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PHOTS OF RELIGIOUS PLACES OF GOPESWER,गोपेश्वर, के धार्मिक स्थलों की फोटो
Devbhoomi,Uttarakhand:
गोपेश्वर, के धार्मिक स्थलों की फोटो
गोपेश्वर, के धार्मिक स्थलों की फोटो दोस्तों जैसा की आप जानते ही हैं गोपेस्वेर के बारें मैं और अगर आपलोगों के पास कोई और जानकारी और गोपेस्वेर की फोटोस होंगी तो आप भी यहाँ पोस्ट करें की महान किरपा करें
स्कंद पुराण के केदार खंड में गोपेश्वर को गोस्थल कहा गया है, माना जाता है कि गोपीनाथ मंदिर का स्वयंभू शिवलिंग अनंत काल से वहां है। उस समय यह स्थान एक घने जंगल से घिरा था, जिसका इस्तेमाल केवल चरवाहे मवेशियों को चराने के लिये किया करते थे। एक विशेष गाय प्रत्येक दिन शिवलिंग पर अपना दूध अर्पण कर जाती।
चरवाहा चकित थे कि यह गाय दूध क्यों नहीं देती है। एक दिन उसने उसका पीछा कर देखा कि वह अपना दूध भगवान शिव को स्वेच्छा से अर्पित करती थी। यही कारण था कि इस स्थान को गोस्थल कहा गया जो बाद में बदलकर गोपीनाथ के नाम पर गोपेश्वर हो गया।
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GOPESWR SAHAR
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GOPESWER SHAR
गोपेश्वर चमोली जिले का मुख्यालय 1970 के दशक से है। यह शहर ग्रामीण एवं शहरी वातावरण का एक अद्भुत मिश्रण है जो पास के गांवों को नगरपालिका क्षेत्र में शामिल कर लेने का नतीजा है। शहर के बाजारी इलाके के आगे आप कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी महिलाओं को खेतों में काम करते या मवेशियों को चराते देख सकते हैं तथा पुराने घरों की निचली मंजिल पर मवेशियों को भी देखा जा सकता है। गोपेश्वर में प्राचीन गोपीनाथ मंदिर की प्रधानता है, जो एक व्यस्त बाजारी स्थान के अंत में हैं।
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दीन दयाल उपाध्याय पार्क
गोपेश्वर में कहीं से भी दीन दयाल उपाध्याय पार्क को देखा जा सकता है। गोपीनाथ मंदिर के पीछे पहाड़ी पर निर्मित यह पार्क शहर के आस-पास की पहाड़ियों का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। वर्ष 1985 में नगरपालिका परिषद् द्वारा ढलान पर बनाये गये इस पार्क में सुविधा के लिये कई बेंच भी निर्मित हैं।
कहा जाता है कि कुछ पहले तक पहाड़ी के शिखर पर अग्नि को समर्पित एक मंदिर था जो लगातार नियमित अंतराल से अग्नि प्रज्जवलित रहती थी। यह भी कहा जाता है कि पार्क के निर्माण के लिये जब खुदाई हो रही थी तब संभवत: गोपीनाथ मंदिर का खजाना मिला, जिसे ठीकेदार ने हड़प लिया।
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गोपीनाथ मंदिर
वर्ष 1970 से मंदिर की भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अनुसार गोपेश्वर बाजार के एक सिरे पर स्थित यह मंदिर गढ़वाल के सर्वाधिक ऊंचे एवं विशाल मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण वर्तमान 9वीं से 11वीं सदी के बीच कत्युरी वंश के शासन के दौरान हुआ।
भूरे पत्थरों के टुकड़ों से निर्मित यह प्रभावशाली मंदिर परिसर के बीच स्थित है तथा यहां और कई छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह पूरे उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर के बाद सर्वाधिक प्राचीन है। प्रमुख मंदिर का नागर शैली का एक शिखर, एक वर्गाकार गर्भगृह तथा एक मंडप एवं एक अंतराल है, जिन्हें अक्ष पर ‘बाद’ में जोड़ा गया। गर्भगृह की बाहरी दीवारों पर कुछ लेख खुदे हैं, जिन्हें अब तक पढ़ा नहीं जा सका है। कमरे में गर्भगृह के सामने नंदी की एक प्राचीन प्रस्तर मूर्ति के साथ ही गणेश की एक प्रतिमा भी है। गर्भगृह के भीतर शिवलिंग, पार्वती की मूर्ति, चंद्रिका देवी, भगवान विष्णु, भगवान इन्द्र तथा राजा मारूत के पुत्र की प्रतिमाएं भी हैं।
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