Author Topic: Phots of Nanda Devi Women’s Festival U.K,नंदादेवी वार्षिक महोत्सव की तस्वीरें  (Read 22058 times)










देवभूमि उत्तराखंड श्रीमान जी फेसबुक पेज Nanda Devi Raj Jat Yatra http://www.facebook.com/rajjat.yatra  से फोटो उद्धृत करने के लिए दिल से धन्यवाद।
   श्रीमान जी इस पेज को मै संचालित करता हूँ और ये सभी फोटो मेरे पैत्रिक गाउँ सोल डुंग्री (चमोली गढ़वाल के बधाण पट्टी मे तहसील थराली) मे नन्दा देवी राज-राजेश्वरी वार्षिक लोक जात यात्रा २०११ के दौरान ली गयी थी।

  मित्रो आप भी इस लिंक पे जाकर इन फोटोओ का और अन्य जानकारी का लुफ्त ले सकते हो  http://www.facebook.com/media/set/?set=a.155359844549574.39867.100002266789177&type=3

                                                          “माँ नन्दा वार्षिक लोक जात यात्रा”

    जैसा की सर्वविदित है की माँ नन्दा को पूरे उत्तराखंड(गढ़वाल & कुमाऊँ) में ईष्ट देवी के रूप मे माना जाता है और इसमे कोई संदेह भी नहीं है। क्योंकि माँ नन्दा का वास तो उत्तरांखंड के घट-घट मे है, और सम्पूर्ण उत्तराखंड मे माँ नन्दा को किसी न किसी रूप मे पूजा जाता है।
    जनमत और शोध के अनुसार माँ नन्दा देवी गढ़वाल के राजाओं की और साथ-साथ कुमाऊँ के कत्युरी राजवंश की भी ईष्ट देवी थी। ईष्ट देवी होने के कारण माँ नन्दा देवी को राजराजेश्वरी नाम से भी संबोधित किया जाता है, कत्युरी राजवंश की पौराणिक राजधानी ज्योतिर्मठ (जोशिमठ) मानी जाती है अर्थात चमोली जो अब गढ़वाल मे है वो पहले कत्युरी शाशन का एक अभिन्न क्षेत्र हुआ करता था, और यहीं से प्रारम्भ हुयी थी ये नन्दा जात यात्रा। नन्दा जात यात्रा प्रतिवर्ष कुरुड गाँव (नंदप्रयाग, घाट) से हर्षो-उल्लाष के साथ मनाई जाती है। कुरुड गाँव मे माँ नन्दा देवी (माँ भगोती) का शक्ति मंदिर है और कुरुड नन्दा शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है।
   माँ नन्दा देवी गढ़वाल एवं कुमाऊँ की ईष्ट देवी है और दोनों मंडलो मे नन्दा पर्व पूराकाल से ही धूम-धाम से मनाया जाता है। राजा कनकपाल के गढ़वाल गठन से पूर्व चाँदपुरगढ़ी एवं दशोली-बधाण से नन्दा यात्राएं होती होंगी। तब दशोली एवं बधाण कत्युरी राज्य का अभिन्न हिस्सा हुवा करता था और इतिहासकर भी जोशिमठ (ज्योतिर्मठ) मे कत्युरी शाशन की पुरानी राजधानी मानते है। कुरुड से शुरू होने वाली नन्दा वार्षिक यात्रा भी कत्युरी शाशन काल से चली आ रही एक सांस्कृतिक परंपरा है। क्योंकि इस यात्रा मे कत्युरी संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है।
  यह यात्रा प्रतिवर्ष सावन, भाद्रपद (भादों) मास मे तिथि (ज्योतिष गणनाओं) के अनुसार आयोजित की जाती है।

                                                                                                                                                 धन्यवाद
                                                                                                                                              महेन्द्र सिंह राणा

 

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