Author Topic: बाढ़ और बारिश से उत्तराखंड में 16 और 17 जून 2013 तबाही के बाद की तस्वीरें  (Read 4510 times)

Gourav Pandey

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केदारनाथ धाम की तबाही के बाद की तस्वीर।


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गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग में रामबाड़ा की बाढ़ आने के बाद की स्थिति


यमुनोत्री घाटी

उत्तराखंड में भारी बारिश ने भयंकर तबाही मचाई है। यहां एक मकान ताश के पत्तों की तरह ढह गया और फिर नदी में बह गया |

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Pic.A :- गत 17 जून को इस तरह था कर्णप्रयाग के संगम का नजारा .. !
Pic.B :- 20 जून को कर्णप्रयाग का संगम कुछ इस तरह दिखा ..!


Pic.A :- 17 जून को कहर ढाती पिंडर की लहरें कुछ इस तरह आवसीय भवनों को गिराने को बेताब थी ..!
Pic.B :- 20 जून को जब शांत हुई पिंडर तो कर्णप्रयाग संगम के आस पास के भवन कुछ इस तरह नजर आए ..!


इस आफत में सैकड़ों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। नदी में पूरी तरह समा गया यह मकान।



बागेश्वर में उफनती सरयू जिससे यहां बने मकानों को खतरा पैदा हो गया है।

नदी के मुहाने पर बना मकान नदी में ही समा गया।


कुदरत से छेड़छाड़ करने का नतीजा शायद कुछ ऐसा ही होता है। यह आशियाना कुछ इस तरह नदी में समा गया।


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भारी बारिश से पूरी तरह नष्ट हो गई है रुद्रप्रयाग से बदरीनाथ जाने वाली सड़क।
मलबे में पूरी तरह से दब चुकी हैं ये दुकानें।


बाढ़ का सैलाब थमने के बाद स्‍थानीय लोग अब अपने घरों से मलबा निकाल रहे हैं।

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केदारनाथ में क्यों आई तबाही, चार धार्मिक कारण

राकेश/इंटरनेट डेस्क
reason of kedarnath disaster
केदारनाथ की तबाही के बाद लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। आखिर केदारनाथ में पहले भी बारिश होती थी, नदियां उफनती थी और पहाड़ भी गिरते थे।

लेकिन कभी भी केदारनाथ जी कभी भी इस तरह के विनाश का शिकार नहीं बने। प्रकृति की इस विनाश लीला को देखकर कुछ लोगों की आस्था की नींव हिल गई है। जबकि कुछ आस्थावान ऐसे भी हैं जिनकी आस्था की नींव और मजबूत हो गयी है।

ऐसे ही आस्थावान श्रद्धालुओं की नजर में केदारनाथ पर आई आपदा के पीछे कई धार्मिक कारण हैं।

धारी माता की नाराजगी
सोशल मीडिया में इसके कारणों पर जो चर्चा चल रही है उसके अनुसार इस विनाश का सबसे पहला और बड़ा कारण धारी माता का विस्थापन माना जा रहा है।

भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता उमा भरती ने भी एक सम्मेलन में इस बात को स्वीकार किया कि अगर धारी माता का मंदिर विस्थापित नहीं किया जाता तो केदारनाथ में प्रलय नहीं आती। धारी देवी का मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर से 15 किलोमीटर दूर कालियासुर नामक स्थान में विराजमान था।

धारी देवी को काली का रूप माना जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार उत्तराखंड के 26 शक्तिपीठों में धारी माता भी एक हैं। बांध निर्माण के लिए 16 जून की शाम में 6 बजे शाम में धारी देवी की मूर्ति को यहां से विस्थापित कर दिया गया। इसके ठीक दो घंटे के बाद केदारघाटी में तबाही की शुरूआत हो गयी।

अशुभ मूहुर्त
आमतौर पर चार धार की यात्रा की शुरूआत अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलने से होती है।

इस वर्ष 12 मई को दोपहर बाद अक्षय तृतीया शुरू हो चुकी थी और 13 तारीख को 12 बजकर 24 मिनट तक अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त था। लेकिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट को इस शुभ मुहूर्त के बीत जाने के बाद खोला गया।

खास बात ये हुई कि जिस मुहूर्त में यात्रा शुरू हुई वह पितृ पूजन मुहूर्त था। इस मुहूर्त में देवी-देवता की पूजा एवं कोई भी शुभ काम वर्जित माना जाता है। इसलिए अशुभ मुहूर्त को भी विनाश का कारण माना जा रहा है।

तीर्थों का अपमान
बहुत से श्रद्घालु ऐसा मानते हैं कि लोगों में तीर्थों के प्रति आस्था की कमी के चलते विनाश हुआ। यहां लोग तीर्थ करने के साथ साथ धुट्टियां बिताने और पिकनिक मनाने के लिए आने लगे थे। ऐसे लोगों में भक्ति कम दिखावा ज्यादा होता है।

धनवान और रसूखदार व्यक्तियों के लिए तीर्थस्थानों पर विशेष पूजा और दर्शन की व्यवस्था है, जबकि सामन्य लोग लंबी कतार में खड़े होकर अपनी बारी आने का इंतजार करते रहते हैं। तीर्थों में हो रहे इस भेद-भाव से केदारनाथ धाम भी वंचित नहीं रहा।

मैली होती गंगा का गुस्सा
मंदाकिनी, अलकनंदा और भागीरथी मिलकर गंगा बनती है। कई श्रद्धालुओं का विश्वास है कि गंगा अपने मैले होते स्वरूप और अपमान के चलते इतने रौद्र रूप में आ गई। कहा जाता है कि गंगा धरती पर आना ही नहीं चाहती थी लेकिन भगवान शिव के दबाव में आकर उन्हें धरती पर उतरना पड़ा।

भगवान शिव ने गंगा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने का विश्वास दिलाया था। लेकिन बांध बनाकर और गंदला करके हो रहा लगातार अपमान गंगा को सहन नहीं हो पाया।

अपने साथ हो रहे अपमान से नाराज गंगा 2010 में भी रौद्र रूप दिखा चुकी हैं जब ऋषिकेश के परमार्थ आश्रम में विराजमान शिव की विशाल मूर्ति को गंगा की तेज लहरें अपने प्रवाह में बहा ले गई थी।
via- Amarujala


Gourav Pandey

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केदारघाटी की तबाही का वैज्ञ‌निक सच

इसरो और उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने केदार घाटी की आपदा से पहले और बाद की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं। इनमें यह तथ्य सामने आया है कि केदारनाथ पहले से ही तबाही की जद में था।

उपग्रह से मिले चित्रों ने दर्शाया है कि केदारघाटी का 95 फीसदी हिस्सा जलप्रलय की भेंट चढ़ गया है। इसके अलावा केदारधाम में 16 और 17 जून को मची भारी तबाही का
वैज्ञानिक सच सामने आ गया है।

अध्ययन में यह बात सामने आई है कि केदारनाथ के ऊपर स्थित चौराबाड़ी और सहयोगी ग्लेशियर का पानी मलबे के साथ मिलकर भारी बारिश के चलते बेकाबू हुआ। अगर बीच
में एक बड़ा स्लोप न आया होता तो तबाही का मंजर कुछ और ही होता।

स्टडी में यह बात सामने आई है कि भारी बरसात और ग्लेशियर की स्नो लेयर पिघलने के बाद पानी ने जड़ में मौजूद मोरेंस (ग्लेशियर की निचली सतह) को बढ़ा दिया। भारी दबाव के साथ पानी आगे बढ़ा तो पलभर में बोल्डर और सैंड्स ने रफ्तार पकड़ ली। सौभाग्य से बीच में एक बड़ा स्लोप आ गया।

स्लोप पर ऊपर चढ़ने में पानी वाले इस मलबे की रफ्तार कम हो गई। इसके चलते बड़े-बड़े बोल्डर केवल मंदिर और केदार वैली में ही आकर रुक गए। बाकी मलबा केदारवैली
को पार करने के बाद काफी कम स्पीड पर था लेकिन इससे आगे के रूट में नीचे की ओर स्लोप होने के चलते इसने दोबारा रफ्तार पकड़ी।

जिसकी वजह से रामबाड़ा और गौरीकुंड में भारी तबाही हुई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि केदार वैली में यह मलबा दोऊंचे स्लोप से न गुजरता तो हरिद्वार तक तबाही का खतरनाक मंजर होता।

ये सच आए सामने
1. सैटेलाइट इमेज में यह बात सामने आई है कि तबाही का यह मलबा ऊपर से केवल एक ही स्ट्रीम में चला था जो कि बाद में दो नई धाराओं में बंट गया। अब यहां पानी का एक नया रास्ता बन गया है।

2. आपदा से पहली तस्वीर में यह साफ है कि पानी एक बहुत पतली धारा में बह रहा है लेकिन हादसे के बाद की तस्वीर में यहां अनेक धाराएं देखी गई हैं।

3. प्री और पोस्ट इमेज से यह पता चला है कि कि केदारनाथ धाम और आसपास के क्षेत्रों में आपदा से भारी तबाही हुई है।

4. सैटेलाइट डाटा में यह बात साफ हो गई है कि दोनों ग्लेशियर में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं हुआ है। तेज बारिश की वजह से यह आपदा आई है।

5- सोनप्रयाग, रेलगांव, कुंड, विद्यापीठ, काकडागाड़, भीरी, चंद्रपुरी, सौड़ी, अगस्त्यमुनि और तिलवाड़ा में इमारतों व सड़क के साथ ही पुल भी बह गए हैं।

6. यह भी साफ हो गया है कि वासुकीताल का इस आपदा में कोई रोल नहीं है।

इन जगहों पर हुई सबसे ज्यादा तबाही
प्री और पोस्ट सैटेलाइट इमेज से यह पता चलता है कि सबसे ज्यादा तबाही केदारनाथ, गुरियाया, लेंचुरी, घिंदुपाणी, रामबाड़ा, गौरीकुंड और नीचे के क्षेत्रों में रुद्रप्रयाग, मुंडकटा गणेश, सोनप्रयाग, रेलगांव, सीतापुर, रामपुर, खाट, ब्यूंग, जुगरानी, चुन्नी विद्यापीठ, सेमीकुंड, काकडा, भीरी, बांसवाड़ा, तिमारिया, चंद्रापुरी, भटवाड़ी, सौड़ी, बेदुबागरचट्टी, बनियाड़ी, विजयनगर, अगस्त्यमुनि, सिल्ली और गंगताल में हुई है। Via- Amarjala

 

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