केदारघाटी की तबाही का वैज्ञनिक सच
इसरो और उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने केदार घाटी की आपदा से पहले और बाद की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं। इनमें यह तथ्य सामने आया है कि केदारनाथ पहले से ही तबाही की जद में था।
उपग्रह से मिले चित्रों ने दर्शाया है कि केदारघाटी का 95 फीसदी हिस्सा जलप्रलय की भेंट चढ़ गया है। इसके अलावा केदारधाम में 16 और 17 जून को मची भारी तबाही का
वैज्ञानिक सच सामने आ गया है।
अध्ययन में यह बात सामने आई है कि केदारनाथ के ऊपर स्थित चौराबाड़ी और सहयोगी ग्लेशियर का पानी मलबे के साथ मिलकर भारी बारिश के चलते बेकाबू हुआ। अगर बीच
में एक बड़ा स्लोप न आया होता तो तबाही का मंजर कुछ और ही होता।
स्टडी में यह बात सामने आई है कि भारी बरसात और ग्लेशियर की स्नो लेयर पिघलने के बाद पानी ने जड़ में मौजूद मोरेंस (ग्लेशियर की निचली सतह) को बढ़ा दिया। भारी दबाव के साथ पानी आगे बढ़ा तो पलभर में बोल्डर और सैंड्स ने रफ्तार पकड़ ली। सौभाग्य से बीच में एक बड़ा स्लोप आ गया।
स्लोप पर ऊपर चढ़ने में पानी वाले इस मलबे की रफ्तार कम हो गई। इसके चलते बड़े-बड़े बोल्डर केवल मंदिर और केदार वैली में ही आकर रुक गए। बाकी मलबा केदारवैली
को पार करने के बाद काफी कम स्पीड पर था लेकिन इससे आगे के रूट में नीचे की ओर स्लोप होने के चलते इसने दोबारा रफ्तार पकड़ी।
जिसकी वजह से रामबाड़ा और गौरीकुंड में भारी तबाही हुई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि केदार वैली में यह मलबा दोऊंचे स्लोप से न गुजरता तो हरिद्वार तक तबाही का खतरनाक मंजर होता।
ये सच आए सामने
1. सैटेलाइट इमेज में यह बात सामने आई है कि तबाही का यह मलबा ऊपर से केवल एक ही स्ट्रीम में चला था जो कि बाद में दो नई धाराओं में बंट गया। अब यहां पानी का एक नया रास्ता बन गया है।
2. आपदा से पहली तस्वीर में यह साफ है कि पानी एक बहुत पतली धारा में बह रहा है लेकिन हादसे के बाद की तस्वीर में यहां अनेक धाराएं देखी गई हैं।
3. प्री और पोस्ट इमेज से यह पता चला है कि कि केदारनाथ धाम और आसपास के क्षेत्रों में आपदा से भारी तबाही हुई है।
4. सैटेलाइट डाटा में यह बात साफ हो गई है कि दोनों ग्लेशियर में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं हुआ है। तेज बारिश की वजह से यह आपदा आई है।
5- सोनप्रयाग, रेलगांव, कुंड, विद्यापीठ, काकडागाड़, भीरी, चंद्रपुरी, सौड़ी, अगस्त्यमुनि और तिलवाड़ा में इमारतों व सड़क के साथ ही पुल भी बह गए हैं।
6. यह भी साफ हो गया है कि वासुकीताल का इस आपदा में कोई रोल नहीं है।
इन जगहों पर हुई सबसे ज्यादा तबाही
प्री और पोस्ट सैटेलाइट इमेज से यह पता चलता है कि सबसे ज्यादा तबाही केदारनाथ, गुरियाया, लेंचुरी, घिंदुपाणी, रामबाड़ा, गौरीकुंड और नीचे के क्षेत्रों में रुद्रप्रयाग, मुंडकटा गणेश, सोनप्रयाग, रेलगांव, सीतापुर, रामपुर, खाट, ब्यूंग, जुगरानी, चुन्नी विद्यापीठ, सेमीकुंड, काकडा, भीरी, बांसवाड़ा, तिमारिया, चंद्रापुरी, भटवाड़ी, सौड़ी, बेदुबागरचट्टी, बनियाड़ी, विजयनगर, अगस्त्यमुनि, सिल्ली और गंगताल में हुई है।
Via- Amarjala