क्यों नहीं राजेन जी मैं आपको बताना चाहूँगा, सिद्ध बाबा के बारे मैं जो किवदंतियां है.....ओ निम्न प्रकार है....
पहले लोग घुमुन्तु जीवन बिताते थे जिन्हें आज हम खत्ता कहते है, जैसे सितारगंज के पास "बिन्दुखत्ता" लोग अलग अलग गाँव से आकर खत्तों में जमा होते थे, और साथ में अपनी गाये, भैंसे आदि भी लाते थे क्यूंकि उस वक्त पशुपालन ही सबसे ज्यादा होता था....एक बार की बात है कि लोग अपने जानवरों को जंगल चुगाने के लिए जंगल लेकर गये, जब रात को वापस आये तो ढूध देने वाले जानवरों को दुहने पर ढूध आना बंद हो गया, लोगो को कुछ अजीब लगा क्यूंकि अब जानवरों के बछड़ों पर शक होने लगा, दुसरे दिन कि बात है सारे जानवरों के बछड़ो को खत्ते पर ही रखा गया लेकिन जानवरों को जंगल छोड़ दिया गया, उस दिन भी दूध निकलने पर दूध नहीं मिला. अब लोगो को थोडा शक होने लगा अगले दिन उन्होंने इस बात का पता करने के लिए जानवरों पर पहरेदारी शुरू कर दी....तब देखने पर पता चला की जानवरों के थनों से अपने आप ही ढूध एक पत्थर पर गिर रहा था......(ओ पत्थर आज भी हमारे गाँव में है जिस पर खुर (जानवरों के पैरो के निशान) तथा थनों के आकर से गिरता दूध, मैं कोशिश करूँगा कि शीघ्र से शीघ्र ओ फोटो आप लोगो तक पहुचे) लोगो को अनायाश ही वहा पर कोई भगवान के होने का शक हुआ, उसके बात उन लोगो ने उस अद्रश्य शक्ति से विनंती की, कि इस तरह से आप दूध न पिया करे हम आपको खुद ही दूध दे दिया करेंगे.....उसके बात जानवरों के साथ ये सब घटनाये बंद हो गयी तथा लोग उस अद्रश्य शक्ति को पूजने लगे......एक दिन अचानक एक ग्वाले के बच्चे ने अनायाश ही लोगो को बताया कि वे लोग जहा उस स्थान पर उस शक्ति का मंदिर स्थापित करे और उसकी परिधि में काफी दूर तक कोई भी जूठी वास्तु न राखी जाये और जो दूध उस मंदिर में चढ़ाया जायेगा ओ बछड़े तक का जूठा नहीं होना चाहिए...आज भी जो दूध मंदिर में चढ़ाया जाता है ओ बछड़े का जूठा नहीं होता है.......और मंदिर को कभी भी दीवारों और छतो से न ढका जाए,,,बात में लोगो ने ग्वालो में से एक आदमी को चुनकर उसका मंदिर का पुजारी बनाया बाबा ने उस आदमी को इस प्रकार कि शक्ति से प्रेरित किया कि उसने कभी भी शादी नहीं कि और आजीवन किसी का बनाया हुआ खाना नहीं खाया, आज भी उस मंदिर का पुजारी वही इन्सान होता है जो आजीवन कुंवारा हो और कभी किसी भी मोह माया में न पड़े, उसका जीवन एक फ़कीर कि तरह से होता है.......इससे लोगो के ज्ञात हुआ कि ये कोई सिद्धि प्राप्त शक्ति है जो इस प्रकार का कार्य पुजारी से कराती है या खुद ही पुजारी उस रंग में रंग जाता है "इसलिए" इन्हें सिद्ध बाबा के नाम से पुकारा जाता है, बाबा कभी भी जूठा नहीं पसंद नहिः करते इसका प्रमाण ये है आजतक जितने भी सिद्ध देवता के मंदिर है सब ऊँची से ऊँची चोटियों पर है ताकि पानी तक भी उन पर जूठा न पड़े ........(ये सारी जानकारी श्री सैम देवता के पुजारी श्री केशव दत्त पनेरू जी ने उपलब्ध करायी है पुजारी जी को देवताओं के सम्बन्ध में काफी जानकारी है ये हमारे ग्राम और पास पडोश के गाँव वालों के कथनानुसार)
Good going Deepak ji.
+1 Karma to U for posting the pic of Sidh Baba Mandir. Jai ho Sidh Baba kee. Could you write something about Sidh Baba
मुझे इतना पता है की अन्य देवताओं की तरह सिद्ध बाबा का मंदिर किसी इमारत में नहीं बनाया जाता. बाबा खुले में रहते हैं.