प्रतिष्ठित खजांचियों के नाम से बना खजांची मोहल्ला
विवेकानंद दो बार ठहरे खजांची मोहल्ले में
अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में स्थित खजांची मोहल्ले का ऐतिहासिक महत्व है। इस मोहल्ले में रहने वाले ठुलघरिया शाह परिवार चंद शासकों और अंग्रेजों के खजांची रहे। इसी कारण इसका नाम खजांची मोहल्ला रखा गया। यही वह मोहल्ला है जहां स्वामी विवेकानंद हिमालय यात्रा के दौरान दो बार लाला बद्री शाह के मेहमान बनकर रुके। 11 मई 1897 में इसी जगह पर उन्होंने अल्मोड़ा वासियों को संबोधित भी किया था।
चंद शासकों ने लगभग 1560 में राजधानी को चंपावत से अल्मोड़ा में स्थानांतरित किया। अल्मोड़ा के शाह ठुलघरिया परिवार चंद शासकों के शासनकाल में ही खजांची मोहल्ले में बसने लगे। ठुलघरिया लोग पहले चंद शासकों और बाद में अंग्रेजों के खजांची रहे। अंग्रेजों के शासनकाल में रायबहादुर चिरंजीलाल शाह, दुर्गा शाह, बद्री शाह, गुरुदास शाह, एलआर शाह सहित कई ठुलघरिया परिवारों की काफी प्रतिष्ठा थी। दुर्गा शाह पहले चंपावत में पाल राजाओं के खजांची रहे। बाद में चंपावत से वह अल्मोड़ा आ गए। नैनीताल में बसासत शुरू होने के बाद दुर्गा शाह सहित कुछ प्रतिष्ठित लोग कामकाज के लिए वहां चले गए। बाद में उनके परिवार वहीं बस गए। इस परिवार को दुर्गा शाह मोहन लाल शाह बैंकर्स के रूप में भी जाना जाता है। चिरंजी लाल शाह ठुलघरिया परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य थे। इस मोहल्ले में रहने वाले एक अन्य चिरंजीलाल शाह नृत्य सम्राट उदयशंकर के सहयोगी रहे।
स्वामी विवेकानंद 1890 और 1897 में दो बार अल्मोड़ा आए और दोनों बार वह खजांची मोहल्ला में बद्री शाह के घर पर रुके। बद्री शाह जी के इस घर में आज भी उनकी बाद की पीढ़ी के लोग रहते हैं। खजांची मोहल्ले के अधिकांश घर 1800 से पहले के बने हैं लेकिन उनका मूल स्वरूप अब भी वही है। अधिकांश घरों में उस दौर के बने दरवाजे और खिड़कियां आज तक सुरक्षित हैं। अधिकांश भवनों में तुन की लकड़ी का प्रयोग किया गया है। दरवाजों और खिड़कियों में नक्काशी उकेरी गई है।