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उत्तराखण्ड के क्रांतिवीर-स्व० श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी/ Vipin Chandra Tripathi

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पंकज सिंह महर:
साथियो,

     स्व० श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी जी के नाम से हम सभी परिचित हैं, वे उत्तराखण्ड के क्रांतिवीर, समाजवादी चिन्तक और इस राज्य के कुशल शिल्पी थे। उनका राजनीतिक और सामाजिक इतिहास काफी संघर्षमयी था, अपने विचारों के प्रति वे घोर आग्रही थे। समाज के हितों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देखते ही बनती थे, वे इन मामलों में बहुत हठी थे, उन्होंने इन सरोकारों के सामने तमाम राजनीतिक प्रलोभन भी ठुकराये थे।
     इस टोपिक के माध्यम से हम उन्हे श्रद्धांजलि देते हुये उनके जीवन से सभी को परिचित करायेंगे।

हेम पन्त:
मेरी जानकारी के अनुसार विपिन त्रिपाठी जी 1975 में इमरजेंसी के समय सबसे अधिक समय तक (लगभग २२ महीने) जेल में रहने वाले व्यक्ति हैं. जेल से निकलने के बाद लगभग सभी नेताओं ने जनता पार्टी की सरकार बनने पर पद व कुर्सियां पाने के लिये भरसक कोशिशें की. लेकिन त्रिपाठी जी ने पद की चाह न रखते हुए अपने द्वाराहाट इलाके में मूलभूत सुविधाएं जुटाने के लिये सरकार पर दवाब बनाने के लिये संघर्ष का रास्ता चुना. उनके प्रयासों से ही द्वाराहाट में स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पालीटेक्निक व कुमाऊं इन्जिनीयरिंग कालेज की स्थापना हुई.

विपिन त्रिपाठी जी के जीवन पर श्री चारू तिवारी जी ने "विपिन त्रिपाठी और उनका समय" नाम से एक पुस्तक भी लिखी है.

पंकज सिंह महर:


23 फरवरी, १९४५ को अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के दौला गांव में जन्मे विपिन त्रिपाठी जी आम जनता में "विपिन दा" के नाम से प्रसिद्ध थे। पृथक राज्य आन्दोलन के वे अकेले ऎसे विकास प्रमुख रहे हैं, जिनके द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को उत्तराखण्ड विरोधी नीतियों के खिलाफ दिये गये त्याग पत्र को शासन ने स्वीकार कर लिया था।
     २२ वर्ष की युवावस्था से विभिन्न आन्दोलनों की अगुवाई करने वाले जुझारु व संघर्षशील त्रिपाठी का जीवन लम्बे राजनैतिक संघर्ष का इतिहास रहा है। डा० लोहिया के विचारों से प्रेरित होकर १९६७ से ही ये समाजवादी आन्दोलनों में शामिल हो गये थे। भूमिहीनों को जमीन दिलाने की लड़ाई से लेकर पहाड़ को नशे व जंगलों को वन माफियाओं से बचाने के लिये ये हमेशा संघर्ष करते रहे। १९७०में तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्त का घेराव करते हुये इनको पहली बार गिरफ्तार किया गया।
      आपातकाल में २४ जुलाई, १९७४ को प्रेस एक्ट की विभिन्न धाराओं में इनकी प्रेस व अखबार "द्रोणांचल प्रहरी" सील कर शासन ने इन्हें गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल भेज दिया। अल्मोड़ा, बरेली, आगरा और लखनऊ जेल में दो वर्ष बिताने के बाद २२ अप्रेल, १९७६ को उन्हें रिहा कर दिया गया। द्वाराहाट में डिग्री कालेज, पालीटेक्निक कालेज और इंजीनियरिंग कालेज खुलवाने के लिये इन्होंने संघर्ष किया और इन्हें खुलवा कर माने। इन संस्थानों की स्थापना करवा कर उन्होंने साबित कर दिया कि जनता के सरोंकारों की रक्षा और जनता की सेवा करने के लिये किसी पद की आवश्यकता नहीं होती है।
    १९८३-८४ में शराब विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व करते हुये पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। मार्च १९८९ में वन अधिनियम का विरोध करते हुये विकास कार्य में बाधक पेड़ काटने के आरोप में भी गिरफ्तार होने पर इन्हें ४० दिन की जेल काटनी पड़ी। ईमानदारी और स्वच्छ छवि एवं स्पष्ट वक्ता के रुप में उनकी अलग पहचान बनी २० साल तक उक्रांद के शीर्ष पदों पर रहते हुये २००२ में वे पार्टी के अध्यक्ष बने और २००२ के विधान सभा चुनाव में वह द्वाराहाट विधान सभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुये। ३० अगस्त, २००४ को काल के क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया।

पंकज सिंह महर:

--- Quote from: H.Pant on August 14, 2008, 01:45:16 PM ---मेरी जानकारी के अनुसार विपिन त्रिपाठी जी 1977 में इमरजेंसी के समय सबसे अधिक समय तक जेल में रहने वाले व्यक्ति हैं. जेल से निकलने के बाद लगभग सभी नेताओं ने जनता पार्टी की सरकार बनने पर पद व कुर्सियां पाने के लिये भरसक कोशिशें की. लेकिन त्रिपाठी जी ने पद की चाह न रखते हुए अपने द्वाराहाट इलाके में मूलभूत सुविधाएं जुटाने के लिये सरकार पर दवाब बनाने के लिये संघर्ष का रास्ता चुना. उनके प्रयासों से ही द्वाराहाट में स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पालीटेक्निक व कुमाऊं इन्जिनीयरिंग कालेज की स्थापना हुई.

विपिन त्रिपाठी जी के जीवन पर श्री चारू तिवारी जी ने "विपिन त्रिपाठी और उनका समय" नाम से एक पुस्तक भी लिखी है.

--- End quote ---

हेम दा,
    १९७५ के आपातकाल में पूरे उत्तर प्रदेश में उन्हें ही सर्वाधिक दो साल का सश्रम कारावास दिया गया था।

पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड विधान सभा में स्व० त्रिपाठी जी के भाषण बहुत ओजस्वी होते थे, उनके भाषणों में उत्तराखण्ड का दर्द झलकता था। उत्तराखण्ड की पीड़ा को वे हमेशा उठाया करते थे। कई बार मुद्दों को उठाने के लिये नियमों की तकनीकी परेशानी होने पर वे कहते थे कि इन नियमों को बदल दिया जाय।
     सभी सरकारी नीतियों को उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में बनाने की वे हमेशा वकालत करते थे। सरकारी मशीनरी में व्याप्त भष्ट्राचार से वह बहुत दुःखी रहते थे। वे कहा करते थे कि हर योजना में कमीशन लिया जाता है, कम से कम विधायक निधि से होने वाले कामों में तो कमीशन न लिया जाय।
     द्वाराहाट इंजीनियरिंग कालेज में तत्कालीन प्राचार्य पर उन्होंने सवाल खड़े किये और सदन में कहा कि "मेरे द्वारा प्राचार्य पर लगाये गये आरोपों की पुष्टि किसी भी एजेंसी से करा ली जाय। यदि मेरे आरोप गलत निकलते हैं तो मैं विधान सभा की सदस्यता से त्याग पत्र दे दूंगा और भविष्य में कभी चुनाव नहीं लडूंगा।" किसी सदन में ऎसा कह पाना आज के राजनीतिग्यों के लिये बहुत कठिन है।

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