Author Topic: Almoraboy's Zone : अल्मोडा मेरे गाँव की तस्वीरे  (Read 43716 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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प्रतिमाओं के लिए भी विख्यात है अल्मोड़ा

अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के शारदीय नवरात्र दशहरा महोत्सव व रामलीला के लिए ही नहीं जाने जाते बल्कि पिछले 28 वर्षो से मां दुर्गा की भव्य व कलात्मक प्रतिमाओं के लिए भी जाना जाने लगा है। प्रथम नवरात्र से नगर के गंगोला मोहल्ला, लाला बाजार व राजपुरा में शक्ति स्वरूपा मां की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमा स्थापित कर नवरात्र भर पूजा-अर्चना चलती है। इसी क्रम में प्रत्येक दुर्गा पंडाल के आयोजकों से इस संदर्भ में चर्चा की गई। सर्वप्रथम 1981में गंगोला मोहल्ला से मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण शुरू हुआ।
यह क्रम आज भी बदस्तूर जारी है। गंगोला मोहल्ला में इस परंपरा को शुरू करने वाले प्रभात साह गंगोला का कहना है कि इस कार्य की शुरूआत के पीछे उनका ध्येय केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सारे नगर के आस्थावान व कला के प्रति रुझान रखने वाले लोगों को जोड़ना व आपसी मेल-मिलाप को आपाधापी के युग में बरकरार रखना था।



 पूछने पर उन्होंने बताया कि नगर के जाने-माने कलाकार ध्रुवतारा जोशी, जो शुरूआत में अकेले मूर्ति निर्माण में जूझते थे, आज उनकी ही प्रेरणा का परिणाम है कि एक नहीं अनेक धु्रवतारा जोशी खड़े हो गए है। उन्होंने बताया कि उनके पंडाल में प्रतिवर्ष नवदुर्गा के एक रूप को दर्शाया जाता है। इसके साथ ही नगर, जिले के शिखरों में शोभित, विराजमान मां के मंदिर व मां की प्रतिमूर्ति बनाने का प्रयास किया जाता है। इस वर्ष नगर के समीपवर्ती शक्तिपीठ माता कसारदेवी के मंदिर का प्रतिरूप दर्शाया गया है। संसाधन के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कभी भी मां के इस पुनीत कार्य को करने के लिए किसी के आगे जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। यहीं इतना आ जाता है कि सारे कार्यक्रम सहजता से हो जाते है।
ऐसा ही कुछ कहना है राजपुरा के मूर्ति निर्माण में मुख्य भूमिका अदा करने वाले कमल किशोर व सुधीर कुमार का। पिछले 15 वर्षो से वहां भी बिना नागा मां भगवती की मूर्ति का निर्माण हो रहा है। हर वर्ष मां के अलग-अलग स्वरूपों को चित्रित किया जाता है।

ऐसा ही कुछ लाला बाजार में बनने वाली मां दुर्गा के पंडाल के मुख्य कार्यकर्ता अशोक धवन का कहना है कि उन्हे कभी भी इस आयोजन के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होती।
मां की कृपा से सब व्यवस्था हो जाती है। पिछले 16 वर्षो से दुर्गा प्रतिमा का निर्माण हो रहा है। हालांकि इस वर्ष लाला बाजार दुर्गा समिति के लोगों ने मूर्ति बाहर से मंगाई है। ताकि इस परंपरा को बरकरार रखा जा सके।

Almoraboy_reborn

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Great photos Daju..

प्रतिमाओं के लिए भी विख्यात है अल्मोड़ा

अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के शारदीय नवरात्र दशहरा महोत्सव व रामलीला के लिए ही नहीं जाने जाते बल्कि पिछले 28 वर्षो से मां दुर्गा की भव्य व कलात्मक प्रतिमाओं के लिए भी जाना जाने लगा है। प्रथम नवरात्र से नगर के गंगोला मोहल्ला, लाला बाजार व राजपुरा में शक्ति स्वरूपा मां की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमा स्थापित कर नवरात्र भर पूजा-अर्चना चलती है। इसी क्रम में प्रत्येक दुर्गा पंडाल के आयोजकों से इस संदर्भ में चर्चा की गई। सर्वप्रथम 1981में गंगोला मोहल्ला से मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण शुरू हुआ।
यह क्रम आज भी बदस्तूर जारी है। गंगोला मोहल्ला में इस परंपरा को शुरू करने वाले प्रभात साह गंगोला का कहना है कि इस कार्य की शुरूआत के पीछे उनका ध्येय केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सारे नगर के आस्थावान व कला के प्रति रुझान रखने वाले लोगों को जोड़ना व आपसी मेल-मिलाप को आपाधापी के युग में बरकरार रखना था।



 पूछने पर उन्होंने बताया कि नगर के जाने-माने कलाकार ध्रुवतारा जोशी, जो शुरूआत में अकेले मूर्ति निर्माण में जूझते थे, आज उनकी ही प्रेरणा का परिणाम है कि एक नहीं अनेक धु्रवतारा जोशी खड़े हो गए है। उन्होंने बताया कि उनके पंडाल में प्रतिवर्ष नवदुर्गा के एक रूप को दर्शाया जाता है। इसके साथ ही नगर, जिले के शिखरों में शोभित, विराजमान मां के मंदिर व मां की प्रतिमूर्ति बनाने का प्रयास किया जाता है। इस वर्ष नगर के समीपवर्ती शक्तिपीठ माता कसारदेवी के मंदिर का प्रतिरूप दर्शाया गया है। संसाधन के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कभी भी मां के इस पुनीत कार्य को करने के लिए किसी के आगे जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। यहीं इतना आ जाता है कि सारे कार्यक्रम सहजता से हो जाते है।
ऐसा ही कुछ कहना है राजपुरा के मूर्ति निर्माण में मुख्य भूमिका अदा करने वाले कमल किशोर व सुधीर कुमार का। पिछले 15 वर्षो से वहां भी बिना नागा मां भगवती की मूर्ति का निर्माण हो रहा है। हर वर्ष मां के अलग-अलग स्वरूपों को चित्रित किया जाता है।

ऐसा ही कुछ लाला बाजार में बनने वाली मां दुर्गा के पंडाल के मुख्य कार्यकर्ता अशोक धवन का कहना है कि उन्हे कभी भी इस आयोजन के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होती।
मां की कृपा से सब व्यवस्था हो जाती है। पिछले 16 वर्षो से दुर्गा प्रतिमा का निर्माण हो रहा है। हालांकि इस वर्ष लाला बाजार दुर्गा समिति के लोगों ने मूर्ति बाहर से मंगाई है। ताकि इस परंपरा को बरकरार रखा जा सके।


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ALMODA BAZAAR 1860 MAIN


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अल्मोड़ा के बारें में  आज के इतिहासकारों की मान्यता है कि सन् १५६३ ई. में चंदवंश के राजा  बालो कल्याणचंद ने आलमनगर के नाम से इस नगर को बसाया था। चंदवंश की पहले  राजधानी चम्पावत थी। कल्याणचंद ने इस स्थान के महत्व को भली-भाँति समझा।  तभी उन्होंने चम्पावत से बदलकर इस आलमनगर (अल्मोड़ा) को अपनी राजधानी  बनाया।  सन् १५६३ से लेकर १७९० ई. तक अल्मोड़ा का धार्मिक भौगोलिक और ऐतिहासिक  महत्व कई दिशाओं में अग्रणीय रहा। इसी बीच कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं  राजनैतिक घटनाएँ भी घटीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से भी  अल्मोड़ा सम्स्त कुमाऊँ अंचल का प्रतिनिधित्व करता रहा।
सन् १७९० ई. से गोरखाओं का आक्रमण कुमाऊँ अंचल में होने लगा था।  गोरखाओं ने कुमाऊँ तथा गढ़वाल पर आक्रमण ही नहीं किया बल्कि अपना राज्य भी  स्थापित किया। सन् १८१६ ई. में अंग्रेजो की मदद से गोरखा पराजित हुए और इस  क्षेत्र में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया। स्वतंत्रता की लड़ाई में  भी अल्मोड़ा के विशेष योगदान रहा है।

शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान  में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है।कुमाऊँनी संस्कृति की असली छाप अल्मोड़ा  में ही मिलती है - अत: कुमाऊँ के सभी नगरों में अल्मोड़ा ही सभी दृष्टियों  से बड़ा है। दोस्तों यहाँ  पर में अल्मोड़ा के कुछ फोटो पोस्ट करा रहा  हूँ,आप लोगों को जरुर पसंद आयेंगें

जय देवभूमि उत्तराखंड
 

यम यस जाखी





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रात के नज़ारे


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