चारों ओर जहां तक नजरें जाती हंै, वहां तक फैली हरियाली, ग्लशियरों से निकली जल धाराएं, नदियां, क्रिस्टल की तरह चमकते साफ पानी के झरने, सैकडों किस्म के फूल अपनी मोहक मुस्कान और खुशबू फैला कर यहां आने वालों पर्यटकों का स्वागत करते हैं।
यहां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के हिमालय-जोशीमठ क्षेत्र में स्थित फूलों की घाटी की। यहां का विहंगम दृश्य देखने पर लगता हैमानो हिमालय पर्वत ने विशाल रंग-रंगीले फूलों की माला पहन रखी हो। यहां किंवदती है कि रामायण काल में हनुमान जी लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी यहीं से लेकर गए थे।
रंगीन फूलों से महकती इस घाटी के चारों ओर बर्फीले पहाड इसकी छटा में चार चांद लगा देते हैं। करीब 87.5 वर्ग किलोमीटर में फैली इस घाटी में लगभग तीन सौ किस्मों के फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं।
वर्ष 1931 में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ ने पर्वत से उतरते हुए फूलों की इस घाटी को देखा, तो वे इन्हें देख इन पर मुग्ध हो गए। वे वर्ष 1937 में फिर से यहां आए, फूलों पर शोध किया। उन्होंने यहां तीन सौ फूलों की प्रजातियां ढूंढ निकाली। यहां से लौटकर उन्होंने 'वैली ऑफ फ्लावर्स' नामक पुस्तक लिखी। इसके बाद यहां पर्यटकों की तादाद में बढोतरी होने लगी। घाटी में ब्रह्मकमल, आर्कीड, एकोनिटक एट्राक्स, प्रीमूला, बुरांस, पौपी, रोजी, वर्जीनिया, केलेडूला, डैजी, ओनेस्मा, पेस्टोरिस, इमोडी, एनेमोन, थाइमस, बुरूंस, बीर्च सहित अन्य कई दुलर्भ प्रजातियों के फूल पाए जाते हैं।
सन् 1939 में लंदन की मारग्रेट लैग फूलों का अध्ययन करते समय एक चट्टान से फिसलकर गिर गई और उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद यहां मारग्रेट लेग की बहन ने उनकी याद में घाटी के बीच में एक स्मारक बनाया।