देवभूमि का 200 साल पुराना शहर जो है झील के अंदर
वर्ष 1815 से पहले धुनारों की बस्ती में जब 28 दिसंबर 1815 को टिहरी बसाई गई थी तो तत्कालीन राजपुरोहित ने इस शहर की उम्र दो सौ वर्ष से कम बताई थी। तब किसी को शायद ही यकीन आया होगा कि वास्तव में यह शहर दो सौ वर्ष से पहले ही जल समाधि लेकर हमेशा-हमेशा के लिए डूब जाएगा। अपने स्थापना के 90 वर्ष बाद 29 अक्तूबर 2005 को उत्तराखंड में बसा खूबसूरत टिहरी शहर डूब गया। हालांकि इस शहर में पले-बढ़े और पैदा हुए लोग टिहरी को किसी न किसी रूप में जिंदा रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं। वे टिहरी के डूबने को एक भूगोल भर का डूबना मानते हैं। कहते हैं टिहरी लोगों के दिलों में धड़कता रहेगा। जहां कहीं भी टिहरी के लोग होंगे, उनमें टिहरी मौजूद रहेगा। टिहरी के राजाओं की लंबे समय तक टिहरी शहर राजधानी रहा। बाद के वर्षों में प्रताप शाह ने ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में प्रतापनगर और कीर्तिशाह ने कीर्तिनगर बसाया। जबकि ज्योतिषियों के कहने पर 1919 में नरेंद्र शाह ने नरेंद्रनगर बसाकर पूरी तरह राजधानी वहां शिफ्ट की। हालांकि टिहरी शहर सांस्कृतिक, साहित्यिक गतिविधियों के साथ ही जिले के राजनीतिक और आर्थिक क्रियाकलापों के रूप में आगे बढ़ता रहा। यह शहर श्रीदेव सुमन की शहादत का गवाह रहा।