Author Topic: Source of Inspiration / Role Model for Others-समाज के लिए प्रेरणास्रोत  (Read 6244 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,
 
There are many people in socieity whose works becomes examplary for others and they become a source of Inspiration and Role Model for society.
 
We will sharing information about such people here who are really source of inspiration.
 
M S Mehta
 
  एकलव्य तराशने में जुटा द्रोण     Jul 14, 09:07 pm   बताएं            रघुभाई जड़धारी, चम्बा
मंजिल पता थी और रास्ता भी, फिर कारवां की क्या जरूरत? एक बार एकला चलो की राह पकड़ी तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। टिहरी के इस शिक्षक को देखकर स्वत: ही मन गुरु की गरिमा के सामने नतमस्तक हो जाता है। वे ऐसे द्रोणाचार्य हैं जो जीवनभर 'एकलव्य' को तराशने में जुटे रहे। इसीलिए धूम सिंह नेगी इलाके में 'गुरुजी' के नाम से जाने जाते हैं। 49 साल पहले सरकारी स्कूल से त्यागपत्र देकर ग्रामीण अंचलों में ज्ञान की अलख जगाने का जो संकल्प उन्होंने लिया उसे आज तक निभा रहे हैं। इस दौरान गुरुजी ने एक-दो नहीं, बल्कि पूरे छह स्कूल खोले। इनमें से पांच स्कूल सरकारी हो चुके हैं। जीवन की संध्या में बिना किसी पुरस्कार और प्रचार की चाह के गुरुजी पूरी तन्मयता के साथ ज्ञान की चांदनी छिटका रहे हैं।
टिहरी जिले में हेंवलघाटी के पिपलेथ कठ्या गांव के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे धूम सिंह नेगी को बचपन से ही यह बात कचोटती थी कि उनके इलाके में स्कूल नहीं थे। स्नातक करने के बाद 1962 वे एक सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गए। तब ग्रामीणों ने उनसे गुजारिश की कि वे एकमात्र उच्च शिक्षित हैं और वे भी नौकरी के फेर में बाहर रहेंगे तो गांव के बच्चों का क्या होगा। बस! इसी गुजारिश पर उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। वापस गांव पहुंचकर जाजल में प्राइवेट जूनियर तक विद्यालय खोल गरीब बच्चों को शिक्षा देने लगे। स्कूल को सरकारी मान्यता मिलने पर उन्हें यही बतौर शिक्षक कार्य करने का आमंत्रण दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य पूरा हो गया है। आज यह स्कूल राजकीय इंटर कालेज बन चुका है। इसके बाद उन्होंने पिपलेथ, चौंपा, क ठ्या, आदि कई जगहों पर प्राथमिक विद्यालय खुलवाये जो आज सरकारी विद्यालय के रूप में कार्य कर रहे है। स्कूली बच्चों के लिए उन्होंने हस्तलिखित इन्द्रधनुष नाम की मासिक पत्रिका भी निकाली थी।
73 साल की उम्र में धूम सिंह नेगी पूरी तरह सक्रिय हैं। अब नजदीकी सरकारी विद्यालयों में जाकर शिक्षकों के साथ बैठकें करते है तथा बच्चों का आंकलन कर उन्हें उपयोगी जानकारी देते है। वह कहते हैं कि शिक्षण कार्य में सुधार की आवश्यकता है केवल निशुल्क शिक्षा देने से बदलाव नही आ सकता।
(Source Dainik Jagran)
 
 

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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We salute such people who dedicate their lives for well fare of others. People like Dhoom Singh Negi are hardly in such today’s life. We should learn from him .

I recall two lines of film song “Apne Liye Jiye to kya Jiye”. 



Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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We salute such people who dedicate their lives for well fare of others. People like Dhoom Singh Negi are hardly in such today’s life. We should learn from him .

I recall two lines of film song “Apne Liye Jiye to kya Jiye”. 



विनोद सिंह गढ़िया

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प्रधान और शिक्षक ने नामिक को दिया भगवान

नाचनी (पिथौरागढ़)। मजबूरियां मनुष्य को केवल पीछे ही नहीं धकेलतीं बल्कि आगे बढ़ने का हौसला भी देती हैं, चुनाव आपका है। 1980 में सीमांत जिले के नामिक के जागरूक ग्राम प्रधान और एक शिक्षक ने जो सपना देखा था वह न केवल पूरा हुआ बल्कि औरों के लिए भी मिसाल बन गया। सड़क से 28 किमी की दूरी पर स्थित नामिक के प्राथमिक स्कूल में कोई भी शिक्षक नहीं जाना चाहता था। प्रधान और शिक्षक ने गांव के ही एक बालक के गुणों को पहचानते हुए उसे प्रारंभिक से लेकर इंटर तक की शिक्षा दिलाई और फिर बीटीसी की ट्रेनिंग करा शिक्षक बना डाला।
नामिक ग्लेशियर से 14 किमी नीचे प्रकृति की सुरम्य वादियों, लेकिन बेहद कठिन जीवन जी रहे 112 परिवारों वाले नामिक गांव में छह माह ही आवाजाही होती है। अक्तूबर से मार्च तक गांव बर्फ से ढका रहता है। रास्ते भी बंद हो जाते हैं। नामिक में सरकार ने वर्ष 1961-62 में प्राथमिक पाठशाला तो खोल दी लेकिन तमाम प्रोत्साहन देने के बाद भी वहां कोई शिक्षक अधिक समय नहीं टिकता था। 1965 से 98 तक गांव प्रधान रहे बाला सिंह कन्यारी और तत्कालीन शिक्षक हीरा सिंह मेहता ने
गांव के ही किसी बालक को बेहतर शिक्षा देकर शिक्षक बनाने का फैसला किया। 1981 में प्राथमिक पाठशाला में गांव के गरीब किसान मान सिंह जिमियाल के पुत्र भगवान सिंह जिमियाल ने दाखिला लिया। होनहार भगवान ने ग्राम प्रधान और शिक्षक की मदद से 1986 में पांचवीं कक्षा उत्तीर्ण की। इन्हीं की मदद से मुनस्यारी के आश्रम विद्यालय में भगवान को दाखिला मिला। 1992 में मुनस्यारी जीआईसी से हाईस्कूल और 94 में इंटर पास किया। ग्राम प्रधान बाला सिंह यहीं नहीं रुके। उन्होंने युवा हो चुके भगवान को बीटीसी कराई। उसी की इच्छा पर विभाग ने 29 सितंबर 1997 को प्राथमिक पाठशाला नामिक में बतौर सहायक अध्यापक नियुक्ति दे दी। 2008 में विभाग ने नामिक प्राथमिक पाठशाला को जूनियर हाईस्कूल का दर्जा दे भगवान जिमियाल का जूनियर हाईस्कूल में प्रमोशन कर दिया। कालापानी माने जाने वाले नामिक में आज भी कोई शिक्षक नहीं जाना चाहता। भगवान वहीं पढ़ाते हुए बाकी कार्यकाल पूरा करना चाहता है।

मेहता और कन्यारी की याद से आंखें भर आती हैं: बालिका शिक्षा पर विशेष जोर देने वाले भगवान जिमियाल की मेहनत का ही इसे फल कहेंगे कि जिस नामिक में 1997 से पहले मात्र 7 बालिकाएं जूनियर हाईस्कूल की शिक्षा ले पाईं थीं, आज उसी नामिक की पांच युवतियां परास्नातक हैं। गांव की 37 बालिकाएं, 32 बालिकाएं, 7 बालक जूनियर स्तर की शिक्षा हासिल कर रहे हैं। बालिका शिक्षा पर बेहतर काम के लिए 2004 में भगवान, खंड शिक्षाधिकारी द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं। तत्कालीन प्रधान कन्यारी और शिक्षक मेहता की याद दिलाने पर आज भी भगवान के आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं।

साभार : अमर उजाला

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रदीप की पहल
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प्राकूत्तिक संपदा के धनी पहाड़ों को
संरक्षण की जरूरत होती है। खासतौर पर तब जब उसे सहजने वालों से अधिक नुकसान पहुंचाने वाले की तादाद बढ़ती जा रही है। ग्राम पंचायत बेरीनाग के प्रदीप महरा प्रकूति और पर्यावरण को सहेजने वालों में से एक हैं।
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प्रदीप युवक मंगल दल और क्षेत्रीय युवक समिति के अध्यक्ष के रूप में पिछले आठ साल से पर्यावरण संरक्षण के साथ ग्रामीणों को जागरूक कर रहे हैं। प्रदीप ने विकास खण्ड बेरीनाग के ग्राम पंचायतों में बंजर भूमि पर १२ हजार पौधों का रोपण किया गया है। इन पेड़ों का संरक्षण भी वे खुद कर रहे हैं। लोगों को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने के लिए वे वर्ष भर स्कूली बच्चों और युवाओं के माध्यम से रैली, पॉलीथिन उन्मूलन अभियान, गोष्ठी आदि करते रहते हैं।
इसके साथ ही प्रदीप समाज सेवा के कार्य से भी जुड़े हैं। इन्होंने ५० विधवा महिलाओं, १० विकलांगों एवं ५० वृद्धों को पेंशन स्वीकूत करवायी है। अल्प बचत के लिए ग्रामीणें को
प्रेरित कर ५ लाख २५ हजार रुपया पोस्ट ऑफिस में जमा करवाया। परिवार नियोजन के लिए सौ
महिलाओं को प्रेरित किया। विकास खण्ड की ग्राम पंचायत बेलडाआगर में श्रमदान से ५०० मीटर सम्पर्क मार्ग का निर्माण प्रदीप की कोशिश से हो सका। तम्बाकू निषेध दिवस पर ६० युवाओं से नशा न करने का संकल्प पत्र भरवा कर उन्हें नशा मुक्त करवाने में सहायक बने।
सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत ११ ग्राम पंचायतों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले २०० परिवारों को शौचालय दिलवाने में सहयोग प्रदान किया। विकास खण्ड में १०७ स्वयं सहायता समूह गठित किये। मुस्कान सामाजिक उत्थान समिति पिथौरागढ़ के साथ मिलकर पिछले तीन वर्षों से ७९ अनाथ बच्चों को गोद लेकर उन्हें शिक्षित करने में सहयोग कर रहे हैं। पानी की बढ़ती समस्या को देखते हुये प्रदीप ग्रामीणों को वर्षा पेयजल संरक्षण के बारे में जागरुक कर रहे हैं।
श्री देव सुमन की पुण्य तिथि पर विकास खण्ड के सभी युवक और महिला मंगल दलों के साथ लेकर प्रदीप ने वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाया। इसके जरिये २००० हजार पेड़ लगाये गये। प्रदीप समय-समय पर युवाओं के साथ मिलकर गांवों में सफाई अभियान, जल संरक्षण, पौधारोपण से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर युवाओं के साथ गोष्ठी, रैली, साफ-सफाई अभियान, पॉलीथिन नष्ट, नौलों की सफाई का कार्यक्रम किया। प्रदीप अपने संकल्प और मेहनत के बूते स्थानीय युवाओं के लिये मिसाल बन गये हैं।
 
 
www.thesundaypost.in
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 राष्ट्रपति से पुरस्कृत डा. जोशी सम्मानित     Sep 18, 04:58 pm   बताएं              जागरण कार्यालय, चम्पावत: शांतिकुंज हरिद्वार संस्था के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजे गए डा. बीसी जोशी को सम्मानित किया गया।
शिक्षा सभागार में पूर्व प्रधानाचार्य इंद्र सिंह बोहरा के संचालन में हुए इस कार्यक्रम में वंशीधर उपाध्याय ने डा. जोशी के कार्यो की सराहना की। उन्होंने कहा कि वह जिस लगन और निष्ठा से शिक्षण कार्य को संचालित कर रहे हैं, निश्चित रूप से उसकी प्रतिफल है कि उन्हें राष्ट्रपति से सम्मान मिला। उपाध्याय ने शांतिकुंज हरिद्वार संस्था के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर जिला शिक्षाधिकारी पीआर कोहली ने राष्ट्रपति पुरस्कृत डा. भुवन चंद्र जोशी को संस्था की ओर से अंगवस्त्र और पुस्तक भेंटकर सम्मानित किया। सम्मान समारोह में एडीईओ एनसी पाठक, आनंद भारद्वाज, खंड शिक्षाधिकारी महेश राम, टीआर वर्मा, सत्यनारायण, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हेम उप्रेती, शांतिकुंज संस्था से जुडे़ डीएस पाटनी, रेखा श्रीवास्तव, उमेश रस्तोगी, हीरा सिंह बोहरा, शांतिकुंज हरिद्वार से आई शिप्रा गुप्ता और अनीता टेंबरी मौजूद थी।
 
(Source - Dainik Jagran)
 
 

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एक जुनून, एक समर्पण का नाम है नरेन्द्र पांथरी   September 25, 2011 - nufeeder - व्यक्तित्व    उत्तराखण्ड की धरती पर जन्म नहीं हुआ तो क्या? व्यक्ति के दिल में पूर्वजों द्वारा प्रदत्त संस्कृति के प्रति सम्मान हो तो वह उसे एक विरासत समझकर सहेज कर रखता है। बचपन से ही नरेन्द्र के मन में अपने पूर्वजों की जन्मस्थली के प्रति असीम प्यार एवं लगाव रहा। नतीजन दिल्ली में जन्म लेने तथा दिल्ली से ही स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद नरेन्द्र ने बचपन से ही अभिनय, उत्तराखण्ड की सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। ज्यों-ज्यों नरेन्द्र व्यस्क होते गये त्यों-त्यों उन्हें आभास होता गया कि उनका जन्म जैसे उत्तराखण्ड के संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए ही हुआ है। माध्यम चाहे स्टेज हो, गायन हो, या फिर संगीत हो नरेन्द्र पांथरी बस तन-मन से इन माध्यमों के द्वारा लोगों तक अपनी उपस्थिति की आवश्यकता बताने में कामयाब होते चले गये।
1991 में नरेन्द्र पांथरी ने अनेक अभावों एवं कठिनाइयों के चलते दिल्ली में रहकर देवभूमि लोक कला सोसायटी की स्थापना की। उत्तराखण्ड के उपेक्षित कलाकारों को संरक्षण देने का काम तो किया ही साथ ही उत्तराखण्ड से लुप्त हो चुकी संस्कृति को भी जीवित रखने का बीड़ा उठाया। पौड़ी में बीरोखाल ब्लॉक के खितोरिया (खाटली) गांव के दमोदर दत्त पांथरी के इस होनहार पुत्र की उपलब्धियों में आज कई सितारे अपनी-अपनी आभा बिखेर रहे हैं।
आज नरेन्द्र पांथरी निर्देशित अनेक वीडियो एलबम, कई स्टेज शो सम्पूर्ण उत्तराखण्ड संस्कृति प्रेमियों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। अब उनकी संस्था की उपलब्धियों के साथ ही पूर्व में उपेक्षित कलाकार नाम और दाम दोनों ही कमा रहे हैं। नरेन्द्र पांथरी के संगीत-सांस्कृतिक संग्रहालय में आज उत्तराखण्ड से प्राय: लुप्त हो चुकी प्राचीन धरोहर ढोल, दमों, नागर, मसकी बीन, रणसिंगा, छौलिया, सरैया, हुड़की इत्यादि सभी तरह के वाद्य मौजूद हैं, देवी-देवताओं के जागर, उत्तराखण्डी लोकगीत, भजन, लोक-नृत्य, नाटकों को जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाये नरेन्द्र पांथरी इस पहाड़ की समृद्ध संस्कृति को देश-विदेश में एक अलग पहचान तक पहुंचाना चाहते हैं।
नरेन्द्र के दिशा-निर्देशों में उनकी संस्था भी उनका बराबर साथ दे रही है। जहां ‘निराला उत्तराखण्डÓ देश-विदेश में निवास कर रहे समस्त प्रवासी उत्तराखण्डियों को एक सूत्र में पिरोने के महाअभियान को संचालित कर रहा है अब नरेन्द्र के साथ मिलकर और सुदृढ़ होगा यही आशा है।


http://www.niralauttarakhand.com/

 

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सरनौल के अनमोल सिंह बने सर्वोत्तम भेड़ पालक


जागरण प्रतिनिधि, बड़कोट: नौगांव प्रखंड के दूरस्थ गांव सरनौल के अनमोल सिंह चौहान को इस वर्ष का सर्वोत्तम भेड़ पालक पुरस्कार दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार उत्तराखंड शीप एंड वूल डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून व पशुपालन विभाग उत्तरकाशी के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित भेड़ प्रदर्शनी में दिया गया। प्रदर्शनी में 19 भेड़ पालकों को छह श्रेणियों में पुरस्कृत करने के साथ ही 30 भेड़ पालकों को सांत्वना पुरस्कार भी दिया गया है।
विकास खंड नौगांव के अंतर्गत जीआइसी सरनौल में उत्तराखंड शीप एंड वूल डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून एवं पशुपालन विभाग उत्तरकाशी के तत्वाधान में एक दिवसीय भेड़ प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। बड़कोट पशु चिकित्साधिकारी डॉ.अमित देवराड़ी ने बताया कि भेड़ प्रदर्शनी में एक हजार से भी अधिक भेड़ों के साथ 49 टोलियों के भेड़ पालकों ने भाग लिया। जिसमें ग्राम सरनौल के अनमोल सिंह चौहान को सर्वोत्तम भेड़ पालक चुना गया। इसके साथ-साथ 19 टोलियों के भेड़ पालकों को छह श्रेणियों में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार और 30 भेड़ पालकों को सांत्वना पुरस्कार दिया गया है।
प्रदर्शनी में पशुओं का इलाज करने के साथ ही डॉक्टरों ने दवा वितरण भी की है। प्रदर्शनी में देहरादून से आए डॉ.उमेश भट्ट ने उत्तराखंड सरकार की ओर से चलाई जा रही पशु बीमा एवं विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी। साथ ही उन्होंने बेहतर भेड़ पालन के तरीके भी भेड़ पालकों को बताए। इस मौके पर कार्यक्रम अध्यक्ष जगमोहन सिंह राणा, ग्राम प्रधान सुमित्रा चौहान, भरत सिंह रावत, डॉ.धर्मेन्द्र नाथ, डॉ.अमित देवराड़ी, डॉ.मायामित सैनी, नरेन्द्र रावत, भाष्कर भंडारी आदि उपस्थित थे।

(Source Dainik Jagran)


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रमेश खर्कवाल ने उगाई 15 किलो वजनी लौकी  Champawat | Last updated on: December 12, 2012 5:30 AM

 
लोहाघाट। कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित किसान मेले में सब्जियों, फलों, फूलों आदि की प्रदर्शनी में किसानों की मेहनत अलग ही रंग बिखेर रही थी। सुई खैसकांडे के प्रगतिशील किसान रमेश खर्कवाल की 15 किलो वजनी लौकी आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। पंतनगर से आए वैज्ञानिकों के किए गए मूल्यांकन के आधार पर मटर में शोबन सिंह, त्रिलोचन चौबे, बलवंत सिंह, टमाटर में नवीन चौबे, उर्वादत्त चोबे, कद्दू में पंकज तिवारी, मनोज चौबे, मिर्च पौध में देवकी ओली, उर्वादत्त, ककडी में जीवन कुमार, तनुज पुजारी, फूल गोभी  में संजय पुजारी, त्रिलोचन चौबे, तारादत्त खर्कवाल क्रमश: पहले, दूसरे एवं तीसरे स्थान पर रहे।
जैविक गाजर में हयात सिंह तडागी, कुशकुश में शांति चौबे, पुष्पा देवी, कागजी नींबू में बसंत सिंह, शोबन सिंह, रमेश खर्कवाल, बडा नींबू में उर्वादत्त, संतरा में रमेश खर्कवाल, तारादत्त खर्कवाल, माल्टा में रमेश चौबे, त्रिलोचन चौबे, गेठी में देवीदत्त, गुलकंद में रमेश चौबे, आचार में आरडी चौथिया एवं भुवन चंद्र, हरी सब्जी में तारा दत्त खर्कवाल, शिमला मिर्च में अजय गहतोड़ी, अदरख में नवीन चौबे, टीडी खर्कवाल, मैरी गोल्ड में रमेश खर्कवाल के उत्पाद अव्वल घोषित किए गए। सभी काश्तकारों को विश्व विद्यालय के निदेशक शोध एवं निदेशक प्रसार ने पुरस्कृत कर सम्मानित किया ।

(Source Amar Ujala)

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घराट को बनाया बहुद्देशीय प्रोजेक्ट




जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी: कहते हैं कि मन में लगन हो तो कठिन राहें भी आसान हो जाती हैं। बसुंगा गांव के मदन सिंह राणा ने यह साबित भी कर दिखाया है। वरुणावत त्रासदी में अपना रोजगार गंवाने के बाद इस शख्स ने सरकार से कोई मदद का इंतजार किए बिना अपने परंपरागत घराट को बहुद्देशीय परियोजना में बदल डाला। मदन की इस परियोजना से न केवल उनका घर रोशन हो रहा है, बल्कि पिसाई, पिराई की मशीनें भी इससे संचालित हो रही हैं।
 वर्ष 2003 में वरुणावत में हुए भूस्खलन में मदन सिंह राणा की बिजली के सामान की दुकान दब गई थी। इस आपदा को उन्होंने एक चुनौती की तरह लिया। जिला मुख्यालय से महज तीन किमी दूर वारुणा नदी के किनारे अपने परंपरागत घराट पर उन्होंने काम करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद एक एनजीओ हैस्को की मदद से उन्होंने अपने घराट को उच्चीकृत करना शुरू कर दिया। अगले वर्ष उन्होंने घराट में गेहूं की पिसाई के अलावा, धान और तेल निकालना भी शुरू कर दिया। इसी के साथ घराट पर लगी टरबाइन से पांच किलोवाट बिजली भी पैदा होने लगी। अब उनका घर इसी बिजली से रोशन हो रहा है। ऊन की छंटाई और मसाले पीसने का भी विकल्प उनके पास मौजूद है। परियोजना के लिए एकत्र हुए पानी का उपयोग वह एक अन्य रोजगार मत्यस्य पालन के लिए कर रहे हैं। इस बहुद्देशीय परियोजना को साठ वर्षीय राणा बड़ी कुशलता से संचालित कर रहे हैं।
 बढ़ती उम्र में कुछ नया कर दिखाने की ललक अन्य लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है। हाल ही में उन्होंने कंवा गांव में भी ऐसी ही एक घराट परियोजना विकसित करने में मदद की है। राणा अपने अनुभव से बताते हैं कि उन्हें रोजाना पांच सौ से एक हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है। अगर युवा इस क्षेत्र में कदम बढ़ाएं तो उनके सामने रोजगार की समस्या ही नहीं आएगी।
 प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं
 उत्तरकाशी : जिले मे उरेडा, ऊर्जा निगम व अन्य सरकारी व गैर सरकारी प्रतिष्ठानों के लिए मदन सिंह राणा की परियोजना काफी प्रेरणादायक साबित हो रही है। स्कूल कॉलजों के छात्र-छात्राओं के साथ ही क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों से किसान इस परियोजना का भ्रमण करने के साथ ही प्रशिक्षण भी प्राप्त करते हैं। (dainik Jagran)


 

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