, मन्खि की बलि देण का बाद बताई.

मलेथा की कूल का खातिर, माधो सिंह न करि गजे सिंह कू बलिदान,
गजे सिंह का दुःख मां रोन्दि बिब्लान्दि, ब्वै ऊदिना ह्वैगि बोळ्या का समान.

ऊदिना न तै दिन दुःख मां ख्वैक, दिनि थौ बल मलेथा मां श्राप,
ये वंश मां क्वी भड़ अब पैदा नि ह्वान, जौन गजे सिंह मारि करि पाप.

जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,

 

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