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Personalities of Uttarakhand/उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध/महान विभूतियां

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Bhishma Kukreti:
            अमाड़ी (उदयपुर ) के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान आचार्य बुद्धिबल्लभ
               (गंगासलाण के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान शश्रृंखला )
        इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
आचार्य बुद्धिबल्लभ का नाम संस्कृत साहित्य में आदर के साथ लिया जाता है।  आचार्य बुद्धिबल्लभ  को उनके मुक्तक संस्कृत काव्य 'रसकलसी' के कारण जाना जाता है। रसकलसी काव्य में प्रारम्भ में शृंगार की अधिकता है किन्तु बाद के खंड में कब्बाली , समस्यापूर्ति , प्रहेलिका संबंधित कविताओं ने नवीनता प्रधान की है। यह एक प्रयोग सफल प्रयोग कहा जाता है।
    आचार्य बुद्धिवल्ल्भ का जन्म अमाड़ी , तल्ला उदयपुर , पौड़ी गढ़वाल में 15 जून 1936 ई को क्षेत्र के प्रसिद्ध ज्योतिषी पंडित रविदत्त के घर हुआ।  उनकी माता का नाम शाखादेवी था।  बुद्धिवल्ल्भ के प्रपितामह पंडित खिमानन्द भी ज्योतिषी व वैद्य थे।  उनके पितामह  बालदत्त था जो यशवान वैद थे।  बुद्धिवल्ल्भ के अन्य भाइयों में कुमुद प्रसाद आचार्य -शिक्षक थे  , भास्कर प्रसाद ज्योतिषी हुए तो वेणी प्रसाद व्याकरणाचार्य हुए।
  आचार्य वुद्धिवल्ल्भ की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुयी व फिर शिक्षा हरिद्वार में ऋषिकुल ब्रह्मचर्य आश्रम में हुयी।  1958 -59 को उन्होंने व्याकरणाचार्य की परीक्षा पास की व 1964 में विद्यावाचस्पति। 
ऋषिकुल ब्रम्ह्चर्य आश्रम में वे अध्यापक  रहे व 1960 -1964 तक सप्तर्षि आश्रम में प्रधानाचार्य रहे।
    उनके निम्न स्कस्कृत काव्य हैं -
रसकलसी
उद्धवशतक
हिंदी में उनका काव्य संग्रह 'जागो वीर जवानो जागो ' प्रसिद्ध हुआ ।
आचार्य बुद्धिवल्ल्भ  कई सामजिक कार्यों में सदा सलग्न रहे जैसे प्रादेशिक संस्कृत विद्यालय अध्यपक संघटन के वे संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।  १९७९ में उन्होंने उर्दू को द्वितीय राजभाषा बनाने का विरोध आंदोलन में भाग लिया और 1967 में गौहत्या विरोधी आंदोलन में एक महीना कारवास भी भोगा। वे अखिल भारतीय जागरण समिति में भी हमेशा क्रियाशील रहे।
उनके दो पुत्र -द्विजेन्द्र वल्ल्भ व महेंद्र वल्ल्भ हैं।
उनका वर्तमान निवास हरिकला , हरिद्वार है।



Bhishma Kukreti:
      तिमली डबरालस्यूं के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान डा अशोक कुमार डबराल

             (गंगासलाण के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान शश्रृंखला -2 )
        इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
 तिमली  ( डबरालस्यूं )ने संस्कृत , हिंदी व गढ़वाली साहित्य को कई प्रख्यात साहित्यकार दिए हैं। इनमे से एक हैं डा अशोक कुमार डबराल।
डा अशोक कुमार डबराल संस्कृत के सिद्ध कवि पंडित सदानंद डबराल के पौत्र , दार्शनिक , कवि , विद्वान श्री विद्यादत्त के पुत्र याने डा पार्थ सारथि डबराल व डा श्री विलास डबराल के चचेरे भाई हैं।
डा अशोक डबराल का जन्म तिमली , डबरालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखंड में 14  अप्रैल सन 1943 को हुआ। 
इन्होने देवीखेत में आधारिक शिक्षा पाई व तिमली संस्कृत पाठशाला से मध्यमा की शिक्षा ग्रहण की।  , कशी से साहित्य शास्त्री , आगरा वि वि से 1968 म एमए (संस्कृत ) , 1974 में मेरठ वि वि से एमए हिंदी व चरण सिंह वि वि से 1999 में पीएचडी डिग्री हासिल की।
1962 से 2001 तक अध्यापन कार्य किया और साहित्य सेवा की।
इनके निम्न पुस्तकें छप चुकी हैं
देवात्मा हिमालय -संस्कृत महाकव्य (2004 )
धुक्षते हा धरती - संस्कृत महाकाव्य (2005 )
चन्द्रसिंघस्य गर्जितम् - संस्कृत लघुनाटक प्रकाशित
दायाद्यम् - संस्कृत नाटकम् प्रकाशित
प्रतिज्ञानम् - संस्कृत नाटकम् प्रकाशित
निम्न साहित्य अप्रकाशित है
अथ इति -हिंदी महाकव्य
लिप्टस - हिंदी कहानी संग्रह
मधुमास -हिंदी काव्य संग्रह
एक हमाम में सब नंगे - हिंदी ललित निबंध
  डा अशोक डबराल की धर्मपत्नी डा सुशीला ढौंडियाल डबराल भी साहित्यकार हैं और डा सुशीला ने डा अशोक के महाकाव्यों का हिंदी में अनुवाद किया है।
डा डबराल ने काव्य में नई विधाओं का समिश्रण किया है और उनके साहित्य की भुरु भूरि प्रशसा हुयी है।

 
 **** डा प्रेम दत्त चमोली की गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन से साभार
  स्वच्छ भारत ! स्वच्छ भारत ! बुद्धिमान भारत ! 
 

Bhishma Kukreti:
तिमली डबराल स्यूं की बहू संस्कृत -हिंदी विदुषी - सुशीला ढौंडियाल डबराल

     (गंगासलाण के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान शश्रृंखला -3  )
        इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
 सुशीला ढौंडियाल का संस्कृत साहित्य प्रसार में योगदान अभिन्न है।
सुशीला ढौंडियाल डबराल का जन्म डुमलोट , ढौंडियालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल में १५ अगस्त १९४७ को हुया।    सुशीला ढौंडियाल के पिता का नाम महेशचंद्र व माता का नाम रामप्यारी था।
प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुयी और हाइ स्कूल पौड़ी से। इनका विवाह तिमली के डा अशोक डबराल से साथ हुआ।  विवाह बाद ही सुशीला ने एमए हिंदी व एमए संस्कृत में किया।  १९७५ तक सुशीला ने कई जगह अध्यापकी की।
सुशीला ढौंडियाल डबराल का योगदान संस्कृत प्रसार में महत्वपूर्ण है . सुशीला ने निम्न दो संस्कृत महाकाव्यों का अनुवाद हिंदी में किया
देवात्मा -हिमालयः
धुक्षते धरती
दोनों महाकाव्य के रचयिता डा अशोक डबराल हैं।
सुशीला का योगदान योगविद्या प्रचार में भी महत्वपूर्ण है


 **** डा प्रेम दत्त चमोली की गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन से साभार
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  स्वच्छ भारत ! स्वच्छ भारत ! बुद्धिमान भारत !

Bhishma Kukreti:
डबरालस्यूं के ललिता प्रसाद डबराल : प्राचीन संस्कृत सहित्य के संपादक

    (गंगासलाण के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान श्रृंखला -4   )
        इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

 श्री ललिता प्रसाद डबराल के बारे में अधिक जानकारी नही मिल सकी है। केवल यही जानकारी हासिल है कि ललिता प्रसाद डबराल ने स्वतंत्रता नन्द नाथ विचरित 'मातृकाचक्र विवेक ' कुशल सम्पादन किया है।
संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध इतिहासकार डा प्रेम दत्त चमोली लिखते हैं कि 'मातृकाचक्र विवेक' का संपादन , संशोधन एवं 13 पृष्ठों में संस्कृत भाषा में विद्वतापूर्ण भूमिका का लेखन ललिता प्रसाद डबराल ने किया है।
'मातृकाचक्र विवेक '  तांत्रिक परम्परायुक्त है।  भूमिका में संपादक ने तांत्रिक दृष्टिकोण स्पष्ट किया है।  ग्रन्थ के संपादित स्वरूप को शुद्धि पत्रादि विवरण के साथ भूमिका में बीजों एवं तत्वों का स्पष्ट विवेचन भूमिका में दी गयी है।
भूमिका में ग्रन्थ का परिचय संसक्षिप्त रूप में हुआ है और ललिता प्रसाद डबराल ने  कठिनाईयों का चित्रण भी किया है जिनके कारण ग्रन्थ शुद्धि का कार्य कठिन हुआ है।
संपादकत्व की दृष्टि से ग्रन्थ उत्तम है।
1977 में ग्रन्थ नागरी प्रचारणी सभा , विशेस्वर गंज , वाराणसी में उपलब्ध था।



 **** डा प्रेम दत्त चमोली की गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन से साभार

Bhishma Kukreti:
 Viddya  Datt Dabral :  Sanskrit Scholar and Vyas
तिमली , डबराल स्यूं के विद्यादत्त डबराल : संस्कृत हिंदी टीकाकार

  (गंगासलाण के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान श्रृंखला -6   )
        इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

     सदानंद डबराल कृत 'रासविलास' का हिंदी टीका स्व विद्यादत्त डबराल ने लिखी है।
विद्यादत्त डबराल का जन्म संस्कृत के प्रकांड विद्वान श्री सदानंद डबराल हुआ।  विद्या दत्त डबराल का जन्म 1 जनवरी 1919 को तिमली , डबरालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल में हुआ।  उनका प्राथमिक शिक्षण तिमली में हुआ , माउन्ट आबू में फिर पुराण आदि की शिक्षा ग्रहण की।  1939 से 1969 तक विद्यादत्त डबराल तिमली संस्कृत पाठशाला के अध्यापक व वाद में प्रधानाचार्य रहे। 1952 में वनारस से शास्त्री की डिग्री हासिल की।  1937 में विद्यादत्त का विवाह ख्याड़ा , उदयपुर के ज्योतिषी भवानी दत्त कुकरेती की सुपुत्री सौ सत्यभामा से हुआ। विद्यादत्त की हस्तलेखनी इतनी सुंदर थी कि रुड़की से सरकारी नौकरी की नियुक्ति पत्र ही इसलिए मिला कि विद्याद्त की लेखनी सुंदर थी।  श्री सदानंद ने सरकारी नौकरी करने की अनुमति नही दी।
संस्कृत साहित्य की दृष्टि से 'रासविलास'की टीका एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।  विद्यादत्त ने प्रत्येक पद्य का अन्वय सहित व्याख्या की और यथार्थ भाव को ध्यान में रख शब्दार्थ को महत्व दिया।
विद्याद्त अपने समय के प्रख्यात व्यास थे और लोग पुराण कथा सुनने मीलों दूर से आते थे। हाँ खाने -पीने -घूमने के सदा शौक़ीन थे।
1993 विद्याद्त डबराल ब्रह्मलीन हुए।


 **** डा प्रेम दत्त चमोली की गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन से साभार
* डा नन्द किशोर ढौंडियाल , गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ से साभार
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Viddya Datt Dabral a Sanskrit Scholar from Timli, Viddya Datt Dabral a Sanskrit Scholar from Dabralsyun; Viddya Datt Dabral a Sanskrit Scholar from Pauri Garhwal; Sanskrit  Scholars from Garhwal; Sanskrit Scholars from Pauri Garhwal;Sanskrit Scholars from Chamoli Garhwal; Sanskrit Scholars from Rudraprayag Garhwal; Sanskrit Scholars from Tehri Garhwal;Sanskrit Scholars from Uttarkashi Garhwal;Sanskrit Scholars from Dehradun Garhwal;Sanskrit Scholars from Garhwal, Uttarakhand; Sanskrit Scholars from Garhwal, North India
स्वच्छ भारत ! स्वच्छ भारत ! बुद्धिमान भारत !

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