Author Topic: उत्तराखण्ड की समाजसेवी और दानवीर विभूतियां Social activist of Uttarakhand  (Read 9264 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
साथियो,
      इस विषय के अन्तर्गत हम उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध समाजसेवी और दानवीर विभूतियों से परिचित करायेंगे। उत्तराखण्ड में कई व्यक्तियों ने समाज सेवा का उतृष्ट उदाहरण पेश किये हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत समस्याओं से वंचित उत्तराखण्ड के विकास में इनका विशिष्ट योगदान रहा है। इन दानवीरों द्वारा सामाजिक कार्यों के लिये अपनी भूमि तथा उसमें निर्माण के लिये धनराशि भी दिया गया है।
     इनकी दानवीरता के लिये उत्तराखण्ड हमेशा कृतग्य रहेगा, यहां पर उन्हें याद कर हम उन्हें, उनके द्वारा किये गये कार्यों के लिये धन्यवाद देंगे।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
सबसे पहले मुझे एक नाम याद आता है ठाकुर दान सिंह बिष्ट "मालदार" जी का, वे कुमाऊं क्षेत्र के मालदार थे, बेरीनाग और चौकौड़ी के चाय बागान भी उन्हीं की मल्कियत हैं। वे बहुत ही समाजसेवी व्यक्ति थे, शिक्षण संस्थाओं का अभाव उन्हें बहुत सालता था, इसलिये उन्होंने पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और नैनीताल मुख्यालय पर एक-एक स्कूल अपनी भूमि दानकर अपने खर्चे पर बनवाया।
     पिथौरागढ़ स्थित देव सिंह बिष्ट इंटर कालेज, अल्मोड़ा महाविद्यालय परिसर और कुमाऊं विश्वविद्यालय परिसर, नैनीताल सभी इन्हीं के द्वारा बनवाये गये। ठाकुर देव सिंह बिष्ट इनके पिताजी का नाम था, जिनके नाम पर उन्होंने यह विद्यालय खुलवाये। कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल का परिसर आज भी DSB Campus यानि देव सिंह बिष्ट परिसर के नाम से जाना जाता है।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
उत्तराखण्ड के दानवीरों की बात की जाये तो सबसे पहले श्री दान सिंह बिष्ट "मालदार जी" का नाम लेना उचित रहेगा. पिथौरागढ के क्वीतङ इलाके के मूल निवासी दान सिंह बिष्ट जी ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों के करीबी माने जाते थे. इस दौरान उन्होंने अपनी ईमानदारी व मेहनत की बदौलत कुमाऊं व देश के विभिन्न शहरों में काफी सम्पत्ति खङी की.

दान सिंह बिष्ट जी का कुमाऊं में शिक्षा के प्रचार-प्रसार में भारी योगदान है. उनकी दानशीलता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नैनीताल में कुमाऊं विश्वविद्यालय का मुख्य कैम्पस उन्ही की दान की हुई भूमि पर स्थित है. कुमाऊं विश्वविद्यालय के नैनीताल कैम्पस का नाम भी उनके पिता के नाम पर देव सिंह बिष्ट कैम्पस (D.S.B. Campus) है.

इसके अलावा पिथौरागढ की प्रमुख शिक्षण संस्था सरस्वती देव सिंह इन्टर कालेज (S.D.S. GIC) और उसका विशाल खेल का मैदान भी बिष्ट जी द्वारा दान दी गई भूमि पर ही बना है.

बेरीनाग के पास स्थित चौकोङी के चाय बागान भी बिष्ट जी की उद्यमी दिमाग की ही उपज थे, जिनमें पैदा की गई चाय उत्तम क्वालिटी के लिये मशहूर थी और किसी समय विश्व के कोने-कोने में निर्यात की जाती थी.

-हेम पंत

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1

चण्डी प्रसाद भट्ट - उत्तराखण्ड के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरणविद

जन्म- गोपेश्वर, चमोली जून 23, 1934 पिता- श्री गंगा राम भट्ट, माता - श्रीमती महेशी देवी

संस्थापक - दशौली ग्राम सेवा मण्डल (ग्रामीणों का सहकारिता समूह )

उपलब्धियां - "चिपको आन्दोलन" के प्रणेता व अग्रणी नेता, रैमन मैग्ससे पुरस्कार 1982 से सम्मानित, भारत सरकार द्वारा 1983 में पदम श्री व 2005 में पदम विभूषण से सम्मानित.


चण्डी प्रसाद भट्ट जी के बारे में आप विस्तारपूर्वक यहां भी पढ सकते हैं

http://www.rmaf.org.ph/Awardees/Biography/BiographyBhattCha.htm



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Daan Singh Maaldar. Nainital me unka bahut naam tha ek samay Mai. Abhi Bhi Chaukadi (pithoragarh) or nainital mai inke naam ke bahut charcha hote hai.


सबसे पहले मुझे एक नाम याद आता है ठाकुर दान सिंह बिष्ट "मालदार" जी का, वे कुमाऊं क्षेत्र के मालदार थे, बेरीनाग और चौकौड़ी के चाय बागान भी उन्हीं की मल्कियत हैं। वे बहुत ही समाजसेवी व्यक्ति थे, शिक्षण संस्थाओं का अभाव उन्हें बहुत सालता था, इसलिये उन्होंने पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और नैनीताल मुख्यालय पर एक-एक स्कूल अपनी भूमि दानकर अपने खर्चे पर बनवाया।
     पिथौरागढ़ स्थित देव सिंह बिष्ट इंटर कालेज, अल्मोड़ा महाविद्यालय परिसर और कुमाऊं विश्वविद्यालय परिसर, नैनीताल सभी इन्हीं के द्वारा बनवाये गये। ठाकुर देव सिंह बिष्ट इनके पिताजी का नाम था, जिनके नाम पर उन्होंने यह विद्यालय खुलवाये। कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल का परिसर आज भी DSB Campus यानि देव सिंह बिष्ट परिसर के नाम से जाना जाता है।


पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
प्रताप सिंह बोरा "प्रताप भैय्या"

जन्म- १२ दिसम्बर, १९३२, ग्राम- च्यूरी गाड़, नैनीताल।

लखनऊ वि०वि० से राजनीति शास्त्र में एम०ए० की उपाधि लेने के बाद एल०एल०बी०, डी०पी०ए० तथा आई०टी०डी० की डिग्रियां लीं। छात्र जीवन में ही खासे चर्चित रहे। प्रख्यात समाजवादी नेता आचार्य नरेन्द्र देव के निकट सम्पर्क में आये और अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत समाजवादी आंदोलन से की। डा० राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जय प्रकाश नारायण और युसूफ मेहर अली के समाजवादी दर्शन से प्रभावित रहे। आजादी के बाद दूसरे विधान सभा चुनाव में मात्र २५ साल की उम्र में उत्तर प्रदेश की विधान सभा के लिये निर्वाचित हुये। उस समय आप सबसे कम आयु के विधायक बने। दूसरी बार १९६७ में पुनः आप विधान सभा के लिये निर्वाचित हुये और चौ० चरण सिंह की सरकार में स्वास्थ्य और सहकारिता मंत्री बने। बाद भी उन्होंने चुनव लड़े परन्तु सफल नहीं हो पाये।
     भैय्या जी के जीवन का आदर्श पहलू है- मन, वचन और कर्म से शिक्षा के प्रसार को समर्पण। आचार्य नरेन्द्र देव के सपनों को साकार करने के लिये आपने १९६९ में " आचार्य नरेन्द्र देव शिक्षा निधि की स्थापना की। आज इस शिक्षा निधि के अन्तर्गत कुर्मांचल के विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी स्तर से लेकर माध्यमिक स्तर तक लगभग ६० स्कूल सफलतापूर्वक चल रहे हैं। १९६४ में भैय्या जी द्वारा नैनीताल में "भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय" की स्थापना की। इस विद्यालय में युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों के बच्चों को बिना शुल्क शिक्षा, भोजन और आवास उपलब्ध कराया जाता है।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
लाला बाबूराम

हल्द्वानी के प्रसिद्ध व्यापारी स्व० श्री मोतीराम जी के पुत्र लाला बाबूराम ने वर्ष १९३० में अपनी सारी जमीन, दुकानें, बगीचे, मैदान और पांच हजार रुपये नकद नैनीताल बैंक में जमाकर हल्द्वानी शहर में शिक्षा के प्रसार के लिये दान में दे दी थी। इससे बरेली रोड पर सबसे पहले मोतीराम बाबूराम (एम०बी०) मिडिल स्कूल शुरु किया गया जो बाद में भोटिया पड़ाव स्थानान्तरित हुआ और 1961  में डिग्री कालेज बन गया आज वह विद्यालय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बन चुका है। इस विद्यालय के अतिरिक्त बाबूराम जी के प्रयासों से लक्ष्मी शिशु मंदिर, बरेली रोड पर खोला गया जो अब हाईस्कूल हो चुका है। आज की तारीख में लाला बाबूराम द्वारा स्थापित यह ट्रस्ट इन दोनों विद्यालयों के अलावा एम०बी० कन्या महाविद्यालय को भी संचालित कर रहा है।

     ऎसा नहीं था कि लाला बाबूराम की संतान नहीं थी, उनकी एक पुत्री भगवती देवी थीं, जिनका विवाह प्रो० जगमोहन स्वरुप गर्ग जी के साथ हुआ था, जब लाला जी ने अपने दामाद से कहा कि वे अपनी सारी जायजाद उनके नाम करना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिये, अगर आप कुछ करना ही चाहते हैं तो सारी सम्पत्ति को दान कर एक ट्रस्ट बनवा दीजिये और उसके द्वारा स्कूल खुलवायें। उन्हीं की प्रेरणा से लाला जी द्वारा यह कार्य किया गया।
      इसी क्रम में हल्द्वानी के प्रसिद्ध हलवाई श्री रामनारायण जी का उल्लेख भी जरुरी है, जिन्होंने स्कूल के भवन से लगी अपनी दुकान और मकान भी स्कूल को दान कर दिया था।

Rajen

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,345
  • Karma: +26/-0
दातारो चिरजीवन:

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
श्री शक्ति प्रसाद सकलानी जी द्वारा लिखित "उत्तराखण्ड की विभूतियां" नामक पुस्तक में दान सिंह मालदार जी के बारे में निम्न वर्णन उद्धृत है-

दान सिंह बिष्ट "मालदार"  (1906-1964)

ग्राम- वड्ड़ा, जिला पिथौरागढ़,
उत्तराखण्ड क्षेत्र के पहले महान व्यवसायी,
टिम्बर किंग आफ इण्डिया उपनाम से विख्यात,
दानवीर, शिक्षाप्रेमी, पहले उत्तराखण्डी चाय बागान के स्वामी,
स्वालम्बी उत्तराखण्ड के स्वप्न दृष्टा।


बाल्यकाल पिथौरागढ़ में बीता, यहीं प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण की, अग्रिम शिक्षा राजकीय हाईस्कूल, धारानौला के प्रधानाचार्य श्री उमाकान्त जी के संरक्षण में प्राप्त की, इनके पिता ठाकुर देव सिंह बिष्ट धन-धान्य से सम्पन्न तथा "राय बहादुर" की उपाधि से विभूषित थे। इनकी माता श्रीमती सरस्वती देवी ईश्वर भक्तेवं उदारमना महिला थीं।
१९२० में श्री देव सिंह बिष्ट ने चौकोड़ी और बेरीनाग में दो बड़े चाय के बागान  और डेयरी फार्म खरीदे। कारोबार में पिता का हाथ बंटाने के लिये इन्हें आगे आना पड़ा, अतः इनकी पढ़ाई में व्यवधान आ गया। कड़ी मेहनत और लगन से इन्होंने इन कारोबारों में आशातीत प्रगति और ख्याति अर्जित की। एक बार वह समय भी आया कि जब बेरीनाग की चाय राष्ट्रीय बाजार में अपनी एक खास जगह बना गई। इस बीच इन्होंने अपने अकेले दम पर लकड़ी का कारोबार शुरु किया और "देव सिंह बिष्ट एण्ड संस" नाम से एक कम्पनी स्थापित की। लक्ष्मी माता की कृपा इन पर हुई और इनका लकड़ी का व्यवसाय जम्मू-कश्मीर, असम, हिमांचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश ही नहीं नेपाल तक फैल गया। दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति के साथ ही इनकी ख्याति भी बढ़ने लगी। दान सिंह बिष्ट, जिन्हें लोग उनकी आर्थिक सम्पन्नता के कारण सम्मान स्वरुप "मालदार साहब" कहकर सम्बोधित करते थे, शीघ्र ही "टिम्बर किंग आफ इण्डिया के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हो गये। आजादी के बाद देश विभाजन के समय इनकी करोड़ों रुपये की लकड़ी पाकिस्तान में ही रह गई थी, किन्तु मालदार साहब के चेहरे पर शिकन भी नहीं आई। उसी दौरान आपने करोडों रुपये मूल्य की लकड़ी भारतीय सेना को सहायता स्वरुप प्रदान कर दी। मालदार साहब द्वारा स्थापित उद्योगों में उस समय अकेले उत्तराखण्ड से करीबन ढाई-तीन हजार लोगों को रोजगार प्राप्त था।
         असल में मालदार साहब उत्तराखण्ड के अधिसंख्य लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना चाह्ते थे। वे स्वालम्बी उत्तराखण्ड के स्वप्न दृष्टा थे, उनकी सेवायें अविस्मरणीय हैं। वड्डा में हाईस्कूल, कमलेश्वर में जूनियर हाई स्कूल, पिथौरागढ़ नगर में अपनी माता जी के नाम पर हाईस्कूल, पिथौरागढ़ में तीन मंजिली भव्य धर्मशाला का निर्माण, अपने पैतृक गांव क्वीतड़ में ९ कि०मी० लम्बी पीने के पानी की पाईप लाईन का निर्माण, बेरीनाग में एक स्कूल और एक औषधि केन्द्र के निर्माअण के अतिरिक्त नैनीताल में डिग्री कालेज की स्थापना, आपकी उदारता, दानशीलता के ज्वलंत प्रमाण है। आपका एक सपना जो आपके जी पूरा नहीं हो सका, वह था किच्छा ( जिला उधम सिंह नगर) में एशिया की सबसे बड़ी चीनी की मिल की स्थापना। कुमाऊं भ्रमण के दौरान लेखक ने कई स्थानीय लोगों के मुंह से मालदार साहब के लिये "शेर-ए-कुमाऊं" और कुमाऊं का राजा जैसे सम्मानजनक सम्बोधन सुने। १० सितम्बर, १९६४ को आप पुत्र विहीन स्वर्ग सिधारे, आपकी छह पुत्रियां सुशिक्षित, सुसंस्कृत सम्पन्न घरों में ब्याही हैं।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
मानी बूढ़ा रावत- यह जोहार (मुनस्यारी) पिथौरागढ़ के एक व्यापारी थे और परोपकारी और समाजसुधारक व्यक्ति थे। इन्होंने १८७६ में एक बड़ी राशि व्यय कर मिलम और मुनस्यारी के बीच बारुदी सुरंग द्वारा अभेद्य चट्टानों को काट कर सुगम मार्ग बनवाया और छिरकानी के निकट गोरी नदी के प्रवाह की दिशा को बदल कर जो नहर निकाली गई, उसमें भी उनकी बड़ी भूमिका रही। इन्होंने कैलाश तीर्थयात्रियों के लिये मुनस्यारी में एक धर्मशाला भी बनवाई थी।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22