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PHOTS OF RELIGIOUS PLACES OF GOPESWER,गोपेश्वर, के धार्मिक स्थलों की फोटो

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Devbhoomi,Uttarakhand:


परिसर के अन्य मंदिर गणेश, हनुमान, अनुसूया तथा नवदूर्गा को समर्पित हैं। परिसर में एक पुष्पित झाड़ी भी है जो झूमते गुलाब की तरह दिखता है, जिसे कल्प वृक्ष कहा गया है, जिसके सफेद फूल साल के 12 महीने खिलते हैं। लोहे का विशाल त्रिशूल भी परिसर में गड़ा है, जिस पर खुदे अक्षर वर्तमान 6ठी से 7वीं सदी के हैं। 16 फीट ऊंचा त्रिशूल 4 फीट ऊंचे एक सिलिंडरनुमा पिंड पर आधारित है, जिसकी छड़ें 4 फीट लंबी हैं।



 इस पर चार लेख संस्कृत की नागरी लिपि में हैं जो स्कंदनाग, विष्णुनाग, गणपतनाग जैसे शासकों का वर्णन करते हैं। वर्ष 1191 का एक अन्य संस्कृत लेख में नेपाल के माल्ला वंश के शासक अशोक चाल्ला का वर्णन है। कहा जाता है कि आप जितना भी जोर लगा लें त्रिशूल को हिला नहीं सकते, पर एक भक्त अपनी छोटी ऊंगली से छूकर इसे हिला सकता है।

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 गोपीनाथ मंदिर से जुड़ी एक अन्य कहावत यह है कि इस मंदिर का निर्माण राजा मारूत द्वारा कराया गया। उसने मंदिर निर्माण में सैकड़ों कामगारों को लगा दिया। फिर भी प्रतिदिन जो निर्माण कार्य होता वह जमीन में धंस जाता और दूसरे दिन फिर वे कार्य आरंभ करते। यह कुछ समय तक चलता रहा और राजा चिंतित हो उठा।

 उसकी उद्देश्य की दृढ़ता की परखने के लिए भगवान शिव ने स्वप्न में राजा से कहा कि मंदिर का निर्माण केवल तभी होगा, जब वह अपने सबसे बड़े पुत्र एवं अपने उत्तराधिकारी को मंदिर की नींव में जीवित चुनवा देगा। राजा ने ठीक वैसा ही किया। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसके पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया एवं मंदिर निर्मित हो पाया। गर्भगृह में स्थापित एवं पूजित एक मूर्ति राजा मारूत के पुत्र का होना माना जाता है।

यह भी कहा जाता है कि 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य भी गोपीनाथ मंदिर में आये थे तथा उनके द्वारा स्थापित वैदिक रीति से ही यहां पूजा होती है। वर्ष 1970 के दशक तक मंदिर का प्रशासन बद्रीनाथ-केदारनाथ की तरह ही रावल के हाथों में था। प्रथम रावल केरल से आया तथा वही परंपरा 20वी सदी तक जारी है।

मंदिर के पीछे रावल के कोठे के अवशेष अब भी देखे जा सकते हैं। रावलों के साथ केरल से ही भट्ट भी यहां आये जो पीढ़ियों से यहां के पुजारी रहे है। इस उत्तरदायित्व को उन्होंने तिवारियों के साथ बांट लिया। आज रोस्टर प्रणाली के अनुसार बारी-बारी से भट्ट एवं तिवारी मंदिर के पुजारियों में बंटा है जैसा कि हमें तत्कालीन पुजारी भगवती प्रसाद भट्ट ने बताया।

मंदिर के अंदर फोटो खींचने की सख्त मनाही है। जिसकी गंभीर चेतावनी मंदिर स्थित भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के कर्मचारी आपको देंगे।
 

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चमोलानाथ मंदिर



चमोली में स्थित यह मंदिर चमोली के ग्राम देवता को समर्पित है। कहा जाता है कि देवता के नाम पर ही चमोली का नाम पड़ा जो इस स्थल पर सदियों पहले भूमि से उदित हुए। मंदिर के पुजारी आनंद सिंह के अनुसार वर्ष 1946-47 में चमोली के अनुमंडलाधिकारी वाई एस भंडारी द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया। इस षट्कोणीय मंदिर के अंदर प्राचीन प्रतिमा है।

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चमोलानाथ मंदिर

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